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Updated: 11 सितम्बर, 2022 09:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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आम चुनाव 2024 से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं - और अब से कुछ ही महीने बाद होने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भी अगले आम चुनाव की झलक देखने को मिल सकती है.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. बीजेपी पर सत्ता में वापसी का दबाव तो है ही, आम चुनाव में लोक सभा सीटों पर कोई असर न पड़े, इसके लिए भी पहले से ही तैयारी शुरू हो गयी है. बंगाल की शिकस्त और बिहार में सत्ता से बाहर हो जाने के बाद बीजेपी की चिंता भी स्वाभाविक लगती है. यूपी चुनाव 2022 में तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा मजबूत चेहरा होने के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मोदी के नाम पर वोट मांगते देखा गया है - बीजेपी के संसदीय बोर्ड में भी फैसला हो चुका है कि 2023 के आखिर तक होने वाले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ही होंगे. जहां बीजेपी सत्ता में है उन राज्यों में भी.

बीजेपी की तरह कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अपनी अपनी तैयारियों में लगे हैं. नजर तो सबकी अगले आम चुनाव पर ही है, लेकिन सब के सब एक दूसरे को विधानसभा चुनावों में भी घेरने की तैयारी में जुटे हैं. गुजरात और हिमाचल प्रदेश को ही लें तो लगता है जैसे मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की तैयारी चल रही हो. वैसे ये मुकाबला त्रिकोणीय कम और बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की आपसी लड़ाई ज्यादा लग रही है. कांग्रेस की जगह लेने के मामले में अरविंद केजरीवाल की पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड तो अब तक अच्छा ही रहा है.

राहुल गांधी फिलहाल भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हुए हैं. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी उसी दिन से भारत को नंबर 1 बनाने की यात्रा शुरू कर रखी है. राहुल गांधी की यात्रा गुजरात और हिमाचल प्रदेश से होकर तो नहीं गुजर रही है, लेकिन बीच में चुनाव प्रचार के लिए जा सकते हैं, ऐसा बताया जा रहा है.

अरविंद केजरीवाल के मुताबिक, दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया गुजरात में मार्च निकालने वाले हैं. जब से सीबीआई की रेड पड़ी है, मनीष सिसोदिया को अरविंद केजरीवाल आगे करके के चल रहे हैं. हालांकि, नयी मुसीबत भी सामने टपक पड़ी है. सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद मनीष सिसोदिया के खिलाफ अभी सीबीआई जांच चल ही रही थी कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने डीटीसी घोटाले के आरोपों की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है - मतलब, ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर कैलाश गहलोत के सिर पर भी तलवार लटक चुकी है.

जांच पड़ताल के बीच बीजेपी अरविंद केजरीवाल को 'भ्रष्टाचार का पर्याय' बताने लगी है. ये भी कितनी अजीब बात है कि जो शख्स भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से ही राजनीति में आया हो, वो भी उसी कीचड़ में फंस जा रहा है - लेकिन आरोपों का क्या है, ये आरोप कोर्ट में भी टिक पायें और फिर साबित भी हो जायें तो समझ में आये. दूध की धुली तो बीजेपी भी नहीं है, संसदीय बोर्ड में बड़े सम्मान के साथ लाये गये बीएस येदियुरप्पा को तो भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कुर्सी भी छोड़नी पड़ी थी और जेल भी जाना पड़ा था - और तहलका टेप सामने आने के बाद बीजेपी के अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण का चेहरा भी तो सबको याद ही होगा.

भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम अपने बचाव में बीजेपी के खिलाफ आक्रामक हो चली है - और अरविंद केजरीवाल को 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टक्कर देने वाला अकेला चेहरा बताते हुए कैंपेन चलाया जा रहा है.

ऐसे में जबकि मैदान में पहले से ही राहुल गांधी और ममता बनर्जी थे ही, अब तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी कूद पड़े हैं, एक ताजा सर्वे भी आया है जिसमें अरविंद केजरीवाल को ही 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा चैलेंजर माना गया है, लेकिन क्या वाकई ऐसा ही है?

मोदी और नीतीश बनाम केजरीवाल!

2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मुख्य चेहरा बनने की कोशिश में लगे अरविंद केजरीवाल अभी राहुल गांधी और ममता बनर्जी से जूझ ही रहे थे कि एक नये दावेदार सामने से प्रकट हो गये - बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.

arvind kejriwal, narendra modi, nitish kumarअरविंद केजरीवाल के लिए 2024 में नरेंद्र मोदी को चुनौती देना काफी मुश्किल टास्क है

नीतीश कुमार तो पहले से ही नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकिन बीच में कुछ मजबूरियों के चलते वो बीजेपी के साथ एनडीए में दोबारा चले गये थे. अब एनडीए छोड़ देने के बाद लालू यादव की पार्टी आरजेडी से हाथ मिला कर फिर से बिहार में महागठबंधन का नेता बन गये हैं - और ऐसा करके नीतीश कुमार देश की विपक्षी राजनीति में प्रमुख चेहरा बन गये हैं.

नीतीश कुमार वैसे तो खुद के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होने से इनकार कर रहे हैं, तीन दिन के दिल्ली दौरे में दस नेताओं से उनकी मुलाकात के बाद माहौल तो उनके पक्ष में बन ही गया है - और एक न्यूज चैनल के लिए सीवोटर की तरफ से कराये गये सर्वे में भी जब सवाल किया गया तो लोगों का जवाब भी वैसा ही मिला है.

रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे में सैंपल के तौर पर छह हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था और उनसे 2024 में मोदी फैक्टर, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल के साथ साथ बीजेपी और विपक्ष से जुड़े सवाल भी पूछे गये.

लोगों से पूछे गये सवालों में से एक था - 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती कौन बनेगा... अरविंद केजरीवाल या नीतीश कुमार?

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 60 फीसदी से ज्यादा लोगों का मानना है कि 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल ही सबसे बड़ी चुनौती पेश करने वाले हैं - जाहिर है बाकी लोग नीतीश कुमार को ही मोदी के सामने सबसे बड़ा चैलेंजर मानते हैं.

एकबारगी माहौल को जानने समझने के लिए सैंपल सर्वे ठीक हो सकते हैं और देश में जैसा माहौल बना हुआ है, लोग उसी के हिसाब से अपनी राय भी दे रहे हैं. ये वैसे ही है जैसे यूपी और बिहार के कस्बों और गांवों में जो स्थानीय नेता कई गाड़ियों के काफिले के साथ चलता है उसकी हवा बहने लगती है. जहां कहीं भी शादी-ब्याह के मौके पर या सार्वजनिक समारोहों में ऐसे नेता अपने लाव लश्कर के साथ जाते हैं, देख कर लोग बड़ा नेता मानने लगते हैं.

देखा तो ये भी गया है कि रैलियों की भीड़ सबसे बड़ी धोखेबाज होती है. मायावती से बेहतर ऐसा किसका अनुभव होगा. अभी तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर भी कांग्रेस की तरफ से ऐसी ही भीड़ दिखायी जा रही है - और टीम केजरीवाल तो खैर ऐसे सोशल मीडिया कैंपेन में में माहिर ही है. जैसे आम आदमी पार्टी के कैंपेन में मनीष सिसोदिया को देश में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा क्रांतिकारी बताया जा रहा है और यूपी के दूर दराज के स्कूलों के वीडियो शेयर किये जा रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे स्कूलों के नाम पर योगी आदित्यनाथ सरकार में बस खंडहर ही बचे हों.

ठीक वैसे ही बीजेपी की तरफ से दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक और कई स्कूलों की गंदगी के वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर शेयर किये जाते रहे हैं. हाल में तो बीजेपी और आप के नेता मौका मुआयने के दौरान ही भिड़ गये थे.

अब अगर लोग ऐसी ही चीजों को देख कर अपनी राय बनाएंगे तो सर्वे के नतीजे भला अलग कहां से आएंगे? लेकिन अगर अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार की रणनीतियों को समझने की कोशिश करें तो वस्तुस्थिति सर्वे से अलग दिखायी देती है. ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के बाद पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बना ली है, लेकिन 2024 के लिए तो पूरे देश का भरोसा जीतना पड़ेगा.

पूरे देश का भरोसा जीतने के लिए ही अरविंद केजरीवाल मेक इंडिया नंबर 1 कैंपेन चला रहे हैं. अकेले बूते किसी राज्य में चुनाव जीत कर सरकार बना लेना और पूरे देश में चुनाव जीतना एक जैसा तो बिलकुल नहीं होता. 2014 के आम चुनाव में खुद अरविंद केजरीवाल ये स्वाद भी चख ही चुके हैं. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हरा देने के बाद वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाराणसी भी पहुंच गये थे, लेकिन फिर उलटे पांव लौटना भी पड़ा था.

और ये सब अरविंद केजरीवाल के लिए तभी मुमकिन हो सकता है जब विपक्षी दल भी उनको नेता के तौर पर स्वीकार कर लें - अभी तक ऐसा कोई संकेत तो नहीं मिला है कि नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और राहुल गांधी आम आदमी पार्टी का नेतृत्व स्वीकार कर सकते हैं.

केजरीवाल कितने बड़े चैलेंजर?

अरविंद केजरीवाल अपने बूते ही मैदान में खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. वो खुद को गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस फोरम के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं. मुश्किल ये है कि जिसे वो फोरम के तौर पर पेश कर रहे हैं वो सिर्फ उनकी अपनी पार्टी है - AAP. सिर्फ उनके समर्थक हैं. कोई भी विरोधी नहीं बचा है. विरोधी कौन कहे, शुरुआती राजनीति के साथियों में कोई ऐसा भी नहीं बचा है जो अरविंद केजरीवाल को सही सलाह दे सके. और पेशेवर सलाह तो बगैर स्वार्थ के मिलती नहीं. मुफ्त में तो बिलकुल नहीं.

जब कांग्रेस सत्ता में रही तब भी और बीजेपी के आने के बाद तो समीकरण ही बदल गये, लेकिन फिर भी दोनों से इतर तीसरे मोर्चे की बातें होती रही हैं. कोशिशें भी. हालांकि, कोशिशें कभी कामयाब नहीं हो सकी हैं.

अरविंद केजरीवाल की ही तरह ममता बनर्जी भी कांग्रेस को किनारे करके बाकी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर चुकी हैं, और अभी तक तो फेल ही मानी जाएंगी. तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के. चंद्रशेखर राव भी बीजेपी और कांग्रेस को छोड़ कर तीसरा मोर्चा खड़ा करने की ही कोशिश कर रहे हैं.

नीतीश कुमार ने बाकियों से अलग लाइन ली है. वो तीसरा नहीं बल्कि पहला मोर्चा खड़ा करने की बात कर रहे हैं. जेडीयू नेता केसी त्यागी प्रचारित भी कर रहे हैं कि नीतीश कुमार विपक्ष के जिस फोरम की कल्पना कर रहे हैं, उसमें कोई राजनीतिक तौर पर अछूत नहीं है.

फिर अभी तक कम ही संभावना लग रही है कि अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार के फोरम से जुड़ना चाहेंगे - जब तक कि उनको विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं कर दिया जाता. भला ये संभव है क्या?

जब लोगों से सर्वे के दौरान सवाल किया गया कि क्या 2024 में वे अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती मानते हैं?

सर्वे के नतीजों के मुताबिक, 63 फीसदी लोगों का जवाब हां में है, जबकि 37 फीसदी लोग अरविंद केजरीवाल को 2024 में मोदी के लिए चुनौती के तौर पर नहीं देखते. सर्वे को लेकर आम आदमी पार्टी का जोश हाई है. और ये सर्वे ऐसा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट की तरह कोई चैलेंज भी नहीं करने वाला है - क्योंकि एक न्यूज चैनल के लिए ये सर्वे एक प्रोफेशनल एजेंसी ने सर्वे किया है.

सर्वे ने आम आदमी पार्टी को नये सिरे से बीजेपी पर हमला बोल देने का मौका भी दे दिया है. मनीष सिसोदिया के ट्वीट से तो ऐसा ही लगता है. ट्विटर पर लिखते हैं, 'सर्वे के बाद अब मेरे घर पर, अगले एक दो दिन में, एक ED रेड तो बनती है…'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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