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Updated: 31 जुलाई, 2020 09:38 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने विधानसभा सत्र बुलाये जाने की जंग तो अपने हिसाब से तो जीत ही ली है. तय तारीख 31 जुलाई, 2020 न सही, लेकिन हफ्ते भर की जद्दोजहद के बाद 14 अगस्त से विधानसभा का सत्र बुलाने की मंजूरी तो राज्यपाल कलराज मिश्र ने दे ही दी है. कलराज मिश्र भले ही साफ कर चुके थे कि सत्र न बुलाये जाने जैसी उनकी कोई मंशा नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कांग्रेस के कई नेता राज्यपाल पर केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाते रहे. कांग्रेस सरकार के तीन कानून मंत्रियों ने तो राज्यपाल को पत्र भी लिखा था और कहा था कि राज्य सरकार के प्रस्ताव को नजरअंदाज कर विधानसभा सत्र न बुलाये जाने से संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है.

तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, राजभवन की तरफ से मामला लटकाये जाने का फायदा जो भी उठा सके उसे मौका तो मिल ही गया है. देखना होगा फायदा उठाने में बीजेपी आगे रहती है या सचिन पायलट और उनके समर्थक? घोषित तौर पर 21 दिन का नोटिस पीरियड तो नहीं है, लेकिन तैयारी के लिए पूरे तीन हफ्ते तो मिल ही गये.

अभी तक अशोक गहलोत का पूरा फोकस राजभवन पर था. राजभवन में कांग्रेस विधायकों के साथ धरने के बाद देश भर के राजभवनों का घेराव और अदालती लड़ाई पर यू-टर्न चलता रहा. अब अशोक गहलोत को बीजेपी के साथ साथ उसकी मदद में आयी बीएसपी से भी मुकाबला करना है - सरकार को लेकर गहलोत कैंप में जो डर बना हुआ है, स्पीकर सीपी जोशी (Speaker CP Joshi) ने वैभव गहलोत को तो बता ही दिया है.

वैभव गहलोत के साथ साथ अशोक गहलोत के भाई को भी केंद्रीय एजेंसियों का समन मिल चुका है. अशोक गहलोत ने सीबीआई जांच को लेकर तो सर्कुलर जारी कर दिया था, लेकिन कई मामलों में NIA पर राज्य सरकार का कोई जोर नहीं चलता. राजस्थान पुलिस के SOG बाकी विधायक भंवरला शर्मा के खिलाफ केस दर्ज कर जांच कर रही है. राजद्रोह के आरोप को शर्मा ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है. न्यूज एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक अगर हाई कोर्ट जांच का अलग आदेश जारी न करे तो भी केंद्र सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जांच एनआईए को सौंप सकती है - अगर ऐसा हुआ तो अशोक गहलोत सरकार के लिए नयी मुसीबत होगी.

बहरहाल, देखना है कि आगे की लड़ाई अशोक गहलोत सरकार बचाने के लिए लड़ते हैं या सचिन पायलट (Sachin Pilot) से पूरी तरह पीछा छुड़ाने के लिए?

गहलोत सरकार बचाने में जुटे स्पीकर जोशी

स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट से बागी विधायकों को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट की रोक के खिलाफ अपनी याचिका तो वापस ले ली थी, लेकिन उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील कपिल सिब्बल से कई सवाल पूछ गये थे.

तमाम सवालों में एक काफी महत्वपूर्ण रहा - "आप तो न्यूट्रल पार्टी है, आपको सुप्रीम कोर्ट आने की क्या आवश्यकता थी?"

ये सही है कि स्पीकर का पद न्यूट्रल होता है, लेकिन ये सब वोटिंग के मामलों तक ही सीमित होता है. जब तक विशेष परिस्थिति पैदा न हो जाये, स्पीकर को वोटिंग करने की जरूरत नहीं पड़ती. तकनीकी परिस्थियों का व्यावहारिकता से वास्ता कम ही रहता है, ऐसे में स्पीकर जिस भी पार्टी विशेष से आता है निष्ठा भी उसके प्रति स्वाभाविक तौर पर बनी ही रहती है. या कहें कायम रखनी होती है क्योंकि पार्टी ही स्पीकर बनाती है और आगे का राजनीतिक भविष्य भी पार्टी ही तय करती है, ऐसे न्यूट्रल होने की बात महज कागजी रह जाती है, व्यावहारिक तो बिलकुल नहीं. स्पीकर सीपी जोशी अपनी तरफ से अशोक गहलोत की सरकार बचाने में किस कदर जुटे हुए हैं ये बात भी वो खुद ही बता रहे हैं - एक वायरल वीडियो में.

ये वीडियो तब का बताया जा रहा है जब अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत स्पीकर सीपी जोशी को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे थे. स्पीकर जोशी जब वैभव गहलोत से बात कर रहे थे तो उनको ये नहीं मालूम था कि कैमरा भी ऑन है और बेफिक्र होकर बातचीत करते रहे. बाद में गलती से स्पीकर के स्टाफ ने वही वीडियो मीडिया को भेज दिया. अभी तक तो एक ऑडियो क्लिप के चलते राजस्थान की राजनीति में बवाल मचा हुआ था, अब ये वीडियो क्लिप उस आग में घी का ही काम करने वाली है. वीडियो के मार्केट में आते ही बीजेपी आक्रामक हो गयी है. राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया का सीधा आरोप है कि गहलोत सरकार को बचाने की सबसे ज्यादा चिंता स्पीकर सीपी जोशी और वैभव गहलोत को है - वीडियो सामने आने के बाद स्पीकर की भूमिका के साथ-साथ पूरे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है.

अब एक नजर डालते हैं वीडियो में हुई बातचीत के एक अंश पर -

स्पीकर सीपी जोशी: मामला टफ है बहुत अभी.

वैभव गहलोत: राज्यसभा चुनाव के बाद 10 दिन निकाला फिर वापस रखा.

स्पीकर सीपी जोशी: 30 आदमी निकल जाते हैं तो आप कुछ नहीं कर सकते. हल्ला करके रह जाते, वो सरकार गिरा देते. अपने हिसाब से उन्होने कांटैक्ट किया इसलिए हो गया. दूसरे के बस की बात नहीं थी.

स्पीकर जोशी फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. बागी विधायकों विधायकों की याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट के 24 जुलाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है. विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने अपनी याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट का आदेश पहली नजर में असंवैधानिक है - ये सीधा सीधा उनके विशेषाधिकार का हनन है जो संविधान की दसवीं अनुसूची से बतौर स्पीकर उनको मिला हुआ है.

गहलोत सरकार बचाएंगे या पायलट के पीछे पड़ेंगे

अब जबकि राज्यपाल कलराज मिश्र ने अशोक गहलोत सरकार की विधानसभा बुलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, देखना है कि अशोक गहलोत का ज्यादा जोर किस बात पर रहता है - कांग्रेस की सरकार बचाने पर या फिर सचिन पायलट को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने के मामले में?

पहले चर्चा रही कि अशोक गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाकर विश्वास मत हासिल करना चाहेंगे, लेकिन बाद में नया तरीका निकाला जा चुका है. ऐसे में कम ही संभावना लगती है कि अशोक गहलोत बहुमत साबित करने की कोशिश करेंगे. माना जा रहा है कि अशोक गहलोत विधानसभा में कुछ बिल पेश कर सकते हैं - और जाहिर है उसके लिए कांग्रेस विधायकों के लिए व्हिप जारी किया जा सकता है. फिर तैयारी ये रहेगी कि विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए मजबूर किया जाये. अगर विधायक विधानसभा पहुंचते हैं तो स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप से सामना होना भी तय है.

स्पीकर और वैभव गहलोत की बातचीत से राजस्थान में कांग्रेस सरकार बचाने की फिक्र जरूर सामने आती है, लेकिन असल बात तो ये है कि अशोक गहलोत का मिशन तो सचिन पायलट को कांग्रेस से बाहर का दरवाजा दिखाना है. डिप्टी सीएम और पीसीसी अध्यक्ष की कुर्सी से हटाने के बाद अब बस वही मकसद बचा हुआ है.

पहले तो सचिन पायलट अपना पक्ष रखने तक ट्विटर पर या मीडिया के साथ बातचीत में नजर आ रहे थे, लेकिन अब ट्विटर पर उनकी राजनीतिक सक्रियता भी दिखने लगी है. स्पीकर सीपी जोशी को जन्मदिन की बधाई देने के साथ साथ सचिन पायलट ने नये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा को बधाई भी दी है. गोविंद डोटासरा को बधाई के साथ सचिन पायलट ने जो कटाक्ष किया था उसे वो तत्काल लौटा भी चुके हैं.

विधानसभा सत्र को लेकर राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने होटल पहुंच कर अपने गुट के विधायकों के साथ बैठक की है और आगे की रणनीति पर चर्चा भी हुई है. अभी ये नहीं बताया गया है कि 14 अगस्त तक अपने समर्थक विधायकों को अशोक गहलोत होटल में ही रखेंगे या बाहर जाने देंगे. यही सवाल मानेसर के होटल में ठहरे सचिन पायलट गुट के विधायकों को लेकर भी है. जब होटल में रहते हुए भी दोनों गुट एक दूसरे के विधायकों को तोड़ने के दावे करते हों तो लगता नहीं कि विधानसभा सत्र से पहले विधायक होटल से बाहर निकल पाएंगे. याद कीजिये जैसे ही कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने होटल में विधायकों के सामने दावा किया कि सचिन पायलट गुट के तीन विधायकों से संपर्क हुआ है और वो लौटने वाले हैं - तुरंत ही सचिन पायलट गुट के एक विधायक का वीडियो मैसेज आ गया. वीडियो मैसेज में विधायक ने दावा किया कि अशोक गहलोत गुट के 10-15 विधायक उन लोगों के संपर्क में हैं और जैसे ही अशोक गहलोत की पकड़ ढीली होती है वे पाला बदल लेंगे. ऐसे हाल में लगता तो नहीं कि फिलहाल किसी भी गुट के विधायक होटल से बाहर निकलने वाले हैं.

ashok gehlot congress mlaहोटल में कब तक होती रहेगी कांग्रेस विधायक दल की बैठक?

इस बीच, अशोक गहलोत की तरफ से एक नया प्रस्ताव भी आ गया है. ये प्रस्ताव बागी विधायकों के लिए है, हालांकि, किसी का नाम नहीं लिया गया है. जिस तरीके से अशोक गहलोत ने प्रस्ताव रखा है नाम न लिये जाने के बावजूद सचिन पायलट भी उसके दायरे में यूं ही आ जाते हैं.

एक कार्यक्रम में अशोक गहलोत ने कहा, "आप देख सकते हैं बगावत करने वालों का क्या हश्र हुआ है - यदि वे लौटना चाहते हैं तो वे पार्टी हाईकमान के सामने खेद जता सकते हैं. कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला लेगा हमें मंजूर होगा."

अशोक गहलोत की तरफ से पहली बार ऐसा कोई बयान आया है. ये पहली बार है जब कांग्रेस के बागी विधायकों को लेकर अशोक गहलोत ने नरम रूख अपनाते हुए कोई बात कही हो. अब तक ऐसी बातें या तो राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे कहा करते थे या फिर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला. अशोक गहलोत के अलावा बाकी नेताओं की तरफ से सचिन पायलट के लिए सलाहियत भी देखी जाती रही है.

क्या समझा जाये कि अशोक गहलोत ने बागी विधायकों के बहाने सचिन पायलट को भी लौटने के लिए कहने लगे हैं?

नाम तो अशोक गहलोत ने किसी का भी नहीं लिया है, लेकिन सचिन पायलट भी तो उसी कैटेगरी में ही आते हैं. सचिन पायलट सहित 19 विधायकों को नोटिस भेजे जाने के बाद अशोक गहलोत ने मीडिया में आकर सरेआम आरोप लगाया था कि सरकार गिराने की डील में सचिन पायलट भी शामिल रहे हैं और ये बात कांग्रेस नेतृत्व को अच्छी नहीं लगी थी. फिर खबर आयी की राहुल गांधी की तरफ से अशोक गहलोत को सार्वजनिक बयान देने से बचने को कहा गया है, लेकिन वो मानने वाले कहां थे. जैसे ही मौका मिला सचिन पायलट को निकम्मा, नकारा और कांग्रेस की पीठ में छुरा भोंकने वाला करार दिया था. अब माफी मांग लौटने की सलाह देने वाली बात पहली बार सुनने को मिल रही है.

ये तो जगजाहिर है कि सचिन पायलट से अशोक गहलोत हमेशा के लिए निजात पाना चाहते हैं, लेकिन ये तब तक संभव नहीं है जब तक सचिन पायलट कमजोर नहीं पड़ते और कांग्रेस नेतृत्व इसके लिए अशोक गहलोत को पूरी छूट नहीं देता. ऐसा लगता है अशोक गहलोत ने मौके की नजाकत को भांपते हुए सचिन पायलट कैंप के सामने समझौते की पेशकश रखी हो.

अशोक गहलोत का ये बयान तो यही इशारा करता है कि भले ही वो विधानसभा बुलाने को लेकर राजभवन की मंजूरी हासिल करने में कामयाब रहे हों, लेकिन सचिन पायलट के खिलाफ उनके मिशन में रुकावट पैदा हो गयी है!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

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