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Updated: 18 दिसम्बर, 2019 07:16 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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15 दिसंबर 2019 वो दिन जब नागरिकता संशोधन कानून (CAA protest news) के विरोध में जामिया के छात्रों की उग्र भीड़ (Jamia Millia Protesting Against CAA) सड़कों पर आई और जमकर कानून की धज्जियां उड़ाई. 16 दिसंबर 2019 वो तारीख जब घटना के 24 घंटे बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) जामिया के छात्रों पर पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ इंडिया गेट पर घरने पर बैठीं (Priyanka Gandhi Supporting Jamia Students). करीब 2 घंटे तक इंडिया गेट पर मौजूद रहीं प्रियंका गांधी ने देश की सरकार पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि, देश का वातावरण खराब है. पुलिस विश्वविद्यालय में घुसकर (छात्रों को) पीट रही है. सरकार संविधान से छेड़छाड़ कर रही है. हम संविधान के लिए लड़ेंगे.' छात्रों के साथ हुई मारपीट को देश की आत्मा पर हमला बताने वाली प्रियंका गांधी ने इस बात को बल दिया कि हमें एकजुट होकर सरकार के खिलाफ आगे आना होगा. बात जामिया प्रदर्शनकारियों के समर्थन में आने वाली प्रियंका गांधी और 2 घंटे तक चले उनके धरने की हुई है तो बता दें कि प्रियंका गांधी के साथ धरने पर पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी, पीएल पुनिया, अहमद पटेल और अंबिका सोनी भी थे.

प्रियंका गांधी, जामिया मिलिया इस्लामिया, सीएबी, विरोध, मुस्लिम, Priyanka Gandhi जामिया छात्रों के समर्थन में इंडिया गेट पर धरना देने वाली प्रियंका गांधी ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है

साथ ही मौके पर पहुंचे जगदीश टाइटलर ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं. नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ टाइटलर की उपस्थिति  इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि उनपर सिख दंगों का आरोप है और कभी इन्हीं आरोपों के कारण इन्हें राहुल गांधी के मंच से हटा दिया गया था.

एक फॉर्मेलिटी के तहत प्रियंका गांधी का आना, थोड़ी देर बैठना, केंद्र सरकार पर आरोप लगाना और तुष्टिकरण की राजनीति को अंजाम देते हुए चले जाना. कहानी यहां ख़त्म नहीं हुई है बल्कि कहानी की शुरुआत ही यहीं से हुई है.

चाहे जामिया हो या फिर लखनऊ, अलीगढ़, मऊ, बंगाल, असम आंदोलन कहीं भी हुआ हो या फिर हो रहा हो यदि इसका अवलोकन किया जाए तो तमाम दिलचस्प बातें हैं जो हमारे सामने आ रही हैं. मिल रहा है कि आंदोलन के नाम पर लोग केवल और केवल जल्दबाजी में हैं. बात विरोध प्रदर्शनों की हो तो विरोध में शामिल ज्यादातर लोगों को न तो NRC के बारे में पता है और न ही CAA के बारे में. साफ़ है कि देश भर में आंदोलन के नाम पर उग्र  तांडव कर रही भीड़ के एजेंडे में एक बिखराव है, एक भटकाव है. यानी केरल में CAA का विरोध कर रहे लोगों का एजेंडा कुछ और है जबकि जामिया और एएमयू में प्रदर्शन कर रहे लोगों का एजेंडा कुछ और है. ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल लखनऊ और मऊ का भी है.

CAA के नाम पर चल रहा विरोध दिशाहीन है. साथ ही इसमें नेतृत्व का आभाव तो है ही लोग ये तक नहीं समझ पा रहे कि आखिर जो बातें हो रही हैं वो हैं किसके बारे में. असल मुद्दा क्या है? ध्यान रहे कि CAA और NRC के विरोध में दिल्ली से लेकर दक्षिण तक और पूरा उत्तर पूर्व जल रहा है. विरोध के नाम पर आंदोलन की आग में कूदकर लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे कर रहे हैं. एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है.

बात कांग्रेस और प्रियंका गांधी के जामिया छात्रों को समर्थन देने से शुरू हुई है. ऐसे में हमारे लिए लिए ये बताना बेहद जरूरी है कि आज कांग्रेस की नीतियां और रवैया देश की जनता से छुपा नहीं है. चाहे 2014 का चुनाव रहा हो या फिर 2019 का चुनाव जो इस देश ने कांग्रेस के साथ किया शायद ही आज पार्टी इस गम से उभर पाई है. ऐसे में अब प्रियंका का आगे आना और दो घंटे तक CAA और NRC को लेकर सरकार की आलोचना करना कहीं से भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद नहीं है.

एक पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर प्रियंका गांधी को हम यही बताना चाहेंगे मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस आज भले ही मैदान में हो मगर आगे आने वाले वक़्त में उसका ये समर्थन उसके गले की हड्डी बनने वाला है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो CAA और NRC को लेकर देश की सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है. साथ ही इस वर्ग ने विरोध के नाम पर पूरे देश में चल रही इन हिंसक गतिविधियों पर पैनी नजर बना रखी है. वो चुपचाप उसे देख रहा है.

जाहिर सी बात है आज जो भी देश में चल रहा है. जिस तरफ विरोध के नाम पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा ये किसी को पसंद नहीं आ रहा, अब अगर प्रियंका कांग्रेस या फिर राहुल गांधी  इस वर्ग के लिए सामने आए हैं तो आगे कुछ कहने और बताने की जरूरत नहीं है.

अब आते हैं CAA और NRC पर मचे सियासी गतिरोध के बाद भाजपा पर. आज कोई अगर ये कहे कि इस विरोध प्रदर्शनों से भाजपा डर गई है या फिर इससे वो बैकफुट पर आ गई है तो ये समझने वाले की एक बड़ी भूल है. सही मायनों में अगर इन विरोध प्रदर्शनों से सबसे ज्यादा फायदा किसी को मिल रहा है तो वो भाजपा के अलावा कोई और नहीं है.

कह सकते हैं कि विरोध के नाम पर पूरे देश में उत्पात मचाए 'लोगों' ने वही कर दिया जो भाजपा चाह रही थी. कोई बड़ी बात नहीं है कि आने वाले वक़्त में सिर्फ यही मुद्दा भाजपा के लिए वोटों की सौगात लेकर आए और जिसके बाद कांग्रेस उस मुकाम पर पहुंच जाए जहां से वापस आने में कांग्रेस या ये कहें कि प्रियंका और राहुल को कई दशक लग जाएं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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