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Updated: 04 अगस्त, 2022 01:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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स्मृति ईरानी (Smriti Irani) को अभी अभी संसद में सोनिया गांधी से आमने सामने भिड़े देखा गया था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने झिड़कते हुए बोल दिया, 'डोन्ट टॉक टू मी', तो, यहां तक सुनने में आया कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी मौके पर भी बोल दिया कि संसद कोई उनके पार्टी का दफ्तर नहीं है.

मॉनसून सेशन के दौरान ये सब कैमरे पर तो नहीं हुआ था, लेकिन चश्मदीदों के हवाले से मीडिया में यही किस्सा सुनने को मिला था. हालांकि, कुछ नेताओं ने अलग अलग दावे भी किये थे. ये वाकया तब का है जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी के एक बयान पर खूब बवाल हुआ था - और सत्ता पक्ष की तरफ से सोनिया गांधी से माफी मांगने की डिमांड हो रही थी.

बहरहाल, वो किस्सा तो लगभग ठंडा हो ही गया है. कांग्रेस के चार सदस्यों का लोक सभा स्पीकर ओम बिड़ला ने भी निलंबन वापस ले ही लिया है. राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सोनिया गांधी को लेकर निर्मला सीतारमण के सदन में बयान का वो हिस्सा कार्यवाही से हटा दिया है, जिसके लिए नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पत्र लिख कर शिकायत की थी.

लेकिन स्मृति ईरानी का सिर्फ इतने से ही मन नहीं भर रहा है, वो एक और किस्सा खत्म करना चाहती हैं. अपने हिसाब से तो वो अपनी बेटी को लेकर कांग्रेस नेताओं के बार लाइसेंस वाला किस्सा खत्म ही कर चुकी हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने फिलहाल ये मान लिया है कि गोवा का सिली सोल्स कैफे ऐंड बार से स्मृति ईरानी की बेटी का कोई लेना देना नहीं है. जयराम रमेश और पवन खेड़ा सहित तीन कांग्रेस नेताओं को इस मामले में कोर्ट का नोटिस भी मिला हुआ है.

जिस किस्से में स्मृति ईरानी की सबसे ज्यादा दिलचस्पी हो सकती है वो कांग्रेस से जुड़ा और अमेठी-रायबरेली का ही मामला हो सकता है. है भी वही. 2014 में राहुल गांधी से हार का बदला 2019 में ले लेने के बाद भी स्मृति ईरानी की मन अभी भरा नहीं है.

अब बीजेपी सांसद स्मृति ईरानी चाहती हैं कि अगले आम चुनाव में कांग्रेस अमेठी से प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को लोक सभा का प्रत्याशी बनाये - और ये किस्सा भी अब खत्म हो ही जाये!

स्मृति ईरानी की इच्छा क्या है, ये तो आप समझ ही गये होंगे - लेकिन क्या आपको भी लगता है कि मामला एकतरफा ही होगा, या फिर 2024 में अमेठी का मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है?

राहुल से प्रियंका पर क्यों शिफ्ट हुईं स्मृति ईरानी?

भारतीय जनता पार्टी 2024 के आम चुनाव की जैसे भी तैयारी कर रही हो, ये तो मान कर चलना चाहिये कि उत्तर प्रदेश पर सबसे ज्यादा जोर होगा ही. 2024 के जोर की झलक तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में ही देखी जा चुकी है - बीजेपी की तैयारी अपनी जगह है, लेकिन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का ज्यादा जोर तो अमेठी पर ही रहता है. अगर अमेठी से बोरियत होने लगे तो वो वायनाड भी पहुंच जाती हैं, ताकि राहुल गांधी के अमेठी में मिले जख्म हरे भरे रहें.

smriti irani, priyanka gandhi vadraस्मृति ईरानी की गांधी परिवार से लड़ाई का किस्सा इतना जल्दी खत्म होता तो नहीं ही लगता.

बीजेपी की यूपी में संभावित सीटों का अनुमान हाल ही में हुए एक सर्वे में बताया गया था. ये सर्वे देश की 512 लोक सभा सीटों पर एक एजेंसी ने एक टीवी चैनल के लिए कराया था - और सर्वे के नतीजे बीजेपी लिए महत्वपूर्ण तो लगते हीं, कांग्रेस के लिए भी बड़े अच्छे लगते हैं.

सर्वे में कांग्रेस के खाते में उत्तर प्रदेश से दो सीटें जोड़ी गयी हैं. वैसे भी कांग्रेस के लिए यूपी में अब दो ही सीटें महत्वपूर्ण रह भी गयी हैं - अमेठी और रायबरेली. सर्वे में दो सीटें तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के हिस्से में दो ही सीटें बतायी गयी हैं, लेकिन बीजेपी को यूपी से 76 लोक सभा सीटें मिलने का अनुमान है. ऐसा तभी हो सकता है जब देश में अभी लोक सभा के चुनाव कराये जायें, ऐसा सर्वे में बताया गया है. अभी तक बीजेपी यूपी से सबसे ज्यादा 71 सीटें ही जीत पायी है, 2014 में.

आशंका तो 2024 में कांग्रेस की रायबरेली में जीत को लेकर भी जतायी जाने लगी है. अभी तो ये भी साफ नहीं है कि सोनिया गांधी अगली बार रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी भी या नहीं?

सर्वे कांग्रेस के लिए उम्मीदों की किरण तो दिखा ही रहा है. अगर सर्वे के चलते बीजेपी 76 सीटों की संभावना पर मन ही मन खुश हो सकती है, तो कांग्रेस के दो सीटें तो और भी बड़ी खुशी की वजह हो सकती हैं - बशर्ते एक अमेठी हो, और दूसरी रायबरेली. बीजेपी की तो 2014 से ही यूपी की उन सीटों पर खास नजर रही है, जहां वो नहीं जीत पायी थी. हालांकि, 2019 में बीजेपी की सीटें पांच साल पहले के मुकाबले घट भी गयी थीं - हां, हाल में हुए आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनावों में तो बीजेपी ने भगवा फहरा ही दिया है.

हाल ही की बात है, जब कांग्रेस नेताओं ने गोवा के एक रेस्ट्रां और बार के लाइसेंस को लेकर कांग्रेस नेताओं ने स्मृति ईरानी की बेटी का नाम लेकर सवाल खड़े किये थे, तो भी कांग्रेस के दावों को खारिज करने के लिए पूरे मामले को अमेठी में राहुल गांधी की हार से जोड़ दिया था - और अगले चुनाव में भी राहुल गांधी धूल चटाने के दावे कर रही थीं. स्मृति ईरानी अपनी तरफ से ये समझाने की कोशिश कर रही थीं कि कांग्रेस अमेठी से राहुल गांधी की हार को हजम नहीं कर पा रही है.

गुस्से से उबल रहीं स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेंस में काफी तेज आवाज में कहा था, 'मैं चुनौती देती हूं... राहुल गांधी को अमेठी में फिर से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने भेजिये, बीजेपी कार्यकर्ता के नाते उन्हें फिर से धूल चटाने का वादा करती हूं.'

लेकिन जब एक टीवी इंटरव्यू में अमेठी और रायबरेली को लेकर स्मृति ईरानी से सवाल पूछे गये तो राहुल गांधी को छोड़ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को ही अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए चैलेंज कर डालीं - क्या बीजेपी नेतृत्व भी ऐसा ही कुछ सोच रहा है या मान कर चल रहा है?

ये पहली बार है जब स्मृति ईरानी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को सीधे सीधे चैलेंज कर रही हैं. अब तक तो यही देखने को मिलता रहा है कि प्रियंका गांधी की तरफ से भी चैलेंज किये जाने पर स्मृति ईरानी बचने की कोशिश करती हैं - और किसी न किसी बहाने राहुल गांधी को बीच में घसीट कर ही रिएक्ट करती हैं. हमेशा तो नहीं लेकिन ये अक्सर देखा गया है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ही स्मृति ईरानी भी जब तक काम चल जाये, प्रियंका गांधी पर सीधा हमला बोलने की जगह परेहज ही करती हैं.

यूपी चुनाव 2022 में प्रियंका गांधी के स्लोगन 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' का का मजाक उड़ाने के लिए भी राहुल गांधी का ही नाम लिया था - 'घर में लड़का है... लेकिन लड़ नहीं सकता.'

क्या कांग्रेस का किस्सा खत्म हो जाएगा?

सर्वे के अनुमान अपनी जगह हो सकते हैं, लेकिन यूपी में कांग्रेस की स्थिति समझाने के लिए स्मृति ईरानी इसी साल हुए विधानसभा चुनाव नतीजों की मिसाल देती हैं. खास कर अमेठी के विधानसभाओं में कांग्रेस के प्रदर्शन की.

गांधी परिवार का जिक्र तब आता है जब इंटरव्यू में स्मृति ईरानी से रॉबर्ट वाड्रा की टिप्पणी को लेकर सवाल पूछा जाता है. स्मृति ईरानी का रिएक्शन उस बात पर मांगा जाता है, जिसमें रॉबर्ट वाड्रा का कहना रहा कि बीजेपी की सरकार को गांधी परिवार से डर लगता है.

स्मृति ईरानी कहती हैं, 'जहां तक जीजाजी...' फिर कुछ देर रुक कर बोलती हैं, '... राहुल गांधी के'. रॉबर्ट वाड्रा और गांधी परिवार का जिक्र आते ही बीजेपी नेता स्मृति ईरानी अपने चुनाव क्षेत्र पर फोकस हो जाती हैं, राहुल गांधी के जीजाजी की बात है तो अमेठी का ही उल्लेख मैं कर सकती हूं.

ये कहते हुए कि 'ऐसे लोगों से क्या डरेगी बीजेपी,' स्मृति ईरानी सलाह देती हैं कि आगे जब भी चुनाव हो तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ साथ रॉबर्ट वाड्रा भी अमेठी जरूर पहुंचें. स्मृति ईरानी की असल में ये समझाने की कोशिश होती है कि अगर भाई-बहन की जोड़ी के साथ रॉबर्ट वाड्रा भी अमेठी में लोगों से वोट मांगें तो कांग्रेस नेतृत्व की हर तरह की बची खुची गलतफहमी भी दूर हो जाएगी.

विधानसभा चुनावों का जिक्र करते हुए स्मृति ईरानी कहती हैं, भाई-बहन दोनों चुनाव प्रचार के लिए आये थे - और चार सीटों पर कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई.

कहती हैं, उनके तो शुभ चरण पड़ने से ही जमानत जब्त हो जाती है... अगर पांचवीं विधानसभा सीट पर भी आये होते तो वहां भी जमानत जब्त हो ही जाती.

लेकिन अगर अगली बार राहुल गांधी की जगह प्रियंका गांधी अमेठी से आ गयीं तो?

ऐसा लगता है जैसे स्मृति ईरानी को चाहती थीं कि ये सवाल पूछा ही जाये. राहुल गांधी को तो तभी चैलेंज कर चुकी थीं, जब कांग्रेस नेताओं ने उनकी बेटी जोइश का नाम लेकर स्मृति ईरानी को टारगेट किया था. फिर तो बारी प्रियंका गांधी वाड्रा की ही थी.

याद दिलाती हैं कि विधानसभा चुनाव में तो प्रियंका गांधी यूपी में ही रहीं. अमेठी और रायबरेली पर भी काफी जोर रहा ही. और सिर्फ विधानसभा की बात क्यों, वो तो 2019 के आम चुनाव में भी पूर्वी उत्तर प्रदेश की ही प्रभारी रहीं. अमेठी और रायबरेली में तो शुरू से ही चुनाव कैंपेन संभालती रही हैं, साथ ही प्रियंका गांधी की नजर सुल्तानपुर सीट पर भी हुआ करती थी - क्योंकि वहां से उनके चचेरे भाई वरुण गांधी चुनाव लड़ा करते थे. पिछली बार बीजेपी ने अदला बदली कर दी थी और वरुण गांधी को पीलीभीत भेज कर प्रियंका गांधी की चाची मेनका गांधी को सुल्तानपुर भेज दिया गया.

जब स्मृति ईरानी को भी याद दिलाया जाता है कि वो खुद तो चुनाव लड़ी नहीं, तो वो अपने पर आ जाती हैं. विधानसभा चुनाव बीजेपी की तरफ से कई नेता प्रियंका गांधी को भी चुनाव लड़ने के लिए ललकार रहे थे. असल में पहले ही बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर अर्बन सीट से उम्मीदवार घोषित कर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी को मुश्किल में डाल दिया था. अखिलेश यादव तो मैदान में कूद भी पड़े, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे तैसे बचते बचाते टाल गयीं.

लेकिन अब स्मृति ईरानी खुल कर प्रियंका गांधी वाड्रा को अमेठी के चुनाव मैदान में घसीट लाना चाहती हैं, 'मैं चाहती हूं कि अमेठी आकर वो लड़ें... ये भी किस्सा एक बार खत्म हो.'

अमेठी-रायबरेली को लेकर क्या चर्चा है

अमेठी के मैदान में उतरने के लिए प्रियंका गांधी को चुनौती देने के बावजूद स्मृति ईरानी ने ये शिगूफा भी छोड़ दिया है कि अगली बार वो अमेठी से ही लड़ने वाली हैं, जरूरी नहीं है - और रायबरेली को लेकर भी वैसा ही गोलमोल जवाब दिया है. स्मृति ईरानी ने जो जवाब दिया है, तर्क तो दमदार है लेकिन ये भी है कि संदेह और भी ज्यादा गहरा जाता है.

अमेठी में प्रियंका गांधी वाड्रा से मुकाबले को अपने तरीके से वो तकनीकी तरीके से टाल देती हैं, 'कहां से चुनाव लड़ना है या नहीं लड़ना है - ये फैसला पार्टी का संसदीय बोर्ड करता है.' सही भी है. क्या पता तब तक क्या स्थिति हो और बीजेपी नेतृत्व क्या फैसला ले. मुख्तार अब्बास नकवी ताजातरीन उदाहरण हैं. राज्य सभा में भेजे जाने, रामपुर उपचुनाव लड़ने से लेकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव तक ऑप्शन ही ऑप्शन बाकियों के साथ साथ उनको भी नजर आ रहे हों, लेकिन ऐसे सारे ही दरवाजे बंद हो चुके हैं. अब तो बस किसी राज्य में राजभवन या फिर सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल ही बचा नजर आता है.

अगर बीजेपी को लगता है, अमेठी में तो स्मृति ईरानी ने भगवा फहरा ही दिया है - और अब भी दावा कर ही रही हैं कि अगली बार भी कमल ही खिलेगा, इसलिए स्मृति ईरानी को रायबरेली में उताकर कर वहां से भी कांग्रेस का पत्ता साफ किये जाने की रणनीति भी अपनायी जा सकती है.

ऐसा इसलिए भी कि ऐसी ही चर्चाओं से निकल कर जो बात सामने आयी है, समझ में ये आता है कि कांग्रेस रायबरेली से सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी और अमेठी से प्रियंका गांधी वाड्रा को आजमाया जाये!

फर्ज कीजिये ऐसी परिस्थितियां बनती हैं, तो बीजेपी नेतृत्व के सामने भी मुश्किल होगी कि स्मृति ईरानी को किस मोर्चे पर लगाना है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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