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Updated: 03 सितम्बर, 2022 03:55 PM
बिभांशु सिंह
बिभांशु सिंह
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कभी-कभी राजनीति में जुबान खोलना दुश्वार हो जाता है. जो बातें जुबां नहीं कह पाती है वह नारों और पोस्टरों के जरिये कह दी जाती है. मौजूदा समय में पटना में नीतीश कुमार का बड़ा सा होर्डिंग जिसमें उन्होंने बिहार के बदले सीधे देश को संकेत दिया है, उसके कई राजनीतिक मायने हैं. दरअसल, पोस्टर के जरिये सियासत साधने में नीतीश कुमार माहिर खिलाड़ी हैं. खबरों के मुताबकि, जदयू के प्रदेश पदाधिकारियों, प्रदेश कार्यकारिणी, राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक को लेकर जदयू प्रदेश मुख्यालय और वीरचंद पटेल मार्ग को पोस्टरों और बैनरों से सजाया गया है. इनमें विशेष रुप से नीतीश कुमार की आदम कद का फोटो डाला गया है. उसके साथ कई स्लोगन भी लिखे गए हैं. साथ में ‘प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा’ पंचलाईन अंकित है.अन्य पोस्टर में ‘आगाज हुआ, बदलाव होगा’. ‘आश्वासन नहीं, सुशासन’, लिखा हुआ है, जो सीधे तौर पर देश की जनता को नीतीश कुमार के नाम पर आश्वस्त करने के साथ केंद्र की सत्ताधारी दल बीजेपी को चुनौती देता नजर आ रहा है.

Nitish Kumar, Bihar, Chief Minister, Poster, Prime Minister, Controversy, BJP, JDU, RJDबिहार में नीतीश कुमार के पोस्टर ने सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हैं

एक नारा में लिखा है कि ‘जुमला नहीं, हकीकत’, ‘मन की नहीं, काम की.’ इन दोनों नारों से सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया गया है. दरअसल, मोदी को विपक्षी नेता जुमला बाज कहते हैं, खासकर कालेधन की वापसी और खाते में 15-15 लाख देने की बातों को लेकर.  प्रधानमंत्री मोदी अक्सर रेडियो पर प्रधानमंत्री मन की बात करते नजर आते हैं, इसे भी टारगेट किया गया है.

तय है कि नीतीश कुमार इन पोस्टरों व पोस्टर पर लिखेे बातों से साफ कर दिया है कि उनकी लड़ाई केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मेादी के खिलाफ छिड़ चुकी है. पोस्टरों के जरिये केंद्र को चुनौती देना कोई सहज बात नहीं है. यह भी तब हुआ जब केसीआर यानी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव आए बिहार दौरा पर आए और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की.

यानी साफ है कि इसके लिए नीतीश कुमार के इन पोस्टरों के पीछे केसीआर का बड़ा भरोसा है. दरअसल, बिहार से मुख्यमंत्री ने भाजपा के खिलाफ जबरदस्त मोर्चा खोल दिया है तो दक्षिण से तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने भी विपक्षी पार्टियों को एक करने में जुटी है. लेकिन, खास चुनौती सभी को नीतीश कुमार के नाम पर सहमत करना होगा. चूंकि, तीसरे मोर्चे की लड़ाई अक्सर अपने नेता को चुनने में ही दम तोड़ जाती है.

लेकिन, नीतीश कुमार ने अगर एनडीए से नाता तोड़कर भाजपा के खिलाफ एक नये तरह के सतही जंग की मुनादी बजायी है तो निश्चित रुप से इसके पीछे कई सियासत के धुरंधरों की सहमति जरुर होगी. भाजपा के खिलाफ विपक्षियों की यह घेराबंदी 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या रंग लाती है यह भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, बीजेपी की टेंशन जरुर क्षेत्रीय दलों ने बढ़ा दी है.

दरअसल, कई प्रदेशों में क्षे़त्रीय दलों का प्रचंड जनाधार है. भाजपा अक्सर इस जनाधार को कमजोर करने में तभी सफल होती है जब किसी बड़े क्षेत्रीय दलों के अपने साथ जोड़ ले या उस राज्य के सभी क्षेत्रीय दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हों. लेकिन, आज की नयी-नवेली व दूर दृष्टिवाली सोच में क्षेत्रीय दलों की एकजुटता के लिए कई सियासी दलों ने बड़ी कार्ययोजना तय कर अभियान चला दिया है. लेकिन, इसकी सफलता काफी जटिल है. 

लेखक

बिभांशु सिंह बिभांशु सिंह @2275062259310470

घुमंतू स्वभाव का हूं। राजनीति, नयी व रोचक बातें खिलने की आदत है। खबर लेखन से जुड़ा हुआ हूं।

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