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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 30 अप्रिल, 2022 08:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उद्धव ठाकरे दोनों ही बीजेपी के निशाने पर एक जैसे हैं, सिर्फ टारगेट प्वाइंट में थोड़ा सा फर्क हो सकता है - मुश्किल ये है कि दोनों ही मुख्यमंत्रियों के सामने यूपी के सीएम चुनौती बन कर खड़े हो गये हैं.

नीतीश कुमार के लिए तो योगी आदित्यनाथ कोरोना संकट काल में भी चुनौतियां पेश करते रहे, अब तो लाउडस्पीकर (Loudspeaker) पर यूपी सरकार के एक्शन की महाराष्ट्र की ही तरह बिहार में भी मिसाल दी जाने लगी है. ठीक वैसे ही जैसे यूपी चुनाव से पहले जनसंख्या कानून के नाम पर बिहार बीजेपी के नेता नीतीश कुमार को घेरते रहे.

वैसे तो अमित शाह के बयान के बाद बीजेपी की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर भी नीतीश कुमार को शह देने की कोशिश हुई थी, लेकिन पुराने दोस्त सुशील मोदी तत्काल प्रभाव से पीछे हट गये, लेकिन लाउडस्पीकर का मामला इतना हल्का भी नहीं लगता. जब तक महाराष्ट्र में मिशन पूरा नहीं हो जाता या उद्धव ठाकरे सरकार को टारगेट करने लायक कोई और मुद्दा नहीं मिल जाता, ये मुहिम रुकने वाली नहीं है.

ऐसा लगता है, नीतीश कुमार इसे लेकर पहले से ही सतर्क हो गये थे. नीतीश कुमार ये भी जानते हैं कि जब तक बहुत ज्यादा दिक्कत न हो, बीजेपी 2024 से पहले बिहार को छेड़ने की कोशिश नहीं करेगी - लेकिन ऐसा भी तो नहीं कि तब तक बीजेपी नीतीश कुमार को खुली छूट देकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी.

वैसे भी बीजेपी को नीतीश कुमार का घूम घूम कर इफ्तार पार्टी (Iftar Party) अटेंड करना बीजेपी नेतृत्व को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा होगा - और तेजस्वी यादव के घर जाने से लेकर अपने यहां पार्टी देकर बुलाना, यही बता रहा है कि नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व को चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते - सवाल ये है कि इफ्तार पार्टी के जरिये नीतीश कुमार क्या बीजेपी को लाउडस्पीकर की आवाज कम करा पाएंगे?

बिहार पहुंचा लाउडस्पीकर

महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश होते हुए लाउडस्पीकर का मामला बिहार में भी दस्तक देने लगा है. बिहार में भी लाउडस्पीकर पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के एक्शन लेने की मिसाल व वैसे ही दी जा रही है, जैसे महाराष्ट्र में एमएनएस नेता राज ठाकरे मिसाल दे रहे हैं. हालांकि, बात अभी इतनी आगे नहीं बढ़ी है कि बिहार में भी राज ठाकरे की तरह कहा जाने लगे, यूपी में योगी सरकार है और महाराष्ट्र में भोगी सरकार है.

नीतीश के खिलाफ बीजेपी का लाउडस्पीकर : बिहार में लाउडस्पीकर का मुद्दा नीतीश कुमार सरकार के ही एक मंत्री जनक राम की तरफ से उठाया गया है. जनक राम, दरअसल, बीजेपी के कोटे से मंत्री बने हैं. आपको याद होगा जब नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, बीजेपी की तरफ से जनक राम ने भी प्रतिनिधित्व किया था.

Nitish Kumar, tejashwi yadavनीतीश कुमार ने लाउडस्पीकर को लेकर एहतियाती उपाय तो कर लिये - आगे के लिए क्या है?

बीजेपी नेता जनक राम का कहना है कि देश के कानून से बड़ा कोई धर्म नहीं है... देश और राज्यों में कानून का शासन है - अगर ये कानून उत्तर प्रदेश में आया है तो इसका असर बिहार पर भी पड़ेगा.'

मीडिया से बातचीत में बिहार के मंत्री कहते हैं, 'केंद्र और राज्य के नेता विचार करने - और बिहार में इसे लागू करने के लिए बैठ कर बात करेंगे.'

जनक राम की बातों से एक चीज तो साफ है, बिहार में नीतीश कुमार की ताजा सक्रियता बीजेपी को परेशान करने लगी है. बीजेपी अलग अलग तरीके से नीतीश कुमार को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब तक कोई प्रभावी उपाय हाथ नहीं लग सका है.

2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने नीतीश कुमार के राजनीतिक प्रभाव को कम करने के मकसद से काफी उपाय किये थे. सत्ता विरोधी लहर की काट के तौर बीजेपी ने अपने कैंपेन से नीतीश कुमार को तो दूर रखा ही, जहां कहीं भी जेडीयू मजबूत था, वहां चिराग पासवान को पीछे लगा दिया.

अब तो वीआईपी के विधायकों को मिला लेने के बाद बीजेपी और जेडीयू का फासला और भी ज्यादा बढ़ गया है, नीतीश कुमार भी पहले से ही सजग हो गये हैं - और बीजेपी को काउंटर करने के लिए अलग अलग हथियारों का प्रयोग करने लगे हैं - आखिर राज्य सभा में दिलचस्पी दिखाने के बाद इफ्तार पार्टी के नाम पर मेलजोल इसीलिए तो बढ़ा रहे हैं.

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पीछे क्यों हटना पड़ा: यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा तो बीजेपी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में शुरू किया था, लेकिन जब भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं से इसका एक्शन प्लान शेयर किया तो बिहार बीजेपी के नेता भी अंगड़ाई लेने लगे - और सबसे आगे देखे गये सुशील मोगी. सुशील मोदी को बिहार में नीतीश कुमार का सबसे अच्छा दोस्त समझा जाता है.

उत्तराखंड में तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट की पहली ही बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कोड का लागू किये जाने की सर्व सम्मति से मंजूरी दिला दी थी, अब तो बात काफी आगे बढ़ चुकी है और लागू करने के उपायों की तैयारियां चल रही हैं.

बीजेपी कार्यकर्ताओं की मीटिंग में अमित शाह का कहना रहा, 'सीएए, राम मंदिर, धारा 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों के फैसले हो गये हैं - अब बारी कॉमन सिविल कोड की है.'

जाहिर है, अमित शाह ने ये अपनी शुरुआती तैयारियों के बाद ही कहा होगा. अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को ये भी याद दिलाया कि उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हो चुका है. दिल्ली हाई कोर्ट तो पहले ही कह चुका है कि आर्टिकल 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जो उम्मीद जतायी गयी थी, उसे केवल उम्मीद नही रहना चाहिये, बल्कि हकीकत में बदल देना चाहिये.

लगे हाथ अमित शाह ने ये भी ऐलान कर दिया कि देश में जहां-जहां भी बीजेपी की सरकारें हैं, वे अपने यहां सिविल कोड लागू करेंगी - अमित शाह की इसी बात को सुशील मोदी ने बिहार के संदर्भ में आगे बढ़ाने की कोशिश की.

बिहार में बीजेपी के ज्यादा विधायक होने के बावजूद सरकार तो एनडीए की है, जिसमें जेडीयू के साथ बीजेपी साझीदार है. सुशील मोदी के बयान के बाद रिएक्शन आने शुरू हो गये. जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बोल दिया कि बिहार में इसे लागू करने का मामला कहीं से बनता ही नहीं. उपेंद्र कुशवाहा ने याद दिलाया कि बीजेपी की जो विचारधारा है, जेडीयू कुछ मुद्दों पर अलग राय रखता है.

मान लेते हैं कि जेडीयू अपनी अलग राय रखता है, लेकिन कहां तक? नीतीश कुमार के एनडीए में चले जाने के बाद जेडीयू की अलग राय मायने ही कितना रखती है. कहने को तो नीतीश कुमार धारा 370 जैसे मुद्दों पर भी अलग ही राय रखते थे, लेकिन बीजेपी ने संसद में प्रस्ताव लाया तो विरोध कहां किया. अब तो ऐसे सभी मुद्दों पर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ ही खड़े नजर आते हैं. मजबूरी भी है. और कर भी क्या सकते हैं?

लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सुशील मोदी खुद ही पीछे हट गये. हो सकता है ऐसा ऊपर से आदेश मिलने पर करना पड़ा हो. बाद में एक बयान जारी करके सुशील मोदी ने सफाई भी दी और उसमें भी अमित शाह का ही बयान दोहरा दिये. समझाने लगे कि अमित शाह ने भी तो यही कहा था कि बीजेपी शासित राज्यों में लागू किया जाएगा.

इफ्तार बनाम लाउडस्पीकर

नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के साथ आत्मीयता तभी दिखानी शुरू कर दी थी जब जातीय जनगणना के नाम पर दोनों की पहली मुलाकात हुई थी - और बिहार के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उसे अंजाम तक पहुंचाया भी. ये तभी की बात है जब लालू यादव जेल से रिहा होकर बेटी मीसा भारती के आवास पर थे और जातीय जनगणना को लेकर मुहिम चला रहे थे.

अब तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक दूसरे की इफ्तार पार्टियों में शामिल हो चुके हैं - और दोनों का एक दूसरे को विदा करने के तरीके पर भी चर्चा हो रही है. तेजस्वी यादव मेहमान बन कर पहुंचे तो जाते वक्त नीतीश कुमार उनको कार तक छोड़ने गये थे. जाने को तो तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार को घर के बाहर तक छोड़ने गये थे, लेकिन मुख्यमंत्री का विपक्ष के नेता को उनकी कार तक जाकर छोड़ने के वाकये ने ज्यादा ध्यान खींचा है.

लाउडस्पीकर को लेकर यूपी में भी बिहार जैसे एक्शन की बीजेपी की मांग को नीतीश कुमार ने फालतू बोल कर खारिज कर दिया है - और तेजस्वी यादव की तरफ से भी वैसी ही टिप्पणी की गयी है.

मुद्दा ये है कि नीतीश कुमार बीजेपी के लाउडस्पीकर को इफ्तार से ही काउंटर कर देंगे या किसी नये शिगूफे की मदद लेनी पड़ेगी? और बीजेपी की तरफ से लाउडस्पीकर पर भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की ही तरह पलटी मार ली जाएगी या आगे बढ़ाने की कोशिश होगी?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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