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Updated: 03 अगस्त, 2022 08:26 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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तो क्या जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की 'मूर्खता' के कारण किसी आम भारतीय को तिब्बत और ताइवान को चीन का हिस्सा मानना पड़ा है? आरोप गंभीर हैं और उस व्यक्ति के हैं लेकिन लॉजिक्स के आगे संघ-भाजपा से लेकर कांग्रेस तक सब प्रायः नतमस्तक ही रहते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार सुब्रमण्यन स्वामी की. जिन्होंने तिब्बत और ताइवान को चीन का हिस्सा मानने को लेकर भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों को आड़े हाथों लिया है और एक नयी डिबेट का श्री गणेश कर दिया है. बीते कुछ दिनों से तमाम अहम मोर्चों को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले स्वामी ने एक बार फिर पीएम को घेरा है. स्वामी ने कहा कि भारतीय सीमा क्षेत्र में चीनी सैनिकों के घुसने के बावजूद पीएम मोदी कहते हैं कि 'कोई आया नहीं'. वहीं एलएसी समझौते का जिक्र छेड़ते हुए स्वामी ये कहने से भी नहीं चूके कि सीमाई मुद्दे पर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) समझौते का सम्मान नहीं करता है और लद्दाख में भारतीय भूमि पर कब्जा किया हुआ है.

Subramanian Swami, China, Taiwan, Jawaharlal Nehru, Atal Bihari Vajpayee, Twitter, Tweet, Criticismचीन और ताइवान के मद्देनजर अपनी बातों से स्वामी ने लोगों को बहस में पड़ने का मौका दे दिया है

ध्यान रहे स्वामी ने ये तमाम बातें उस समय कही हैं जब अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्‍स नैंसी पेलोसी अपनी ताइवान यात्रा पर हैं. चीन को अमेरिका का ये रुख अच्छा नहीं लगा है और अंतराष्ट्रीय राजनीति पर अपनी पकड़ रखने वाले इस बात को लेकर एकमत हैं कि अपने इस दुस्साहस की भारी कीमत अमेरिका को निकट भविष्य में चुकानी पड़ सकती है.

वहीं लोग इस बात को भी मानते हैं कि भले ही ताइवान को लेकर चीन ने अमेरिका को धमकी देते हुए अपनी भौं तरेर ली हो. लेकिन चूंकि चीन और भारत के बीच पहले से ही तनाव है। इसलिए अगर कुछ भी उंच नीच हुई तो चीन को भी बड़ा नुकसान हो सकता है. 

जिक्र स्वामी द्वारा नेहरू और वाजपेयी को घेरने का हुआ है तो बताते चलें कि नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा की पृष्ठभूमि में सुब्रमण्यन स्वामी ने ट्वीट किया है. बात अगर इस ट्वीट की हो तो स्वामी ने लिखा है कि 'नेहरू और एबीवी (अटल बिहारी वाजपेयी) की बेवकूफी के चलते हम भारतीयों ने ये माना कि तिब्बत और ताइवान चीन का हिस्सा है. लेकिन अब चीन एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) को लेकर किए गए समझौते का सम्मान नहीं कर रहा है और उसने लद्दाख में भारतीय भूमि पर कब्जा किया है, जबकि मोदी एक ही बात कर रहे हैं कि 'कोई नहीं आया'. चीन को ये पता होना चाहिए कि निर्णय लेने के लिए हमारे यहां चुनाव होते हैं.'

 

ऐसा बिलकुल नहीं था कि नेहरू और वाजपेयी पर स्वामी के आरोपों के बाद सन्नाटा ही पसरा हुआ था. तमाम लोग थे जिन्होंने स्वामी से सवाल भी पूछे और मुखर होकर उनकी आलोचना भी की. 

सोशल मीडिया पर लोगो क बीच इस बात को लेकर भी बहस तेज हो गयी है कि ताइवान यूएन में नहीं है. इसलिए अमेरिका बस इसलिए ताइवान का मुद्दा छेड़ता है ताकि वो चीन को परेशान कर सके.

स्वामी ने विवाद की शुरुआत नेहरू और वाजपेयी को लेकर की है. इसलिए वो तमाम लोग जो इनके समर्थक थे उनकी तरफ से तर्कों के तीर चलने शुरू हो गए हैं. कहा जा रहा है कि यदि नेहरू देश के प्रधानमंत्री नहीं होते तो जैसे पेस से देश आज चल रहा है आज हम पिछड़े से पिछड़े देश से कहीं ज्यादा पीछे होते। 

 

भले ही ताइवान पहुंची नैंसी ने ये कहकर विवाद की आग को ठंडा करने की कोशिश की हो किम उनकी ये यात्रा परस्पर सुरक्षा, आर्थिक साझेदारी और लोकतांत्रिक शासन के मुद्दों पर केंद्रित है. मगर शायद ही ये बात एक देश के रूप में चीन को समझ आए. 

बहरहाल जिस तरह स्वामी ने अपने ट्वीट में नेहरू और वाजपेयी की नीतियों को घेरा है. और साथ ही जैसे स्वामी अपने ट्वीट में पीएम मोदी की नीतियों के आलोचक नजर आ रहे हैं सवाल ये है कि क्या पीएम मोदी और भाजपा के समर्थक स्वामी द्वारा कही बातों को पचा पाएंगे? सवाल कई हैं. जवाब बस वक़्त की गर्त में छिपा है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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