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Updated: 13 नवम्बर, 2019 07:48 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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राम मंदिर बाबरी मस्जिद (Ram Mandir Babri Masjid) मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Ayodhya Verdict) के बाद केंद्र सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर (Ram Temple in Ayodhya) के निर्माण की देखरेख के लिए ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर मालिकाना हक को लेकर दिए गए फैसले में ये आदेश दिया था. देश के सबसे बड़े मुद्दे पर अदालत के इस अहम फैसले के बाद माना यही जा रहा है कि ट्रस्ट के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका गृह और वित्त मंत्रालय निभाएगा. जिसके शीर्ष अधिकारी ट्रस्ट के गठन और उसके नियमों को तय करने का हिस्सा होंगे. ट्रस्ट कब बनेगा ये हमें जल्द ही पता लग जाएगा मगर ट्रस्ट और उस ट्रस्ट का अध्यक्ष कौन होगा? इसपर राम जन्मभूमि न्यास ने बड़ा बयान दिया है. राम जन्मभूमि न्यास (Ram Janmbhoomi Nyas) ने कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की निगरानी करने वाले ट्रस्ट की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करें. न्यास का मानना है कि आदित्यनाथ को गोरक्षा पीठ के महंत के तौर पर ट्रस्ट की अध्यक्षता करनी चाहिए न कि मुख्यमंत्री के तौर पर.

योगी आदित्यनाथ, अयोध्या, राम मंदिर, राम जन्मभूमि न्यास, Yogi Adityanath      उत्तर प्रद्रेश को लेकर योगी आदित्यनाथ तमाम मोर्चों पर विपल हैं इसलिए भी वो अयोध्या जा सकते हैं

न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा है कि, 'राम जन्मभूमि न्यास चाहता है कि योगी आदित्यनाथ ट्रस्ट की अध्यक्षता करें. गोरखपुर में प्रतिष्ठित गोरखनाथ मंदिर गोरक्षा पीठ का है और राम मंदिर आंदोलन में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ और अब योगी आदित्यनाथ मंदिर आंदोलन के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं.' ये तो बात हो गई राम जन्मभूमि न्यास की.

अब अगर बात दिगंबर अखाड़े की हो तो उसके प्रमुख महंत भी राममंदिर पर योगी आदित्यनाथ से म्मुलाकत कर विस्तृत चर्चा करने वाले हैं. बताया जा रहा है कि दिगंबर अखाड़े के प्रमुख महंत सुरेश दास आदित्यनाथ से इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मुलाकात करेंगे. बता दें कि अखाड़ा इस बात को लेकर अडिग है कि किसी मौजूदा ट्रस्ट को राम मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी न दी जाए.

बात की शुरुआत राम मंदिर निर्माण में योगी आदित्यनाथ की भूमिका को लेकर हुई है तो बता दें कि एक ऐसे वक़्त में जब उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे को चलाने में योगी असमर्थ नजर आ रहे हैं उन्हें ये प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए. हो सकता है हमारे द्वारा कही ये बात आपको विचलित कर दे मगर सत्य यही है. चाहे वो रोजगार या शिक्षा जैसे मुद्दे रहे हों या फिर प्रदेश में सुरक्षा और स्वास्थ्य का मुद्दा योगी आदित्यनाथ ज्यादातर मामलों में लाचार नजर आ रहे हैं. आइये कुछ पहलुओं पर नजर डालें और समझने का प्रयास करें कि क्यों उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को अपने पद से इस्तीफ़ा देकर अयोध्या में शीघ्र ही बनने जा रहे राम मंदिर की कमान संभाल लेनी चाहिए.

सुरक्षा और अपराध मुक्त समाज के दावे खोखले

बात उस वक़्त की है जब अखिलेश यदाव सूबे के मुखिया थे. उत्तर प्रदेश में अपराध अपने चरम पर था. बात अगर अखिलेश को सत्ता से हटाए जाने की हो तो 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में सुरक्षा एक अहम मुद्दा रहा था. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद इस बात की आशा की जा रही थी कि प्रदेश के हालात बदलेंगे. सत्ता संभालने के बाद योगी ने इस दिशा में काम किया. उत्तर प्रदेश में हो रहे एनकाउंटर आज भी हमारे सामने हैं. मगर सवाल ये है कि क्या प्रदेश को सुरक्षित रखने का एकमात्र उपाय एनकाउंटर हैं? क्या लगातार हो रहे एनकाउंटर से यूपी का जंगलराज ख़त्म हुआ है? साफ़ जवाब है नहीं. नियम कानून को लेकर भले ही योगी खुद की पीठ थपथपाते हों लेकिन आंकड़े किसी के सगे नहीं होते. योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश के भी नहीं.

बात अक्टूबर 2019 की है. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दावा किया था कि प्रदेश में अपराध का ग्राफ कम हुआ है और लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. यूपी सरकार ने ये भी दावा किया था कि अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत अन्य राज्यों से कहीं अच्छी है. ध्यान रहे कि ये बातें यूपी सरकार को उस वक़्त कहनी पड़ी थी जब बढ़ते हुए अपराध के मद्देनजर विपक्ष ने योगी आदित्यनाथ को घेरा था. सरकार का ये घेराव खुद प्रियंका गांधी ने किया था जिन्होंने 2017 में आए NCRB के डाटा का हवाला दिया था.

2017 में जो आंकडें NCRB ने दिए हैं तो साफ़ हो जाता है कि अपराधं के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत चिंताजनक है. NCRB के डाटा पर अगर नजर डालें तो साल 2017 में देशभर में 30,62,579केस दर्ज हुए थे जिनमें  3,10,084 अकेले उत्तर प्रदेश के थे. वहीँ बात अगर 2016 की हो तो 16 में यूपी में 2,82,171 केस और 2015 में 2,41,920  केस दर्ज हुए थे.

इस डाटा के बाद सरकार जितने भी दावे कर ले मगर इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि उत्तर प्रदेश के हालत कोई खास अच्छे नहीं हैं. अब जब स्थिति ऐसी है तो सूबे के मुखिया को सूबे की कमान किसी और को सौंपते हुए अयोध्या चले ही जाना चाहिए.

कुलदीप सिंह सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद

बात जब उत्तर प्रदेश की हो तो रसूख की बात अपने आप ही आ जाती है. यहां रसूख कैसे किसी व्यक्ति के जीवन में किसी उत्प्रेरक की तरह काम करता है जो अगर इस बात को समझना हो तो हम कुलदीप सिंह सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद का रुख कर सकते हैं. सरकार ने इन दोनों ही रसूखदार लोगों के मामले में जिस तरह का रवैया अपनाया किसी से छुपा नहीं है. चाहे वो कुलदीप सिंह सेंगर रहे हों या फिर शाजहंपुर के स्वामी चिन्मयानंद दोनों ही मामलों के अंतर्गत सरकार का यही प्रयास था कि कैसे भी करके इन्हें बचा लिया जाए.

मामलों पर सरकार की लीपा पोती देखकर कहा जा सकता है कि राज्य में जो भी हुआ है उससे भाजपा की छवि धूमिल हुई है और इसकी जिम्मेदारी किसी और की नहीं बल्कि सूबे जके मुखिया योगी आदित्यनाथ की है. उत्तर प्रदेश से जुड़े इन दो मामलों में जैसा रुख राज्य सरकार का रहा है, ये कहना अतिध्योक्ति नहीं है कि जो सरकार दागियों को सजा न दे पाए उसे शासन करने का अधिकार ही नहीं है.

रोजगार का मसला

अपराध और कानून व्यवस्था के बाद अगर किसी अन्य चीज को लेकर यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ की आलोचना हो रही है तो वो सिर्फ और सिर्फ रोजगार है. रोजगार को लेकर लोग सरकार के आगे गुहार लगा रहे हैं मगर सरकार उन्हें नौकरी देने में साफ़ तौर पर विफल है. नौकरी जैसे गंभीर मसले पर सरकार कितनी विफल है यदि इस बात को समझना हो तो हम उन 69,000 बीटीसी अभ्यर्थियों का रुख कर सकते हैं जिनके प्रदर्शन के किस्से हम आए रोज न्यूज़ चैनल्स पर देखते हैं.

ये तो बात हो गई बीटीसी अभ्यर्थियों की इनके अलावा हम अगर दूसरे विभागों का रुख करें तो हालत मिलते जुलते हैं.आज भले ही इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर यूपी सरकार की तरफ से रोजगार देने के बड़े बड़े वादे किये जा रहे हों मगर धरातल पर हकीकत यही है कि नौकरी देने के मामले में सरकार लचर है.

स्वास्थ्य के मसले पर विफल है सरकार

चूंकि इस समय योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं रोजगार जैसा ही हाल सूबे में स्वास्थ्य का है. जब योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री शपथ ली थी कहा गया था कि प्रदेश के हालात सुधरेंगे और लोगों की मूल भूत जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाएगा. बात अगर मूलभूत सेवाओं के रूप में स्वास्थ्य के मसले पर हो तो पूर्व में गोरखपुर , बहराइच, बदायूं में जो हुआ वो हमारे सामने हैं. राजधानी लखनऊ को छोड़ दें तो पूरे सूबे में स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल हैं. या तो कहीं डॉक्टर नहीं है या फिर जहां डॉक्टर है वहां अस्पताल और दवाइयां नहीं हैं. योगी आदित्यनाथ लाख दावे कर लें या करते रहें मगर  जब-जब बात स्वास्थ्य की आएगी सूबे की सरकार के लिए इसमें पासिंग मार्क्स लाना भी  एक टेढ़ी खीर होने वाला है.

ये बातें चंद उदहारण हैं. तमाम चीजें हैं जिनको देखकर कहा जा सकता है कि यूपी योगी के बस का नहीं है. अब वो वक़्त आ गया है जब चुपचाप इस्तीफे की पेशकश कर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को अयोध्या चले जाना चाहिए और वहां राममंदिर निर्माण और उसको लेकर लिए जा रहे फैसलों में अपना योगदान देना चाहिए.   

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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