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Updated: 28 नवम्बर, 2017 11:16 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का जलना कोई नई बात नहीं है. आंतरिक अशांति से घिरा पाकिस्तान फिर चर्चा में है. इस बार पाकिस्तान के लिए चर्चा में आने की वजह बस इतनी है कि वहां का एक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक या रसूल अल्लाह सरकार के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय हो गया है. और पाकिस्तान को एक ऐसा राष्ट्र बनाना चाहता है जो शरीयत-ए-मोहम्मदी के अनुसार चले और वहां किसी तरह की कोई भी ईश निंदा न हो.

आपको बताते चलें कि तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान यानी टीएलपी एक इस्लामिक राजनीतिक दल है. जिसका नेतृत्व अल्लामा खादिम हुसैन रिज़वी कर रहे हैं. बात अगर इस संगठन के गठन की हो इस्लामिक आंदोलन के रूप में टीएलपी का गठन 1 अगस्त 2015 को कराची में हुआ था, जो धीरे-धीरे राजनीति में प्रवेश करता चला गया. इस्लामिक आंदोलन के रूप में टीएलपी का गठन 1 अगस्त 2015 को कराची में हुआ था, जो धीरे-धीरे राजनीति में प्रवेश करता चला गया. आज हालात ये है कि संगठन की एक आवाज़ पर पूरा पाकिस्तान सड़कों पर है.

पाकिस्तान, शिया, सुन्नी, अहमदिया  पाकिस्तान में हालात दिन ब दिन बदतर होते जा रहे हैं

बताया जा रहा है कि इस पूरे बवाल की वजह एक चुनाव सुधार विधेयक है. 2 अक्तूबर को पाकिस्तान की संसद ने चुनाव सुधार विधेयक 2017 को पारित किया, इसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों के शपथ से खात्मे नबूवत या पैगम्बर मोहम्मद वाले खंड को हटा दिया गया था. दो दिन बाद, धार्मिक समूहों/ पार्टियों के विरोध ने सरकार को इस खंड को वापस जोड़ने के लिए मजबूर किया था और इसे नेशनल असेंबली ने अपने एक बयान में "क्लेरिकल ग़लती" बताया था.

बहरहाल पाकिस्तान के कानून मंत्री ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया है और इसी के साथ उनका एक वीडियो सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट ट्विटर समेत दीगर जगहों पर शेयर किया जा रहा है. इस वीडियो के जरिये पाकिस्तान के कानून मंत्री ने एक शपथ ली है और कहा है कि, 'वो रसूल की नबूवत पर मुकम्मल ईमान रखते हैं और इसके अलावा वो किसी अन्य को रसूल नहीं मानेंगे. जाहिद ने इस वीडियो में ये साफ कर दिया है कि उनकी तथा पाकिस्तान की नजर में काद्यानी, लाहौरी और अहमदी मुसलमान नहीं हैं और यदि किसी ने रसूल को लेकर ईशनिंदा की तो वो और उनका परिवार रसूल की शान और उनके प्रेम में अपनी जानें कुर्बान कर देगा.

गौरतलब है कि पाकिस्तान में ईश निंदा कोई नई बात नहीं है और वहां कई ऐसे मौके आएं हैं जब इन्हीं बातों को लेकर बड़े परिवर्तन और तख्ता पलट तक की नौबत आई है. बहरहाल, चूंकि बात अहमदियों, काद्यानियों और लहौरियों को गैर मुस्लिम मानने की है तो आइये उन वजहों पर गौर करें जिसके चलते पाकिस्तान अहमदियों और काद्यानियों को मुसलमान मानने से गुरेज करता है और उनके खून का प्यासा होने के नाते उन्हें चुन चुन के मार रहा है.

पाकिस्तान, शिया, सुन्नी, अहमदिया  पाकिस्तान का अहमदियों को मुसलमान न मानना एक गहरी चिंता का विषय है

बात अगर पाकिस्तान में मुसलमानों और उनकी जनसंख्या पर हो तो आपको बता दें कि पाकिस्तान में 95 से 98 प्रतिशत लोगों द्वारा इस्लाम फॉलो किया जाता है और यहां के मुसलमान 3 सब सेक्ट्स में बंटे हैं जिनमें सुन्नी, शिया और अहमदिया शामिल हैं. अहमदिया समुदाय को लेकर आज हालत ये है कि इन्हें पाकिस्तान की सरकार के अलावा आम लोगों द्वारा पूर्ण रूप से खारिज कर दिया गया है और चुन- चुन के मारा जा रहा है.

आम सुन्नी मुसलमानों का मत हैं कि इस्लाम के अंतर्गत 'अहमदिया' वो भटके हुए लोग हैं जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और ये अपनी हरकतों से लगातार इस्लाम का नाम खराब कर रहे हैं. मुख्यतः 19 वीं में आये अहमदियां पंथ की शुरुआत मिर्जा गुलाम अहमद (1835-1908) ने की. ध्यान रहे कि अहमदिया समुदाय के अनुयायी इन्हें मुहम्मद साहब के बाद एक और पैगम्बर मानते हैं और इनकी आराधना करते हैं. आम मुसलमान हजरत मुहम्मद के अलावा किसी को अपना रसूल नहीं मानता है और इस मिर्जा गुलाम अहमद को अपने को रसूल या फिर रसूल का वारिस कहना आम मुसलमानों को स्वीकार नहीं है. अपने शुरूआती दौर में मिर्ज़ा पहले स्वयं को नबी घोषित किया था और बाद में उन्होंने अपने चाहने वालों को बताया था कि वो मसीह हैं जिसे ईश्वर ने लोगों की सेवा के लिए भेजा है. बताया जाता है कि तब भी मिर्जा गुलाम अहमद की इस बात से काफी विवाद हुआ था और तब ही इस्लाम के जानकारों ने उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया था.

पाकिस्तान में अहमदिया

आज पाकिस्तान में लगभग 25 लाख अहमदिया वास करते हैं. इस प्रकार विश्व में सर्वाधिक अहमदिया पाकिस्तान में ही रहते हैं.पूर्व में पाकिस्तानी पंजाब के रबवा में अहमदिया जमात का मुख्यालय हुआ करता था जिसे हिंसा के डर से बाद में  इंगलैण्ड ले जाया गया. पाकिस्तान में अहमदिया लोगों पर सुन्नी बहुसंख्यक भांति-भांति के अत्याचार करते रहते हैं पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमान नहीं बल्कि अल्पसंख्यक हैं.

हो रही हिंसा पर अहमदियों का तर्क

इस विषय पर अहमदियों की तरफ से बोलते हुए अहमदिया मुस्लिम समुदाय के प्रवक्ता फारूक आफताब का तर्क है कि भले ही हमें आप मुसलमान, मुसलमान न मानें मगर हमारे साथ हो रही हिंसा को बर्दाश्त न करा जाएगा और पाकिस्तानी हुक्मरान अगर उस हद का निर्धारण नहीं करते हैं तो हमारे द्वारा भी उन्हें कड़ा जवाब दिया जाएगा. आफताब का मानना है कि भले ही धर्म को लेकर हमारे मत भिन्न हों मगर हमें अपना धर्म निभाने की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए.

पाकिस्तान, शिया, सुन्नी, अहमदिया    अब वक़्त आ गया है जब अहमदिया मुसलमानों को लेकर पाकिस्तान अपनी स्थिति साफ कर ले

और कहाँ - कहाँ हो रहा है अहमदियों पर अत्याचार

पाकिस्तान अकेला देश नहीं है जहां अहमदियों के साथ अत्याचार हो रही हैं. पाकिस्तान के अलावा इंडोनेशिया और अल्जीरिया में भी इन्हें अपनी विचारधारा और हज़रत मुहम्मद को आखिरी रसूल न मानने के लिए भांति-भांति के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है जिसके चलते अब समुदाय अलग अलग दशों में शरण लेने को भी मजबूर दिख रहा है.

गौरतलब है कि आज के समय में पूरे विश्व में करीब 20 लाख अहमदिया मुसलमान वास करते हैं और इनकी एक बहुत बड़ी संख्या पाकिस्तान और उसके बाद इंडोनेशिया और अल्जीरिया में वास करते हैं.बहरहाल आज अहमदिया समुदाय को लेकर पाकिस्तान समेत जिन देशों में भी उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं और जिस तरह से इनके अस्तित्व पर संकट है वो ये दर्शाने के लिए काफी है कि जब तक आम मुसलमान अपनी कट्टरपंथी छवि से नहीं निकलता और दूसरों की बात नहीं सुनता तब तक समाज में उसे सम्मान मिलना नामुमकिन है. जिस तरह आज पाकिस्तान पूरी दुनिया के सामने अपने को मजबूर और कट्टरपंथी ताकतों के आगे लाचार बताकर सहानुभूति जुटाने का प्रयास कर रहा है उसको देखकर साफ पता चलता है कि वो दिन दूर नहीं जब ये अपने ही द्वारा खोदे गड्ढे में गिरकर खत्म हो जाएगा. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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