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Updated: 27 जुलाई, 2016 12:31 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने दलित राजनीति में तगड़ी घुसपैठ की तैयारी शुरू कर दी है. मायावती के खिलाफ पार्टी के नेता दयाशंकर सिंह के अभद्र बयान से उपजे हालात में पार्टी ने विधानसभावार पार्टी के दलित नेताओं की सूची तैयार की है जो अगले 6 महीने तक लगातार अपने-अपने इलाके में दलित बस्तियों में जाकर लोगों के बीच भारतीय जनता पार्टी की दलित समर्थक छवि तराशेंगे.

बीजेपी ने यूपी के चुनाव को देखते हुए इस दलित जोड़ो मिशन को सामाजिक समरसता अभियान का नाम दिया है और इसमें अंबेडकरवादियों, बौद्ध धर्म प्रचारकों, बीजेपी के दलित सांसदों-विधायकों को लगा दिया है. बीजेपी के इस सामाजिक समरसता अभियान की देख-रेख राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने खास तौर पर संभाली है. इलाहाबाद से सटे कौशांबी से सांसद विनोद सोनकर को दलित जागरण अभियान का संयोजक नियुक्त किया गया है और पूरी योजना की मॉनिटरिंग का काम राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और यूपी के प्रभारी ओम माथुर और प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल के सुपुर्द किया गया है ताकि संगठन के स्तर पर रणनीतिक अमल में कहीं पर कोई कमी न रह जाए.

बीजेपी ने अगले अगस्त और सितंबर महीने में यूपी की 403 विधानसभा सीटों, 85 सुरक्षित सीटें छोड़कर, शेष 318 सीटों पर जातिवार दलितों की बैठकें पूरी करने का फैसला लिया है. केंद्रीय स्तर पर यूपी में दलित केंद्रित सामाजिक समरसता अभियान की दो अहम बैठकें हो चुकी हैं जबकि तीसरी समीक्षा बैठक आगामी 1 अगस्त को बुलाई गई है जिसमें यूपी की सभी 318 गैर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में जातिवार दलित मतों को बीजेपी के पक्ष में लामबंद करने की रणनीति पर पार्टी चर्चा करेगी.

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पार्टी रणनीतिकारों का विचार है कि सुरक्षित विधानसभा सीटों पर पार्टी के दलित उम्मीदवार अपनी जाति के साथ सवर्ण और बीजेपी से जुड़े पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बदौलत जहां चुनावी नैया पार लगा लेते हैं वहीं गैरसुरक्षित सीटों में अगर दलित जातियों की गोलबंदी पहले से बीजेपी के हक में कर ली जाए तो पार्टी आसानी से यूपी की 200 सीटों पर जीत की रणनीति पुख्ता कर सकती है.

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2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी दलितों के बीच पैठ बनाने में जुट गई है

यूपी में बीजेपी ने दलित राजनीति में दोहरी रणनीति पर काम शुरू किया है. पहली रणनीति के तहत मायावती के नेतृत्व को दलित वर्गों में चुनौती देने की तैयारी की जा रही है, ताकि दलित मतदाता सीधे तौर पर मायावती समर्थक और मायावती विरोधी दो पालों में बंट सके ताकि वोट बंटवारे का सीधा लाभ बीजेपी को मिल सके और दूसरी रणनीति के तहत बीजेपी परंपरागत बीजेपी के समर्थक दलित मतदाताओं की गोलबंदी में जुट गई है ताकि मायावती के खिलाफ दलितों के एक वर्ग से ही विरोध की लहर उठाई जा सके.

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इस कार्य में नवबौद्धों की भी मदद भी पार्टी के रणनीतिकार ले रहे हैं. बौद्ध धर्म प्रचारक डॉ. धम्मवीरियो की अगुवाई में करीब 40 बौद्ध प्रचारकों की मंडली बीते तीन महीने से लगातार यूपी के दलित बहुल इलाकों को मथ रही है, हालांकि इसमें सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी ने खुद को झंडा-बैनर समेत दूर रखा है लेकिन धम्मवीरियो की पूरे दौरे के प्रबंधन में हर जगह भारतीय जनता पार्टी के नेता लगाए गए हैं, ताकि धम्मवीरियो के जरिए उत्तर प्रदेश को मथने में किसी तरह की कोई कमी बाकी न रहे.

धम्मवीरियो मोदी सरकार की उन नीतियों का खास तौर पर दलित बस्तियों में जिक्र कर रहे हैं जो भगवान बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित और संचालित हैं. गौरतलब है कि 90 साल के भदन्ते डॉ. धम्मवीरियो डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से नजदीकी सहयोगी रहे थे जिन्हें डॉक्टर भीमराव अंबेडकर खुद वर्मा से भारत लेकर आए थे. डॉ. वीरियो राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं और अंबेडकरवादियों के बीच उनकी गहरी पकड़ मानी जाती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा के साथ डॉ. धम्मवीरियो अपनी सभाओँ में खास तौर पर ये बात बताना नहीं भूलते हैं कि ‘मायावती के जरिए न दलितों का कल्याण हो सकता है और ना ही देश का. दलित समाज को अगर भविष्य में डॉ. अंबेडकर के दिखाए शिक्षा और स्वावलंबन के रास्ते पर कोई ले सफलता पूर्वक आगे ले जा सकता है तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.’

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बीजेपी मायावती के सबसे बड़े वोट बैंक रहे 'दलित वोट बैंक' में सेंध लगाना चाहती है!

डॉ. धम्मवीरियो की धम्म चेतना यात्रा बीजेपी के दलित केंद्रित सामाजिक समरसता अभियान को ताकत देती दिख रही है क्योंकि धम्मवीरियो दलितों के मन से एक तरफ मायावती प्रेम को रगड़ रगड़ कर छुड़ा रहे हैं तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को दलितों की जिंदगी में बदलाव के लिए अगले 20 साल तक जरूरी बता रहे हैं. जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शासन दिल्ली में जमा रहे तो साल 2017 में यूपी के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत को भी डॉ. धम्मवीरियो संकेतों में अनिवार्य बताते हैं.

धम्म प्रचार के मंच से साफ कहा जा रहा है कि ‘मायावती दौलत की बेटी हैं जिनके लिए अंबेडकर के मिशन से बड़ा निजी अहंकार बन गया है, वो दिन-रात सत्ता और निजी ऐश्वर्य जुटाने में लगी हैं और कांशीराम समेत डॉ. अंबेडकर के साथ जीवन गुजारने वाले तपे-तपाए लोगों को मायावती ने बिल्कुल किनारे लगा दिया है.’ डॉ. धम्मवीरियो धम्म चेतना यात्रा का समापन अक्टूबर महीने के आखिरी सप्ताह में लखनऊ में एक विशाल रैली के जरिए करेंगे जिसमें प्रधानमंत्री के शामिल होने की बात भी सामने आई है.

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बीजेपी एक तरफ यूपी में धम्म चेतना यात्रा को पर्दे के पीछे से समर्थन दे रही है तो दूसरी ओर दलित जागरण अभियान के मोर्चे पर उसने खुले तौर पर उन सभी दलित सांसदों और विधायकों को लगा दिया है, जो यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान से चुनकर आए हैं. बीजेपी की निगाहें खटिक, पासी, धोबी, खैरवार, कोरी और जाटव पर लगी हैं जिनमें से चमार-जाटव छोड़कर ज्यादातर जातियों में बीजेपी की पकड़ परंपरागत तौर पर मजबूत बतायी गई है.

सामाजिक समरसता मिशन से जुड़े बीजेपी के एक सांसद का कहना है कि यूपी में दलित मतों की कुल तादाद 24 फीसदी तक है जिसमें से 12 से 14 फीसद वोट चमार-जाटव बिरादरी के हैं. इस जाटव बिरादरी में मायावती की पकड़ सबसे ज्यादा मजबूत है, जबकि बाकी 12 से 14 फीसद दलित जातियों में खटिक, पासवान, कोरी, खैरवार, धोबी, वाल्मीकि आदि जातियां हैं. बीजेपी के रणनीतिकारों का कहना है कि इन जातियों में बीजेपी की पकड़ परंपरागत रूप से मजबूत है और इसे विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से पार्टी के हक में पैबंद रखने की जरूरत है ताकि एक भी वोट कहीं भटककर न जाने ना पाए.

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लोकसभा में यूपी से बीजेपी के दलित सांसदों में 7 सांसद पासी जाति से आते हैं जबकि 3 सांसद खटिक बिरादरी से जुड़े हैं. पार्टी के पास जाटव बिरादरी के 2 सांसद, एक सांसद धोबी जाति का, एक सांसद खैरवार जाति का और एक सांसद कोरी जाति से जुड़ा बताया जाता है. बीजेपी की ओर से तैयार सूची के मुताबिक, मिश्रिख की सांसद अंजूबाला, हरदोई के सांसद अंशुल वर्मा, मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर, बांसगांव से सांसद कमलेश पासवान, शाहजहांपुर से सांसद और नवनियुक्त मंत्री कृष्णाराज, बाराबंकी से सांसद प्रियंका रावत और बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले पासी समुदाय से जुड़े सांसद हैं. ये सभी सांसद पूरे यूपी में पासी समाज को बीजेपी के हक में एकमुश्त मतदान के लिए तैयारी में अभी से नियोजित कर दिए गए हैं. जबकि खटिक मतों में गोलबंदी की जिम्मेदारी सांसद विनोद सोनकर(कौशांबी), सांसद भोला सिंह (बुलंदशहर), नीलम सोनकर(लालगंज) के सुपुर्द की गई है.

यूपी से सटे दूसरे राज्यों के दलित सांसदों में सासाराम के छेदी पासवान पासी जाति से जुड़े हैं तो गोपालगंज के जनक राम जाटव बिरादरी से जुड़े हैं. यूपी से सटे मध्यप्रदेश के भिंड के दलित सांसद भगीरथ भगत और टीकमढ़ के खटिक सांसद वीरेंद्र कुमार समेत यूपी से सटे राजस्थान के संसदीय क्षेत्रों से जुड़े कई दलित सांसदों को भी बीजेपी ने यूपी में खुद से जुड़ी जातियों के बीच में डेरा डालने का निर्देश जारी कर दिया है ताकि चुनाव के लिहाज से हर विधानसभा में जातिवार दलित समुदाय में बीजेपी की रणनीतिक मजबूती को अमलीजामा पहनाया जा सके.

बीजेपी के सूत्रों का दावा है कि मायावती से करीबी कई बड़े चमार और जाटव नेता भी बीजेपी के संपर्क में हैं और चुनावी रणनीति के लिहाज से उन्हें बीजेपी पार्टी में शामिलकर चमार और जाटव

मतों में सेंधमारी की रणनीति में अभी से जुट गई है. डॉ. धम्मवीरियो की यात्रा के साथ इस काम में रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख और नवनियुक्त केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले को भी बीजेपी की ओर से जिम्मेदारी दी गई है ताकि दलित मतों सेंधमारी कर मायावती को पटखनी देने की रणनीति पुख्ता तौर पर यूपी में लागू हो सके.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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