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Updated: 30 मार्च, 2019 04:10 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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शायद ही किसी बायोपिक पर इतने विवाद हुए हों जितने हमारे पीएम की बायोपिक 'पीएम नरेंद्र मोदी' पर हो रहे हैं. चुनाव सिर पर हैं और नरेंद्र मोदी की बायोपिक भी चुनाव से ठीक पहले रिलीज़ हो रही है.

'एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर' और 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' के बाद अंदर तक हर्ट हुआ विपक्ष मन मसोस कर रह गया था. लेकिन यहां बात मोदी जी की बायोपिक की है तो जाहिर तौर पर विपक्ष इस बार चुप नहीं बैठता. कांग्रेस ने मांग की कि इस फिल्म को चुनाव तक रोका जाए क्योंकि इस फिल्म को राजनीतिक इरादे से बनाया गया है, जिसका मकसद पीएम मोदी का प्रचार करना है, इसलिए चुनाव से ठीक पहले इस फिल्म को रिलीज ना किया जाए.

ये फिल्म पहले 12 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी, लेकिन चुनाव की तारीखें डिक्लेयर होने के बाद इसकी रिलीज डेट 5 अप्रैल कर दी गई. क्योंकि पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को है. जाहिर है जिस मकसद से मोदी जी की फिल्म रिलीज की जा रही थी वो तो हल ही नहीं होता, लिहाजा फिल्म तय तारीख से एक सप्ताह पहले ही रिलीज की जा रही है.

modi biopicफिल्म रिलीज से पहले ही विवादों में है

कांग्रेस के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने फिल्म निर्माताओं और बीजेपी दोनों से जवाब मांगा था कि चुनावी मौसम में पीएम मोदी पर फिल्म क्यों बनी? लेकिन आइरनी देखिए फिल्म के प्रोड्यूसर साहब संदीप सिंह EC का नोटिस हाथ में पकड़े हुए भी कह रहे हैं कि फिल्म किसी राजनीतिक प्रपोगेंडा के तहत नहीं बनी है.

ये पब्लिक है...सब जानती है

फिल्म के निर्माता संदीप सिंह, और मोदी बने विवेक ओबेरॉय को चुनाव आयोग के सामने पेश होना था. जहां उन्होंने EC के सामने कागजात और सबूत पेश किए हैं जिससे ये साबित हो कि फिल्म के पीछे राजनीतिक दखल नहीं है. यहां संदीप सिंह ने फ्रीडम ऑफ स्पीच का नारा भी बुलंद किया हुआ था. उन्होंने कहा- 'हमने फिल्म बनाई है. हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं जहां हर किसी को बोलने की आजादी है. ये बहुत सामान्य बात है.' अब इसके बाद कोई क्या कहे. मामला फ्रीडम ऑफ स्पीच का है. फिल्म के ट्रेलर के हर सीन में भले ही मोदी जी की छवि चमकाने की कोशिश की गई हो लेकिन संदीप सिंह का कहना है कि- 'बिना फिल्म देखे लोग आरोप लगा रहे हैं कि ये प्रोपोगेंडा फिल्म है'. अरे दिखता नहीं है क्या लोगों को??

फिल्म के खिलाफ कांग्रेस के अलावा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और भीम सेना ने भी याचिका लगाई हुई हैं. सबका कहना वही है कि फिल्म देश के आम चुनाव के दौरान रिलीज होने जा रही है जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है. क्योंकि फिल्म मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है.

संदीप सिंह और विवेक ओबेरॉय अपनी बातों और 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के नारे से चुनाव आयोग को तो समझा लेंगे कि फिल्म तो उन्होंने मोदी प्रेम में बनाई थी. इसका मकसद प्रचार करना नहीं था लेकिन नरेंद्र मोदी को कैसे समझाएंगे. साफ सीधी बात है मोदी जी लगे हुए हैं. कोई मौका नहीं छोड़ रहे चुनाव प्रचार का. न दिन देख रहे हैं, न रात और न ही हालात. ऐसे में ये बायोपिक का रायता फैलता ही जा रहा है. नाराज इतना हैं कि इलेक्शन कमिशन के नोटिस का जवाब भी अभी तक नहीं दिया है.

मोदी के लिए उल्टी न पड़ जाए बायोपिक

अब नाराज क्यों न हो पीएम मोदी, जिस दिन फिल्म का पोस्टर रिलीज हुआ उसी दिन से हर तरफ फिल्म की खिल्ली उड़ रही है. मोदी की भूमिका विवेक ओबेरॉय को दी जो किसी भी एंगल से मोदी लग ही नहीं रहे. फिर विवेक ओबेरॉय ने मोदी जी के कई और लुक्स भी शेयर किए जिससे और बंटाधार हो गया, क्योंकि किसी भी लुक में मोदी ढूंढने से भी नहीं मिल रहे थे.

modi biopicकौन सा लुक मोदी जी से मिलता जुता लग रहा है?

इसके बाद फिल्म में जावेद अख्तर और समीर को जबरदस्ती गाने लिखने का क्रेडिट देने का मामला भी खूब उछला. हालांकि तब निर्माताओं का कहना था कि पुराने गाने लिए हैं इसलिए क्रिेडिट दिया. लेकिन फिर सवाल ये भी उठा कि बिना इजाजत के पुराने गाने क्यों लिए? सलमान खान का मुंह भी फूला हुआ है कि उनका गाना 'सुनो गौर से दुनिया वालों...' को इस फिल्म में दोबारा लिया गया और उसे विवेक ओबेरॉय पर फिल्माया गया. विवेक और सलमान खान का छत्तीस का आंकड़ा है. गाने को ऐसा तोड़ा मरोड़ा गया कि गीतकार समीर का दर्द भी ट्विटर पर निकला. समीर ने लिखा- 'मैंने अभी मेरा गाना, सुनो गौर से दुनियावालों सुना, हैरत है मेरे रहते हुए इस गाने का अंतरा किसी और राइटर से क्यों लिखवाया गया, जिसने मेरे गाने को खराब किया है...'

फिर रिलीज की तारीख पर हर तरफ से फिल्म की रिलीज़ रोकने की आवाजें आ रही हैं. यानी बायोपिक 'पीएम नरेंद्र मोदी' रिलीज से पहले ही फ्लॉप हो रही है. कहां तो बात हो रही थी फिल्म के जरिए मोदी की छवि सुधारने और चमकाने की लेकिन यहां तो डैमेज पर डैमेज हो रहा है. डैमेज कंट्रोल करने के लिए निर्माताओं ने वीडियो भी जारी किया है कि मोदी जैसा रूप धरने के लिए विवेक ओबेरॉय को कितनी मेहनत करनी पड़ी और 6 घंटे मेकअप करवाना पड़ा. पर ये बता भी उल्टी ही पड़ी कि '6 घंटे' के मेकअप के बाद भी विवेक ओबेरॉय मोदी जैसे नहीं लग सके.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी जी रैलियों और सोशल मीडिया कैंपेनिंग के जरिए बीजेपी को जिताने के लिए जी जीन से लगे हुए हैं. लेकिन उनकी ये बायोपिक उनकी छवि सुधारने की जगह खराब ही किए जा रही है. सरकार की बाकी योजनाएं कितनी सफल रहीं ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन ये योजना असफल ही दिखाई दे रही है. इस फिल्म को अब वक्त पर ही छोड़ देना अच्छा है. 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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