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Updated: 23 सितम्बर, 2022 05:43 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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हिजाब एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. लेकिन, इस बार कर्नाटक में हिजाब पहनने वाली कथित 'शेरनी' मुस्कान की वजह इसकी चर्चा नहीं हो रही है. बल्कि, ईरान में 22 वर्षीय युवती महसा अमिनी की हिजाब यानी हेडस्कार्फ ठीक ढंग से न पहनने पर 'मॉरेलिटी पुलिस' द्वारा की गई हत्या से हिजाब पर बहस छिड़ गई है. ईरान में 50 से ज्यादा शहरों में उग्र विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं. जिनमें महिलाओं की संख्या आश्चर्यजनक रूप से कहीं ज्यादा है. महसा अमिनी को श्रद्धांजलि के तौर पर महिलाएं अपने बालों को काट रही हैं और हिजाब को आग के हवाले कर इस्लामिक कट्टरपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं.

वैसे, इस तरह के विरोध-प्रदर्शन पहले भी ईरान में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने पूरी ताकत के साथ खत्म किए हैं. फिर चाहे इसके लिए कितने ही लोगों की बलि क्यों न चढ़ जाए. लेकिन, इन तमाम चीजों के बीच एक वर्ग है, जो ये साबित करने में तुला हुआ है कि ईरान में हो रहा प्रदर्शन सिर्फ कुर्द समुदाय का प्रदर्शन भर है. और, सिर्फ कुर्दिस्तान तक ही सीमित है. और, महसा अमिनी ईरान के इस्लामिक कानूनों के खिलाफ एंटी हिजाब मूवमेंट की अगुआ के तौर पर काम करती थी. यही बुद्धिजीवी लोग भारत में मुस्कान के हिजाब पहनने को 'निजी पसंद और कपड़े चुनने की आजादी' बता रहे हैं. और, अब ईरान में महसा अमिनी की हत्या पर 'चुप्पी' साधे हुए हैं.

खैर, हिजाब या हेडस्कार्फ की मांग तकरीबन सभी इस्लामिक देशों के साथ नॉन-इस्लामिक देशों में भी एक जैसी ही है. लेकिन, ये मांग पूरी तरह से देश, काल और परस्थिति पर निर्भर करती है. वैसे, भारत फिलहाल इस्लामिक देश नहीं है. लेकिन, यहां भी इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों ने मुस्लिमों में हिजाब जैसी चीजों को लेकर कट्टरता भरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. आसान शब्दों में कहें, तो हिजाब के नाम पर दुनिया में महिलाओं के साथ सिर्फ पाखंड किया जा रहा है.

Iran Hijab Protest Death of Mahsa Aminiहिजाब या हेडस्कार्फ की मांग तकरीबन सभी इस्लामिक देशों के साथ नॉन-इस्लामिक देशों में भी एक जैसी ही है.

क्या केवल कुर्द ही कर रहे हैं प्रदर्शन?

शिया मुस्लिमों के वर्चस्व वाले ईरान में कुर्द अल्पसंख्यक समुदाय है. हालांकि, कुर्द भी मुसलमान ही हैं. लेकिन, फारसी से मिलती-जुलती भाषा बोलने वाले कुर्दों को ईरान में लंबे समय से अत्याचार झेलने पड़ रहे हैं. दावा किया जाता है कि ईरान में कुर्द समुदाय ही ये विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. क्योंकि, ये कुर्द काफी समय से अपने लिए एक अलग देश की मांग कर रहे हैं. जिसमें सीरिया, तुर्की, इराक, आर्मेनिया और ईरान में सशस्त्र संघर्ष किया जा रहा है. लेकिन, यहां सबसे अहम बात ये है कि ये प्रदर्शन सिर्फ कुर्द समुदाय तक सीमित नहीं है. इन प्रदर्शनों में वो तमाम महिलाएं और पुरुष शामिल हैं, जो कट्टरपंथी शासन से ऊब चुके हैं. और, अन्य गैर-इस्लामिक मुल्कों में रहने वाले अधिकांश मुस्लिमों की तरह ही एक स्वतंत्र जिंदगी जीना चाहते हैं. लेकिन, इस्लाम की कट्टरपंथी सोच ऐसा होने नहीं देगी. फिर चाहे वो शिया कट्टरपंथी हों या सुन्नी कट्टरपंथी.

दरअसल, 1979 में इस्लामिक क्रांति होने से पहले तक ईरान में किसी भी चीज पर कोई रोक-टोक नहीं हुआ करती थी. आजाद ख्यालों की बात की जाए, तो ईरान में महिलाओं को बिकनी में देखा जाना भी बड़ी बात नहीं हुआ करती थी. लेकिन, अयातुल्ला खुमैनी के सत्ता में आने के साथ ही ईरान में महिलाओं को लेकर नियम-कायदे बदल दिए गए. लड़कियों की शादी की उम्र घटाने से लेकर सार्वजनिक जगहों पर हिजाब और कोट पहनने जैसे कई कानून बना दिए गए. लंबे समय तक इन अत्याचारों को झेल रही महिलाओं ने बीते एक दशक में सत्तारूढ़ शिया कट्टरपंथियों के खिलाफ कई विरोध-प्रदर्शन किए हैं. और, ईरान के कट्टरपंथी इन प्रदर्शनों के लिए पश्चिमी देशों को ही दोष देते हैं. जबकि, हिजाब जैसी चीजों का विरोध ईरान में महिलाओं द्वारा किया जाता रहा है.

हिजाब के नाम पर किया जा रहा है 'पाखंड'

भारत में मुस्लिमों का एक तबका हिजाब के समर्थन में दलीलें देता नजर आता है. जिसमें शिया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम आते हैं. लेकिन, अगर इसी स्थिति में ईरान को देखा जाए, तो वहां शिया मुस्लिमों की आबादी ज्यादा है. तो, ईरान में हिजाब के विरोध को सुन्नी मुस्लिम कहलाने वाले कुर्दों से जोड़ दिया जा रहा है. कहा जा रहा है कि ये सत्तारुढ़ शिया नेतृत्व को अस्थिर करने की साजिश है. लेकिन, अगर पाकिस्तान की बात की जाए, तो वहां पर शिया समुदाय को ऐसी ही चीजों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि, पाकिस्तान में शिया समुदाय अल्पसंख्यकों की सूची में आता है. इसी पाकिस्तान में अहमदी मुस्लिमों को तो मुसलमान ही नहीं माना जाता है.

अफगानिस्तान में कट्टरपंथी तालिबान ने महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर बुर्का पहनने का आदेश दे दिया है. और, ऐसा न करने पर सरेआम कोड़ों से पीटे जाने की सजा तक निर्धारित कर दी गई है. वैसे, अगर भारत में हिजाब को लेकर कोई नियम-कानून बनाया जाता है. तो, शिया और सुन्नी मुस्लिम इसका भी अपने-अपने हिसाब से विरोध करेंगे. संभव है कि शिया हिजाब के पक्ष में रहें, क्योंकि भारत में शिया समुदाय की आबादी सुन्नी मुस्लिमों के मुकाबले बहुत कम है.

सबसे अहम सवाल ये है कि अगर हिजाब वास्तव में फ्रीडम ऑफ च्वाइस ही है, तो भारत जैसे देश में कोई मुस्लिम महिला इसे जबरदस्ती क्यों पहनना चाहेगी? तमाम बुद्धिजीवी दावा कर रहे हैं कि ईरान में महिलाओं का हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन इसे उन पर थोंपने की वजह से है. जबकि, भारत में हिजाब का समर्थन इसे पहनने के अधिकार को छीनने के खिलाफ है. बताया जा रहा है कि ईरान और भारत में हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन आजादी की लड़ाई है. लेकिन, दुनियाभर के इस्लामिक देशों में हिजाब को किस तरह से महिलाओं पर थोप दिया गया है. ये तमाम लोग उसकी चर्चा नहीं करते हैं.

इनका कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. तो, यहां मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने की आजादी मिलनी चाहिए. लेकिन, ये आजादी सिर्फ नाम की आजादी है. दरअसल, ये ईरान की सत्तारूढ़ कट्टरपंथी विचारधारा की शुरुआत ही है. जो बस ये चाहती है कि किसी तरह से माहौल बन जाए कि महिलाएं अपनी स्वतंत्रता से हिजाब पहनना चाहती हैं. क्योंकि, हिजाब के बाद अन्य शरिया कानूनों की अन्य चीजों के लिए राह आसान हो जाएगी. और, इसमें महिलाओं का साथ भी मिलेगा. आसान शब्दों में कहें, तो हिजाब के नाम पर सभी जगहों में सिर्फ पाखंड किया जा रहा है. यह महिलाओं पर इस्लाम के नाम पर जबरदस्ती थोपा गया एक लिबास है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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