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Updated: 10 जून, 2022 03:37 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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आजमगढ़ और रामपुर लोक सभा सीटों पर उपचुनावों के लिए नामांकन की डेडलाइन खत्म हो जाने के बाद अलग ही तस्वीर सामने आयी है - आजमगढ़ में जहां अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने परिवार को तरजीह दी है, रामपुर में आजम खान ने ऐसा नहीं किया है.

आजमगढ़ से अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है, जबकि रामपुर लोक सभा सीट पर आसिम राजा समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट होंगे.

दोनों ही सीटों पर बीजेपी ने पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी - और अब सुशील आनंद की चिट्ठी सामने आने के बाद ये भी है कि अखिलेश यादव उनकी उम्मीदवारी पर मुहर लगा चुके थे, लिहाजा सियासी मार्केट में जो भी चर्चाएं रहीं वे सही थीं.

समाजवादी पार्टी के टिकट को लेकर जिस तरह की चर्चाएं रहीं, कई बार ऐसा लगा कि अखिलेश यादव परिवार की तरफ से टिकट दिये जाने से परहेज कर रहे हैं, जबकि रामपुर सीट पर आजम खान परिवार के ही किसी सदस्य की उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही थी - लेकिन फाइनल पूरा उलटा नजर आ रहा है.

समाजवादी पार्टी के टिकट फाइनल किये जाने में कुछ परिस्थितिजन्य सवाल खड़े हो रहे हैं - क्या समाजवादी पार्टी ने बीजेपी उम्मीदवारों को देखते हुए फैसले में बदलाव किया है? आजमगढ़ के मामले में तो ये शक भी मजबूत लग रहा है कि निरहुआ (Nirahua) को बीजेपी का टिकट दिये जाने की घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी का फैसला बदला है.

बहरहाल, उम्मीदवार तो मैदान में उतर चुके हैं, देखना है कि राजनीतिक समीकरण कैसे नतीजों की तरफ इशारा कर रहे हैं - और ये भी देखना होगा कि आजमगढ़ और रामपुर उपचुनावों के नतीजे, यूपी विधानसभा चुनाव से कितने अलग होते हैं?

क्या ये निरहुआ का असर है?

आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव परिवार से शुरू समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की कहानी परिवार पर ही खत्म हो गयी है - अखिलेश यादव ने चचेरे भाई और पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है.

लेकिन रामपुर उपचुनाव में आजम खान ने परिवारवाद का किस्सा ही खत्म कर दिया है. कहां आजम खान की पत्नी और फिर उनकी बड़ी बहू के चुनाव लड़ने की चर्चा रही - और कहां रामपुर से आसिम राजा को टिकट दे दिया गया.

dharmendra yadav, akhilesh yadav, nirahuaआजमगढ़ और रामपुर दोनों ही लोक सभा सीटों पर अच्छा मुकाबला होने जा रहा है - और लड़ाई एकतरफा तो कतई नही लगती.

अव्वल तो अखिलेश यादव ही समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, लेकिन थोड़ी नाराजगी और थोड़ा रामपुर में प्रभाव को देखते हुए, बताते हैं, टिकट फाइनल करने का अधिकार आजम खान के पास ही रहा - और आजम खान ने पत्नी या बड़ी बहू की जगह एक भरोसेमंद पार्टी कार्यकर्ता को चुना है.

आजमगढ़ का किस्सा ज्यादा दिलचस्प लग रहा है - और उसे ज्यादा दिलचस्प बना रही है सुशील आनंद की चिट्ठी. बीएसपी के बड़े नेता रहे बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद ने अखिलेश यादव को चिट्ठी लिख कर अपनी जगह किसी और टिकट देने का आग्रह किया है.

सुशील आनंद की चिट्ठी में नामांकन निरस्त होने की जो वजह बतायी गयी है, काफी हद तक ठीक भी लगता है, लेकिन सवाल इसलिए खड़ा होता है क्योंकि ये चिट्ठी दिनेश लाल यादव निरहुआ को बीजेपी का टिकट फाइनल हो जाने के बाद लिखी गयी है - 6 जून, 2022 को, जबकि यूपी बीजेपी के ट्विटर हैंडल से निरहुआ और घनश्याम लोधी को 4 जून को ही उम्मीदवार बनने की बधाई दे दी गयी है.

क्या लिखा है सुशील आनंद ने चिट्ठी में: सुशील आनंद की चिट्ठी से साबित हो रहा है कि समाजवादी पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी फाइनल कर दी थी, सिर्फ औपचारिक घोषणा नहीं हुई थी.

अखिलेश यादव को संबोधित पत्र में सुशील आनंद लिखते हैं, 'आपने अपार स्नेह से आजमगढ़ की सामान्य सीट से दलित परिवार के बेटे को लोक सभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी बनाया था. मुझे ए-बी फार्म भी दे दिया गया था.'

सुशील आनंद ने लिखा है, 'दुर्भाग्य से मेरा नाम मेरे गांव रम्मापुर की वोटर लिस्ट और शहर की वोटर लिस्ट दोनों जगह है... मैंने गांव वाली वोटर लिस्ट से अपना नाम हटाने के लिए ऑनलाइन आवेदन भी कर दिया है, लेकिन प्रशासन ने अभी तक नाम हटाया नहीं है.'

फिर आजमगढ़ क्षेत्र से खुद को उम्मीदवार न बनाये जाने की गुजारिश करते हुए सुशील आनंद लिखते हैं, 'ऐसी परिस्थिति में मैं नामांकन करूंगा तो भारतीय जनता पार्टी सरकार के दबाव में मेरा नामांकन निरस्त किया जा सकता है.'

हो सकता है, सुशील आनंद वोटर लिस्ट में करेक्शन का इंतजार कर रहे हों और नामांकन की आखिरी तारीख नजदीक आने की वजह से ऐसा आग्रह किया हो. अगर सुशील आनंद की ये चिट्ठी निरहुआ की उम्मीदवारी की घोषणा के पहले ही आयी होती तो शायद ही किसी को संदेह होता - लेकिन राजनीति में ये सब तो होता ही है.

क्या निरहुआ ने अखिलेश यादव का फैसला बदलवाया: ये तो सुशील आनंद के नाम की घोषणा भी नहीं हुई थी, लेकिन अखिलेश यादव का अधिकार है कि वो नामांकन की तारीख तक उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके भी बदल सकते हैं - और ऐसी कोई चिट्ठी लिखे जाने की जरूरत भी नहीं होती.

अखिलेश यादव ने ये सोच कर सुशील यादव को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया होगा कि समाजवादी पार्टी को यादव बिरादरी का वोट तो मिलेगा ही, सुशील आनंद की वजह से बीएसपी के वोटों में भी सेंध लगायी जा सकेगी. मायावती ने 2014 के आम चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को टिकट दे रखा है.

लेकिन अब लगता है अखिलेश यादव को लगा होगा कि निरहुआ की वजह से समाजवादी पार्टी का यादव वोट कट सकता है - और मुस्लिम वोट मायावती के खाते में चले गये तो बीजेपी की राह आसान हो जाएगी.

कैसी होगी आजमगढ़ की लड़ाई

सुशील यादव ने चिट्ठी अपने मन से लिखी हो या नेतृत्व का इशारा समझ कर, अलग बात है - सुशील आनंद की उम्मीदवारी बदलने की चिट्ठी में भी समाजवादी पार्टी के फायदे की संभावना नजर आ रही है.

सुशील आनंद की चिट्ठी के जरिये अखिलेश यादव ने एक बार फिर दलित वोटर को संबोधित किया है - ये भी वैसे ही है जैसे विधानसभा चुनाव के दौरान जयंत चौधरी के साथ प्रेस कांफ्रेंस में अखिलेश यादव दलित समुदाय को लुभाते देखे जाते रहे - समाजवादियों के साथ अंबेडकरवादी भी आ जायें तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है.

अखिलेश यादव की अपील अपनी जगह है, लेकिन मायावती का दलित वोटर शायद ही उससे प्रभावित हो. अगर दलित वोटर किसी तरीके से मायावती से निराश होता है तो वो बीजेपी के साथ जा सकता है, बनिस्बत समाजवादी पार्टी को वोट देने के. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने के दौरान में मायावती ने ये समझाने की कोशिश की थी कि बीएसपी को सपा के वोट ट्रांसफर नहीं होते.

लेकिन आजमगढ़ के मुस्लिम वोटर के सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. मुस्लिम वोटर यूपी विधानसभा चुनाव की तरह समाजवादी पार्टी को वोट दे या फिर अब बीएसपी उम्मीदवार गुड्डू जमाली को?

गुड्डू जमाली का अपने इलाके में प्रभाव जरूर है. वो 2014 में जब मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़े थे तो तीसरे स्थान पर रहे. बीच में विधायक जरूर रहे, लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा - राहत की बात बस ये रही कि असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM उम्मीदवारों में गुड्डू जमाली अकेले कैंडिडेट रहे जिनकी जमानत बच गयी थी.

अखिलेश यादव के पक्ष में एक मजबूत चीज और भी है, आजमगढ़ जिले की सभी 10 सीटों पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है - क्या जिले के मुस्लिम वोटर गुड्डू जमाली के साथ ही खड़े होंगे या मुलायम सिंह परिवार के धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ की नुमाइंदगी सौंपेंगे?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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