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Updated: 15 जुलाई, 2018 05:28 PM
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सुना है 'अच्छे दिन...' को अमली जामा पहनाने वाले PK यानी प्रशांत किशोर 2019 में फिर चमत्कार दिखाने वाले हैं. जोरदार चर्चा है पीके फिर से मोदी के अच्छे दिन लाने वाले हैं. वैसे अभी ये नहीं मालूम कि 'अबकी बार, फिर मोदी सरकार' जैसे स्लोगन इस्तेमाल होंगे या नये सिरे से गढ़े जाएंगे. नये स्लोगन का स्कोप इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि बीजेपी ने 'सबका साथ, सबका विकास' को पीछे छोड़ते हुए नया नारा दिया है - 'साफ नीयत, सही विकास'.

जो भी हो एक बात तो तय है कि प्रशांत किशोर अगर बीजेपी के चुनाव अभियान का जिम्मा संभाले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुर्सी पर दोबारा बैठना तकरीबन पक्का हो जाएगा. शर्तें सिर्फ इतनी ही लागू हैं कि मोदी को चैलेंज करने मैदान में कौन और किस रूप में सामने आता है.

कभी कदम कदम साथ, कभी आमने सामने

दुनिया तो पीके को मोदी के 2014 के चुनाव अभियान की कामयाबी की वजह से जानती है, लेकिन उनका रिश्ता छह साल पुराना है. 2012 में पीके ने मोदी के विधानसभा चुनाव का कैंपेन हैंडल किया था - और वही वो चुनाव अभियान रहा जब मोदी और पीके के बीच समझदारी भरी सहमति बनी और मिशन-2014 की नींव पड़ी.

prashant kishorघर वापसी के लिए तैयार हैं प्रशांत किशोर

मोदी और पीके के साथ का सिलसिला दो साल से कुछ ज्यादा जरूर चला लेकिन फिर थम गया. मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद पीके बीजेपी से दक्षिणा चाह रहे थे और बीजेपी नेतृत्व टोली दान से ज्यादा कुछ देने को राजी नहीं हुई. दरअसल, प्रशांत किशोर, तब की खबरों के मुताबिक, बीजेपी में अति अहम ओहदा चाहते थे, लेकिन अमित शाह इसके लिए किसी भी सूरत में तैयार न थे. लिहाजा प्रशांत किशोर अपने लिए नये रास्ते तलाशने शुरू कर दिये.

2015 के बिहार चुनाव को लेकर नीतीश कुमार से प्रशांत किशोर की मीटिंग हुई तो दोनों गदगद हो उठे. नीतीश को सत्ता में लौटने के साथ अपने तत्कालीन सियासी दुश्मन नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने का मौका मिल रहा था - और प्रशांत किशोर को अपने बिहार में कुछ करने का अवसर. फिर क्या था रिश्ता पक्का हो गया.

टीम मोदी से अलग होने के साल भर बाद ही प्रशांत किशोर मोदी के दुश्मनों के साथ हो गये थे. एक तरफ मोदी और दूसरी तरफ नीतीश के साथ लालू प्रसाद. कभी मोदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले प्रशांत किशोर अब आमने सामने टक्कर दे रहे थे. अपनी सही रणनीति, सूझबूझ और सटीक चालों से प्रशांत किशोर ने नीतीश को भी कामयाबी की वही सौगात दे दी जो एक साल पहले मोदी को गिफ्ट किया था. बाद में प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव के साथ भी काम किया और उसी दौरान पंजाब चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी. यूपी में जहां प्रशांत किशोर को तमाम खट्टे-मीठे अनुभव हुए वहीं पंजाबी में कैप्टन को पीके ने मोदी और नीतीश जैसा तोहफा दिया.

बहरहाल, सुनने में ये भी आ रहा है कि अमित शाह से भी प्रशांत किशोर के गिले शिकवे दूर हो चुके हैं - और नये मिशन के लिए मोदी के साथ लंबी मुलाकातें भी. सोशल मीडिया पर इस बात के संकेत भी मिलने लगे हैं. 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पड़ रही है. #NationalAgendaForum के साथ एक थीम इसी के आस पास बुनी गयी है.

बड़े काम के हैं पीके

चुनावी राजनीति के दायरे में देखा जाये तो पीके कम्प्लीट प्रोफेशनल पैकेज हैं. पीके की खासियत ये भी है कि वो अपने क्लाइंट के लिए काम हद और सरहदों से भी आगे बढ़ कर करते हैं. अगर किसी से राजनीतिक मुलाकात संभव न हो तो ये सब पीके खुद ही मैनेज कर लेते हैं. अगर क्लाइंट को किसी दूसरी पार्टी से कोई डील करनी हो तो पीके उसे भी पक्की करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते. महागठबंधन के दौर के बहुत सारे वाकये इस बात की मिसाल हैं. जब सीटों के बंटवारे में अड़चन आ रही थी तो ये पीके ही रहे जिन्होंने कई दौर की मुलाकात में नीतीश और लालू दोनों को समझा बुझाकर बीच का रास्ता निकाला.

nitish kumar, prashant kishorपीके बोले तो जीत पक्की! है कि नहीं?

पीके की कामयाबी का एक राज डीटेल्स में उनकी गहरी दिलचस्पी है. पीके हर काम को लेकर पूरा फीडबैक लेते हैं और तभी उस दिशा में एक भी कदम आगे बढ़ाते हैं. उनका जो भी एक्शन प्लान होता है वो किसी फिल्म की शूटिंग के लिए लिखे गये स्क्रीनप्ले की तरह होता है - जिसमें ये भी तय होता है कि कब कहां और क्या क्या करना है. मिसाल के तौर पर कहां चुप रह जाना है और कहां बोलना ही है.

प्रधानमंत्री मोदी के लिए प्रशांत किशोर अब और ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं. सबसे बड़ी बात कि फिलहाल प्रशांत किशोर के पास पूरे देश का अपडेटेड डाटा तो है ही, फोकस होकर बिहार, यूपी और पंजाब में काम करने का बेहतरीन अनुभव भी हो चुका है.

ये ठीक है कि असली पेशेवर वही होता है जो हर क्लाइंट के लिए पूरी इमानदारी से काम करे और किसी पुराने क्लाइंट के साथ किसी तरह की गद्दारी न करे. प्रशांत किशोर अपने हर क्लाइंट का प्लस प्वाइंट भी जानते हैं और कमजोर नस भी. मान लेते हैं कि वो एक क्लाइंट को फायदा पहुंचाने के लिए किसी दूसरे क्लाइंट के सीक्रेट साझा नहीं करेंगे - लेकिन क्या नये सिरे से मोदी विरोधियों के खिलाफ रणनीति तैयार करते वक्त प्रशांत किशोर का दिमाग सही चोट देने को तैयार न होगा? अगर ऐसा हुआ फिर तो जो भी करेंगे वो अधूरे मन से ही किया माना जाएगा. तो फिर पीके के पास क्या रास्ता होगा? निश्चित रूप से सदियों पुराना फॉर्मूला ही अपनाना होगा - प्यार और जंग में सब कुछ जायज है. आखिर क्लाइंट के लिए जीत सुनिश्चित करना ही तो पहला धर्म है.

2019 में क्या क्या करामात दिखा सकते हैं पीके

अव्वल तो विपक्ष अब तक बीजेपी के लिए चुनौती जैसा नहीं बन सका है. बिखरा विपक्ष बेदम होता है, बताने की जरूरत नहीं है. फिर भी बीजेपी के लिए यूपी बिहार जीतना बहुत बड़ी चुनौती लग रही है. पीके इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं.

फिलहाल पीके के लिए राहत की बात है कि नीतीश कुमार भी एनडीए का हिस्सा हैं. वरना, नीतीश के खिलाफ मोदी के लिए रणनीति तैयार करने में ज्यादा नहीं तो थोड़ी बहुत मुश्किल तो होती ही. हो सकता है, नीतीश कुमार एनडीए छोड़ने को लेकर भी अब मन बदल लें. महागठबंधन की तरह एनडीए में भी सीटों के बंटवारे में प्रशांत किशोर की भूमिका तो होगी ही.

एनडीए में जो मौजूदा किचकिच चल रही है उसमें भी पीके बीजेपी के लिए बड़े मददगार साबित हो सकते हैं. जो काम अमित शाह के संपर्क फॉर समर्थन अभियान से भी नहीं बन पा रहा है, मुमकिन है पीके चुटकी बजाते निबटा डालें. हो तो ये भी सकता है कि बाहर का रास्ता अख्तियार कर चुकी टीडीपी पीके से मुलाकात के बाद यूटर्न ले ले - और शिवसेना कट्टर राजनीतिक दुश्मन की तरह कुलांचे भरना बंद कर दे. एक बात तो साफ है - पीके हर जगह पैबंद लगा सकते हैं, बशर्ते उन्हें इसके लिए पूरा मैंडेट मिले.

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