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Updated: 20 दिसम्बर, 2021 04:27 PM
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योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 'कर्मयोगी' से 'उपयोगी' बना दिया है - योगी को मोदी की तरफ से मिला ये नया तमगा कैसा होगा या कितना असरदार होगा, ये बाद की बात है, फिलहाल तो बस ये मान लिया जाये कि मोदी ने विपक्ष को चुप कराने की कोशिश की है, लेकिन विपक्ष तो चुप होने से रहा.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा बीजेपी से आज कल पूछ रही हैं कि 7 साल में क्या किया? जाहिर है सात में पांच साल के लिए तो यूपी में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ही उत्तरदायी हैं. ठीक वैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) हाथरस से लखीमपुर खीरी तक की घटनाओं की सूची गिनाते हैं और यूपी के लोगों से पूछते हैं कि कैसी सरकार चाहिये?

लेकिन विपक्ष के सवाल खत्म नहीं हो रहे हैं. पलटवार में विपक्ष योगी आदित्यनाथ के साथ साथ मोदी-शाह को भी लपेट लेता है - और सबको एक साथ खारिज करने की कोशिश होती है. बिलकुल उसी अंदाज में.

ये जो सर्वे रिपोर्ट आ रही हैं: पिछले कई महीनों से सी-वोटर के कई सर्वे आये हैं. सभी सर्वे में एक बात कॉमन जरूर होती है - योगी आदित्यनाथ सरकार की वापसी. साथ में कुछ और भी बातें होती हैं और वे बीजेपी के लिए चिंताजनक तो हैं, लेकिन जिस रास्ते पर बीजेपी का चुनाव कैंपेन बढ़ रहा है - कोई ज्यादा फिक्र करने वाला भी नहीं लगता. ध्यान रहे फिक्र होने या न होने की वजह आशंका होती है. और संभावनाएं कोई गारंटी नहीं होती.

अमित शाह की बातों से तो यही लगता है कि बीजेपी यूपी में अगला विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ रही है, योगी आदित्यनाथ तो महज एक चेहरा हैं. अगर अन्य राज्यों में बीजेपी के चुनावी मुहिम को देखें तो मुख्यमंत्री पद का चेहरा कोई मायने भी नहीं रखता. ऐसा भी होता है कि बीजेपी चेहरे के साथ लड़ती है, चुनाव भी जीत जाती है लेकिन चेहरा मुखौटे की तरह फेंक दिया जाता है. 2017 के हिमाचल प्रदेश चुनाव में बीजेपी ने चुनाव जीत लिया, लेकिन पीके धूमल के अपनी सीट से हार जाने के चलते किनारे लगा दिया गया.

yogi adityanath, amit shah, narendra modiसर्वे भी बता रहे हैं कि यूपी में बीजेपी सरकार UPYOGI है, लेकिन अंतिम चुनाव नतीजे भी ऐसे ही रहें तब तो!

चुनाव पूर्व सर्वे नतीजों में बीजेपी के लिए एक फिक्र वाली बात है - योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में आ रही गिरावट. ये गिरावट बहुत मामूली है, लेकिन अखिलेश यादव की लोकप्रियता में थोड़ा भी इजाफा दोनों के बीच का फासला कम कर देता है.

लेकिन फर्क क्या पड़ता है जब अमित शाह यूपी के लोगों से कह रहे हैं कि 2024 में मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन सकें इसलिए 2022 में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दीजिये - और अगर ऐसा ही है तो कर्मयोगी बने रहें या उपयोगी बताया जाने लगे आखिर फर्क क्या पड़ता है?

कर्मयोगी, UPYOGI बनाम ANUPYOGI

अखिलेश यादव अपनी रैलियों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अलग अलग तरीके से निशाना बनाते रहे हैं. जब वो नाम नहीं लेते तो बाबा कह कर संबोधित करते हैं. अखिलेश यादव अक्सर कहा करते हैं कि बाबा को कंप्यूटर चलाने नहीं आता - और ऐसा बता कर वो योगी आदित्यनाथ की योग्यता पर सवाल खड़े करते हैं.

अपनी रैलियों में अखिलेश यादव लोगों से पूछते रहे हैं - 'आपको योगी सरकार चाहिए या योग्य सरकार?'

यूपी के शाहजहांपुर में करीब 600 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेसवे की आधारशिला रखते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि यूपी के विकास के लिए योगी आदित्यनाथ की कितनी जरूरत है. एक्सप्रेसवे को लेकर मोदी ने कहा कि ये विकास को गति देगा और इससे एयरपोर्ट, मेट्रो, वाटरवेज, डिफेंस कॉरिडोर भी जोड़ा जाएगा.

योगी आदित्यनाथ की काबिलियत को मोदी ने अलग अंदाज में प्रोजेक्ट किया. मोदी ने समझाया कि कैसे यूपी और योगी को जोड़ दें तो उपयोगी शब्द बन जाता है. निश्चित तौर पर ये समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव को जवाब देने की ही कोशिश रही.

प्रधानमंत्री मोदी ने तो बनारस की पहली रैली में ही योगी आदित्यनाथ को यूपी के सबसे सफल मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर दिया था. ये तो राजनीतिक मजबूरी ही रही कि अपने प्रिय नौकरशाह अरविंद शर्मा के कोविड 19 कंट्रोल के वाराणसी मॉडल का क्रेडिट भी योगी आदित्यनाथ के नाम कर दिया - और बोले कि कोराना काल में योगी आदित्यनाथ ने शानदार काम किया. फिर अमित शाह यूपी पहुंचे तो यूपी को विकास के मामले में देश में बेस्ट और कानून व्यवस्था के मामले में बेहतरीन बताया - और तब से मोदी शाह के हर दौरे में योगी की तारीफों के पुल ऐसे ही बांधे जाते रहे हैं.

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान हाल ही में योगी सरकार के कामकाज पर फिर से सवाल उठा था. सीवोटर के सर्वे में भी 16 फीसदी लोगों का कहना है कि कोरोना चुनावी मुद्दा बनेगा. ऐसे ही 17 फीसदी लोग ध्रुवीकरण, 14 फीसदी कानून-व्यवस्था और 11 फीसदी सरकार के कामकाज को चुनावी मुद्दा बता रहे हैं.

योगी को मोदी का नया सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी अखिलेश यादव के सवाल कम नहीं हो रहे हैं - वो हाथरस की बेटी से लेकर लखीमपुर में तेज रफ्तार गाड़ी से कुचले गये किसानों को लेकर नये सिरे से सवाल बूछ रहे हैं - योगी को भी अनुपयोगी बता रहे हैं.

योगी को उपयोगी बताये जाने पर कांग्रेस ने मोदी-शाह को मिलाकर एक साथ सबको अनुपयोगी बता दिया है - और खास बात ये है कि तरीका वही अपनाया है जो प्रधानमंत्री मोदी का है. मुंबई कांग्रेस की तरफ से ये ट्वीट किया गया है.

सर्वे में शामिल 43 फीसदी लोगों ने बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज को अच्छा बताया है, जबकि 20 फीसदी लोगों को उनका काम औसत दर्जे का लगता है - 37 फीसदी लोग ऐसे भी मिले हैं जो योगी आदित्यनाथ की सरकार से से संतुष्ट नहीं नजर आ रहे हैं और वे कामकाज को खराब बता रहे हैं.

लोकप्रियता के पैमाने पर योगी

सीवोटर सर्वे से मालूम हुआ है कि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता घटी है. ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी होता रहा है, लेकिन वो उछाल के साथ रिकवर भी कर लेते हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को लेकर भी ऐसा ही सर्वे आया था - जैसे मोदी ने नीतीश कुमार को उबार दिया था, योगी आदित्यनाथ को भी राजनीतिक वैतरणी पार करा ही सकते हैं.

सर्वे के मुताबिक यूपी के लोग मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर आगे भी योगी आद‍ित्‍यनाथ को ही बैठे देखना चाहते हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता में ग‍िरावट भी आयी है. योगी के मुकाबले देखें तो हफ्ते भर की अवधि में हुए दो सर्वे में समाजवादी पार्टी नेता अख‍िलेश यादव की लो‍कप्रियता बढ़ी दर्ज की गयी है.

योगी की लोकप्रियता में मामूली गिरावट: 15 दिसंबर के सर्वे में शामिल 42 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ को बतौर मुख्यमंत्री पहली पंसद बता रहे हैं, लेकिन 6 दिसंबर को हुए ऐसे ही सर्वे में बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 44 फीसदी लोग पसंद कर रहे थे - यानी योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में 2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है.

अखिलेश की लोकप्रियता में मामूली इजाफा: 15 दिसंबर के सर्वे में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखने वाले लोग 34 फीसदी बताये जाते हैं, लेकिन 6 दिसंबर के सर्वे में ऐसे लोग 31 फीसदी ही रहे - यानी अखिलेश यादव की लोकप्रियता में तीन फीसदी का इजाफा हुआ है.

जैसे दोनों सर्वे में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में मामूली गिरावट पायी गयी है, वैसे ही अखिलेश यादव के मामले में मामूली इजाफा ही दर्ज किया गया है - गौर करने वाली बात ये है कि ऐसा होने से दोनों के बीच का फासदा 5 फीसदी कम भी हो गया है.

क्या फर्क पड़ता है जब मोदी के नाम पर ही वोट मांगना है!

सवाल ये है कि अगर बीजेपी यूपी के लोगों से मोदी के नाम पर ही वोट मांग रही है तो भला योगी के उपयोगी या अनुपयोगी होने या फिर लोकप्रियता गिरने से भी फर्क ही क्या पड़ता है?

कुछ दिन पहले ही तो, अमित शाह ने एक रैली में कहा था, 'अगर 2024 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है तो 2022 में एक बार फिर से योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा.'

एक तरफ मोदी का नाम है तो दूसरी तरफ संघ प्रमुख घर वापसी यज्ञ में आहूति दिये जा रहे हैं - और केवल ये सब ही क्यों, तमाम ऐसे जुगाड़ हैं जिनकी बदौलत योगी आदित्याथ ध्यान लगाने हिमालय भी चले जायें तो संघ और बीजेपी उनको कुर्सी पर बिठाने के लिए वोट जुटा लेंगे.

1. मंदिर के नाम पर: अयोध्या में तो पूरी दुनिया देख रही है कि राम मंदिर निर्माण का काम चल रहा है. यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्या के ट्वीट को छोड़ भी दें तो चित्रकूट में हुए हिंदू एकता महाकुंभ में भी काशी से पहले मथुरा में मंदिर चर्चा के मुद्दों में प्रमुख रहा. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर तो हाल ही प्रधानमंत्री मोदी लोगों को समर्पित कर ही आये हैं.

2. घर वापसी के नाम पर: मथुरा मुद्दे से भले ही मोहन भागवत पल्ला झाड़ लें, लेकिन राष्ट्रनिर्माण के नाम पर घर वापसी अभियान के लिए कसमें वादे कर ही रहे हैं. ये खबर भी तो चित्रकूट सम्मेलन से ही आयी है.

3. विपक्ष से डराकर: योगी आदित्यनाथ यूपी के लिए उपयोगी हैं तो विपक्ष रेड अलर्ट. गोरखपुर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने अखिलेश यादव की लाल टोपी को रेड अलर्ट बता कर ही तो डराने की कोशिश की थी. ठीक वैसे ही जैसे बिहार में साल दर साल जंगलराज के नाम पर डराया जाता रहा है.

4. गठबंधन के नाम पर: गठबंधन के नाम पर भी कुछ न कुछ वोट तो मिलेगा ही. जिस तरह से अमित शाह और डॉक्टर संजय निषाद ज्वाइंट रैली कर रहे हैं - मान कर चलना होगा कि अनुप्रिया पटेल के साथ भी ऐसे ही आयोजन होते रहेंगे.

5. जाति के नाम पर: बीजेपी ने ब्राह्मण से लेकर गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित वोटों के लिए पहले से ही अलग अलग जुगाड़ कर रखा. मोदी जैसे बीजेपी के सबसे बड़े ओबीसी चेहरे के बावजूद धर्मेंद्र प्रधान को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया गया है - और बीच बीच में गलतफहमी भी फैलायी जाती रही है कि दावेदार तो केशव मौर्या भी हैं.

उत्तराखंड के राजभवन से बुलाकर यूपी के चुनाव मैदान में उतार दी गयीं बेबी रानी मौर्य के तेवर भी कम नहीं लगते. मायावती को काउंटर करने के लिए बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा भी तो बेबी रानी मौर्या ही हैं.

और गैंग्स्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद यूपी में शुरू हुई ब्राह्मण वोट बैंक की राजनीति के लिए ही तो बीजेपी लखीमपुर वाले अजय मिश्र टेनी को ढो रही है - जिसका खुद का आपराधिक इतिहास रहा है, बेटा हत्या का आरोपी है और एसआईटी की जांच रिपोर्ट कह रही है कि लखीमपुर खीरी हिंसा किसी लापरवाही नहीं, पूर्व नियोजित साजिश का परिणाम है.

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