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Updated: 28 मई, 2022 11:30 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी (BJP) को 2024 में चैलेंज करने के लिए विपक्षी दलों की ओर से बड़ी लंबी चौड़ी तैयारी चल रही है. ये बात अलग है कि अभी तक पूरा विपक्ष एक साथ बैठ कर बातचीत करने के स्तर तक भी नहीं पहुंच सका है - लेकिन बीजेपी हर स्तर पर तैयारी शुरू कर चुकी है.

लोक सभा प्रवास योजना के तहत बीजेपी देश की उन लोक सभा सीटों पर फोकस करने वाली है जहां 2019 के चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार दूसरे या तीसरे स्थान पर रह गये थे. 2024 के आम चुनाव बीजेपी ऐसी सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक देने की तैयारी में अभी से है.

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर से लेकर कई विपक्षी दलों की नजर देश भर की ऐसी करीब 250 सीटों पर है जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधी टक्कर देखी गयी है. ये सीटें जीतने के लिए विपक्षी खेमे में कई फॉर्मूलों पर तैयारी चल रही है. एक तरीका ये बताया गया है कि क्षेत्रीय दल ऐसे लोक सभा क्षेत्रों में ड्राइविंग सीट पर रहें और कांग्रेस सहयात्री की भूमिका में रहे. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस का अपना प्रभाव है, स्वाभाविक तौर पर ड्राइविंग सीट पर वही रहेगी. कांग्रेस को ये मंजूर नहीं है कि ड्राइविंग सीट पर कौन रहेगा ये उसके अलावा कोई और तय करे - ये मामला भी कुछ कुछ राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी की ही तरह है.

बीजेपी को विपक्ष की रणनीति से भला क्या मतलब, तभी तो बीजेपी ने ऐसी सिर्फ 144 सीटों पर ही फोकस करने का फैसला किया है - ये देश की वे लोक सभा सीटें हैं जिन पर बीजेपी उम्मीदवार 2019 के आम चुनाव में दूसरे या तीसरे स्थान पर रह गये थे.

ऐसी सीटों पर तो बीजेपी की नजर 2014 के बाद से ही रही, खास कर उत्तर प्रदेश की लोक सभा सीटों पर. 2019 से पहले जिन सीटों पर बीजेपी की कड़ी नजर रही, एक अमेठी भी रही, जिसे पांच साल की मेहनत के फलस्वरूप स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी से छीन कर बीजेपी की झोली में डाल दिया.

अमेठी और रायबरेली की तरह ही बीजेपी की नजर आजमगढ़, मैनपुरी और रामपुर जैसी सीटों पर भी टिकी हुई थी - और यही सोच कर लोक सभा प्रवास योजना (Lok Sabha Pravas Yojana) पर काम शुरू किया गया है. ऐसी सीटें जीतने का टास्क बीजेपी ने मोदी सरकार के मंत्रियों के कंधों पर डाली है. ये योजना मोदी सरकार के आठ साल पूरे होने के मौके पर शुरू की गयी है.

और उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ और रामपुर लोक सभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव (Azamgarh-Rampur Bypolls) ने लोक सभा प्रवास योजना के परीक्षण का मौका भी जल्दी ही दे दिया है. बाकी सीटों पर तो तैयारी चलती रहेगी, लेकिन 23 जून के उपचुनाव को देखते हुए आजमगढ़ और रामपुर में कैंपेन की स्पीड तेज करनी होगी.

कैसी है लोक सभा प्रवास योजना?

लोक सभा की कुल 543 सीटों में से 2019 के आम चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 353 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी के विरोधी दलों और निर्दलीयों के हिस्से में 190 सीटें आयी थीं - और 190 में से 144 सीटें ऐसी पायी गयीं जहां बीजेपी उम्मीदवार दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे.

narendra modi, amit shah, jp naddaहारी हुई लोक सभा सीटें जीतने का बीजेपी का मेगा प्लान तो दिलचस्प है.

जून, 2022 से शुरू होकर बीजेपी का लोक सभा प्रवास अभियान 2024 के आम चुनाव तक चलेगा, ऐसा बताया गया है. योजना को लेकर 25 मई को ही दिल्ली में बीजेपी की एक बैठक बुलायी गयी थी, जिसमें अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ साथ मोदी सरकार के मंत्रियों को भी बुलाया गया था.

ऐसी सभी सीटों के लिए लोक सभा प्रभारी, लोक सभा संयोजक और सोशल मीडिया जैसी 12 टीमें बनायी जा रही हैं - और हर लोक सभा क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों के लिए जातीय समीकरण, महिला, युवा और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का डाटा बैंक भी तैयार किया जाना है.

मंत्रियों को मिला टास्क: लोक सभा प्रवास योजना के तहत हर मंत्री को तीन लोक सभा सीट की जिम्मेदारी दी गयी है. हर मंत्री को एक लोक सभा क्षेत्र में तीन दिन तक ठहरना होगा - और लोगों से मिल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं के बारे में लोगों को बताना होगा.

1. लोक सभा क्षेत्र में प्रवास के दौरान केंद्रीय मंत्री को प्रेस कांफ्रेंस करनी होगी - और मीडिया के जरिये स्थानीय लोगों को सरकारी योजनाओं की विस्तार से जानकारी देनी होगी.

2. मंत्रियों को प्रवास के दौरान सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के साथ बातचीत तो करनी ही होगी, समाज के अलग-अलग तबकों के वोटर से भी संपर्क और संवाद स्थापित करना होगा.

संपर्क और संवाद का तरीका ये होगा कि तीन दिन के प्रवास में कम से कम 6 घरों में जाकर व्यक्तिगत रूप से मेलजोल बढ़ाना होगा. ये 6 घर भी यूं ही कोई भी नहीं होंगे, ये भी पहले से ही बता दिया गया है.

6 में से दो घर तो बीजेपी कार्यकर्ताओं के ही होंगे, जबकि दो घर उन लोगों के होंगे जो बीजेपी के कार्यकर्ता भले न हों, लेकिन संघ और बीजेपी की विचारधारा से इत्तेफाक रखते हैं - और सबसे खास बात ये है कि मंत्रियों को ऐसे दो घरों से भी संपर्क और संवाद स्थापित करना होगा जो विरोधी दलों के कार्यकर्ता हैं. साथ ही, ऐसे नौजवानों से भी संपर्क साधना होगा जो 2024 में पहली बार वोट देने वाले हैं.

3. केंद्रीय मंत्रियों को उन परिवारों से भी घर जाकर मिलना होगा जिनके परिवार से किसी की कोरोना वायरस के चलते मौत हो गयी हो.

योजना के तहत मंत्रियों को मिली जिम्मेदारी से एक बात तो साफ है, बीजेपी राजनीतिक विरोधी दलों के बड़े नेताओं को ही नहीं, जमीनी स्तर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को भी अपने पाले में लेने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस नेतृत्व है कि पार्टी छोड़ कर जाने वालों से पीछा छुड़ाने की कोशिश में लगा रहता है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तो ऐसे नेताओं को डरपोक बताने लगे हैं - जाहिर नेता जैसा करेगा, नीचे के कार्यकर्ता भी वैसा ही रास्ता अख्तियार करेंगे.

एक बात और - बीजेपी अब भी कोरोना संकट के दौरान सरकारी इंतजामों को लेकर डरी हुई है. ये डर तो बीजेपी को यूपी चुनाव के दौरान भी रहा, लेकिन बीजेपी के कैंपेन में ऐसी चीजें हावी हो गयीं कि कोविड की बदइंतजामियों से लोगों का ध्यान हट गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गुजरात दौरे में भी बीजेपी की यही रणनीति नजर आती है. 2017 में बीजेपी को सौराष्ट्र क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था और पाटीदार समाज की नाराजगी का शिकार होना पड़ा था - देखा जाये तो मोदी-शाह खुद भी ऐसी ही प्रवास योजना पर काम कर रहे हैं.

रामपुर और आजमगढ़ की लड़ाई

उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ और रामपुर में उपचुनाव कराये जाने की वजह अखिलेश यादव और आजम खान का विधानसभा चले जाना है. 2022 के यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के करहल से विधानसभा चुनाव लड़ने की एक वजह तो बीजेपी के योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर से उम्मीदवार घोषित कर देना रहा, लेकिन हार के बाद अखिलेश यादव ने लखनऊ की राजनीति पर फोकस करने का फैसला किया और लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

क्या डिंपल मैदान में उतरेंगी : आजमगढ़ का दौरा तो बीजेपी नेता अमित शाह यूपी विधानसभा चुनाव कैंपेन के दौरान ही करने लगे थे, अब तो उसका विस्तार ही देखने को मिलेगा.

बड़े नेताओं को अब तक उपचुनावों से दूर रहते देखा जाता रहा है, लेकिन क्या आजमगढ़ में भी ऐसा ही होगा? या अमित शाह नये सिरे से आजमगढ़ में मोर्चा संभालेंगे? एक मंत्री के तौर पर तीन लोक सभा सीटें तो अमित शाह के जिम्मे भी आएंगी ही.

2019 में बीजेपी ने भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव निरहुआ को अखिलेश यादव के खिलाफ मैदान में उतारा था और वोट मांगने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खासतौर पर पहुंचे थे - सवाल है कि क्या बीजेपी एक बार फिर निरहुआ पर भी भरोसा करने जा रही है या फिर किसी और को आजमाने की तैयारी है?

akhilesh yadav, dimple yadavक्या डिंपल यादव को आजमगढ़ उपचुनाव की वजह से ही राज्य सभा नहीं भेजा गया?

एक चर्चा ये भी है कि समाजवादी पार्टी की तरफ से डिंपल यादव को आजमगढ़ सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है. ये चर्चा इसलिए भी सही लग रही है क्योंकि समाजवादी पार्टी ने आखिरी वक्त में डिंपल यादव को राज्य सभा नहीं भेजने का फैसला कर लिया.

अगर डिंपल यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ती हैं तो ये ऐसा दूसरा मौका होगा जब वो अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद उपचुनाव लड़ रही होंगी. ऐसा पहला अनुभव तो बुरा ही रहा क्योंकि 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर ने फिरोजाबाद सीट पर डिंपल को शिकस्त दे दी थी. असल में 2009 में अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज दो सीटों से चुनाव लड़े थे, लेकिन बाद में फिरोजाबाद से इस्तीफा दे दिया था. डिंपल यादव 2019 में कन्नौज से सपा की उम्मीदवार थी, लेकिन बीजेपी उम्मीदवार से चुनाव हार गयीं.

रामपुर में क्या होगा:

आजम खान तो जेल से विधानसभा चुनाव जीत गये थे. अब्दुल्ला आजम, आजम खाने के बेटे, चुनाव से पहले जेल से छूट गये थे और चुनाव भी जीत गये. बाहर आने के बाद रामपुर लोक सभा सीट पर आजम खान का कितना असर रहता है - ये भी देखना दिलचस्प होगा.

2019 में बीजेपी उम्मीदवार जया प्रदा रामपुर सीट पर दूसरे स्थान पर रह गयी थीं - क्या बीजेपी फिर से जया प्रदा को ही उतारेगी? क्योंकि जया प्रदा भी तो बीजेपी के उन 144 उम्मीदवारों में से ही एक हैं जिनके लिए मंत्रियों की लोक सभा प्रवास योजना शुरू की जा रही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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