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Updated: 12 जुलाई, 2016 08:22 PM
सुरभि सप्रू
सुरभि सप्रू
  @surbhi-sapru
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मैं कश्मीरी पंडित हूँ! क्या कोई जानता है मैं कश्मीर से हूँ? लगता है सब भूल गए. मैं जब भी कहती हं 'चलो कश्मीर चलते है' तो जवाब मिलता है 'नहीं हालात ठीक नहीं है'. ये हाल है कश्मीर का और हर बार यही कह कर कश्मीरी पंडित वहां जाने से खुद को रोक देता है.

मेरा जन्म 1990 में हुआ. उसी साल कश्मीर में वो हुआ जिसे भुलाना बहुत कठिन है. आतंक के धुएं ने कई पंडितों की सांसें छीन ली. बुरे हालातों में आखिर पंडितों को अपने सपनों से भरे घरों को छोड़कर कश्मीर से निकल कर अलग-अलग राज्यों में बसना पड़ा. 1990 ने पंडितों को एक ऐसा घाव दिया जिसने सबके दिलों को तोडकर रख दिया. वो हमें मारते गए और हम मरते गए. उन हालातों को चीर कर हम उनसे लड़ते भी गए, पर अंत? वो अंत आज भी उतना ही दर्दनाक है जितना पहले था. आज भी जब कुछ पंडितों से बात होती है तो वो कैंप में बुरे हालातों से कैसे तड़पे थे, सुनकर दिल दहल जाता है. उनकी नींदों में उस समय की चीखें आज भी जीवित है.

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 1990 में पंडितों को दिए गए घाव आज भी ताजा हैं

पिछले दिनों एक मुसलमान से इस पर चर्चा हुई तो जनाब ने कहा 'तुम पंडित कायर थे जो भाग आए' हम तुम्हारी तरह गुजरात से भागे नहीं’. मैंने उन्हें जवाब में एक कहानी सुनाई, एक नर्स की कहानी. जिसने अस्पताल में भरती हुए आतंकवादी, जो ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहे थे, उनका इलाज किया, उनकी देखभाल की. इन्हीं आतंकवादियों ने उसी नर्स का बीच सड़क में रेप किया और उसे नग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया. और आपको बता दूं मैंने इसे 'कहानी' इसीलिए कहा क्यूंकि आप जैसे लोगों को सच्चाई सुनने की आदत नहीं है.

आपको सुनाने के लिए मैंने बस कहा कि ये कहानी है, पर ये सच्चाई है, उसके बाद मैंने उनसे प्रश्न पूछा क्या ये है इस्लाम? तो उनकी चुप्पी से समझ जाना चाहिये कि कायर कौन है. क्या वो नर्स कायर थी या वो आतंकवादी?

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पिछले साल जब अक्टूबर में जाना हुआ तो ये नहीं पता था कि जुम्मे की नमाज़ अदा करने के बाद ये अपना पत्थरबाज़ी का खेल शुरू करते हैं. छोटे बच्चे भी इस में सही से हिस्सा लेते है. हमारी गाड़ी को कई बार रोका गया, हम पर पत्थर फैंके गए. और हमसे एक 4 साल के बच्चे ने कहा 'हम तुम्हारे मोदी के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे'. एक 4 साल का बच्चा??

क्या सोच सकते हैं कि ये क्या दिशा दे रहें है अपने समाज को? बुरहान वानी की वानी कितनी महत्वपूर्ण है वो कश्मीर से आ रही तस्वीरें ही बता रही हैं. और उसकी मौत के बाद कई बेगुनाहों पर पत्थर चलाना इनकी बहादुरी भी दर्शाती है. इसका कारण पैसा है या इनका धर्म? ये तो यही सोचकर बता सकते हैं कि ये चाहते क्या हैं?

26 साल बेहद लंबा समय है. हमें कायर कहने वाले मुसलमानों को बता दूं कि हमने 'बन्दूक' नहीं 'कलम' उठाई. हमने पढ़ा भी और पढाया भी. जिया भी और जीने दिया भी. हमें जलाया गया, हमारी औरतों के साथ रेप किए गए. हमारे घर जला दिए गए, पर हमने कभी बन्दूक क्यों नहीं उठाई?

ये कौन है जो धर्म के नाम पर बेगुनाहों को मारने का कर्म सिखाता है? किस ओर जा रहा है मुस्लिम समाज? उसके बाद नारे लगते हैं 'हर घर से बुरहान निकलेगा, हम क्या चाहते हैं आज़ादी' कौन सी आज़ादी किसकी आज़ादी? पत्थरबाज़ी करने की? बेगुनाहों को बेवजह मारने की? और बुरहान पैदा करने की? जाकिर नाइक जैसे लोगों को धर्म परिवर्तन करने की आज़ादी देने की? कैसी आज़ादी चाहते हैं ये लोग?   

चिनार की छाया में बीता बचपन,

किसी के अल्हड़ आक्रोश ने छीन लिया मुझसे मेरा वतन,

जहां मां की लोरी से चहकती थी केसर की भोली क्यारियां,

वहीं पत्थरों से टूट जाती हैं रंगीन चूड़ियां..!

लेखक

सुरभि सप्रू सुरभि सप्रू @surbhi-sapru

पैरों में नृत्य, आँखों में स्वप्न,हाथों में तमन्ना (कलम),गले में संगीत,मस्तिष्क में शांति, ख़ुशी से भरा मन.. उत्सव सा मेरा जीवन- मेरा परिचय.. :)

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