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Updated: 24 अप्रिल, 2019 03:30 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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'अगर मोदी की बोयोपिक को रिलीज किया जाता है तो वो संतुलन बिगाड़ेगी'. हो न हो ये बात तो हम सभी को पता थी. लेकिन जब चुनाव आयोग ने ये फिल्म देखी तो उनका भी यही मानना था और उन्होंने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाते हुए इसे चुनाव तक के लिए बैन कर दिया था. लेकिन फिल्म के निर्माताओं ने हार नहीं मानी और चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रोपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग पीएम नरेंद्र मोदी की बायोपिक की रिलीज पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले के साथ ही है. और आयोग का कहना है कि फिल्म में नरेंद्र मोदी के चरित्र को इस तरह फिल्माया गया है कि अगर ये 19 मई यानी अंतिम चरण के मतदान से पहले रिलीज़ की गई तो ये चुनावी संतुलन को इस विशेष राजनीतिक दल की तरफ झुका सकती है."

17 अप्रैल को चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई एक कमेटी ने ये फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी देखी थी. चुनाव आयोग ने फिल्म देखकर जो कुछ समझा उसके आधार पर एक रिपोर्ट बनाकर 22 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच को सौंप दिया था. हालांकि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 26 अप्रैल को होनी है. लेकिन इस रिपोर्ट में जो कुछ भी लिखा है वो काफी हैरान करता है. कम से कम फिल्म के निर्माता और नरेंद्र मोदी का किरदार निभाने वाले विवेक ओबेरॉय अब तक जो दलीलें देते आए हैं ये उन्हें गलत साबित करती है.

modi biopicमोदी  बायोपिक का चुनाव के दौरान रिलीज होना ठीक नहीं

चुनाव आयोग की इस 20 पन्नों की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 'इस वक्त आचार संहिता लगी हुई है और ऐसे वक्त में फिल्म 'पीएम नरेंद्र मोदी' चुनावी संतुलन को इस राजनीतिक दल की तरफ झुका सकती है. इसलिए इस फिल्म को 19 मई से पहले रिलीज़ नहीं किया जा सकता.'

रिपोर्ट में एक दिलचस्प बात और लिखी गई है. 'फिल्म में एक वाक्य है 'भारत ही मोदी है और मोदी ही भारत है' ये वाक्य कांग्रेस नेता डीके बरुआ की याद दिला देता है जिन्होंने कहा था कि 'इंदिरा ही भारत हैं और भारत ही इंदिरा है'.'

'पूरी फिल्म में नरेंद्र मोदी के चरित्र का महिमामंडन किया गया है. ये बायोग्राफी यानी आत्मकथा नहीं बल्कि एक संत की गाथा ज्यादा लगती है. कई सीन ऐसे हैं जिनमें मुख्य विपक्षी पार्टी को भ्रष्टाचारी दिखाया गया है और उनके बारे में अच्छा नहीं दिखाया गया है. उनके नेताओं को भी इसी तरह दिखाया गया है कि उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है कि वो कौन हैं.'

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 'ये फिल्म ऐसा राजनीतिक वातावरण पैदा करती है जहां एक व्यक्ति को cult का दर्जा दिया गया है.'

'135 मिनट की इस फिल्म का निर्माण निश्चित रूप से एकआयामी है. जहां विशेष चिन्हों, नारों और दृश्यों के जरिए एक व्यक्ति का कद बहुत ऊंचा दिखा दिया है. इसमें एक व्यक्ति की इतनी प्रशंसा की गई है कि उसे एक संत का दर्जा दिया गया है.'

vivek oberoiविवेक ओबेरॉय ने शिरड़ी जाकर फिल्म रिलीज़ होने की प्रार्थना की

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मोदी बाोयपिक की रिलीज डेट अब तक तीन बार बदली जा चुकी है. फिल्म के निर्माता हार मानने को तैयार नहीं हैं. वो चाहते हैं कि फिल्म जल्द से जल्द रिलीज हो. विवेक ओबेरॉय की हालत समझी जा सकती है. चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के चक्करों को साथ-साथ वो मंदिरों के चक्कर भी लगा रहे हैं और प्रार्थना कर रहे हैं कि फिल्म से लगा प्रतिबंध हट जाए. लेकिन जो रिपोर्ट चुनाव आयोग ने तैयार की है उसे देखकर तो लगता है कि विवेक ओबेरॉय की मन्नत इतनी जल्दी पूरी नहीं होने वाली. बाकी सुप्रीम कोर्ट 26 अप्रैल को इसपर अपना फैसला सुनाएगी. लेकिन इस रिपोर्ट ने तो फैसला सुना ही दिया है कि ये फिल्म पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही महिमामंडन करती है और इसमें कोई शक ही नहीं है कि इसे बनाने का असल मकसद प्रपोगेंडा ही है.

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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