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Updated: 02 अक्टूबर, 2021 05:42 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) कांग्रेस के लिए नये नवजोत सिंह सिद्धू हैं - ये दावा किया है लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता शिवानंद तिवारी ने. बेशक शिवानंद तिवारी की राजनीतिक मंशा लालू परिवार (Lalu Yadav) के हितों के हिसाब से तय हो रही हो, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो ये आकलन किसी भी तरह से गलत भी नहीं लगता.

कन्हैया कुमार के कांग्रेस में पहुंच जाने से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को उतना ही फायदा है जितना नवजोत सिंह सिद्धू से हाल फिलहाल हो रहा है. जैसे नवजोत सिंह सिद्धू की मदद से राहुल गांधी पंजाब में अपने विरोधियों पर काबू पा सके और फिर किनारे लगा दिये, कन्हैया कुमार भी आगे चल कर उतने ही कारगर साबित हो सकते हैं.

राहुल गांधी की पसंद और नापसंद के हिसाब से देखें तो लालू प्रसाद यादव और कैप्टन अमरिंदर सिंह दोनों बराबर ही नजर आते हैं. राहुल गांधी को अपने लेवल का न समझने को लेकर ही नहीं, कैप्टन अमरिंदर सिंह और लालू यादव दोनों ही नेताओं का डायरेक्ट कनेक्शन सोनिया गांधी से ही रहा है - हो सकता है कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही तरह सोनिया गांधी के सामने कभी वैसी ही नौबत आ पड़ी तो कोई दो राय नहीं होनी चाहिये कि एक्सप्रेशन भी बिलकुल वैसा ही देखने को मिलेगा - आए'म सॉरी!

सिर्फ संघ, बीजेपी और मोदी-शाह ही नहीं, राहुल गांधी अपने सभी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कन्हैया कुमार और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों को ही एक जैसा इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर अच्छे से साध लिये तो दोनों मिल कर डबल बैरल बंदूक जैसा अचूक हथियार बन सकते हैं. बस निशाना लगाने के लिए एक मजबूत या इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कंधे की जरूरत पड़ेगी - और राजनीति में ये कोई मुश्किल काम भी तो नहीं.

ये आग लगायी तो बीजेपी ने ही है

राष्ट्रीय जनता दल नेता शिवानंद तिवारी कटाक्ष करते हुए कहते हैं, 'कन्हैया भाषण अच्छा देते हैं... उनके जैसा भाषण कांग्रेस में कोई नहीं दे सकता... उन्होंने जिस दल की सदस्यता ली थी, उसे डूबता जहाज बना दिया - मैं खुद चाहता हूं कि कांग्रेस मजबूत हो, ताकि महागठबंधन को भी मजबूती मिले.'

शिवानंद की सलाह है कि कन्हैया कुमार को ही कांग्रेस का अध्यक्ष बना देना चाहिये. असल में कांग्रेस नेता 2019 के आम चुनाव के बाद से ही एक पूर्णकालिक अध्यक्ष के इंतजार में हैं क्योंकि हार के बाद ही राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था. अपनी इसी डिमांड के चलते कांग्रेस के G-23 नेता बागी बन गये हैं और उसका असर भी फैलने लगा है.

आरजेडी नेता के मुताबिक, कन्हैया कुमार कांग्रेस में अपना भविष्य देख रहे हैं और ठीक वैसे ही कांग्रेस को भी कन्हैया कुमार से करीब करीब वैसी ही उम्मीद है - और इसी आधार पर शिवानंद तिवारी दोनों को एक दूसरे के पूरक के तौर पर समझा भी रहे हैं.

लेकिन उनकी पूरी कोशिश ये भी है कि कन्हैया कुमार को लेकर लालू परिवार की फिक्र को सरेआम भी न होने दें, लिहाजा दलील देते हैं, '2019 के लोक सभा चुनाव में CPI ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से टिकट दिया था... नतीजा क्या हुआ? कन्हैया तीसरे स्थान पर पहुंच गये... तेजस्वी यादव ने जिसे आरजेडी का टिकट दिया, वो दूसरे स्थान पर थे.'

tejashwi yadav, kanhaiya kumar, rahul gandhiकन्हैया कुमार निश्चित रूप से बिहार में तेजस्वी यादव के लिए खतरा बन सकते हैं, लेकिन तभी जब कांग्रेस और वो दोनो का सिक्का भी चल जाये!

ऐसा बोल कर शिवानंद तिवारी पूछते हैं अब अंदाजा लगाइये कि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में चले जाने से भला तेजस्वी यादव को कितनी और कैसी दिक्कत हो सकती है?

असल बात तो ये है कि ये आग बीजेपी ने ही लगायी है - ये शिगूफा छेड़ कर कि महागठबंधन में तो अब तक तेजस्वी यादव ही नेता हुआ करते थे, लेकिन अब कांग्रेस की तरफ से कन्हैया कुमार भी बराबर की टक्कर देने वाले हैं.

बीजेपी जोर शोर से ये सवाल पूछने लगी है कि अब महागठबंधन का नेता कौन है? बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव या फिर कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार? कन्हैया कुमार को तो रिएक्ट करने के लिए ऐसी ही बातों की तलाश रहती है - मौका मिलते ही कन्हैया कुमार ने बोल दिया कि अगर जनता चाहेगी तो तीनों साथ देखे जा सकते हैं. बीजेपी ने तो दो नेताओं के ही साथ होने को लेकर सवाल दागा था, बात आगे बढ़ी तो चिराग पासवान भी जोड़ दिये गये हैं.

बीजेपी को तो बस मजा लेना था, लेकिन ये बात आरजेडी नेताओं को चुभ रही है. क्योंकि आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव के मुकाबले कन्हैया कुमार को हमेशा ही खारिज किया जाता रहा है. 2020 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही देखने को मिला था.

और सवाल जब कन्हैया कुमार के सामने आता है - बिहार में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और कन्हैया क्या एक साथ खड़े होंगे?

कन्हैया कुमार फौरन ही दार्शनिक लहजे में समझान लगते हैं - हम एकता की बात करते हैं. समीकरण क्या बन रहा है ये तो जनता की इच्छा पर निर्भर करता है. अगर जनता चाहती है कि बिहार के नौजवान एक साथ आकर काम करें तो निश्चित रूप से उसका सम्मान करेंगे.

बिहार में राजनीतिक समीकरण तो बदलेंगे ही

तकनीकि स्थिति तो यही है कि चिराग पासवान ने बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा है. राम विलास पासवान की पुण्यतिथि के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन कर और बीजेपी नेताओं ने कार्यक्रम में शामिल होकर चिराग पासवान को घेर तो लिया ही, डर था कहीं उनका मन न बदल जाये. ठीक पहले चिराग पासवान ने कार्यक्रम का न्योता देने के नाम पर लालू प्रसाद यादव सहित पूरे परिवार से मुलाकात की थी.

अभी तक चिराग पासवान ने लालू यादव से बातचीत ही तो की है. कोई ऐसा वैसा कदम तो नहीं उठाया है - प्रधानमंत्री मोदी और बिहार बीजेपी के नेताओं ने ताबड़तोड़ महत्व देकर चिराग पासवान को थोड़ा बहुत रिझाया जरूर है, लेकिन हाल मिजाज उनका भी अभी मुकुल रॉय जैसा ही होना चाहिये, जब वो तृणमूल कांग्रेस में नहीं गये थे.

अगर कोई सूरत बनती है तो हो सकता है राहुल गांधी किसी न किसी माध्यम से चिराग पासवान को भी कांग्रेस के साथ मिलाने की कुछ कोशिश भी करें. एक खास वोट बैंक तो है ही चिराग पासवान के साथ - और वही उनकी ताकत है जो हर राजनीतिक दल समझता है. उसी ताकत के इस्तेमाल से बीजेपी बिहार में आगे बढ़ जाती है. उसी ताकत से नीतीश कुमार परेशान हो जाते हैं - और उसी ताकत के चलते लालू प्रसाद उन पर डोरे भी डालते हैं.

राहुल गांधी को भी तो ऐसी ताकत पसंद आती ही है, बशर्ते कहीं ईगो क्लैश न करता हो. जैसा कि अखिलेश यादव के केस में हुआ था. हालांकि, चिराग पासवान को इसके लिए राहुल गांधी के डरपोक और निडर वाले पैरामीटर में फिट होना होगा - शिवभक्त होने के नाते राहुल गांधी को हनुमान से तो कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये, लेकिन मोदी के हनुमान को तो वो आस पास फटकने भी नहीं देने वाले.

लालू परिवार के लिए लोचा तो है

तिहाड़ से बाहर आने के बाद बिहार लौटते ही कन्हैया कुमार पटना में लालू यादव के घर गये थे. पैर छूकर आशीर्वाद लेने की कोशिश भी की थी, मालूम नहीं लालू यादव ने ऊपरी मन से भी आशीर्वाद दिया या नहीं. बेगूसराय से कन्हैया के खिलाफ आरजेडी उम्मीदवार उतार दिये जाने के बाद तो सब कुछ जगजाहिर ही हो गया था, लेकिन राहुल गांधी के कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने लेने के बाद तो जैसे आरजेडी में तूफान ही खड़ा हो गया है.

लालू यादव की मुश्किल को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. वो नहीं चाहते कि तेजस्वी यादव के इर्द गिर्द बिहार से कोई नेता ऐसे उभर आये कि बेटे के लिए चुनौती खड़ी हो जाये और उसका कद छोटा हो जाये. देखा जाये तो, लालू यादव तो तेज प्रताप यादव को भी वैसा मौका नहीं देना चाहते - और बेटी मीसा भारती को ये बात सबसे ज्यादा कचोटती रहती है.

आम चुनाव में महागठबंधन के पास बेगूसराय सीट बीजेपी से झटक लेने का पूरा मौका भी था, लेकिन डरे हुए लालू परिवार के फैसले ने वो मौका भी जाने दिया. बेगूसराय से महागठबंधन का टिकट मिल जाने के बाद ये तो नहीं कहा जा सकता कि कन्हैया कुमार बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह को हरा ही देते, लेकिन आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन के विरोध की जगह सपोर्ट मिल जाने पर गणित तो बदल ही सकता था. तनवीर हसन के मैदान में कूद पड़ने से त्रिकोणीय मुकाबले का बीजेपी को फायदा मिल गया - लेकिन अगर कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनाव जीत जाते और वो भी मोदी लहर में बीजेपी के गिरिराज सिंह को हरा कर तो राजनीतिक कद तेजस्वी पर तो भारी ही पड़ने लगता.

आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र से जब मीडिया ने कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने पर प्रतिक्रिया मांगी तो पूछने लगे - कौन है कन्हैया कुमार? कहने लगे कि वो कन्हैया कुमार को जानते ही नहीं. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि आरजेडी नेतृत्व ने कन्हैया कुमार के मुद्दे पर रिएक्ट करने को लेकर सभी नेताओं और प्रवक्ताओं पर ब्लैंकेट बैन लगा दिया है.

जैसे महाराष्ट्र में एनसीपी नेता शरद पवार और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी नहीं चाहतीं कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में मजबूत हो, बिलकुल वैसे ही बिहार में भी लालू यादव ऐसा कभी नहीं होने देना चाहेंगे. बिहार में कांग्रेस के मजबूत होने से आरजेडी को वैसे ही नुकसान होगा जैसे पश्चिम बंगाल में टीएमसी और महाराष्ट्र में एनसीपी को - जब तक कांग्रेस कमजोर रहेगी, क्षेत्रीय नेताओं का दबदबा बना रहेगा.

कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन कर लेने के बाद बिहार में कांग्रेस के मजबूत होने के कयास लगाये जा रहे हैं. हालांकि, ऐसा नहीं है कि कन्हैया कुमार का अपना कोई जनाधार है, लेकिन ये तो है कि कांग्रेस के इन्फ्रास्ट्रकर की बदौलत कन्हैया कुमार मजबूत हो जाते हैं. बिहार में अभी तक कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था. तारिक अनवर एनसीपी में रहे तो सांसद भी हुआ करते थे, लेकिन कांग्रेस में आने और फिर हार के बाद वो भी भीड़ में गुम गये.

कन्हैया कुमार के रूप में कांग्रेस को एक बोलने वाला, हाजिरजवाब, अपनी बातों से मौके पर ही राजनीतिक विरोधियों की बोलती बंद करने की क्षमता के साथ ही, भाषण की बदौलत भीड़ खींचने की क्षमता रखने वाला नेता तो मिल ही गया है. अगर कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी नहीं होती तो राहुल गांधी के मन में भी कन्हैया को लेकर तेजस्वी यादव जैसी ही दहशत होती.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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