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Updated: 24 मई, 2022 07:55 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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वाराणसी की जिला अदालत में विवादित ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग के मामले को लेकर सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 'प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 इस बात से नहीं रोकता कि किसी धार्मिक स्थल के चरित्र का पता ही न लगाया जाए. इस कानून के सेक्शन 3 के तहत किसी धार्मिक स्थल के 'रिलीजियस करेक्टर' का निर्धारण करने पर कोई रोक नहीं है.' इन सबके बीच कर्नाटक के मंगलुरु में एक मस्जिद में हिंदू मंदिर के जैसा वास्तुशिल्प कला के नमूने सामने आए हैं. बीते कुछ महीनों में बुर्का विवाद से लेकर हलाल मीट विवादों से घिरे रहे कर्नाटक में यह एक बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा है. इस मस्जिद को भी स्थानीय लोग 'ज्ञानवापी मंदिर' की संज्ञा दे रहे हैं. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला...

temple found in mangaluru mosqueकर्नाटक के मंगलुरु के बाहरी हिस्से में मौजूद एक मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिरों में पाई जाने वाली वास्तुशिल्प कला के नमूने मिले हैं.

कब मिला था मंदिर का अवशेष?

न्यूज एजेंसी एएनआई ने 21 अप्रैल को एक रिपोर्ट में बताया था कि कर्नाटक के मंगलुरु के बाहरी हिस्से में मौजूद एक मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिरों में पाई जाने वाली वास्तुशिल्प कला के नमूने मिले हैं. इस घटना को अब करीब एक महीने होने को आए हैं. इस मामले में कोर्ट और प्रशासन की ओर से अब तक किसी तरह का सर्वे या रिपोर्ट पेश नहीं किए जाने से स्थानीय हिंदुओं में नाराजगी बढ़ गई है. बता दें कि जिस दक्षिण कन्नड़ जिले में ये मस्जिद मिली है. उसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील माना जाता है.

कैसे बना विवाद का कारण?

दरअसल, मंगलुरु के बाहरी इलाके में मौजूद इस मस्जिद में रिनोवेशन यानी मरम्मत का काम चल रहा था. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अस्सईद अबदुल्लाही मदनी नाम की ये मस्जिद बाहरी इलाके गुरुप्रा तालुक के मलाली मार्केट में स्थित है. हिंदू मंदिर के दावे वाला विवाद कोर्ट द्वारा निर्माण कार्य पर रोक लगाने से शांत हो गया था. लेकिन, लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी प्रशासन और कोर्ट की ओर से कोई कार्रवाई नहीं होने पर वीएचपी, बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने एक पारंपरिक विधि 'तांबूल प्रश्ने' के जरिये इस मस्जिद का सच खोजने की बात कही है.

क्या कहते हैं स्थानीय लोग?

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, मरम्मत कार्य के चलते मस्जिद का एक हिस्सा पहले से ही गिरा दिया गया था. लेकिन, यह हिस्सा मस्जिद कमेटी की ओर से गिराया गया था. इसी मलबे में भारतीय वास्तुकला के नमूने सामने आए थे. स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस जगह पर मस्जिद है, वहां इससे पहले एक मंदिर हुआ करता था. बाद में यहां मस्जिद बना दी गई. वहीं, मामले के जानकार लोगों का कहना है कि यह मामला प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है. अगर यहां किसी तरह का माहौल बिगड़ता है, तो कर्नाटक के तीनों तटीय जिलों का माहौल खराब हो सकता है.

प्रशासन की ओर से क्या किया गया?

प्रशासन ने बीते महीने ही मामले के संज्ञान में आने के साथ ही मरम्मत कार्य रुकवा दिया था. कोर्ट ने भी यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे. इसके बाद प्रशासन ने जमीन से जुड़े दस्तावेजों को खंगालना शुरू कर दिया था. पुराने दस्तावेजों के जरिये जमीन के मालिकाना हक से लेकर वक्फ बोर्ड की संपत्ति को लेकर भी जांच चल रही है.

क्या है 'तांबूल प्रश्ने' की परंपरा?

कर्नाटक के तटीय इलाकों में हिंदुओं के बीच 'तांबूल प्रश्ने' की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. वीएचपी और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने मामले में हो रही देरी को देखते हुए 'तांबूल प्रश्ने' के जरिये ही सच खोजने की ठान ली है. 'तांबूल प्रश्ने' की परंपरा कर्नाटक के लोगों में काफी प्रचलित है. 'तांबूल प्रश्ने' के जरिये लोग पुजारियों से अपने पूर्वजों के इतिहास के बारे में जानकारी निकाल सकते हैं. अगर पुजारी 'तांबूल प्रश्ने' के जरिये कह देते हैं कि मलाली स्थित मस्जिद इससे पहले मंदिर था. तो, मामला और बड़ा हो सकता है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू संगठन तांबूल प्रश्ने के बाद अष्टमंगला प्रश्ने की परंपरा के जरिये आगे बढ़ेंगे. यह सभी परंपराएं भारतीय ज्योतिष ज्ञान पर आधारित हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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