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Updated: 25 जुलाई, 2020 08:47 PM
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की ओर से राजस्थान विधानसभा का सत्र बुलाने की अपील की गई है, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र ने कोरोना संकट का हवाला देते हुए फिलहाल इनकार कर दिया है. कहा ये भी जा रहा है कि सचिन पायलट गुट के विधायकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण राज्यपाल इस बीच कानूनी राय भी ले रहे हैं.

राज्यपाल के सत्र न बुलाये जाने को लेकर कांग्रेस विधायक राजभवन परिसर में ही धरने पर बैठ गये थे. पहले तो मुख्यमंत्री गहलोत का कहना रहा कि राजभवन के अंदर विधायकों का धरना तब तक जारी रहेगा जब तक राज्यपाल विधानसभा का सत्र नहीं बुला लेते, लेकिन बाद में धरना खत्म हो गया. विधायकों को राजभवन से वापस होटल भेज दिया गया.

एक तरफ तो अशोक गहलोत का दावा है कि उनको 100 से ज्यादा विधायकों का सपोर्ट हासिल है, दूसरी तरफ बहुमत साबित करने की हड़बड़ी भी है - ऐसा क्यों?

ऐसा क्यों लग रहा है कि अशोक गहलोत सरकार बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, न ही सचिन पायलट (Sachin Pilot) या बीजेपी के खिलाफ हैं, बल्कि वो तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) के प्रति निष्ठा दिखाने और भरोसा बनाये रखने के लिए शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं.

ये ड्रामा क्यों?

कोरोना वायरस का भी राजनीति में अलग अलग तरीके से इस्तेमाल हो रहा है. पहले मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस के नाम पर विधानसभा का सत्र टाला जाता रहा - और अब राजस्थान में भी वही हो रहा है. दोनों मामलों में फर्क सिर्फ इतना है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री टालमटोल कर रहे थे और राजस्थान में वही काम गवर्नर कर रहे हैं. एक फर्क ये भी है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने की पहल खुद कर रहे हैं, मध्य प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ आखिर तक भागते रहे.

सवाल ये है कि अशोक गहलोत अगर संवैधानिक तरीके से राज्यपाल को सत्र बुलाने के मजबूर कर सकते हैं तो ये पैंतरा क्यों?

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का सवाल है - क्या गवर्नर Article 174 के तहत विधानसभा सत्र बुलाने से इंकार कर सकते है?

कांग्रेस प्रवक्ता के सवाल पर तो यही सवाल बनता है कि जब कांग्रेस को पता है कि कैबिनेट के दोबारा प्रस्ताव पारित कर देने के बाद राज्यपाल इनकार नहीं कर सकते तो ये शोर-शराबा करने तकी जरूरत क्यों आ पड़ी है?

अशोक गहलोत ने अपने गुट के कांग्रेस विधायकों को एकबारगी तो होटल से राजभवन शिफ्ट कर दिया था, लेकिन बाद में वापस भेज दिया - होटल में तो तमाम सुविधायें होती हैं, लेकिन राजभवन के ग्राउंड में बिस्किट-चाय ही चल रही थी. होटल में जहां वे फिल्में देख रहे थे, मैदान में उनके आने के बाद वे टीवी पर नजर आने लगे थे - और खुली हवा में सांस ले पा रहे थे.

ashok gehlot and congress mlaअशोक गहलोत ने विधायकों को राजभवन में धरने से उठाकर होटल क्यों भेज दिया?

अशोक गहलोत गुट के विधायकों के साथ राजस्थान कांग्रेस के नये अध्यक्ष गोविंद डोटासरा भी मैदान में डटे हुए थे. धरना तो खत्म हो गया लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र से विधानसभा का सत्र बुलाये जाने को लेकर 25 जुलाई को राज्य भर के जिला मुख्यालयों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की तैयारी हो रही है. खबर ये भी है कि राजभवन के खिलाफ मुख्यमंत्री कांग्रेस विधायकों के साथ राष्ट्रपति भवन का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं.

गहलोत को बहुमत साबित करने की हड़बड़ी क्यों है?

अपनी तरफ से चौतरफा दबाव बनाने के चक्कर में अशोक गहलोत एक ऐसा बयान दे चुके हैं जिस पर बीजेपी आक्रामक हो गयी है - '... जनता राजभवन घेर लेगी.'

बीजेपी राजभवन की सुरक्षा के लिए अर्ध सैनिक बल तैनात किये जाने की मांग कर रही है. बीजेपी का कहना है कि अशोक गहलोत की पुलिस पर उसे भरोसा नहीं रह गया है.

ये अशोक गहलोत की हड़बड़ी ही है जो सवाल खड़े कर रही है कि आखिर अशोक गहलोत खुद फ्लोर टेस्ट के लिए जी जान क्यों लड़ा रहे हैं?

अशोक गहलोत की सरकार के अल्पमत में होने की बात भी बीजेपी ने नहीं, सचिन पायलट और उनके साथी विधायक कर रहे हैं. बीजेपी ने सचिन पायलट को संभावित मुख्यमंत्री बताया जरूर है लेकिन अशोक गहलोत से सदन में विश्वास मत हासिल करने की मांग नहीं की है - लेकिन अशोक गहलोत हैं कि मानते नहीं. बहुमत साबित करने पर न सिर्फ आमादा है, बल्कि काफी हड़बड़ी में भी लगते हैं.

क्या अशोक गहलोत को लगने लगा है कि सचिन पायलट को संभावित मुख्यमंत्री बना कर बीजेपी ने जो चाल चली है, वो विधायकों को प्रभावित कर सकता है? और ऐसे में कांग्रेस विधायकों को होटल में ज्यादा देर तक रखना मुश्किल हो सकता है?

एक बात तो सबको पता है कि कोई भी विधायक चुनाव में नहीं जाना चाहता, लेकिन ये भी मालूम है सबको मतलब तो सत्ता से ही है. ऐसे भी विधायक हैं जो सचिन पायलट के समर्थक माने जाते हैं लेकिन सत्ता के लालच में अशोक गहलोत के साथ बने हुए हैं. जैसे ही उनको यकीन हो जाये कि सचिन पायलट तख्तापलट में कामयाब हो सकते हैं, वे तत्काल प्रभाव से निष्ठा बदल भी सकते हैं.

लगता तो यही है कि अशोक गहलोत के लिए कांग्रेस विधायकों को होटल में रोक पाना मुश्किल पड़ रहा है, इसीलिए नये नये तरीके की एक्टविटी क्रिएट कर उनको फंसाये रखने की कोशिश कर रहे हैं. अशोक गहलोत को कोर्ट में अपना पक्ष कमजोर लगने लगा है, ऐसे में विधानसभा का पटल ही वो फोरम है जो उनकी सरकार के लिए संजीवनी साबित हो सकता है. अशोक गहलोत को लगता है कि अगर जल्द से जल्द बहुमत साबित कर दिया तो गाड़ी थोड़ा आगे खिसक जाएगी.

शक्ति प्रदर्शन के बहाने ये भी लगता है कि अशोक गहलोत कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति निष्ठा को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, सचिन पायलट के मामले में जिस तरीके से अशोक गहलोत ने सार्वजनिक बयानबाजी की है, वो राहुल गांधी को अच्छा नहीं लगा है.

अब अशोक गहलोत की कोशिश जैसे भी हो सचिन पायलट को कांग्रेस पार्टी से भी बाहर कराने की लगती है. ऐसा तभी हो सकता है जब विधानसभा का सत्र बुलाया जाये और कांग्रेस विधायकों के लिए व्हिप जारी हो. अगर सचिन पायलट गुट के विधायक विधानसभा पहुंचते हैं तो स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप भी पूछताछ के लिए तैयार बैठा मिलेगा. व्हिप जारी होने के बाद सचिन पायलट गुट के कुछ विधायकों की मुश्किल बढ़ सकती है. अगर व्हिप का उल्लंघन हुआ तो कांग्रेस विधानसभा की सदस्यता के साथ साथ पार्टी से निकाले जाने तक का फैसला ले सकती है. हालांकि, कांग्रेस के लिए ये सब इतना आसान भी नहीं होगा.

सचिन पायलट गुट के विधायकों की अर्जी पर राजस्थान हाई कोर्ट के यथास्थिति बनाये रखने के फैसले की सुप्रीम कोर्ट में 27 जुलाई को समीक्षा होनी है - और उससे पहले अगर स्पीकर विधायकों के खिलाफ कोई नया कदम उठाते हैं तो संवैधानिक संस्थाओं के टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है. हाई कोर्ट ने स्पीकर को कोई एक्शन न लेने की हिदायत दे रखी है और उस पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेना है.

अब तक कोर्ट का जो रूख दिखा है वो अशोक गहलोत के खिलाफ ही जा रहा है, लिहाजा वो सदल-बल मैदान में उतर चुके हैं. अब तो अशोक गहलोत के लिए सरकार से भी महत्वपूर्ण गांधी परिवार के प्रति निष्ठा महत्वपूर्ण लगती है. सचिन पायलट के मामले में अशोक गहलोत के रूख से दिल्ली दरबार में उनकी निष्ठा थोड़ी डगमगायी तो है ही. अब अगर सरकार भी चली जाये तो मुश्किल ज्यादा हो सकती है. बेटे को जबरदस्ती लोक सभा का टिकट दिलाने को लेकर राहुल गांधी की नाराजगी तो रही ही है, अगर यादें ताजा हो गयीं तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं.

अब तो ऐसा लगता है जैसे अशोक गहलोत सरकार बचाने के नाम पर कांग्रेस नेतृत्व की नजर बीजेपी के खिलाफ लड़ाई को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अशोक गहलोत ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी के खिलाफ कदम कदम पर कांग्रेस के लिए सिर्फ वो ही लड़ रहे हैं - फिर तो यही लगता है कि अशोक गहलोत का ये शक्ति प्रदर्शन अपनी सरकार बचाने से ज्यादा सोनिया गांधी और राहुल गांधी को खुश करने के लिए है!

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