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Updated: 07 जनवरी, 2021 10:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सोनू सूद (Sonu Sood) का नाम भी महाराष्ट्र की सरकारी फाइलों में कंगना रनौत (Kangana Ranaut) जैसे ही दर्ज हो चुका है. महाराष्ट्र में सत्ताधारी शिवसेना नेतृत्व को लगता है कि दोनों ही अदाकारों ने बीजेपी का राजनीतिक मोहरा बन कर शिवसेना सरकार को अलग अलग तरीके से निशाना बनाया है - एक न बयानबाजी से तो दूसरे ने अपने काम से. महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार सोनू सूद को भी कंगना रनौत की तरह ही बीजेपी का मोहरा समझने लगी है.

BMC ने सोनू सूद के खिलाफ भी कंगना रनौत की ही तरह एक्शन लेने का मन बना लिया है, लेकिन रणनीति में थोड़ा बदलाव किया गया लगता है. कंगना रनौत के मामले में जेसीबी मशीन लेकर उनके दफ्तर पर धावा बोल देने वाले अफसरों ने इस बार पहले पुलिस का रुख किया है - ताकि हाई कोर्ट में मामला पहुंच जाने पर पहले की तरह फजीहत न करानी पड़े.

सोनू सूद से भी बीएमसी की शिकायत बिलकुल कंगना रनौत जैसी है - सोनू सूद के जुहू वाले 6 मंजिला रिहायशी बंगले को लेकर बीएमसी का दावा है कि एक्टर ने इमारत को बगैर जरूरी परमिशमन लिये होटल में तब्दील कर लिया है. बीएमसी का कहना है कि नोटिस जारी किये जाने के बावजूद सोनू सूद ने निर्माण कार्य जारी रखा था - लिहाजा उसे पुलिस में शिकायत दर्ज कर एक्शन लेने की मांग करनी पड़ी. सोनू सूद किसी भी तरीके के गैरकानूनी काम से इंकार किया है - और कहा है कि कोशिशों के बावजूद कोविड-19 की वजह से परमिशन नहीं मिल सकी है.

सोनू सूद बीएमसी का नया शिकार हैं

9 सितंबर, 2020 को बीएमसी ने कंगना रनौत के दफ्तर में अवैध निर्माण ढहाने के नाम पर तोड़ फोड़ किया था - और 27 अक्टूबर को उसी बीएमसी की तरफ से सोनू सूद को भी एक नोटिस भेजा गया. तोड़ फोड़ इसलिए कहेंगे क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंगना के दफ्तर में बीएमसी के एक्शन को सही नहीं माना था - वरना, अवैध निर्माण ढहाना तो वैसे भी बीएमसी के रूटीन के कामकाज का हिस्सा होता ही है.

सोनू सूद को जवाब देने के लिए बीएमसी ने महीने भर की मोहलत दी थी, लेकिन उसे जवाब नहीं मिला, लिहाजा बीएमसी के अधिकारियों ने नये साल पर 4 जनवरी, 2021 को इमारत का मुआयना किया - और पाया कि सोनू सूद ने और ज्यादा अवैध निर्माण करा लिया है.

सोनू सूद ने किसी भी तरह की अनियमितता बरतने से इंकार करते हुए कहा है कि वो बीएमसी से यूजर चेंज की परमिशन चाहते थे - और महाराष्ट्र कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथऑरिटी की तरफ से क्लीयरेंस का इंतजार कर रहे हैं. सोनू सूद का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते उनको जरूरी अनुमति नहीं मिल सकी है.

बीएमसी अफसरों का कहना है कि नोटिस के खिलाफ सोनू सूद ने कोर्ट का भी रुख किया था, लेकिन वहां उनको कोई राहत नहीं मिली. लोकल कोर्ट ने तीन हफ्ते के भीतर हाई कोर्ट में अपील करने को कहा था. कोर्ट से जो मोहलत मिली थी वो भी खत्म हो चुकी है, बीएमसी का कहना है - और न तो अवैध निर्माण हटाया गया और न ही सोनू सूद कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

सोनू सूद अब तक निगरानी में थे

सोनू सूद तो शिवसेना की नजर में पहले से ही चढ़े हुए थे - हो सकता है कंगना रनौत ने मुंबई को पीओके नहीं बनाया होता या फिर अर्नब गोस्वामी में पालघर पर बवाल नहीं मचाया होता तो वो कभी के किसी न किसी एजेंसी के हत्थे चढ़ कर बिहार चुनाव से पहले ही जेल की हवा खा चुके होते. चूंकि सोनू सूद ने बिहार के प्रवासी मजदूरों को भी उनके घर भेजने में मदद की थी, इसलिए भी सुशांत सिंह राजपूत केस में निशाने पर आयी शिवसेना सरकार ने धैर्य का परिचय दिया था.

uddhav thackeray, sonu sood, aditya thackerayमातोश्री जाकर मत्था टेकना भी सोनू सूद के काम न आ सका!

सोनू सूद भी कंगना रनौत और अर्नब गोस्वामी की तरह ही राजनीतिक मोहरा बनने जा रहे हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये तीनों ही महाराष्ट्र और मुंबई के लिए बाहरी लोगों वाली कैटेगरी में आते हैं - कंगना रनौत हिमाचल से आती हैं, अर्नब गोस्वामी असम से और सोनू सूद पंजाब से चल कर मुंबई में बसे हैं. सोनू सूद का मामला थोड़ा इसलिए भी राहत मिल गयी क्योंकि वो कभी भी कंगना रनौत और अर्नब गोस्वामी की तरह उद्धव ठाकरे से सीधे सीधे भिड़े भी नहीं - लेकिन सोनू सूद का काम ही उनकी आने वाली मुसीबतों का सबब बन रहा है.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के साथ हर शहर में एक जैसा ही व्यवहार हुआ, चाहे वो दिल्ली हो, मुंबई हो या देश का कोई और ही शहर क्यों न रहा हो - किसी भी शहर ने आगे बढ़ कर न तो प्रवासी मजदूरों की मुश्किल वक्त में मदद की और न ही उनको रोकने की ही कोशिश की. बल्कि ऐसे राजनीतिक संदेश फैलाये गये कि वे पैदल ही घर पहुंचने के लिए तत्काल प्रभाव से सड़क पर निकल पड़े - बगैर इस बात की परवाह किये कि उनके छोटे बच्चे या बड़े बुजुर्ग अपनी जिंदगी का सबसे मुश्किल सफर कैसे तय कर पाएंगे? कर भी पाएंगे या सफर अधूरा ही रह जाएगा? दर्जनों ऐसे मामले सामने भी आये जब घर पहुंचने का सफर रास्ते में ही आखिरी सफर बन गया.

ये तो मुंबई शहर था जहां सोनू सूद जैसा मजदूरों का मसीहा पहले से रह रहा था - और मुश्किल घड़ी देखते ही वो सबकी मदद में सारे कामकाज छोड़ कर कूद पड़ा. मदद भी ऐसी की कि किसी ने सोचा तक न था. मदद भी सभी की की. मदद भी किसी भेदभाव के बगैर की - और धीरे धीरे मदद करने का एक सिस्टम ही बना डाला है. मदद का एक बार जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक थमा नहीं है.

अव्वल तो महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना नेताओं को खुश होना चाहिये था कि कैसे वहीं पर उनके बीच रह रहा एक शख्स दिन रात जरूरतमंदों की सेवा में लगा हुआ है, लेकिन राजनीति में ऐसा थोड़े ही होता है.

सोनू सूद का काम तो जैसे उद्धव सरकार को नाकाम ही साबित करने पर तुला हुआ था - अगर उद्धव सरकार ही लोगों की मदद कर पाती तो भला सोनू सूद का ये अवतार सामने आता ही क्यों?

सोनू सूद का काम तो उद्धव सरकार की लोगों के प्रति तत्परता और जरूरी इंतजाम न कर पाने के मामले में सवाल ही खड़े कर रहा था - फिर भला ये सब शिवसेना को सुहाये भी तो कैसे?

शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने 'महात्मा' सूद लिख कर मजाक उड़ाने की कोशिश की. संजय राउत ने लिखा कि कितनी चतुराई के साथ किसी को एक झटके में महात्मा बनाया जा सकता है. जैसे बाकियों पर हमले के बीच संजय राउत थोड़ी बहुत तारीफ भी करते रहते हैं, सोनू सूद को भी एक अच्छा एक्टर जरूर बताया था.

संजय राउत ने अपने 'रोखटोक' में लिखा, 'लॉकडाउन के दौरान आचानक सोनू सूद नाम से नया महात्मा तैयार हो गया... एक झटके में और इतनी चतुराई के साथ किसी को महात्मा बनाया जा सकता है?'

लगे हाथ संजय राउत ने वो तकलीफ भी लिख डाली जो अंदर तक शिवसेना नेतृत्व को साल रही थी, 'कहा जा रहा है कि सोनू सूद ने लाखों प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों में उनके घर पहुंचाया... मतलब, केंद्र और राज्य सरकार ने कुछ भी नहीं किया - महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी महात्मा सूद को शाबाशी दी!' सोनू सूद को लेकर संजय राउत की इस टिप्पणी पर फिल्मी हस्तियों और बुद्धिजीवियों की चुप्पी पर फिल्म मेकर अशोक पंडित ने ट्विटर पर सवाल भी उठाया था.

सोनू सूद ने उस दौरान मातोश्री जाकर उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से मुलाकात भी की थी. संजय राउत को लेकर सोनू सूद ने टीवी पर कहा था, 'मैं किसी की खातिर कुछ भी नहीं कर रहा हूं... मैं बस प्रवासियों के लिए कुछ करना चाहता था. संजय राउत अच्छे इंसान हैं और मैं उनकी काफी इज्जत करता हूं. ये उनका विचार है. वे बड़ी शख्सियत हैं. मुझे उम्मीद है कि समय सच बताएगा और वे इसे महसूस करेंगे.'

संजय राउत के सोनू सूद के सेवा भाव के पीछे राजनीतिक मंशा सूंघने को लेकर जब पूछा गया तो बोले, 'मेरा राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं है. मैं बतौर एक्टर अपने काम को एंजॉय कर रहा हूं. अभी मेरे पास करने के लिए बहुत कुछ है. बतौर एक्टर मैं बहुत बिजी हूं. मेरी कई बड़ी फिल्में पाइपलाइन में हैं. मैं फिल्में करना चाहता हूं.'

सोनू सूद को लेकर सत्ता पर काबिज शिवसेना की नजर टेढ़ी होने के वाजिब कारण भी साफ साफ नजर आते हैं. अभी अभी प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस पर संजय राउत की पत्नी ने एजेंसी के दफ्तर जाकर हाजिरी लगायी है. 4 जनवरी को पीएमसी बैंक घोटाला मामले में करीब चार घंटे की पूछताछ के बाद ED ने वर्षा राउत को दोबारा भी बुलाया है.

टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस के एक्शन और महाराष्ट्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी गंभीर रही. अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तरी और फिर जेले भेजे जाने को भी राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तौर पर ही देखा जा रहा था. ठीक वैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के एक करीबी के खिलाफ भी कार्रवाई की शुरुआत हो चुकी है.

बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री गिरीश महाजन के खिलाफ भी एक घोटाले के सिलसिले में मुकदमा दर्ज किया गया है. देवेंद्र फडणवीस के ही एक और करीबी बीजेपी विधायक प्रसाद लाड को मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 11 साल पुराने एक मामले में नोटिस भेजा है. प्रसाद लाड पर 2009 में बीएमसी में आर्थिक घोटाला करने का इल्जाम लगा है.

सोनू सूद भी अब तक समझ ही चुके होंगे कि सेवा के कामों के भी साइड इफेक्ट होते हैं - और जब तक कंगना रनौत की ही तरह उनको घोषित तौर पर राजनीतिक संरक्षण नहीं मिल जाता - हवाई यात्राओं की तरह दूसरों की मदद से पहले अपने बारे में सोचना होगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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