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Updated: 13 नवम्बर, 2019 02:41 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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राम मंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Mandir Babri Masjid Dispute) पर देश की सर्वोच्च अदालत अपना फैसला (Ayodhya Faisla) सुना चुकी है. बात फैसले वाले दिन की हो तो सारा प्रोपोगेंडा, सारा हो हल्ला एक तरफ फैसले के 15-20 मिनट एक तरफ. 15-20 मिनटों में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिससे बरसों का बवाल, कोर्ट ने चुटकी बजाते ही छू मंतर कर दिया. एक ऐसा फैसला हमारे सामने हैं जो कई मायनों में ऐतिहासिक है. अयोध्या मामले (Ayodhya Issue) में वैसे तो कई, लेकिन मुख्य रूप से तीन पक्ष थे. पहला रामलला विराजमान दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा मुस्लिम पक्ष. अदालत ने फैसला सुनाया और निर्मोही अखाड़ा को पूरी तरह से खारिज करते हुए फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में दिया. साथ ही बाबरी (Babri) के बदले मुसलमानों को अयोध्या की प्राइम लोकेशन पर 5 एकड़ जमीन मिली.

ज़फ़रयाब जिलानी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, अयोध्या, मस्जिद, खुदाई     खुदाई की बात कहकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बिल्कुल जायज काम किया है

जिस भूमि पर विवाद था वो 2.75 एकड़ थी मगर मुसलमानों को 5 एकड़ मिली. पूरे पांच एकड़. कोर्ट अपनी बातें कह चुका है. इंसाफ हो चुका है. फैसला आ गया है और एक बार फिर से मामले पर अड़ंगा डालने की कोशिशें तेज हो गई हैं. मुस्लिम पक्ष फैसले से खुश नहीं है. मुस्लिम पक्ष की नाराजगी अभी उस बच्चे जैसी है जिसे खानी तो बटरस्कॉच वाली कॉर्नेटो थी मगर कोर्ट ने जिसे कुल्फी में टरका दिया. मुस्लिम पक्ष खुश नहीं हैं. बात अड़ंगा डालने की भी है तो मैटर बना दिया गया है. आने वाले दिनों में मुस्लिम वक्फ बोर्ड मिली हुई भूमि और आए हुए फैसले के मद्देनजर एक मीटिंग करने वाला है और शायद हो ये कि बाबरी मस्जिद के बदले मिली 5 एकड़ जमीन की भी खुदाई हो.

हां ये बात किसी भी तरह के मजाक या फिर व्यंग्य के दागे में पिरोकर नहीं कही गई है. बिलकुल सच बात है. अब जब मीटिंग रखी गई है तो उसका मुद्दा भी होगा. इस मामले में भी है. यहां मुस्लिम पक्ष के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है जमीन. मुस्लिम वक्फ बोर्ड के एक दो नहीं बल्कि तमाम ऐसे मेंबर हैं जिनके दिल में जमीन को लेकर शक बना हुआ है. यूं तो दान में मिली बछिया के दांत नहीं गिने जाते मगर ये लोग गिन रहे हैं. बोर्ड के मेंबर्स का मानना है कि सबसे पहले तो बोर्ड, जमीन की खुदाई करवाए और उसकी अच्छे से जांच करे. फिर मीटिंग के बारे में सोचे.

अच्छा हो सकता है इस फरमाइश के बाद मुस्लिम पक्ष की आलोचना हो मगर जब हम गहराई में जाएं और मुस्लिम वक्फ बोर्ड के इस फैसले का अवलोकन करें तो मिलता है कि मुसलमानों की टेंशन लाजमी है. साथ ही उन्होंने जमीन लेने से पहले जो फैसला किया है वो वक़्त की जरूरत है. बात बहुत साफ़ है जो दूध का जला होता है वो छाछ फूंक फूंककर पीता है. अभी मुस्लिम वक्फ बोर्ड का भी मामला कुछ ऐसा ही है. क्या फायदा कि अभी ये लोग जमीन ले लें और फिर आगे  50 - 60 बाद आज दी गई उस जमीन पर दावा पेश कर दे और फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो जाए तो क्या होगा?

अगर आज मुस्लिम वक्फ बोर्ड के मेंबर इस टाइप की कोई फ़िक्र रख रहे हैं तो इनके द्वारा कही बातों में आधार है. 'कभी भी कुछ भी हो सकता है' वाले इस दौर में कल इस 5 एकड़ के चक्कर में कोई दुर्घटना घट जाए. कोई अनहोनी हो जाए तो जिम्मेदार कौन होगा? अच्छा मान लिया जाए कि कोई जिम्मेदारी ले भी ले तो फिर उस समय थाना-पुलिस, कोर्ट कचहरी कौन करे? आदमी के पास आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे हैं कल शायद और ज्यादा हों आदमी अपनी इन झंझटों को देख या फिर 2019 में मिली इस 5 एकड़ जमीन के लिए अपनी अच्छी भली जिंदगी में पुदीना करे.

ध्यान रहे कि वक्फ बोर्ड के सदस्य मांग कर रहे हैं कि फैसले के बाद अब जो ये 5 एकड़ जमीन मिली है उसे करीब 100-200  फीट तक खोदा जाए और देखा जाए वहां कोई नगर तो नहीं बसा था? कोई मंदिर तो वहां नहीं है. जब तसल्ली हो जाए कि सब सही है तभी जाकर बोर्ड को इस जमीन को लेना चाहिए. यानी जैसी फ़िक्र बोर्ड मेंबर्स के बीच है ये खुद में साफ़ है कि अदालत कड़े फैसले ये उनका शुगर, बीपी और कोलेस्ट्रॉल बढ़ा दिया है.

बहरहाल, बोर्ड और बोर्ड्स के मिम्बरान जमीन लेते हैं या नहीं इसका फैसला आने वाले वक़्त में हो जाएगा मगर जो अभी का हाल और आज का माहौल है इनकी चिंता जायज है. होने को कुछ भी हो सकता है आज भी आज से 50 या 60 साल भी . दुर्घटना से अच्छी देर है मुसलमानों को जमीन खोद कर मुआएना कर लेना चाहिए और फिर मॉल से लेकर मस्जिद तक स्कूल से लेकर हॉस्पिटल तक जो बनाना हो बनाक्र खुद की कुंठा को मुक्ति दे देनी चाहिए.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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