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Updated: 22 नवम्बर, 2021 01:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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आखिर ये कितनी बार बताने की जरूरत है कि योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ही यूपी में बीजेपी का चेहरा हैं? योगी आदित्यनाथ ने कोरोना काल में भी अच्छा काम किया और अभी यूपी की कानून-व्यवस्था देश भर में सबसे अच्छी है और सबसे जरूरी बात - योगी आदित्यनाथ और मोदी-शाह के बीच तकरार जैसी कोई बात नहीं है.

ये तो हर कोई समझ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा (Farm Laws Repealed) विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार की आशंका के मद्देनजर ही की है. विधानसभा चुनावों में भी सबसे ज्यादा डर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की सत्ता में वापसी को लेकर है - और गुरु परब का खास मौका जान बूझ कर पंजाब चुनाव को ध्यान में रख कर चुना गया.

लेकिन अब कृषि कानूनों को लेकर नयी बहस शुरू हो रही है. बीजेपी नेताओं की तरफ से ये भी संदेश दिये जाने शुरू हो गये हैं कि सरकार जब चाहे तब कृषि कानून फिर से ला सकती है. ऐसी बातें सिर्फ साक्षी महाराज ने की होती तो उनके बड़बोलेपन के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए एक बार इग्नोर भी किया जा सकता था, लेकिन कलराज मिश्र जैसे गंभीर मिजाज वाले नेता भी इस बहस को आगे बढ़ा रहे हैं.

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव तो पहले ही शक जता चुके हैं और बीजेपी नेताओं की बातों से ये मिस्ट्री और भी ज्यादा गहराने लगी है. अखिलेश यादव ने कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी नेतृत्व की नीयत पर वैसे है संदेह जताया था, जैसे प्रियंका गांधी वाड्रा चैलेंज कर रही हैं - अगर आपकी नीयत साफ है तो अजय मिश्रा टेनी को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें. कांग्रेस महासचिव ने ये बात प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में कही है.

एक तरफ तो बीजेपी विपक्ष के कब्जे वाली सीटों को हथियाने की कवायद में जुटी है, लेकिन ऐन उसी वक्त बार बार सफाई और सबूत भी पेश करने पड़ रहे हैं - क्या बीजेपी को मालूम है कि ऐसे प्रयोगों के नतीजे काफी महंगे भी पड़ सकते हैं?

आखिर कब तक बताते रहेंगे - 'हम साथ साथ हैं!'

हाल ही में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी का राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था - और इसे खूब प्रचारित भी किया गया. बताने और जताने की यही कोशिश रही कि योगी आदित्यनाथ का बीजेपी में कद बढ़ता ही जा रहा है.

लेकिन एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के मौके का एक वीडियो शेयर कर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने अलग ही तस्वीर पेश करने की कोशिश की. ट्विटर पर अखिलेश यादव ने जो वीडियो शेयर किया उसमें दिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी गाड़ी में बैठ कर चल दिये - और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पैदल चलने के लिए छोड़ दिया.

कोई पॉलिटिकल मैसेज देने के लिए ये अच्छी ट्रिक हो सकती है, लेकिन 6 सेकंड के वीडियो में जो नजर आ रहा है वो सच तो नहीं है. बेशक अखिलेश यादव ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हों कि जिन तल्खियों को बीजेपी झुठलाती रही है, ये वीडियो उसी का सबूत है - लेकिन वास्तव में ऐसा है तो नहीं ही. प्रोटोकॉल भी तो कोई चीज होती है.

अगर योगी आदित्यनाथ की जगह अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री होते तो भी ये वीडियो बन सकता था. अब प्रधानमंत्री मोदी को अपनी गाड़ी में योगी आदित्यनाथ को लिफ्ट देने की जरूरत तो थी नहीं. ऐसा भी नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के वहां खड़े रहते योगी आदित्यनाथ चले जाते, राजनीति में वरिष्ठता के साथ साथ पद के प्रोटोकॉल भी ऐसी इजाजत नहीं देते. प्रधानमंत्री के चले जाने के बाद मुख्यमंत्री को कुछ देर तक पैदल चलते देखा जा सकता है जिसके बाद वीडियो क्लिप खत्म हो जाती है - दरअसल, उसके आगे योगी आदित्यनाथ अपनी गाड़ी में सवार हो जाते हैं. ये वीडियो में नहीं देखने को मिलता.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी दौरे के बीच योगी आदित्यनाथ ने ट्विटर पर एक साथ दो तस्वीरें शेयर की हैं. दोनों ही तस्वीरो में मोदी और योगी ही हैं. फर्क बस ये है कि एक में सामने से देखे जा सकते हैं और दूसरी में पीछे से.

तस्वीरों के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने एक कविता भी पोस्ट की है - '...जिद है एक सूर्य उगाना है.'

दो तस्वीरों के जरिये योगी आदित्यनाथ वैसे तो कई संदेश देने की कोशिश कर रहे होंगे, लेकिन एक खास मैसेज तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए भी निश्चित तौर पर होगा ही - देखो, हम साथ साथ हैं... आगे पीछे नहीं...

1. कोई तकरार वाली बात नहीं है: योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री मोदी के बीच तकरार की बातें पूर्व नौकरशाह और अब बीजेपी उपाध्यक्ष अरविंद शर्मा को लेकर शुरू हुई थीं. माना जाता है कि वीआरएस दिला कर अरविंद शर्मा को दिल्ली से लखनऊ भेजा गया और फिर बीजेपी की तरफ से यूपी विधान परिषद.

जब से अरविंद शर्मा ने लखनऊ में कदम रखा था तभी से उनको यूपी सरकार में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की बात चलने लगी थी - डिप्टी सीएम बनाने तक की भी चर्चा रही. जब केंद्र सरकार को लगा कि योगी आदित्यनाथ कोरोना वायरस के प्रकोप पर काबू पाने में सक्षम नहीं हैं, तो अरविंद शर्मा को स्पेशल टास्क दिया गया और कोविड पर काबू पाने का वाराणसी मॉडल तैयार हुआ, जिसकी अब कहीं कोई भी चर्चा नहीं होती.

लेकिन जब बनारस में बीजेपी की चुनावी रैली की मोदी ने शुरुआत की तो न सिर्फ योगी आदित्यनाथ को कर्मयोगी कह कर संबोधित किया, बल्कि कोरोना काल में बेहतरीन कामकाज का सर्टिफिकेट भी तत्काल प्रभाव से जारी कर दिया था.

farmers protestकृषि कानूनों पर नयी बहस बीजेपी नेता ही क्यों शुरू कर रहे हैं?

बाद में भी बार बार यही मैसेज देने की कोशिश हुई कि योगी और बीजेपी नेतृत्व में तकरार जैसी कोई बात नहीं है - और अब शायद योगी आदित्यनाथ उसी मैसेज को दो तस्वीरों के जरिये नये सिरे से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

2. योगी ही यूपी में बीजेपी का चेहरा हैं: चाहे वो कुशीनगर एयरपोर्ट के उद्घाटन का मौका हो या फिर एक्सप्रेस वे के उद्घाटन का ये मेडिकल कॉलेज का - हर मौके पर प्रधानमंत्री किसी न किसी बहाने ये समझाने की कोशिश जरूर करते हैं कि योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर बीजेपी के भीतर कोई विवाद नहीं है.

मोदी कर्मयोगी कह कर तो बुलाते ही हैं, अमित शाह भी योगी की किसी भी मौके पर तारीफ करते नहीं थकते. चाहे वो लखनऊ में बीजेपी की रैली हो या फिर अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ का नाम बदलने का मामला - योगी आदित्यनाथ की छवि उभारने की बार बार कोशिश होती है.

3. ये राम मंदिर बनाने वाली जोड़ी है: ये तस्वीरें अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की तरफ भी इशारा करती हैं - योगी आदित्यनाथ तस्वीरें शेयर करके ये भी जताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी की यही जोड़ी हिंदुओं के भव्य राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा कर रही है.

ऐसे भी समझ सकते हैं जैसे अमित शाह लखनऊ में समझा रहे थे - अगर 2024 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं तो योगी आदित्यनाथ को 2022 में मुख्यमंत्री बनाना ही होगा.

कृषि कानूनों पर नयी बहस क्यों

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि काननों को वापस लिए जाने के ऐलान के अगले दिन से ही नयी बहस शुरू हो गयी है - और ये बहस भी बीजेपी के ही दो नेताओं की तरफ से आगे बढ़ायी जा रही है.

प्रधानमंत्री की घोषणा के बावजूद किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ है. किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक कागज नहीं मिल जाता तब तक वे लोग घर नहीं लौटेंगे - और अब तो वो एमएसपी को लेकर भी अपनी मांग जोर शोर से उठाने लगे हैं. एमएसपी को लेकर बीएसपी नेता मायावती ने भी किसानों का सपोर्ट किया है.

प्रधानमंत्री की घोषणा का जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सबसे पहले स्वागत और सपोर्ट किया, वहीं समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने शक जताया कि 2022 के चुनाव के बाद बीजेपी सरकार की तरफ से फिर से कृषि कानून लाये जा सकते हैं. तभी उन्नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कह दिया कि कानून का क्या है - ये तो बनते बिगड़ते रहते हैं. फिर से बन जाएंगे. यही बात सीनियर बीजेपी नेता और राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने दोहरा दी, फिर तो अखिलेश यादव को और भी ताकत मिल गयी.

किसानों को संबोधित करते हुए कलराज मिश्र ने कहा था कि समझाने के बावजूद जब किसान नहीं माने तो सरकार ने कह दिया कि कानून वापस लिए जा रहे हैं - और इसके बाद अगर कानूनों को दोबारा लाने की जरूरत हुई तो लाये जाएंगे.

राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, 'हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाये. कृषि अर्थशास्त्रियों ने... वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया था...'

बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में अर्थशास्त्री गुरचरण दास कहते हैं, 'ये प्रधानमंत्री मोदी की बहुत बड़ी नाकामी है... उनकी सुधारवाद छवि को धक्का लगा है... कई लोगों को अब वो एक कमजोर प्रधानमंत्री लगेंगे.'

बिजनेस क्लास भी यही मान कर चल रहा है, लेकिन किसान आंदोलन के आगे मोदी सरकार को झुकना पड़ा है, खास कर यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार की सत्ता में वापसी के लिए - अब ये बात नहीं समझ आ रही है कि कानूनों की वापसी की घोषणा के 24 घंटे बाद ही फिर से कानून लाये जाने की बातें क्यों शुरू की जा रही हैं?

ये अर्थशास्त्रियों और बिजनेस क्लास को आश्वस्त करने की तरकीब है या कुछ और?

क्या ये संवैधानिक पद पर बैठे एक बीजेपी नेता का उसी संवैधानिक पोस्ट वाले दूसरे बीजेपी नेता का जवाब है?

क्या ये सत्यपाल मलिक के सवालों का नये सिरे से कलराज मिश्र की तरफ से जवाब दिलाया जा रहा है?

क्या ये सब पश्चिम यूपी के एक जाट नेता के सवालों को पूर्वी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण नेता के जरिये काउंटर करने की कोई कवायद है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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