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Updated: 31 अक्टूबर, 2021 05:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) 2024 के आम चुनाव की तैयारी के मद्देनजर गोवा पहुंची हुई हैं. ममता बनर्जी के दौरे को सफल बनाने के लिए तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहले से ही वहां डेरा डाले हुए हैं - और एक वीडियो से पता चलता है कि कैसे वो ममता बनर्जी के पक्ष में माहौल बनाने की तैयारी कर रहे हैं. जुलाई, 2021 में ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे के वक्त ये काम अभिषेक बनर्जी कर रहे थे, लेकिन वो सब कुछ ठीक से संभाल नहीं पाये थे और तृणमूल कांग्रेस नेता को निराश होकर लौटना पड़ा था.

पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी नेतृत्व को शिकस्त और दिल्ली में जोरदार दस्तक देने के बाद ममता बनर्जी अब राज्यों में पांव मजबूत करने में जुट गयी हैं. बंगाल से बाहर निकल कर ममता बनर्जी ने असम और त्रिपुरा में हाथ आजमाते हुए गोवा (TMC for Goa) का रुख किया है. कांग्रेस छोड़ कर ललितेशपति त्रिपाठी के टीएमसी ज्वाइन करने के बाद माना जा रहा है कि जल्दी ममता बनर्जी का यूपी का भी प्रोग्राम बन सकता है - क्योंकि जिन राज्यों की राजनीति में ममता बनर्जी की दिलचस्पी देखी जा रही है उनमें गोवा और यूपी ही ऐसे हैं जहां विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) जल्दी होने वाले हैं.

गोवा में ममता बनर्जी फिश और फुटबॉल के जरिये वहां के लोगों से खुद को सीधे कनेक्ट करने की कोशिश कर रही हैं - और ये जानते हुए कि आगे चल कर बाहरी-भीतरी का मुद्दा उठेगा ही, पहले ही ये भी बता देती हैं कि वो उनकी मुख्यमंत्री बनने नहीं जा रही हैं - लेकिन बातों बातों में ही वो ये भी बता देती हैं कि गोवा को भी बंगाल जैसा ही बनना होगा.

सवाल ये उठता है कि वो गोवा के अलावा कितने और राज्यों को बंगाल जैसा बताते हुए जोड़ पाएंगी. गोवा के अलावा त्रिपुरा और असम में भी थोड़ा बहुत ये ट्रिक चल जाएगा, लेकिन उससे आगे?

त्रिपुरा में तो तृणमूल कांग्रेस पहले से एक्टिव है, लेकिन असम में सुष्मिता देव और गोवा में लुईजिन्हो फलेरियो के जरिये जमीन तलाश रही हैं. ये दोनों ही नेता कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस में गये हैं और लुईजिन्हो फलेरियो जहां गोवा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, सुष्मिता देव महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं - रही बात यूपी की तो ममता बनर्जी ने शुरू से कांग्रेस के निष्ठावान कमलापति त्रिपाठी परिवार के ब्राह्मण फेस ललितेशपति को पार्टी में लिया है - बावजूद इसके अगर ममता बनर्जी ये सोचती हैं कि वो गोवा के रास्ते यूपी में भी राजनीतिक सपोर्ट हासिल कर सकती हैं तो ऐसी कोई संभावना फिलहाल दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है - आगे की बात और है! वैसे गोवा पहुंच कर ममता बनर्जी ने जाने माने टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस को तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कराया है और कुछ स्थानीय राजनीतिक दलों से गठबंधन की कोशिश भी चल रही है - तृणमूल कांग्रेस ने गोवा की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है.

गोवा भला बंगाल कैसे बनेगा?

गोवा को भी बंगाल बनाने से ममता बनर्जी का आशय उनकी एक ही बात से समझ में आ जाती है - 'दिल्ली की दादागिरी नहीं चलेगी.' गोवा के लोगों से ममता बनर्जी कह रही हैं कि पश्चिम बंगाल एक मजबूत राज्य बन गया है - और गोवा को भी वैसा ही मजबूत राज्य बनाना है.

पश्चिम बंगाल की मजबूती से ममता बनर्जी का मतलब बीजेपी विरोध की मजबूत आवाज से ही लगता है - क्योंकि ममता बनर्जी के मजबूती की परिभाषा तो बीजेपी विरोध के इर्द-गिर्द ही घूमती है. वैसे 2021 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी और सबसे मजबूत राजनीतिक पार्टी बीजेपी को शिकस्त देकर ममता बनर्जी ने खुद को स्ट्रॉन्ग तो साबित किया ही है. अब ममता बनर्जी उसी एक चीज को बंगाल से बाहर भी भुनाना चाहती हैं.

mamata banerjee, Leander Paesममता बनर्जी का बंगाल से बाहर टीएमसी के विस्तार का इरादा धीरे धीरे सामने आने लगा है.

भवानीपुर उपचुनाव तक ममता बनर्जी के बंगाल से बाहर के विस्तार अभियान में एक संकोच देखने को मिलता था, लेकिन तृणमलू कांग्रेस को बहुमत के साथ भेजने के बाद खुद भी चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच चुकी हैं. जाहिर है आत्मविश्वास से लबालब तो हो ही चुकी हैं.

अब अगर ये जानना और समझना है कि आखिर ममता बनर्जी की गोवा में इतनी दिलचस्पी क्यों है?

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा बीबीसी से बातचीत में ऐसे सवाल का भी जवाब दे चुकी हैं, 'गोवा के 25 फीसदी युवा बेरोजगार हैं... गोवा के लोग अपने ही राज्य में घर खरीदने की क्षमता नहीं रखते... मछुआरों का काम 80 फीसदी प्रभावित हुआ है और सरकार की सब्सिडी भी 40 फीसदी कम हो गई है... कानून व्यवस्था का हाल बुरा है - इसीलिए तृणमूल कांग्रेस अब गोवा आई है.'

गोवा को भी बंगाल जैसा ही मजबूत बनाने के वादे के साथ ममता बनर्जी समझाती भी हैं कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है?

ममता बनर्जी समझाती हैं कि जब वो बोलती हैं कि 'खेला होबे' तो शाब्दिक मतलब ही नहीं असलियत भी यही होती है कि 'खेलेंगे'.

ममता बनर्जी आगे समझाती हैं कि जैसे बंगाल के दिल में फुटबॉल बसता है, गोवा के साथ भी वैसा ही है. गोवा के दिल में भी फुटबॉल रहता है - और जब ऐसा है तो खेलेंगे ही. कहती हैं, आपके पास फुटबॉल क्लब है - और बंगाल के पास भी फुटबॉल क्लब है.

फिर ममता बनर्जी बंगाल और गोवा के एक जैसे होने को लेकर तीन कॉमन चीजें बताती हैं - 'तीन चीजें एक जैसी हैं फुटबॉल, फिश और लोक संस्कृति' - और फिर गणित के प्रमेय की तरह साबित करने की कोशिश होती है - 'बंगाल और गोवा एक ही है.' जैसा इधर, वैसा ही उधर भी. इति सिद्धम्.

और फिर आखिर में दोहराती हैं - 'बंगाल अब एक मजबूत राज्य है - हम चाहते हैं कि गोवा भी भविष्य में मजबूत राज्य बने.'

लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि जब बंगाल और गोवा की भाषा एक या मिलती जुलती भी नहीं है, तो दोनों सूबे एक जैसे कैसे हुए?

ममता बनर्जी लाख गोवा और पश्चिम बंगाल को एक जैसा समझाने की कोशिश करें और गोवा को बंगाल जैसा मजबूत बनाने की कोशिश करें, लेकिन गोवा में तृणमूल कांग्रेस नेता को भाषण तो अंग्रेजी में ही देना पड़ता है - क्योंकि 15 लाख की आबादी वाले गोवा में महज एक फीसदी आबादी ही बांग्ला भाषी है.

टीएमसी ही असली सेक्युलर पार्टी!

बंगाल से बाहर ममता बनर्जी के लिए भाषा वाकई बहुत बड़ी बाधा है. गोवा में तो अंग्रेजी में भी भाषण चल जाएगा, लेकिन आगे बढ़ते ही यूपी में तो नहीं चलने वाला. ममता का ये कहना बिलकुल सही है, 'मैं भारतीय हूं और कहीं भी जा सकती हूं' - और ये गोवा की तरह यूपी में भी बाहरी-भीतरी की बहस में डिस्क्लेमर चल जाएगा कि वो मुख्यमंत्री बनने नहीं जा रही हैं - लेकिन जिस तरह बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बाहरी बताकर हमला बोल देती रहीं, क्या यूपी में उनसे ये सवाल नहीं पूछा जाएगा - जब बंगाल में गुजरात बाहरी हो सकता है, तो यूपी में बंगाल क्यों नहीं?

ममता बनर्जी के निशाने पर भले ही बार बार बीजेपी नजर भले ही आती हो, लेकिन गोवा में वो सारी तैयारी कांग्रेस को रिप्लेस करने के लिए कर रही हैं - और यूपी में ललितेशपति त्रिपाठी को अपने पाले में लेकर भी वो पहले ही संकेत दे चुकी हैं.

ममता बनर्जी अब तृणमूल कांग्रेस को ही असली सेक्युलर पार्टी बता रही हैं. जाहिर है निशाने पर सीधे सीधे कांग्रेस ही है, खासकर नेतृत्व के हिंदुत्व के प्रति सॉफ्ट स्टैंड को देखते हुए.

अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को धर्मनिर्पेक्ष बताने के लिए ममता ने टीएमसी के फुल-फॉर्म को नया कलेवर दिया है - टी का अर्थ टेंपल यानी हिंदुओं का मंदिर है. एम का मतलब मुस्लिम समुदाय का मॉस्क यानी मस्जिद है और सी बोले तो चर्च यानी इसाइयों का गिरजाघर.

लेकिन ये बोल कर वो कांग्रेस की जगह सीधे बीजेपी पर हमला बोल देती हैं, ये कहते हुए कि बीजेपी भले ही उनको हिंदू विरोधी बताये, लेकिन उसके पास किसी को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने का अधिकार नहीं है - पहले उसे अपना चरित्र तय करना चाहिये.

फिर ममता बनर्जी कांग्रेस को टारगेट करती हैं - और ये समझाने की कोशिश करती हैं कि कांग्रेस अब बीजेपी का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है. कांग्रेस की तरफ इशारा करते हुए ध्यान दिलाती हैं, 'पिछली बार आपने बीजेपी को सरकार बनाने का मौका दे दिया था... वो दोबारा ऐसा कर सकते हैं... हम उन पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?'

भरोसा जमाने के लिए यहां तक कह जाती हैं कि तृणमूल कांग्रेस गोवा के लिए अपना खून देने को तैयार है, लेकिन वो भाजपा के साथ समझौता नहीं करने वाली.'

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन फिर भी वो सरकार बनाने में चूक गयी और ममता बनर्जी उसी बात को याद दिला रही हैं. 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा में कांग्रेस को 2017 में 17 और बीजेपी को 13 सीटें मिली थीं - आज तो हालत ये हो चली है कि कांग्रेस के पास सिर्फ 4 विधायक ही बचे हैं.

ममता से पहले गोवा पहुंचे प्रशांत किशोर की तरफ से कुछ ऐसा ही माहौल बनाने की कोशिश हुई है. प्रशांत किशोर एक वीडियो में कहते सुने गये थे कि बीजेपी जीते चाहे हारे, अगले कई दशक तक भारतीय राजनीति के केंद्र में रहेगी - यहां तक कि अगर मोदी को लोग हटा दें तब भी. प्रशांत किशोर का ये भी मानना है कि राहुल गांधी अगर इस इंतजार में हैं कि लोग गुस्से में ऊब कर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर देंगे तो ऐसा नहीं होने वाला - क्योंकि एक बार जो पार्टी 30 फीसदी वोट शेयर हासिल कर लेती है वो लंबे समय तक बनी रहती है. कांग्रेस के साथ भी पहले ऐसा ही था.

प्रशांत किशोर की बात को तो कांग्रेस के सोशल मीडिया हेड रोहन गुप्ता ने उनको एक और भक्त बता कर खारिज करने की कोशिश की थी, लेकिन ममता बनर्जी के गोवा दौरे पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस करके काउंटर किया, लेकिन तरीका वही रहा जो बीजेपी यूपी में प्रियंका गांधी की सक्रियता को पेश करती है, 'चुनाव कोई पर्यटन नहीं है जहां आप एक चुनाव लड़ते हैं और फिर आप चले जाते हैं - और फिर से पांच साल बाद प्रकट होते हैं.' यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांगने लखनऊ पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी ऐसे ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ साथ समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी बरसाती मेढक जैसा समझाने की कोशिश की थी.

जब प्रशांत किशोर की बातों को लेकर ममता बनर्जी से पूछा गया तो पहले उनकी सलाह रही कि ये सवाल प्रशांत किशोर से ही पूछा जाना चाहिये, लेकिन फिर बोलीं, 'हो सकता है... उनके कहने का मतलब ये हो कि अगर हम इसे सही ढंग से हैंडल नहीं करेंगे तो बीजेपी बनी रहेगी.'

फिर ममता बनर्जी सीधे कांग्रेस पर जोरदार हमला बोल देती हैं - 'कांग्रेस के फैसले न ले पाने का अंजाम पूरा देश भुगत रहा है... वो राजनीति को गंभीरता से नहीं लेते... कांग्रेस की वजह से मोदी जी ज्यादा ताकतवर हो रहे हैं,' - और पूछती हैं, 'अगर कोई निर्णय नहीं ले सकता तो देश को क्यों भुगतना चाहिये?'

जब ममता बनर्जी से सवाल हुआ कि क्या वो 2024 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हो रही हैं तो उनका जवाब रहा, 'अगर मैं आपको अभी सब कुछ बता दूं तो बाद में क्या बताऊंगी?'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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