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Updated: 16 दिसम्बर, 2019 03:43 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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दिल्ली (Delhi) के जामिया (Jamia) इलाके में रविवार को नागरिकता कानून (Citizen Amendment Act) के विरोध में छात्रों ने प्रदर्शन (CAB Protest) किया, लेकिन ये प्रदर्शन कम और हिंसा ज्यादा लग रहा था. प्रदर्शनकारियों ने कई बसों और बाइक को आग के हवाले कर दिया. स्थिति हाथ से निकलती देख पुलिस के पास सिर्फ एक ही रास्ता बचा कि वह प्रदर्शन कर रहे लोगों पर आंसू गैस के गोले दागे और तब भी काम ना बने तो लाठीचार्ज कर दे. उपद्रवियों को पुलिस ने तितर-बितर करने के लिए ये सब किया भी, लेकिन अब विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि पुलिस ने उनके साथ बर्बरता की है. पुलिस और छात्रों की बीच झड़प की खबर भी आई. छात्रों की ओर से प्रदर्शन की आग जामिया से धधकी और धीरे-धीरे उसने अब अलीगढ़ (CAB Protest in aligarh) और लखनऊ (CAB Protest in lucknow) को भी अपनी चपेट में ले लिया है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये विरोध कानून के खिलाफ है या कानून के रखवालों यानी पुलिस के खिलाफ? सवाल ये भी कि छात्रों को हिंसा करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को उठाया है.

CAB Protest Police attacked by studentsलखनऊ के नदवा कॉलेज में अंदर जमा छात्रों की भीड़ ने पुलिस पर खूब पत्थर बरसाए.

'छात्र होने का मतलब ये नहीं कि हिंसा का अधिकार मिल गया'

सुप्रीम कोर्ट ने भी जामिया मामले पर कहा है कि छात्र होने पर उपद्रव का अधिकार नहीं मिल जाता. जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि अगर प्रदर्शन, हिंसा और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाता है तो हम सुनवाई नहीं करेंगे. बता दें कि इस मामले पर अब मंगलवार को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वह ये नहीं कह रही कि कौन दोषी है और कौन निर्दोष, सुप्रीम कोर्ट बस ये चाहता है कि हिंसा खत्म होनी चाहिए.

बसों के साथ लोगों को भी जिंदा जलाना चाहते थे उपद्रवी !

नागरिकता कानून के खिलाफ जामिया के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया. लोकतंत्र है, विरोध किया भी जा सकते हैं, लेकिन बसों को फूंक कर कैसा विरोध? पुलिस को मारकर कैसा विरोध? खबर ये भी है कि बसों को खाली करने से पहले ही आग के हवाले कर दिया गया, तो क्या प्रदर्शन में शामिल में उपद्रवी बसों के साथ-साथ लोगों को भी जिंदा जलाने की सोच रहे थे. जैसे-तैसे पुलिस ने मामला शांत किया, जिसके लिए पुलिस बल का इस्तेमाल भी किया गया, लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले भी दागे गए. ऐसे में छात्रों का घायल होना लाजमी था. 51 छात्र घायल भी हुए, जिन्हें होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इस घटना में साउथ ईस्ट डीसीपी चिन्मय बिस्वाल, एडिशनल डीसीपी साउथ, 2 एसीबी, 5 एसएचओ और इंस्पेक्टर समेत कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं. यानी एक बात तो साफ है, कि पुलिस की कार्रवाई को सिर्फ लाठीचार्ज नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहां छात्रों ने भी पुलिस पर हमला बोल दिया है. तभी तो पुलिसवाले भी घायल हुए हैं.

पुलिस के खिलाफ पत्थरबाजी में एकता कैसी?

जामिया में हुई झड़प में छात्रों के साथ-साथ पुलिस भी घायल हुई. यानी ये तो साफ है कि छात्रों ने भी पुलिस पर हमला किया. अगर आप लखनऊ के नदवा कॉलेज में हो रहे प्रदर्शन की तस्वीरें और वीडियो देखेंगे तो पता चलेगा कि झुंड में जमा होकर छात्र गेट के बाहर मौजूद पुलिसवालों पर पत्थर बरसा रही है. पुलिस बचने के लिए दीवारों के किनारे छुपने की कोशिश कर रही है. इसी बीच वह बाहर के छात्रों को भी अंदर भेजने के लिए संघर्ष कर रही है. अंदर से आ रहे पत्थरों के जवाब भी पुलिस दे रही है और उल्टा पत्थर अंदर फेंक रही है, लेकिन छात्रों की भारी संख्या के सामने पुलिस कमजोर सी पड़ गई. कुछ समय ये सब चलने के बाद स्थिति काबू में आ गई, लेकिन सवाल ये है कि आखिर पुलिस पर पत्थरबाजी में कैसी एकता? एकजुट होकर नागरिकता कानून का विरोध तो समझ आता है, लेकिन एकजुट होकर पुलिस पर हमला क्यों? इसे सिर्फ विरोध प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता, ये हिंसात्मक प्रदर्शन है, जिससे निपटने के लिए पुलिस को लाठी उठानी ही होगी.

आखिर विरोध है किसलिए?

इस पूरी कवायद में सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर ये विरोध हो क्यों रहा है? आखिर छात्र किस बात से डर रहे हैं? नागरिकता कानून तो उन लोगों को पर लागू होगा जो देश के नागरिक हैं ही नहीं. ये उनके लिए हैं जो या तो घुसपैठिए हैं या फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से भारत में आना चाहेंगे. तो फिर जामिया के छात्र डरे क्यों हैं? वह इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं? क्या वह इसलिए डर रहे हैं कि वह मुस्लिम हैं और नागरिकता कानून मुस्लिम घुसपैठियों पर लागू नहीं होगा? या उन्हें लग रहा है कि उनकी नागरिकता खतरे में है? वैसे लग तो ये रहा है कि इन छात्रों को गुमराह किया गया है, जिसके चलते वो ये नहीं समझ रहे कि नागरिकता कानून से उनकी नागरिकता पर कोई खतरा नहीं है. देखा जाए तो इस विरोध में राजनीतिक साजिश की बू आ रही है.

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