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Updated: 08 मार्च, 2018 08:52 PM
अंशुमान शुक्ल
अंशुमान शुक्ल
  @anshuman.shukla.7
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कौटिल्य के द्वैराय-वैराज में संधि, विग्रह, आसन, यान, संश्रय और द्वैधीभाव का सिद्धान्त उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह अमल में लाया जा रहा है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच फूलपुर और गोरखपुर में होने वाले उपचुनाव को लेकर की गई संधि इस बात की ताकीद कराने के लिए काफी है कि मौजूदा वक्त में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जमीनी हकीकत का बखूबी आंकलन कर लिया है. उसे इस बात की बखूबी मालूमात है कि बिना संगठित हुए वो भारतीय जनता पार्टी के मुकाबिल नहीं हो सकती.

जबकि भारतीय जनता पार्टी फूलपुर और गोरखपुर को किसी भी हाल में अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती. दोनों ही सीटों पर लगातार मुख्यमंत्री समेत सरकार के शीर्ष मंत्रियों का पड़ाव डालना और कैबिनेट मंत्री नन्द गोपाल दास नन्दी का रामायाण के चरित्रों से विपक्षी नेताओं की तुलना इस बात का साफ संकेत हैं कि अपनी जीत को लेकर अमूमन आश्वस्त रहने वाली भाजपा इस बार थोड़ी अचकचाई सी है.

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पहले बात देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर की :

केशव प्रसाद मौर्य ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट को रिकार्ड तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत कर पहली बार फूलपुर में भाजपा का परचम लहराया था. 19.35 लाख मतदाताओं वाले इस संसदीय क्षेत्र में 3.57 लाख दलित, 2.59 लाख पटेल, ढ़ाई लाख मुसलमान, सवा दो लाख ब्राह्मण, दो लाख दस हजार यादव, एक लाख चार हजार वैश्य, 97 हजार कायस्थ, 80 हजार क्षत्रिय और 45 हजार भूमिहार हैं. इनके अलावा मौर्य मतदाताओं की आबादी इस संसदीय क्षेत्र में 43 हजार है. पाल तीस हजार और अन्य पिछड़ी जातियां 45 हजार.

इलाहाबाद शहर की उत्तरी विधानसभा भी फूलपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यह वह विधानसभा है जहां बेंगलुरू कैण्ट के बाद सर्वाधिक स्‍नातक और साक्षर हैं. फूलपुर छह दशकों से विकास को तरस रहा है. अधिकांश लघु व कुटीर उद्योग बन्द हो चुके हैं. ऐसे उद्योगों की संख्या करीब दो हजार है. बेरोजगारी चरम पर है. बाढ़ सालाना रिवाज की तरह इस इलाके पर काबिज है. खस्ताहाल सड़कें उत्तर प्रदेश सरकार की गड्ढा मुक्त सड़कों के अभियान की असलियत बयां कर रही है.

यदि वर्ष 2014 से अब तक की बात करें तो उप चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के पूर्व नितिन गडकरी को किला परेड मैदान में ले जाकर पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं का शिलान्यास करा कर भाजपा ने इलाके के मतदाताओं में विकास की आस जगाने की कोशिश जरूर की है लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने की वजह से मुकाबला कड़ा हो गया है. करीब 5 लाख दलित और मुसलमानों के सपा और बसपा के पारम्परिक मतदाता माने जाने की वजह से फूलपुर पर फतह हासिल कर पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा.

अब बात योगी आादित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर की :

जहां से योगी खुद पांच मर्तबा सांसद रहे. गोरखपुर संसदीय सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 19.28 लाख है. इनमें 2.20 लाख ब्राह्मण, 2.10 लाख ठाकुर, दो लाख वैश्य, 3.10 लाख निषाद, 1.45 लाख सैंथवार, साठ हजार कायस्थ, 1.30 लाख यादव, 42 हजार विश्वकर्मा, 1.80 लाख मुसलमान, डेढ़ लाख जाटव, साठ हजार पासी, 35 हजार बेलदार, 55 हजार भर, 36 हजार नाई हैं.

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निषाद पार्टी के साथ गठबन्धन कर समाजवादी पार्टी ने तीन लाख दस हजार निषादों को अपने पाले में करने की पुरजोर कोशिश की है. साथ ही एक लाख तीस हजार यादव, एक लाख 80 हजार मुसलमानों और बहुजन समाज पार्टी का समर्थन मिलने के बाद उनके पारम्परिक मतदाताओं का समर्थन मिलने की सूरत में इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. यही वजह है कि अपना गढ़ सुरक्षित रखने के लिए खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार गोरखपुर में चुनावी सभाओं को सम्बोधित कर रहे हैं.

प्रदेश के कई मंत्री भी लगातार इस इलाके में पड़ाव डाले हुए हैं. बिजली की अप्रत्याशित कटौती, मस्तिष्क ज्वर, आवारा और छुट्टा पशुओं की वजह से तबाह होती किसानों की फसल, धान की खरीद में बिचौलियों की अहम भूमिका और एम्स का सुस्त निर्माण इलाके के लोगों को विचलित कर रहा है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार योगी आदित्यनाथ और उनके उप कप्तान केशव प्रसाद मौर्य अपने किले को बचाने की कौन सी रणनीति अख्तियार करते हैं.

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अंशुमान शुक्ल अंशुमान शुक्ल @anshuman.shukla.7

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.

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