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Updated: 18 नवम्बर, 2022 09:16 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा ने 24 सालों से चली आ रही अपनी परंपरा को निभाते हुए किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है. वहीं, कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी सिर्फ 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. और, गुजरात में त्रिकोणीय संघर्ष होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी ने अभी तक 176 उम्मीदवारों का ऐलान किया है. जिसमें से महज दो ही मुस्लिम समुदाय से आते हैं.

यह चौंकाने वाली बात ही कही जा सकती है कि भाजपा को मुस्लिम विरोधी पार्टी का तमगा देने वाली कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी मुस्लिम प्रत्याशियों पर कोई खास भरोसा नहीं जताया है. सियासी नुमाइंदगी के नाम पर मुस्लिम समुदाय को गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में से कांग्रेस ने 3.33 प्रतिशत, तो AAP ने करीब 2 फीसदी हिस्सेदार ही माना है. जबकि, गुजरात में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में करीब 10 फीसदी की हिस्सेदारी है. ये हाल खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले सियासी दलों का है. जो खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा हितैषी बताती रही हैं.

वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम जो खुद को पूरी तरह से मुस्लिम राजनीति का प्रणेता बताती है. उसने 14 विधानसीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. जिनमें से 12 मुस्लिम और 2 हिंदू प्रत्याशी हैं. सवाल ये है कि जब असदुद्दीन ओवैसी खुद को खुलकर मुस्लिम समुदाय का झंडाबरदार कहते हैं. तो, AIMIM को धर्मनिरपेक्ष दल के तौर पर दिखाने की क्या जरूरत है? वैसे, एआईएमआईएम के प्रत्याशियों के बारे में रोचक बात ये है कि जिन दो सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी ने हिंदू प्रत्याशियों को टिकट दिया है. वो आरक्षित सीटें हैं.

आसान शब्दों में कहें, तो गुजरात में कांग्रेस और AAP जैसे सियासी दलों भी मुस्लिम समुदाय के साथ 'अछूत' जैसा व्यवहार कर रहे हैं. जबकि, मुस्लिमपरस्त राजनीति करने वाली एआईएमआईएम खुद को धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए 10 फीसदी ही सही हिंदुओं को भी हिस्सेदारी दे रहे हैं.

Gujarat Assembly Election 2022 understand the Politics of Gujarat from the tickets given to Muslim candidates by Congress AAP BJP AIMIMगुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में मुस्लिम वोटर्स के सामने कांग्रेस के अलावा भी कई विकल्प हैं.

BJP तो मुस्लिम विरोधी है, कांग्रेस और AAP को समर्थक बनने से किसने रोका?

यूं तो भाजपा पर राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद से ही हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगाया जाने लगा था. लेकिन, 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद कांग्रेस समेत सभी सियासी दल तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर हमलावर रहे हैं. नरेंद्र मोदी के पीएम बन जाने और सुप्रीम कोर्ट से गुजरात दंगों के मामले पर क्लीन चिट मिल जाने के बावजूद भी इन सियासी दलों ने इस मुद्दे को कमजोर नहीं पड़ने दिया. और, गुजरात दंगों के नाम पर अपनी सियासत चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ा.

गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 से पहले फिर से इन दंगों की यादें बिलकिस बानो के गैंगरेप के दोषियों को रिहा किये जाने पर ताजा हो गई थीं. इसके बाद नरोदा पाटिया नरसंहार के दोषी मनोज कुलकर्णी की बेटी पायल कुलकुर्णी को नरोदा से विधानसभा सीट से भाजपा का प्रत्याशी घोषित कर दिया. वैसे, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, AIMIM समेत सभी विपक्षी दलों ने इन मुद्दों पर भाजपा को मुस्लिम विरोधी घोषित करने में कोई कोताही नहीं बरती. लेकिन, मुस्लिम समुदाय की नुमाइंदगी पर ये सभी दल कंजूस हो गए. और, क्यों हो गए इसकी वजह नहीं बताई जाती है?

क्यों नहीं मिलता मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व?

मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट न दिए जाने की सबसे बड़ी वजह ये है कि कोई भी सियासी दल खुद पर मुस्लिमपरस्त होने के आरोप लगवाना नहीं चाहता है. क्योंकि, अगर ऐसा हो जाता है. तो, उनके लिए अन्य मतदाताओं के वोट पाना मुश्किल हो जाएगा. दरअसल, गुजरात में कांग्रेस और भाजपा ही लंबे समय तक मुख्य सियासी दलों के तौर पर जाने जाते थे. और, गुजरात में ध्रुवीकरण से बचने के लिए खुद कांग्रेस ने ही मुस्लिम प्रत्याशियों की नुमाइंदगी को कम कर दिया था. 1990 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था. वहीं, 1995 के विधानसभा चुनाव में ये संख्या घटकर 10 रह गई थी. और, कांग्रेस के सभी प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद हुए हर चुनाव में कांग्रेस की ओर से मुस्लिम प्रत्याशियों का प्रतिनिधित्व कम किया जाता रहा.

वैसे, गुजरात में मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व न मिलने की वजह मुस्लिम प्रत्याशियों की हार भी कही जा सकती है. क्योंकि, मुस्लिम प्रत्याशियों के जीतने की संभवना बहुत ज्यादा नहीं रहती थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 6 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. लेकिन, जीत सिर्फ 3 को ही मिली थी. आसान शब्दों में कहें, तो 1990 के बाद से ही गुजरात विधानसभा चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या कम होने लगी थी. 2017 के विधानसभा चुनाव तक गुजरात में भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य दल के तौर पर थे. और, कांग्रेस ने 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद कभी भी 6 से ज्यादा प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया.

किसकी ओर जाएंगे मुस्लिम?

गुजरात में मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा तबके को कांग्रेस के काडर वोट के तौर पर देखा जाता है. हालांकि, मुस्लिम मतदाताओं में एक वर्ग ऐसा भी है, जो भाजपा समर्थक कहा जाता है. दरअसल, भाजपा ने अपनी सरकारी नीतियों के जरिये मुस्लिम मतदाताओं के बीच सेंध लगाई है. आवास, स्वास्थ्य, राशन जैसी सुविधाओं के जरिये ये लाभार्थी वर्ग भाजपा का मतदाता बना है. लेकिन, ज्यादातार मुस्लिम वोट कांग्रेस के खाते में ही जाता रहा है. हालांकि, गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में इस बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी मैदान में हैं. तो, मुस्लिम मतदाताओं के पास इस बार कई विकल्प खुले हैं. देखना दिलचस्प होगा कि गुजरात में कम प्रतिनिधित्व के बावजूद मुस्लिम किसके साथ जाता है?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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