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Updated: 30 सितम्बर, 2021 08:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को लेकर सबकी अपनी अपनी राय रही है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी वाड्रा की राय तो सिद्धू को लेकर उनकी उम्मीदों से ही समझा जा सकता है. भाई-बहन ने अगर सही सही समझा होगा तो सिद्धू उम्मीदों पर खरे ही उतर भी रहे होंगे!

क्योंकि सिद्धू को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी राय फिर से दोहरायी है - वो अस्थिर शख्स है. कैप्टन की राय को खारिज तो नहीं किया जा सकता, लेकिन ऐसी किसी भी राय के पीछे राजनीतिक विरोध के आधार को भी इनकार नहीं ही किया जा सकता. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही कह चुके हैं कि जो आदमी एक विभाग नहीं संभाल सकता वो पूरे पंजाब को क्या संभालेगा? वैसे कैप्टन अमरिंदर ने ये बातें तभी कही थी जब उनको आशंका थी कि कहीं कांग्रेस नेतृत्व सिद्धू को ही पंजाब का मुख्यमंत्री न बना दे.

सिद्धू को लेकर राहुल और प्रियंका को काफी उम्मीदें रही होंगी. तभी तो प्रियंका गांधी वाड्री की पहल पर राहुल गांधी सिद्धू से मिलने को तैयार हुए थे और बातचीत के बाद सोनिया गांधी की मंजूरी भी मिल गयी थी - सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने के बाद भी एक ही चीज सभी को खटक रही थी और वो थी कैप्टन अमरिंदर सिंह की प्रभावी मौजूदगी.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे को राहुल और प्रियंका ने पंजाब संकट (Punjab Congress Crisis) का पूरी तरह खत्म हो जाना समझा हो, तभी तो दोनों भाई-बहन तत्काल शिमला कूच कर चुके थे, लेकिन तभी सिद्धू ने जोर का झटका दे दिया. ट्विटर पर ही इस्तीफा देकर ये भी बता दिया कि अभी बहुत कुछ बाकी है - लिहाजा दिल्ली से दूर राहुल गांधी केरल का कार्यक्रम बना लिये और अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड निकल गये.

सुनने में आया कि पंजाब प्रभारी कांग्रेस नेता हरीश रावत सिद्धू से मिल कर बात करेंगे, लेकिन फिर हरीश रावत का भी कार्यक्रम रद्द हो गया. मान कर चलना चाहिये ये भी कांग्रेस आलाकमान का ही फैसला होगा - और ये तो यही इशारा कर रहा है कि सिद्धू का ताजा अंदाज आलाकमान को पसंद नहीं आया है. पहले ट्विटर पर इस्तीफा और फिर ट्विटर पर ही वीडियो बयान.

सिद्धू को लेकर एक राय हरीश रावत की भी है. जब सिद्धू ने कहा था कि 'ईंट से ईंट खड़का...' देंगे, तभी हरीश रावत ने अपनी राय जाहिर की थी, सिद्धू साहब कभी चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं.

सिद्धू तो आलाकमान का नाम लेकर ही कह रहे थे कि वो 'दर्शानी घोड़ा' बन कर नहीं रहेंगे - और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के पद से उनका इस्तीफा भी तो यही साबित कर रहा है.

सिद्धू के इस्तीफे की असली वजह जो भी हो, एक मतलब तो यही लगता है कि चरणजीत सिंह चन्नी के पंजाब का मुख्यमंत्री बन जाने का असर उनको बाद में समझ आ रहा हो. खासकर मंत्रिमंडल गठन के बाद - और फिर अफसरों के तबादले में तस्वीर और भी साफ हो गयी होगी.

सिद्धू के हाव-भाव में अगर उनके राजनीतिक विरोधी सुपर सीएम जैसी हरकतें देखने लगे थे तो प्रदर्शन भी उनकी ही तरफ से हो रहा था. मीडिया से बात करते ऐसी कई तस्वीरें मिल जाएंगी जिनमें मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के कंधे पर अपना एक हाथ रखे हुए नजर आते हैं. हो सकता है ऐसा करके वो कोई मैसेज देने की कोशिश न कर रहे हों, लेकिन चन्नी को लेकर अपनी फीलिंग तो शेयर कर ही रहे थे.

जैसे ही सिद्धू को ये समझ में आया कि चन्नी तो उनकी मंजिल की राह में कैप्टन से भी बड़ा रोड़ा बनने लगे - और कैप्टन के रहते फैसले लेने में उनको जो दिक्कत समझ में आ रही थी, चन्नी तो फैसले का स्कोप ही नहीं छोड़ रहे हैं - और अभी ये हाल है तो आगे क्या होगा?

जाहिर है अब सिद्धू दर्शानी घोड़ा बन कर तो रह नहीं सकते और पंजाब की राजनीति में चन्नी के कुंडली मार कर बैठ जाने के बाद ईंट से ईंट भी बजायें तो कहां बजायें. ऐसे में आखिरी दांव तो इस्तीफा ही रहा, सिद्धू ने छक्का जड़ दिया, लेकिन ये भूल गये कि ये शॉट नो बॉल पर नहीं लगा है - बाउंड्री पार नहीं होने की स्थिति में कैच का भी बराबर खतरा है.

पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू को किसी इंडियन पॉलिटिकल लीग की भनक लग गयी है क्या? क्या नवजोत सिंह सिद्धू ने किसी नयी टीम की भी तलाश शुरू कर दी होगी - अमरिंदर से छुटकारा पाने का बाद राहुल गांधी को छोड़ कर क्या सिद्धू किसी और में कैप्टन की छवि देखने लगे हैं?

चन्नी राह का रोड़ा नहीं दीवार हैं

पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में सुखजिंदर सिंह रंधावा का नाम तकरीबन फाइनल था, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू को चरणजीत सिंह चन्नी ज्यादा सेफ लगे और रंधावा को डिप्टी सीएम बन कर रह जाना पड़ा.

navjot singh sidhu, charanjit singh channi, rahul gandhiये तो ऐसा लगता है जैसे नवजोत सिंह सिद्धू ने ही फैसले लेने के मामले में राहुल गांधी के हाथ बांध दिये हों!

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने मीडिया को बताया है कि सिद्धू से फोन पर बात हुई है और परगट सिंह को सिद्धू से बातचीत के लिए भेजा गया है. चन्नी का कहना है कि सिद्धू ने जो सवाल उठाये हैं, उन पर मिल बैठ कर बात की जाएगी - जो संभव होगा किया जाएगा. चन्नी से पहले कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सिद्धू के इस्तीफे को एक भावुक प्रतिक्रिया बताया था - और उनका भी दावा रहा कि सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन मीडिया से बातचीत में चन्नी ने एक बात ऐसी भी कही है जो सिद्धू के बयान पर सधी हुई प्रतिक्रिया जैसी लगती है. चन्नी ने कहा, 'पंजाब में कांग्रेस के लिए खराब माहौल जैसी कोई बात नहीं है - मैं भी पंजाब के लोगों के मुद्दों से पीछे नहीं हटूंगा.'

दरअसल, सिद्धू ने अपने वीडियो बयान में पूरी भड़ास निकाली है. कहते हैं, 'मेरी लड़ाई मुद्दे की है, मसले की है... और पंजाब के पक्ष में एक एजेंडे की है जिस पर मैं बहुत देर का खड़ा हूं - और इस एजेंडे के साथ पंजाब के के लिए मैं हक और सच की लड़ाई लड़ता रहा हूं.'

चन्नी का जोर देकर ये कहना कि वो भी पंजाब लोगों के मुद्दों से पीछे नहीं हटेंगे - असल में सिद्धू को ही सीधे सीधे जवाब है. चन्नी का बयान ये भी जता रहा है कि हफ्ते भर में ही वो कांग्रेस नेतृत्व का भरोसा हासिल कर चुके हैं - और ये भरोसा राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पंजाब को दलित सीएम देने के श्रेय के साथ मिल रहे रिएक्शन की बदौलत ही मिल पाया है.

चन्नी के प्रति गांधी परिवार का भरोसा बढ़ना ही सिद्धू के लिए सबसे बुरी बात है और इस्तीफे का जो दांव चला है वो राजनीतिक तौर पर भी दुरूस्त नहीं लग रहा है.

सूत्रों के हवाले से तैयार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सिद्धू के इस्तीफे के पीछे कई चीजें सामने आ रही हैं. बताते हैं कि सिद्धू मंत्रिमंडल के गठन में दखल ही नहीं विभागों का बंटवारा भी खुद करना चाहते थे - प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियों में भी मनमाफिक अफसरों को बिठाना चाहते थे.

चन्नी को जब लग गया कि वो कांग्रेस नेतृत्व का भरोसा पा चुके हैं तो वो अपने तरीके से फैसले लेने लगे. जो कुछ चल रहा था सिद्धू उस पर अपने सलाहकारों से राय मशविरा भी करते रहे.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक सिद्धू ने पहले अपने प्रमुख सलाहकार मोहम्मद मुस्तफा के साथ पंजाब के हुए राजनीतिक और प्रशासनिक बदलावों पर विस्तार से चर्चा की और फिर अचानक इस्तीफा दे दिया. सिद्धू की बातों से भी ये चीजें साफ हो जाती हैं. मोहम्मद मुस्तफा डीजी रैंक से रिटायर हो चुके हैं और उनकी अपनी पुलिस-पॉलिटिक्स है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि सिद्धू के इस्तीफे के बाद चन्नी मंत्रिमंडल से रजिया सुल्ताना ने भी रिजाइन कर दिया था. रजिया सुल्ताना मलेरकोटला से विधायक हैं और मोहम्मद मुस्तफा की ही पत्नी हैं.

पंजाब के पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता महीने भर की छुट्टी पर चले गये तो मुख्यमंत्री चन्नी ने इकबाल प्रीत सिंह सहोता को को पंजाब के डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार देते हुए स्पेशल डीजीपी बना दिया. दिनकर गुप्ता की पत्नी विनी महाजन चीफ सेक्रेट्री हुआ करती थीं, लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ सबसे पहले हटाये जाने वालों में वही रहीं.

सिद्धू को सहोता के नाम पर भी आपत्ति है और एडवोकेट जनरल एपीएस देओल को लेकर भी. समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि सिद्धू इस्तीफे के बाद जो बयान भी दे रहे हैं उसके पीछे उनके सलाहकार पुलिस अधिकारी रहे मोहम्मद मुस्तफा का ही होगा.

डीजीपी का प्रभार दिये जाने वाले सहोता को लेकर सिद्धू का रुख स्पष्ट हो चुका है, 'जिस अफसर ने छह साल पहले बादल को क्लीन चिट दी थी... ऐसे लोगों को इंसाफ दिलाने की जिम्मेदारी दे दी गई है.' सहोता 2015 में बेअदबी की घटनाओं की जांच के लिए बनी एसआईटी के चीफ थे. ये तब की बात है जब पंजाब में प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री हुआ करते थे. बाद के दिनों में कैप्टन को घेरने के लिए भी सिद्धू ये मुद्दा उठाते रहे.

मुख्यमंत्री चन्नी ने सिद्धू को एडवोकेट जनरल की नियुक्ति में भी नाराज कर दिया है. इंडियन एक्स्प्रेस के मुताबिक, सिद्धू एडवोकेट जनरल के पद पर भी एपीएस देओल की नियुक्ति के खिलाफ थे क्योंकि उनकी पसंद दीपिंदर सिंह पटवालिया थे. नाराजगी खुलेआम जताने से सिद्धू खुद को रोक भी नहीं पाये, जिन लोगों ने पक्की जमानत दिलाई है, वे एडवोकेट जनरल बनाये गये हैं.'

दिक्कत ये है कि अपने नये स्टैंड से सिद्धू कांग्रेस नेतृत्व के दलित कार्ड में ही घिरने और फंसने लगे हैं - ज्यादा देर भी नहीं लगी और बीजेपी के साथ साथ आम आदमी पार्टी भी सिद्धू को दलित विरोधी बताने लगी है. मायावती तो पहले से ही कांग्रेस दलित मुख्यमंत्री का क्रेडिट लेने को चुनावी हथकंडा बता चुकी हैं.

डीजीपी का का कामकाज देख रहे सहोता भी एससी कैटेगरी से ही आते हैं - और उनके नाम पर आपत्ति जताकर सिद्धू अपना ही पैर कुल्हाड़ी पर मार चुके हैं.

जिस तरह से सिद्धू विपक्ष के निशाने पर आ गये हैं, लगता नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व आगे से उनके बचाव में खड़ा होगा. वैसे भी सिद्धू की लड़ाई अब कैप्टन से चन्नी पर शिफ्ट हो चुकी है. कैप्टन से कांग्रेस नेतृत्व को भी पीछा छुड़ाना था, लेकिन चन्नी को छेड़ना भी आसान नहीं होगा.

हरीश रावत के हिसाब से सोचें तो सिद्धू किसी और तरीके से चौका भी मार सकते थे, लेकिन हड़बड़ी में अपनी तरफ से इस्तीफे का छक्का जड़ दिया है - और पंजाब के मौजूदा समीकरणों को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व के पास सिद्धू की पीठ पर रखा हाथ हटा लेने के चांस हैं - वैसे भी एक हाथ तो चन्नी की पीठ पर रखा नजर आ ही रहा है.

पंजाब कांग्रेस में दो गुट थे, राहुल-प्रियंका ने तीन कर दिया

पंजाब हो या राजस्थान या फिर छत्तीसगढ़, सभी जगह प्रदेश कांग्रेस में दो गुट साफ साफ नजर आते हैं. इन राज्यों में तो कांग्रेस की सरकार है, लेकिन हरियाणा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी तो कांग्रेस दो गुटों में बंटी हुई ही है. कर्नाटक में तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अक्सर आमने सामने दिखायी देते ही हैं, पंजाब में ये संख्या भी बढ़ गयी है.

पंजाब कांग्रेस में अब तक दो पक्षों की लड़ाई मुश्किल बनी हुई थी, लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की पहल और फटाफट फैसलों की बदौलत अब पंजाब में तीन-तीन गुट बन गये हैं.

सिद्धू का अपना गुट तो है ही, उनके इस्तीफे के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह का गुट भी एक्टिव हो गया है - और अब तो दलित मुख्यमंत्री बन कर नाम हो जाने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी का भी एक गुट तैयार होने लगा है.

आम आदमी पार्टी की तरफ से फ्लोर टेस्ट की मांग तो पहले ही हो चुकी है, सुनने में आ रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमे के कांग्रेस विधायक ही फ्लोर टेस्ट की मांग करने लगे हैं. पंजाब में कांग्रेस के पास कुल 77 विधायक हैं और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस का हर गुट अपने पास ज्यादातर विधायकों के समर्थन होने का दावा भी जता रहा है. 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 59 होता है.

ऐसी डिमांड तब तक किसी काम की नहीं है जब तक बीजेपी का पंजाब इंटरेस्ट सामने नहीं आता. चूंकि बीजेपी के लिए दलित मुख्यमंत्री का विरोध असंभव है इसलिए ऐसी तरकीबों में दिलचस्पी हो सकती है, लेकिन वो भी तब कैप्टन अमरिंदर सिंह इसके लिए आगे आयें.

कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली में जमे हुए हैं. अभी तक अपनी निजी यात्रा बता रहे हैं, लेकिन जैसी की बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की संभावनाएं जतायी जा रही हैं, हो सकता है शिष्टाचार वश मिल भी लें - और अभी शिष्टाचार के दायरे में बातचीत के कौन से मुद्दे हो सकते हैं आसानी से समझे भी जा सकते हैं.

रही बात नवजोत सिंह सिद्धू की तो चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाये जाने की बात कबूल कर वो फंस चुके हैं. अब जो हाल है, अगर कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो पायी तो बात अलग है, लेकिन अगर पार्टी चुनाव जीत जाती है तो भी सिद्धू का नंबर तो आने से रहा - क्योंकि मुख्यमंत्री तो चरणजीत सिंह चन्नी ही बनेंगे. कांग्रेस नेतृत्व ऐसा दुस्साहस तो कर भी नहीं पाएगा कि चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर पीछे हटे.

सिद्धू को पैरों तले जमीन खिसकती दिखायी देने लगी है. अगर कांग्रेस ने हाथ खींच लिए तो दूसरी कोई पार्टी तभी सिद्धू के सपोर्ट को तैयार होगी जब वो उसकी सरकार बनवाने में मदद कर सकें. बीजेपी के लिए तो ये काम कैप्टन अमरिंदर पहले से ही करने लगे हैं, लिहाजा वहां तो सिद्धू की दाल गलने वाली नहीं है - हां, अरविंद केजरीवाल को अगर लगता है कि सिद्धू की मदद से आम आदमी पार्टी मौके का कोई फायदा उठा सकती तो बात और है - और सपोर्ट का जो भी ऐसा कोई हाथ नजर आएगा नवजोत सिंह सिद्धू 'कैप्टन' तो उसी को मानेंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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