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Updated: 01 नवम्बर, 2021 06:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का एक दिन का गोवा दौरा संयोग कम और प्रयोग ज्यादा लगता है - क्योंकि ये ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के तीन दिन के दौरे के आखिरी दिन हुआ है. असल में राहुल गांधी ने दिल्ली वाले प्रयोग की तरह ही गोवा में संयोग बनाने की कोशिश की है.

जुलाई, 2021 में ममता बनर्जी जब दिल्ली के दौरे पर रहीं, तब भी राहुल गांधी खासे एक्टिव देखे गये थे. वो विपक्षी खेमे के नेताओं के साथ ताबड़तोड़ मीटिंग करने लगे थे. ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचे के साथ शुरू हुआ वो सिलसिला तृणमूल कांग्रेस नेता के कोलकाता रवाना होते ही करीब करीब खत्म भी हो गया था - और अब गोवा में भी वैसी ही झलक देखने को मिली है.

दोनों नेताओं के गोवा दौरे में कॉमन बात ये देखने को मिली है कि दोनों ही ने 2022 के विधानसभा चुनावों की बात की है - मतलब, ममता बनर्जी की ही तरह राहुल गांधी भी चुनावी दौरे पर ही थे, लेकिन ये कार्यक्रम ममता बनर्जी की मौजूदगी में ही क्यों बना?

क्या राहुल गांधी का कार्यक्रम ममता बनर्जी के गोवा दौरे के आगे पीछे नहीं बन सकता था? ये सवाल हरगिज नहीं उठता अगर राहुल गांधी दिल्ली में ममता बनर्जी से मुकाबला करते नहीं देखे गये होते.

ममता बनर्जी कोलकाता से ही सबको बता कर दिल्ली पहुंची थीं कि वो बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मीटिंग करने के मकसद से ही पहुंच रही हैं. एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम से कोलकाता की शहीद रैली के दौरान ही ममता ने विपक्षी दलों के साथ मीटिंग बुलाने के लिए भी कहा था. ममता बनर्जी अलग अलग विपक्षी नेताओं से तो मिलीं, लेकिन किसी एक जगह विपक्षी नेताओं के साथ उनकी वैसी मीटिंग नहीं हो सकी - जैसी राहुल गांधी ने ममता बनर्जी के दिल्ली रहते दो-दो बार कर ली थी.

ममता बनर्जी ने गोवा पहुंच कर विधानसभा चुनावों (Goa Elction 2022) को लेकर अपना प्लान तो बताया ही, कांग्रेस को भी खूब खरी खोटी सुनायी - बोल तो यहां तक गयीं कि कांग्रेस की वजह से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन पर दिन ताकतवर होते जा रहे हैं. लगे हाथ ये भी दावा किया कि वो बीजेपी को पूरे देश से हटा कर ही दम लेंगी, लेकिन शुरुआत गोवा से होगी क्योंकि गोवा भी, ममता बनर्जी के मुताबिक, बंगाल जैसा ही है!

ममता बनर्जी के गोवा रहते ही राहुल गांधी ने अपनी स्टाइल में उनकी हर बात को काउंटर करने की कोशिश की है - अब तो सवाल ये उठता है कि क्या ममता बनर्जी देश भर में जहां जहां जाएंगी राहुल गांधी भी पीछे पीछे जा धमकेंगे?

ममता के गोवा पहुंचते ही राहुल गांधी ने धावा बोल दिया

गोवा में बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी और राहुल गांधी दोनों के तेवर एक जैसे रहे, लेकिन एक बुनियादी फर्क भी देखने को मिला - ममता बनर्जी जहां कांग्रेस गठबंधन करके बीजेपी को चैलेंज करने की पक्षधर दिखीं, वहीं राहुल गांधी अकेले दम पर सब कुछ करने की बात करते देखे गये.

हालांकि, ममता बनर्जी के गठबंधन करने का प्रस्ताव भी बराबरी पर या कांग्रेस के नेतृत्व में जैसा नहीं लग रहा है - बल्कि, ममता बनर्जी की बातों से लगता है कि गोवा में कांग्रेस गठबंधन तो करे लेकिन नेतृत्व तो तृणमूल कांग्रेस के पास ही रहेगा.

mamata banerjee, rahul gandhiअब ये देखना है कि क्या ममता बनर्जी के संभावित यूपी दौरे के वक्त भी राहुल गांधी पहुंचते हैं या नहीं?

हो सकता है राहुल गांधी ने भी ममता बनर्जी के बयानों को बिलकुल ऐसे ही समझा हो - और अंदर से विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने का एहसास जाग गया हो. राहुल गांधी ने गोवा में मछुआरों से मुलाकात की, बाइक टैक्सी पर बैठे और एक कार्यक्रम में फुटबॉल को किक किया और लौट आये.

राहुल गांधी ने सुबह सुबह वेलसाओ में मछुआरों से मुलाकात की और बताया कि उनको समुद्र बहुत पसंद है. मछुआरों से बातचीत में बोले, 'कभी-कभी, जब मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं होती है... तो वह यहां आती हैं... आपके सुंदर समुद्र और पर्यावरण का लाभ उठाती हैं,' - और ये भरोसा दिलाने की भी कोशिश की, 'हम सिर्फ गोवा के लोगों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं.'

निजी बातों के साथ साथ राहुल गांधी ने मछुआरों के साथ चुनावों की भी थोड़ी बहुत चर्चा की. राहुल गांधी मछुआरों के बहाने गोवा के लोगों तक मैसेज पहुंचाने का भी प्रयास किया. बताया कि कांग्रेस पार्टी जो अपने मैनिफेस्टो में जो बातें कहेगी वो महज चुनावी वादे नहीं होंगे - बल्कि, वो काम करने की गारंटी होगी.

गोवा में लंच के लिए राहुल गांधी ने स्ट्रीट फुड का रुख किया और पायलट के जरिये करीब पांच किलोमीटर का सफर किया - गोवा में बाइक टैक्सी को पायलट कहा जाता है. गोवा कांग्रेस की तरफ से ट्विटर पर इसका एक वीडियो भी शेयर किया गया है.

एक वीडियो राहुल गांधी ने खुद भी ट्विटर पर शेयर किया है. वीडियो में राहुल गांधी हाथ में फुटबॉल लेकर किक करते देखे जा सकते हैं. राहुल गांधी का ये कार्यक्रम एक स्टेडियम में रखा गया था जहां लोग राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे भी लगा रहे हैं.

वीडियो शेयर करते हुए राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है - 'आइये गोवा के लिए एक नये युग की शुरुआत करें!'

राहुल गांधी का ये कार्यक्रम गोवा के लोगों से जुड़ने की एक कवायद तो लगती ही है, ममता बनर्जी को उनकी ही भाषा में जवाब देने की एक कोशिश भी है.

ममता बनर्जी ने गोवा के लोगों से खुद और पार्टी को कनेक्ट करने के मकसद से तीन चीजें बंगाल और गोवा में कॉमन बतायी थी - फिश, फुटबॉल और फोक-कल्चर. ममता बनर्जी का दावा है कि बंगाल और गोवा एक जैसे ही हैं और वो गोवा को भी बंगाल की ही तरह स्ट्रॉन्ग बनाने का प्रयास कर रही हैं.

गोवा में राहुल गांधी के कार्यक्रम पर गौर करें तो वो भी ममता बनर्जी की बतायी तीनों ही चीजों पर अपने तरीके से खुद और कांग्रेस पार्टी को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं -

1. फिश: ममता बनर्जी ने फिश की बात की और राहुल गांधी मछुआरों से मिलने पहुंच गये और मैनिफेस्टो की बात भी कर डाले, 'मैं यहां आपका समय या अपना समय बर्बाद करने के लिए नहीं आया... जैसे आपका समय महत्वपूर्ण है, वैसे ही मेरा समय भी महत्वपूर्ण है - मैनिफेस्टो में हम आपसे जो वादा करेंगे, वो केवल एक चुनावी वादा नहीं, बल्कि एक गारंटी होगी.'

2. फुटबॉल: ममता बनर्जी ने फुटबॉल की बात की तो राहुल गांधी गोवा के एक स्टेडियम पहुंच गये, जहां पहले से कांग्रेस समर्थकों की भीड़ बुला ली गयी थी. स्टेज से ही फुटबॉल को किक करने के साथ ही ये संदेश भी दे डाले कि ये गोवा में एक नये युग की शुरुआत करने के लिए है.

3. फोक-कल्चर: ममता बनर्जी ने बंगाल से तीसरी समानता के तौर पर लोक-संस्कृति का जिक्र किया था - राहुल गांधी ने सड़क किनारे जाकर लंच करने के साथ ही बाइक टैक्सी की सवारी करके आखिर ममता बनर्जी को काउंटर करने की कोशिश नहीं की, तो क्या किया है?

गोवा से ममता का बीजेपी-कांग्रेस पर सीधा वार

ममता बनर्जी के गोवा पहुंचने से पहले ही तृणमूल कांग्रेस के इलेक्शन मैनेजर प्रशांत किशोर मोर्चे पर डट गये थे - और एक कार्यक्रम में अपनी बातों के जरिये कांग्रेस को लेकर नये सिरे से बहस खड़ी कर दी. ये बात सामने तब आयी जब कार्यक्रम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा.

गोवा पहुंचने जब ममता बनर्जी से प्रशांत किशोर की बातों पर टिप्पणी मांगी गयी. ममता बनर्जी ने पहले तो मीडिया से कहा कि वो प्रशांत किशोर से ही पूछे, ये बेहतर होगा. प्रशांत किशोर ने कहा था कि बीजेपी अभी कई दशक तक कहीं जाने वाली नहीं है - और कांग्रेस नेतृत्व या राहुल गांधी अगर इस इंतजार में बैठे हैं कि लोग गुस्से में आकर बीजेपी को हटा देंगे, तो ऐसा कुछ होने नहीं जा रहा है.

बाद में ममता बनर्जी ने ये भी समझाया कि प्रशांत किशोर ने ऐसा इसलिए कहा होगा - क्योंकि विपक्षी खेमा अगर एकजुट होकर बीजेपी को चैलेंज नहीं किया तो वो बरसों बरस बनी रहेगी. प्रशांत किशोर की बात को आगे बढ़ाते हुए ममता बनर्जी ने जब अपना नजरिया जाहिर किया तो उसमें बीजेपी की ही तरह उनके निशाने पर कांग्रेस भी बराबर ही नजर आयी.

ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर सबसे बड़ा इल्जाम लगाया कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत बढ़ते जाने के पीछे कांग्रेस का ही हाथ है. ममता बनर्जी का कहना है कि कांग्रेस को पहले भी मौके मिले हैं, लेकिन वो बीजेपी के खिलाफ लड़ने की बजाये, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ ही जंग लड़ती रही - फिर भी, ममता बनर्जी जोर देकर बताती हैं, तीन बार सत्ता हासिल करने में कामयाब रही.

वैसे ममता बनर्जी को ये नहीं भूलना चाहिये कि पहली बार ममता बनर्जी सत्ता तक पहुंच बना पाने में कांग्रेस के कंधे पर ही सवार थीं - और जैसे ही अपना काम बन गया, बहाने से केंद्र की यूपीए सरकार से नाता तोड़ लिया. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार से अलग हो गयी, लेकिन खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्योंकि सत्ता के मोह में कांग्रेस विधायकों ने पाला बदल कर ममता बनर्जी के साथ हो लिया था.

अपनी यात्रा के आखिरी दिन ममता बनर्जी ने गोवा में मीडिया से कहा, 'मैं अभी सब कुछ नहीं कह सकती क्योंकि वे राजनीति को गंभीरता से नहीं लेते... कांग्रेस की वजह से मोदी जी और अधिक ताकतवर हो रहे हैं.'

ममता बनर्जी की नजर में कांग्रेस नेतृत्व ऐसा फैसले को लेकर कन्फ्यूजन के चलते करता है. ममता बनर्जी का कहना रहा, 'अगर कोई निर्णय नहीं ले सकता तो उसके लिए देश को क्यों भुगतना चाहिए?'

बात तो बिलकुल वाजिब है, लेकिन किस बात का फैसला. क्या ममता बनर्जी के निशाने पर राहुल गांधी रहे? क्या ममता बनर्जी भी राहुल गांधी को लेकर वही चीज बताने की कोशिश कर रही थीं जो कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे G-23 नेता कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर समझाने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं.

लेकिन जब ममता बनर्जी से ये पूछा जाता है कि कांग्रेस को कौन से फैसले लेने चाहिये, जो वो नहीं ले पा रही है - क्या अन्य पार्टियों से गठबंधन को लेकर कांग्रेस फैसले नहीं ले पा रही है?

ममता बनर्जी साफ तौर पर कुछ भी नहीं बताती, बस बच कर निकलने की कोशिश करती हैं, 'मैं कांग्रेस के बारे में चर्चा नहीं करने जा रही हूं क्योंकि यह मेरी पार्टी नहीं है...उनको फैसला करने दीजिये... मैं अपनी पार्टी के बारे में कह सकती हूं - और हमारी लड़ाई जारी रहेगी. हम बीजेपी के आगे घुटने टेकने वाले नहीं हैं.'

ममता बनर्जी भले बोलें कि वो कांग्रेस के बारे कुछ नहीं कहना चाहतीं, लेकिन उनकी बातों से साफ है कि वो कांग्रेस का साथ तो चाहती हैं, लेकिन नेतृत्व खुद करना चाहती हैं, 'अगर कोई हमारे आना चाहता है, तो ये अच्छा है... हम वोट नहीं बांटना चाहते, लेकिन कोई सामंती व्यवस्था नहीं है - केवल दिल्ली की पार्टियां ही चुनाव लड़ेंगी.' 

साफ है, ममता बनर्जी कांग्रेस का नेतृत्व नहीं बल्कि सपोर्ट चाहती हैं और गोवा वालों को ये समझाने की कोशिश कर रही हैं कि दिल्ली में राजनीति करने वाले एक जैसे होते हैं, चाहे वो बीजेपी हो या कांग्रेस ही क्यों न हो! ममता बनर्जी ये तो साफ साफ बोल रही हैं, 'गोवा को गोवा पर शासन करने दीजिये... दिल्ली की दादागिरी गोवा में नहीं चलेगी... गोवा अपने पैरों पर खड़ा होगा... हम मदद करेंगे, वे लड़ेंगे.'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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