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Updated: 09 नवम्बर, 2019 06:52 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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अयोध्या मामले (Ayodhya Title Dispute) में देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने अपना फैसला (Ayodhya Faisla) सुना दिया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का मालिकाना हक़, हिंदू पक्ष यानी राम जन्मभूमि न्यास को सौंपा है. जबकि अदालत ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा है. सुन्नी वक्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या (अयोध्या) में ही अलग स्थान पर जमीन देने का आदेश दिया है. इन दोनों के बाद बात अगर तीसरे पक्ष, निर्मोही अखाड़ा (Nirmohi Akhara not a Shebait) की हो तो पूरे मामले में उसे मुंह की खानी पड़ी है. फैसला सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया है. इसी तरह शीर्ष अदालत ने 1946 के आदेश को चुनौती देने वाले शिया वक्फ बोर्ड की स्पेशल लीव पिटीशन (एलएलपी) को भी खारिज कर दिया है. निर्मोही अखाड़ा इस मामले में एक मजबूत पक्षकार था तो पहले बात उसपर. अयोध्या मामले (Babri Masjid Ram Mandir Dispute) में निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट में जो दस्तावेज सौंपे थे उसके अनुसार हम रामलला के सेवायत हैं. ये हमारे अधिकार में सदियों से रहा है. कोर्ट में पेश की गई अपनी लिखित दलील में निर्मोही अखाड़े ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि  विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है इसलिए हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए.

अयोध्या, अयोध्या फैसला, राम मंदिर, बाबरी मस्जिद, सुप्रीम कोर्ट, Ayodhya Judgementअयोध्या मामले में फैसले से सबसे ज्यादा कोई आहात है तो वो और कोई नहीं बल्कि निर्मोही अखाड़ा है

दिलचस्प बात ये है कि जो दलील निर्मोही अखाड़े ने अदालत के सामने पेश की थी उस दलील के अनुसार कोर्ट चाहे तो यूपी सरकार को निर्देश देकर अयोध्या के अधिग्रहित भूमि के बाहरी इलाके में वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए समुचित जगह दिला दे. निर्मोही अखाड़े ने ये दलील क्यों पेश की इसकी एक बड़ी वजह मुस्लिम पक्ष की उस दलील को माना जा सकता है जिसमें मुस्लिम पक्षकारों ने निर्मोही अखाड़ा वहां का सेवादार रहा है.

सवाल होगा कि आखिर क्यों देश की शीर्ष अदालत ने निर्मोही अखाड़े के दावों पर ध्यान नहीं दिया और उसके दावों को खारिज कर दिया? जवाब है सुनवाई के दौरान अदालत में पेश किये गए उसके तर्क.माना जा रहा है कि सुनवाई के दौरान जो तर्क निर्मोही अखाड़ा ने पेश किये थे जहां एक तरफ वो बहुत कमजोर थे तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने कई ऐसी बातें भी कहीं जो अदालत में मामले की सुनवाई कर रहे जजों के गले के नीचे नहीं उतरीं.

सुनवाई के दौरान अखाड़ा इसी बात पर अड़ा रहा कि 'बस ये सारी जमीन हमारी है. कोई रामलला नहीं कोई सुन्नी वक्फ बोर्ड नहीं. हम ही इसके मालिक हैं. हमीं सदियों से रामलला के पुजारी रहे हैं. हमारा ही कब्जा रहा है. हम ही इसके कर्ता-धर्ता हैं.' बात अगर अखाड़े के वकील सुशील जैन की हो तो जब सुनवाई के दौरान अदालत ने वकील से कब्जे के कागजात मांगें तो वो अदालत को गोल गोल बातों में उलझाते या फिर अपनी बगलें झांकते नजर आए.

अयोध्या, अयोध्या फैसला, राम मंदिर, बाबरी मस्जिद, सुप्रीम कोर्ट, Ayodhya Judgementअगर निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड मजबूत तर्क पेश करता तो मामले में उसकी सम्भावना बन सकती थी

सुनवाई के दौरान अखाड़े का पक्ष रखते हुए सुशील जैन ने अदालत को बताया था कि उनके पास केवल जमीन का कब्जा था. अदालत जैन के इन बेबुनियाद तर्कों से संतुष्ट नहीं था. पूछा कि, दस्तावेज तो होंगे आपके  पास ? कोई फरमान, कोई पट्टा या कोई दानपत्र या फिर कोई रसीद. इस पर अखाड़े ने दलील दी थी कि- 'जी था तो सब कुछ हमारे पास लेकिन 1982 में हमारे यहां एक डकैती हुई थी उसमें डकैत सारे दस्तावेज ले गये.'

कोर्ट ने फिर सवाल किया कि आपके पास से ले गये लेकिन भूमि राजस्व विभाग के पास तो होंगे दस्तावेज. खाता खतौनी में कुछ तो होगा. इन सवालों पर अखाड़े ने कहा कि 'हम इस मामले में लाचार हैं. हमारे पास तो कुछ नहीं है.' कोर्ट ने  फिर सवाल किया कि आप क्या कहना चाह रहे हैं? क्या डकैत खतौनी भी ले गये? इस पर अखाड़े ने सिर्फ ये कहकर चुप्पी साध ली थी कि 'हम हैंडीकैप हैं.

बात अगर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इतर 2010 में आए फैसले की हो तो तब 2.77 एकड़ की विवादित जमीन के एक तिहाई भू-भाग का मालिकाना हक सौंपा था.हाईकोर्ट ने यहां पर मौजूद राम चबूतरा और सीता रसोई का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े को सौंपी थी.

बहरहाल बात निर्मोही अखाड़े की चल रही है तो जैसा रवैया अदालत में सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े का रहा था उसी समय ये साफ़ हो गया था कि मालिकाना हक के लिए अखाड़े के पास न तो कोई ठोस तक है और न ही कोई ठोस दलील. अब जबकि फैसला आ गया है तो मामले से निर्मोही अखाड़े को ठीक वैसे ही अलग किया गया है जैसे कोई दूध में से मक्खी अलग करता है.

ठीक ऐसा ही हाल शिया वक्फ बोर्ड के साथ भी हुआ है जहां पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शिया वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज कर दिया है. फैसले से पहले शिया वक्फ बोर्ड के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा था कि, हमारा कहना था कि मीर बाकी शिया था और किसी भी शिया की बनाई गई मस्जिद को किसी सुन्नी को नहीं दिया जा सकता है. इसलिए इस पर हमारा अधिकार बनता है और इसे हमें दे दिया जाए. शिया वक्फ बोर्ड चाहता था कि वहां इमाम-ए-हिंद यानी भगवान राम का भव्य मंदिर बने, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की जा सके.

शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिजवी ने कहा था कि साक्ष्यों के अधार पर बाबरी मस्जिद शिया वक्फ के अधीन है. यह बात अलग है कि पिछले 71 बरस में शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से इस पर दावा नहीं किया गया. उन्होंने कहा था कि वक्फ मस्जिद मीर बाकी (बाबरी मस्जिद) शिया वक्फ के तहत आती है.

रिजवी ने अनुसार शिया बोर्ड के पास 1946 तक विवादित जमीन का कब्जा था और शिया ही मस्जिद मुत्वल्ली हुआ करते थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था. बोर्ड ने कहा कि बाबरी मस्जिद बनवाने वाला मीर बकी भी शिया था. इसीलिए इस पर हमारा पहला हक बनता है.

फैसले में भले ही मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन अलग स्थान पर मिल गई हो मगर जो इस पूरे मामले में निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का हाल हुआ है उसके जिम्मेदार वो खुद हैं. चूंकि कोर्ट पहले ही इस बात को कह चुका है कि इतना जरूरी फैसला आस्था और विश्वास को आधार बनाकर नहीं दिया जा सकता इसलिए जब अखाड़ा सुनवाई में अपना पक्ष रख रहा तो उसे तमाम पक्षों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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