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Updated: 14 मई, 2022 09:47 PM
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त्रिपुरा में करीब साल भर बाद विधानसभा चुनाव होने हैं - और बिप्लब देब (Biplab Deb) के इस्तीफे के साथ बीजेपी नेतृत्व ने त्रिपुरा में भी नये सीएम फेस के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी हो कर ली है. दो दिन पहले ही बिप्लब देब दिल्ली तलब किये गये थे. अमित शाह (Amit Shah) और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के अगले ही दिन लौटते ही राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया.

बीजेपी नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को पर्यवेक्षक बना कर त्रिपुरा भेजा है - और दोनों पर्यवेक्षकों के माध्यम से विधायकों से बातचीत कर नये नेता के नाम पर फैसले की कोशिश चल रही है.

न्यूज एजेंसी की खबर के मुताबिक, डिप्टी सीएम जिष्णुदेव वर्मा अंतरिम तौर पर कार्यभार संभाल सकते हैं. पूरे कार्यकाल अपने बयानों के लिए विवादों में बने रहे बिप्लब देव को हटाये जाने की बड़ी वजह तो वही लगती है जिसके लिए बीजेपी चुनावों से पहले मुख्यमंत्रियों को बदलने का फैसला करती है, लेकिन एक बड़ी वजह त्रिपुरा बीजेपी में अंदरूनी कलह भी लग रही है.

बहरहाल, त्रिपुरा बीजेपी अध्यक्ष और राज्य सभा सांसद माणिक साहा को विधायक दल का नया नेता चुन लिया गया है - और अब वो बिप्लब देब की जगह त्रिपुरा के अगले मुख्यमंत्री होंगे.

अपने इस्तीफे (Tripura CM Resigns) के बाद बिप्लब देब ने कहा कि उनकी तरफ से ये कदम आलाकमान के कहने पर उठाया गया है. बिप्लब देब ने बताया कि पार्टी नेतृत्व चाहता है कि वो संगठन के लिए काम करें और - आने वाले चुनाव में सत्ता में वापसी सुनिश्चित हो. फिर बोले, ऐसे में पार्टी जो भी ज‍िम्‍मेदारी देगी उसे पूरी ईमानदारी के साथ न‍िभाएंगे.

विवादों से भरपूर रहा बिप्लब देब का कार्यकाल

2018 में बीजेपी ने त्रिपुरा में लाल सलाम की सत्ता को बेदखल कर भगवा फहरा दिया था. 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के साथ ही बीजेपी की नजर त्रिपुरा पर जा लगी थी, लेकिन चुनावों से करीब साल भर पहले पूरी ताकत झोंक दी गयी थी - और नतीजे भी वैसे ही आये थे.

biplab deb, manik sahaत्रिपुरा बीजेपी के अध्यक्ष माणिक साहा को बिप्लब देब की जगह मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी

त्रिपुरा में अगले साल विधानसभा की 60 सीटों के लिए चुनाव होने हैं. 2018 में 43 फीसदी वोट 36 सीटें हासिल कर बीजेपी ने पहली बार त्रिपुरा में सरकार बनाई थी - और लेफ्ट पार्टियों को महज 16 सीटें ही मिल सकी थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने लेफ्ट की माणिक सरकार की सरकार को हटा कर ही दम लिया - और बतौर बीजेपी अध्यक्ष राज्य में जमीनी स्तर पर काम करने वाले बिप्लब कुमार देब को सबसे बढ़िया इनाम भी मिला. वैसे तो त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्री पद के और भी दावेदार थे, लेकिन थोड़ी बहुत नाराजगी जाहिर करने के बाद वे शांत हो गये.

लेकिन बिप्लब देब मुख्यमंत्री बनते ही विवादों को उछल उछल कर अपने आस पास बुलाने लगे. कामकाज को लेकर भी नेताओं की नाराजगी की शिकायत दिल्ली तक पहुंची. पहले भी कई बार ऐसा लगा जैसे बिप्लब देब की कुर्सी गयी, लेकिन फिर समझा बुझाकर छोड़ दिया गया. देखा जाये तो बीजेपी बिप्लब देब को काफी दिनों से ढो रही थी.

जब बीजेपी को पक्का हो गया कि बिप्लब देब के नेतृत्व में त्रिपुरा में सत्ता में वापसी मुश्किल हो जाएगी तो वक्त रहते मुख्यमंत्री बदलने का फैसला हुआ. वैसे ही जैसे गुजरात, कर्नाटक और उससे पहले बीजेपी ने उत्तराखंड में ताबड़तोड़ मुख्यमंत्री बदल डाले थे.

क्या शिवराज और जयराम की कुर्सी बचेगी? 2024 के आम चुनाव से पहले जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं जहां बीजेपी सत्ता में है - और दोनों ही राज्यों में अभी तक मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा बाहर नहीं आयी है.

हिमाचल प्रदेश में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसी आस पास गुजरात में भी चुनाव होंगे, जहां विजय रुपानी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन रह रह कर ऐसे संकेत मिलते हैं जैसे गुजरात में भी बीजेपी उत्तराखंड जैसे प्रयोग कर सकती है.

हिमाचल प्रदेश में जिस तरह अनुराग ठाकुर की धमक देखी जा रही है, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी कुर्सी पर बैठने के दिन ही गिन रहे होंगे. ऐसा तब महसूस किया गया जब कुछ दिन पहले अनुराग ठाकुर कैबिनेट मंत्री बनने के बाद पहली बार हिमाचल पहुंचे थे - और स्वागत के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एक घंटे पहले ही मौके पर पहुंच गये थे.

गुजरात में तो भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाते वक्त ही मनसुख मंडाविया का नाम लिया जाने लगा था. ऐसी चर्चा रही कि भूपेंद्र पटेल भले चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहें, लेकिन चुनाव बाद तो मनसुख मंडाविया को ही बनना है.

जयराम ठाकुर की तरह तो नहीं, लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है. हालांकि, बुलडोजर चलवाने से लेकर अपनी तरफ से शिवराज सिंह कोशिशों में कमी नहीं रख रहे हैं, लेकिन ऐसे काम कम ही हो रहे हैं जिनसे आलाकमान खुश रहे.

वैसे भी शिवराज सिंह तो शुरू से ही नाम भर के मुख्यमंत्री लगते हैं, कैबिनेट बनी तभी से ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा देखा जाने लगा था. अव्वल तो बीजेपी ने बीच में ही कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी, लेकिन कांग्रेस की हालत अब भी एमपी में यूपी जैसी तो नहीं ही है.

बिप्लब देब के इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह को भी ये डर तो सता ही रहा होगा कि कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह मिल कर मध्य प्रदेश में असम जैसा हाल न कर डालें. वैसे भी मौजूदा बीजेपी नेतृत्व के सामने गुजरे जमाने के शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे कुछ ही नेता बचे हुए हैं जिनका हिसाब किताब अभी तक नहीं हो सका है.

मौजूदा बीजेपी नेतृत्व अक्सर सरप्राइज देने की कोशिश करता है. मोदी-शाह बीजेपी को लेकर बनी धारणाओं को तोड़ने की भी अक्सर कोशिश करते हैं. जो धारणाएं बीजेपी के अंदर बनी हैं उनको लेकर भी और जो बीजेपी को लेकर बाहर बनी हैं, उनको लेकर भी.

जब लोग ये मान कर बैठ जाते हैं कि संघ की पृष्ठभूमि के बगैर बीजेपी में कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता, तो असम में हिमंत बिस्वा सरमा को कुर्सी पर बिठा दिया जाता है - और जब लोग प्रेम कुमार धूमल को मिसाल मान कर पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद नये नेता की संभावना देख रहे होते हैं तो उनको ही नेता चुन लिया जाता है.

ऐसे में शिवराज सिंह चाहें तो संदेह का लाभ मान कर आधी राहत तो महसूस कर ही सकते हैं - क्योंकि सरप्राइज थ्योरी के हिसाब से ज्योतिरादित्य सिंधिया के मध्य प्रदेश का हिमंत बिस्वा सरमा बनने के 50-50 ही संभावना बनती है.

विवादित बयानों से भरपूर रहा बिप्लब देब का कार्यकाल

1. मुख्यमंत्री बनते ही बिप्लब देब ने ये कह कर तहलका मचा दिया था कि महाभारत काल में इंटरनेट और सैटेलाइट हुआ करते थे. दलील भी दे डाली कि अगर ऐसा नहीं होता तो धृतराष्ट्र को संजय भला आंखों देखा हाल कैसे बता पाते!

2. मिस वर्ल्ड डायना हेडन के बारे में बिप्लब देब ने बता डाला कि उनकी जीत फिक्स्ड थी - और वो भारतीय महिलाओं की सुंदरता की नुमाइंदगी नहीं करतीं. हां, ऐश्वर्या राय की खूबसूरती के वो फैन जरूर लगे.

3. नौकरी देने की उम्मीद कौन करे, एक बार तो बिप्लब देब ने बेरोजगारों को पान की दुकान खोलने और गाय पालने की सलाह दे डाली थी. समझा रहे थे कि जितने दिन नौकरी की तलाश में परेशान रहते हैं, पान की दुकान से 5 लाख रुपये बैंक में जमा कर सकते हैं.

4. एक कार्यक्रम में बिप्लब देब का कहना रहा कि मेकैनिकल इंजीनियरिंग करने वालों को सिविल सेवाओं में नहीं जाना चाहिये, बल्कि सिविल इंजीनियरों को प्रशासनिक सेवाओं में आना चाहिये.

5. अपने चीफ सेक्रेट्री का हवाला देते हुए कोर्ट की अवमानना को लेकर बिप्लब देब का कहना था, 'वो मुझे कोर्ट की अवमानना का डर दिखाते थे... जैसे कोर्ट की अवमानना कोई शेर है... मैं शेर हूं... जो शख्स सरकार चलाता है, सारी ताकत उसके पास होती है.

6. बिप्लब देब ने एक कार्यक्रम में धमकी भरे अंदाज में कहा था, 'मेरी सरकार ऐसी नहीं होनी चाहिए की कोई भी आकर उसमें उंगली मार दे... मेरी सत्ता को कोई हाथ नहीं लगा सकता' - और यहां तक बोल गये कि 'मेरी सरकार में दखल देने वालों के नाखून निकाल लिए जाएंगे'

7. टैगोर की जयंती के मौके पर एक बार बिप्लब देव ने दावा कर डाला कि रविंद्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए अपना नोबेल पुरस्कार लौटा दिया था. जबकि हुआ ये था कि टैगोर ने नोबेल नहीं बल्कि जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में नाइटहुड की उपाधि लौटाई थी. नाइटहुड की उपाधि ब्रिटिश सरकार देती है, नोबेल पुरस्कार स्वीडिश एकेडमी.

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