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Updated: 20 जनवरी, 2022 10:56 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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चुनावी मौसम में यूपी की जनता का मूड समझना मुश्किल है. यहां दिखाई कुछ देता है और होता कुछ है. यूपी के चुनावी विश्लेषकों, चुनावी मूड भांपने के लिए ओपिनियन पोल अथवा सर्वे रिपोर्ट पेश करने वालों और तमाम राजनीतिक पंडितों को उत्तर प्रदेश की जनता का मूड बहुत शिद्दत से समझने के बाद भी अपनी राय रखने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए है. इस सूबे और यहां की जनता का राजनीतिक मिजाज बेहद अद्भुत और सबसे अलग होता है.

इतिहास गवाह है यहां चुनाव से पहले जो दिखा है वो सच साबित नहीं हुआ. और जो हुआ वो जमीन पर दिखा नहीं. अनगिनत टीवी चैनल्स, सैकड़ों सर्वे एजेंसीज, डिजिटल युग, पिछड़े हुई गांवों में भी पंहुच चुके स्मार्ट फोन और समाज के दिल की तरह धड़क रहे सोशल मीडिया के आम रिवाज के बाद यूपी चुनावों के मद्देनजर जनता के मूड की फिलहाल आज तक की तस्वीरें दुनियां की नज़रों में लगभग साफ हो चुकी हैं. ग्राउंड की हकीकत का आईना पेश करने वाली सोशल मीडिया और बड़ी-बड़ी सभी सर्वे एजेंसीज ने जो जनता की ओपिनियन पोल पेश की है उनका एक एवरेज अनुमान है कि यूपी में भाजपा पिछले चुनाव की अपेक्षा लगभग सौ सीटें हार कर भी जीत रही है.

UP, Assembly Elections, SP, BSP, Congress, BJP, Mayawati, Akhilesh Yadav, Yogi Adityanathजैसे जैसे दिन बीत रहे हैं यूपी चुनाव अपने निर्णायक मोड़ पर आ गया है

और सपा तीन गुना से अधिक सीटें हासिल करके भी हार रही है. सर्वे और तमाम एक्सपर्ट ये भी साबित कर रहे हैं कि भाजपा और सपा गठबंधन का सीधा मुकाबला है. बसपा, कांग्रेस इत्यादि दूर-दूर तक कहीं नहीं हैं. यदि ये बात सच है तो ये मान लीजिए कि भाजपा से नाराज़ वो जनता जो सपा की वोटर नहीं भी है वो भी भाजपा को हराने के लिए सपा का साथ देने के मूड में हैं.

एम-वाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) इस बार बिल्कुल एकजुट है, मुस्लिम वोट कहीं बिखर नहीं रहा. माना जा रहा है कि जो भाजपा को हराना चाहते हैं वो इसलिए सपा गठबंधन के साथ आ रहे हैं क्योंकि वो मान रहे हैं कि अखिलेश यादव का गठबंधन भाजपा को टक्कर दे रहा है. अलग-अलग पिछड़ी जातियों के दल और नेता सपा गठबंधन की ताकत बने हैं.

ऐसे में ये गठबंधन पिछड़ी जातियों का करीब बीस से तीस प्रतिशत वोट हासिल कर सकता हैं. इसके अतिरिक्त भाजपा से नाराज पांच-दस फीसद ब्राह्मण भी सपा पर विश्वास जता सकता है. ऐसे अनुमानों के साथ ही सपा को करीब 34 से 37 फीसद वोट प्राप्त करने के कयास लग रहे हैं. जबकि भाजपा को यूपी में करीब 44 से 47 प्रतिशत वोट हासिल करने की संभावना जताई जा रही है.

जिस तरह से संभावनाओं की सारी स्थितियां साफ करने वाले विशेषज्ञों ने बसपा के साइलेंट कोर वोट बैंक को भाजपा के विश्वास के साथ बरकरार रखा है, ये एक बड़ी भूल साबित हो सकती है. पांच वर्ष बाद भी दलित वोट पूरी तरह से आज भी भाजपा के विश्वास के साथ जुड़ा है ऐसा विश्वास करना थोड़ा डाउटफुल लग रहा है.

सात-आठ साल पहले भाजपा के विश्वास में आना शुरु हुआ दलित तबका एंटीइनकम्बेंसी के बाद भी बसपा में थोड़ी बहुत ही वापसी नहीं कर रहा है, ऐसे अनुमान से ही तमाम सर्वे एजेंसियां और राजनीति पंडित यूपी चुनाव में बसपा को 2 से 10 से अधिक सीटें नहीं दे रहे हैं. भाजपा को पांच साल आज़माने अथवा नाराजगी के बाद साइलेंट दलित वोटर बसपा में घर वापसी कर गया और बसपा पैतीस से अधिक सीटें भी पा गई तो भाजपा की जीत के अनुमान धराशाई हो जाएंगे.

ऐसे में भाजपा की अनुमानित 225-235 सीटें दो सौ के अंदर सिमट सकती हैं. हांलांकि ऐसी स्थिति में भी भाजपा सरकार बना सकती है क्योंकि भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू हैं. बसपा सुप्रीमों मायावती ने पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन तोड़ने की तल्ख़ियों के साथ कुछ इस तरह कहा था- किसी को हराने और किसी का समर्थन करने का अवसर मिला तो सपा को हराएंगे.

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नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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