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Updated: 09 जनवरी, 2021 10:50 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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जिस देश में किसी प्रत्याशी को विधानसभा चुनाव जीतने के लिए लगभग 5 करोड़ और लोकसभा चुनाव जीतने के लिए 25 करोड़ रुपये चाहिए और जिस देश में सरकार बनाने लायक बहुमत प्राप्त करने के लिए किसी राजनीतिक दल को कम से कम 10 हज़ार करोड़ रुपये से लेकर 50 हज़ार करोड़ रुपये चाहिए, उस देश में माफिया, पूंजीपतियों और अपराधियों का प्रभुत्व कोई समाप्त नहीं कर सकता. भारतीय लोकतंत्र में अनेक अच्छाइयां हैं, लेकिन यह एक ऐसी बुराई है, जो उसकी तमाम अच्छाइयों पर भारी पड़ रही है. इसी के कारण आज तमाम सरकारों में योग्य और ईमानदार लोगों का अभाव पैदा हो गया है. अपनी-अपनी सरकारों का गठन देख लीजिए, ढंग के चार-पांच मंत्री गिनने में ही आपकी गिनती पूरी हो जाएगी. ऐसे में बहुत स्वाभाविक है कि हमारा लोकतंत्र और हमारी सरकारें आज अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में विफल सिद्ध हो रही हैं.

आज हमारे लोकतंत्र में सैकड़ों करोड़ आम लोगों के लिए आज़ादी, अधिकार और न्याय तभी तक उपलब्ध हैं, जब तक कि वे किसी माफिया, पूंजीपति या अन्य प्रभावशाली लोगों या संस्थाओं से नहीं टकराते. जैसे ही इस प्रकार के व्यक्तियों और संस्थाओं से उनका टकराव होता है, अधिकांश मामलों में हमारी पूरी की पूरी व्यवस्था उनकी आज़ादी, उनके अधिकार और उनका न्याय छीनने में जुट जाती है.

India, Democracy, Election, Money, Leader, Political Party, Lawतमाम तरीकें हैं जिनपर काम किया जाए तो भारत एक प्रभावी लोकतंत्र बन

इसके बावजूद कि सरसरी निगाह से देखने पर संविधान, कानून और सरकारी नीतियों में कहीं से भी उनके खिलाफ कुछ नहीं दिखाई देता. पुलिस उनकी बात सुनती नहीं और कोर्ट में दसियों-बीसियों साल बर्बाद करके कुछ मिलता नहीं. इसका नतीजा यह होता है कि ऊपर से अच्छी से अच्छी दिखाई देने वाली नीतियों, विधियों और व्यवस्थाओं का फायदा आम लोगों को कम और माफिया, पूंजीपतियों, अपराधियों एवं प्रभावशाली लोगों को अधिक मिल जाता है.

इसलिए जब तक यह लोकतंत्र अपने कुछ दुर्गुणों पर विजय नहीं पाता या उन्हें अधिक से अधिक नियंत्रित करने में सफल नहीं होता, तब तक किसी भी नियम, कानून, नीति से सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती. विभिन्न मुद्दों पर सरकारी दावों और आश्वासनों के बावजूद जनता में विश्वास की जो कमी दिखाई देती है, वह इसी कटु अनुभव के कारण.

इसलिए मेरी नज़र में इस देश को तत्काल ये पांच सुधार चाहिए. इन सुधारों में एक-एक दिन की देरी भी प्रलय के समान है.

1- एक प्रभावशाली जनसंख्या नियंत्रण नीति, ताकि देश के संसाधनों पर बढ़ते दबाव को नियंत्रित किया जा सके.

2- एक प्रभावशाली चुनाव सुधार कानून, जो राजनीति और चुनाव को पूंजी और माफिया के चंगुल से आज़ाद कर सके.

3- राजनीतिक दलों के आमदनी और खर्चे को पारदर्शी बनाने के लिए उनके कैश लेन देन (चंदा सहित) पर पूरी तरह से रोक लगाने और डिजिटल इंडिया में पूरी तरह से डिजिटल लेन देन की व्यवस्था कायम करने के लिए एक ईमानदार कानून बने.

साथ ही, सभी आम लोगों के लिए भी कैश लेन देन पर भी पूरी तरह से रोक लगे. (ऐसा करना संभव है, यह अपने निजी अनुभव के बाद कह रहा हूं, क्योंकि पिछले 10 महीनों में अपने या अपनी कंपनी के किसी भी बैंक अकाउंट से मैंने एक भी रुपया कैश नहीं निकाला है.

जब मेरे जैसा अति-साधारण आदमी ऐसा कर सकता है, तो कोई कारण नहीं कि अन्य सुविधा सम्पन्न लोग और संस्थाएं ऐसा नहीं कर सकें.)

4- ज़िला से लेकर देश स्तर तक यानी निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की क्षमता और व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन, ताकि एक तय समय सीमा के अंदर सभी लोगों को न्याय उपलब्ध कराया जा सके और कोई भी व्यक्ति या संगठन अपने पैसे या प्रभाव के दम पर न्याय को बंधक नहीं बना सके

5- न्यायिक सुधार के साथ ही साथ पुलिस सुधार पर भी तत्परता और ईमानदारी से काम किये जाने की ज़रूरत है ताकि पुलिस को अपराधियों की अर्धांगिनी होने के कलंक से मुक्त किया जा सके और उसे आम जन की सहेली और न्यायमित्र में परिणत किया जा सके.

जब हम उपरोक्त पांच काम कर लेंगे तो अपने आप हमारा लोकतंत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, गांव, किसान, खेत और पर्यावरण के लिए ईमानदारी से काम करता हुआ दिखाई देने लगेगा. लेकिन क्या हमारा लोकतंत्र, हमारी सरकारें, हमारा समाज और हमारे राजनीतिक दल उपरोक्त पांच सुधारों के लिए तैयार हैं या हो सकते हैं? यह सबसे बड़ा सवाल है. हमारे लोकतंत्र की सफलता और प्रासंगिकता इसी मुख्य सवाल पर टिका हुआ है.

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लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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