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Updated: 01 दिसम्बर, 2016 02:50 PM
सुरभि सप्रू
सुरभि सप्रू
  @surbhi-sapru
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ट्विटर पर कुछ ऐसा खास हुआ कि सोचा लिखकर सबको बता ही दूं, कश्मीर के एक मुस्लमान से बातचीत चल रही थी, अब वो कश्मीर से ही है, ये नहीं पता क्योंकि उन्होंने मेरे पाकिस्तान के खिलाफ लिखे ट्वीट पर रिएक्शन दिया था. जनाब काफी भड़के हुए थे. तो अभी पता नहीं चला कि वो असल में है कहां से हैं. उन्होंने मुझसे ये कहा कि ‘भारत में बेगुनाहों को मारना कितना सही है?’ तो मैंने जवाब में कहा ‘प्रश्न अच्छा है, सच में कश्मीरी पंडितों को मारना कितना गलत था.’ इस बात पर वो चैट में मुस्कुराने लगे कहने लगे ‘आप पंडित हैं ‘नमस्कार माहरा’ (कश्मीरी में नमस्ते)’.

मुझे पहले से ही पता था कि ये क्यों मुझे नमस्कार कह रहें है, मुझे पता था इनके मन में गुस्सा मेरे ट्वीट को लेकर ही था (पाकिस्तान के खिलाफ ट्वीट), इसीलिए मैंने यहां से कोई जवाब नहीं दिया तो अचानक से बोल पड़े ‘आप तो हमारे ‘देश’ से हो’, मैंने कहा ‘मैं भारत से हूं’. कहने लगे ‘नहीं आप हमारे देश से हो’. मैंने कहा ‘जी मैं भारत से हूं मुझे पता है’. बोलते हैं नही, मेरा अनुमान बिलकुल ठीक था. जनाब से फिर मैंने बोला ‘जी मैं भारत से हूं कश्मीरी पंडित हूं और भारतीय हूं.’

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कहते हैं ‘नहीं आप बिलकुल गलत कह रहें है, आप हमारे वतन से हैं.’ मैंने पूछा ‘कश्मीर कहां है? भारत में पाकिस्तान में? कहते हैं 'डिस्प्यूट है, अभी कहीं नहीं है'. मैंने पुछा डिस्प्यूट किसकी वजह से है? इसके बाद तो साहब ऐसे चुप हो गए कि पूछिए नहीं, फिर थोड़ी देर बाद बोले कश्मीर किसी का नहीं है कश्मीर ‘देश’ है. बस ये पढने के बाद मैंने भगवान से कहा मुझे उठा क्यों नही लिया. हा हा हा.. अभी तक कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था इनके लिए, अब वो देश बन गया है, हाय अल्लाह हे राम क्या कहने.

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'मैं भारत से हूं कश्मीरी पंडित हूं और भारतीय हूं’ 

ऐसा लगता है सब कुछ इस देश में मुस्लमान ही तय करेंगे, वो कश्मीर को देश बना सकते हैं तो फिर तो वो बहुत कुछ कर ही सकते हैं. मैंने जनाब को फ्री की एडवाइस दे डाली कि वो अपनी ‘जनरल नॉलेज’ सुधार लें, ये तो उनको खुद करना होगा क्योंकि गिलानी और यासीन मालिक की जी.के. तो और भी खराब है. वो कहां बेचारे की मदद कर पाएंगे? मुझसे कहने लगे कि मेरे पड़ोस में पंडित रहते हैं हम लोग एक दुसरे के यहां जाते आते हैं, खाते पीते हैं फिर आप दिल्ली में क्या कर रहे हो, यहां आकर क्यों नहीं रहते? मैंने कहा कि अगर आप मेरे सुरक्षित जीवन की गारंटी लेते हैं तो मैं आ जाती हूं.

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फिर मैंने उन्हें एक सच किस्से के रूप में सुनाया, मैंने कहा हम आए थे मुहर्रम के दिनों में हमारे ऊपर पत्थरबाज़ी हुई और हॉकी स्टिक से हमारी गाड़ी के शीशे को तोड़ा गया, तो फिर हम कैसे आएं? कैसे? कहने लगे माफ़ कीजिये वो कुछ एजेंट्स ने आपके साथ ऐसा किया बिलकुल गलत है. मैंने पुछा क्या कश्मीर में 4 साल, 9 साल, 11 साल के बच्चे एजेंट हैं? तो एकदम से विषय को घुमाया और बोले आपको पता है यहां बेकसूर लड़कियों को किस तरह फौज मार रही है? मैंने कहा बेकसूर के मरने का इतना दर्द है तो ये सवाल अपने समाज से पूछो. तो अचानक फिर से खामोशी छा गयी, कोई जवाब नहीं. जाते जाते कहा कि ‘आप लड़की हैं इसीलिए आपसे कुछ नहीं कह सकता’. मैंने कहा ‘फिर तो ये तय है कि वो आप ही होंगे जो हलाला और तीन तलाख को ख़त्म करेंगे.’

ये वार्ता यहीं पर ही ख़त्म हो गयी. वो एक शब्द बाजार में बहुत बिक रहा था, कितने ‘टोलेरेंट’, ये शब्द तो बिकाऊ ही है जब काम आता है तब ही निकलता है, ये व्यवहार में कब आराम करने आएगा ये नहीं पता. तो इनके लिए कश्मीर देश है और कश्मीरी पंडित इनके देश से हैं. जी जनाब हम न तो आपके साथ बैठकर खाना चाहते हैं न ही गाना चाहते हैं क्योंकि आतंकवादियों से पहले तो पड़ोसियों ने पंडितों को काटकर मार डाला था तो फिर हम ऐसे पड़ोसियों पर भरोसा करें तो कैसे करें??         

लेखक

सुरभि सप्रू सुरभि सप्रू @surbhi-sapru

पैरों में नृत्य, आँखों में स्वप्न,हाथों में तमन्ना (कलम),गले में संगीत,मस्तिष्क में शांति, ख़ुशी से भरा मन.. उत्सव सा मेरा जीवन- मेरा परिचय.. :)

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