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Updated: 20 जनवरी, 2022 04:48 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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प्रयागराज से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर अपने बेटे मयंक जोशी के लिए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में लखनऊ कैंट से टिकट मांगा है. कहा जा रहा है कि रीता बहुगुणा जोशी ने इस पत्र में बेटे मयंक जोशी के कई सालों से भाजपा के लिए काम करने के आधार पर लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर दावेदारी जताई है. वहीं, अपने बेटे को टिकट दिलाने के लिए रीता बहुगुणा जोशी भाजपा के एक परिवार से एक ही टिकट के नियम पर अपनी लोकसभा सीट से इस्तीफा देने के लिए भी तैयार हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो रीता बहुगुणा जोशी ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने कहा है कि अगर बेटे मयंक जोशी को टिकट नहीं मिला, तो वह इस्तीफा दे देंगी. जोशी ने ये भी कहा है कि वह 2024 में चुनावी राजनीति में सक्रिय नहीं रहेंगी. लेकिन, भाजपा के लिए काम करती रहेंगी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या रीता बहुगुणा जोशी का इस्तीफा नामंजूर कर बीजेपी 'परिवारवाद' को खत्म करेगी?

Rita Bahuguna UP Election 2022भाजपा सांसद रीता बहुगुणा ने बेटे मयंक जोशी की टिकट के लिए इस्तीफे की पेशकश कर दी है.

रीता बहुगुणा जोशी का दावा और अपर्णा यादव की 'एंट्री'

लखनऊ कैंट सीट को भाजपा की सुरक्षित सीटों में से एक माना जाता है. इस सीट पर 2012 में कांग्रेस के टिकट पर रीता बहुगुणा जोशी ने विधानसभा चुनाव जीता था. भाजपा में शामिल होने के बाद 2017 में उन्होंने इसी सीट से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार अपर्णा यादव को शिकस्त दी थी. 2019 में रीता बहुगुणा के प्रयागराज से सांसद चुने जाने के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के सुरेश तिवारी ने जीत हासिल की थी. और, अब इसी सीट पर रीता बहुगुणा अपने बेटे मयंक जोशी के लिए दावेदारी जता रही हैं. लेकिन, यहां मामला थोड़ा सा दिलचस्प हो जाता है. दरअसल, इस बीच मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भाजपा का दामन थाम लिया है. अपर्णा यादव को लेकर कहा जा रहा है कि वह बिना किसी शर्त के भाजपा में शामिल हुई हैं. लेकिन, अपर्णा यादव की भाजपा में एंट्री से इस बात को बल मिला है कि लखनऊ कैंट सीट से वह ही बीजेपी की उम्मीदवार होंगी. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने की खबरों के सामने आने के बाद ही रीता बहुगुणा इस कदर मुखर हुई हैं.

टिकट की लाइन में बहुगुणा अकेली नहीं

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के कई नेता अपने रिश्तेदारों के लिए सियासी विरासत के रास्ते खोलन की कोशिश में लगे हुए हैं. और, रीता बहुगुणा जोशी इस मामले में अकेली नही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने रिश्तेदारों की टिकट फाइनल कराने की पैरवी के लिए केंद्रीय मंत्री से लेकर सांसद-विधायक तक के नाम हैं. केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के छोटे बेटे नीरज सिंह के लखनऊ कैंट से टिकट की दावेदारी की चर्चाएं हैं. सलेमपुर से भाजपा सांसद रवींद्र कुशवाहा अपने छोटे भाई जयनाथ कुशवाहा को भाटपाररानी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने के लिए दावेदारी कर रहे हैं. कानपुर नगर से सांसद सत्यदेव पचौरी अपने बेटे अनूप पचौरी के लिए गोविंदनगर सीट से टिकट मांग रहे हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के बेटे दिलीप दीक्षित उन्नाव की पुरवा सीट से टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं. योगी सरकार में वित्त मंत्री रहे राजेश अग्रवाल, सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा, मंत्री बृजेश पाठक भी अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे हैं. ऐसे भाजपा नेताओं के दर्जनों नाम हैं, जो यूपी चुनाव 2022 में अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे हैं.

परिवारवाद को बढ़ावा देने के मूड में नही है भाजपा

वैसे, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के प्रत्याशियों की अब तक जारी लिस्ट से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि भाजपा अब परिवारवाद का बोझ बहुत ज्यादा ढोने के मूड में नही है. भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने यूपी चुनाव 2022 में केवल उन्हीं प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जो जिताऊ उम्मीदवार हैं और पहले से ही जीतकर आ रहे हैं. इतना ही नहीं, गोवा विधानसभा चुनाव में दिवंगत मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के टिकट को लेकर भाजपा का जो रुख है, उससे पता चलता है कि पहली बार चुनावी मैदान में उतरने का मन बनाने वाले किसी नेता के पारिवारिक सदस्य को पार्टी टिकट मिलना मुश्किल है. यहां अहम ये भी है कि हाल ही में भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से एक्जिट के पीछे एक सबसे बड़ा कारण यही था. दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य को रायबरेली की ऊंचाहार सीट से फिर से भाजपा प्रत्याशी बनवाना चाहते थे. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 के मद्देनजर भाजपा परिवारवाद से तौबा करने का मन बना चुकी है, तो मौर्य को मजबूरन अपने लिए अलग रास्ते खोजने पड़े.

तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूपी चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके करीबी विधायकों के जाने से भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है. लेकिन, भाजपा ने इस पूरे मामले पर नपी-तुली प्रतिक्रिया देते हुए साफ कर दिया है कि शीर्ष नेतृत्व किसी भी हाल में परिवारवाद को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं है. क्योंकि, जिस परिवारवाद के मुद्दे को लेकर पार्टी सपा से लेकर कांग्रेस पर हमला बोलती है. उसे वह इतनी आसानी से अपने हाथ से जाने नहीं देगी. खासतौर से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की परिवारवादी नीति के सामने यह सबसे बड़ा हथियार कहा जा सकता है. हालांकि, टिकट के मामले में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपना रुख पहले ही साफ कर चुका है. इस स्थिति में अगर रीता बहुगुणा के इस्तीफे पर भाजपा झुकती है, तो पार्टी के सामने दर्जनों की संख्या में सांसद और विधायक अपना इस्तीफा लिए खड़े हो जाएंगे. देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व रीता बहुगुणा के मामले में क्या फैसला लेता है? क्योंकि, ये फैसला काफी हद तक भाजपा में 'परिवारवाद' को खत्म करने का काम करेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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