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Updated: 06 अक्टूबर, 2022 07:59 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की शिरकत ही भारत जोड़ो यात्रा की अहमियत समझा रही है. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर सवाल उठते रहे हैं, खासतौर पर यात्रा के रूट को लेकर. बिहार में खुद भी उतनी ही लंबी पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने भी वैसा ही सवाल उठाया है.

भारत जोड़ो यात्रा न तो गुजरात से गुजरने वाली है, न ही हिमाचल प्रदेश से - लेकिन कर्नाटक के लिए खास प्लान किया गया लगता है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल के आखिर में चुनाव होने वाले हैं, लेकिन कर्नाटक (Karnataka Election) में तो अगले साल यानी 2023 में होंगे.

भारत जोड़ो यात्रा के 29वें दिन सोनिया गांधी कर्नाटक के मंड्या में शामिल हुईं - और मां के कंधे पर हाथ रख कर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने स्वागत किया. निश्चित तौर पर वो अपनी नेतृत्व क्षमता को लेकर सोनिया गांधी को भरोसा दिलाने की भी कोशिश किये होंगे. उसके बाद यात्रा में शामिल महिला नेताओं ने सोनिया गांधी का हाथ थाम लिया. सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मैसूर में शामिल होने वाली हैं.

मान कर तो हर कोई यही चल रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली गयी. पूरे इवेंट घूमता तो राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही. पूरा ताना बाना ही ऐसा बुना गया है. ये बात अलग है कि राहुल गांधी ने अपनी तरफ से तस्वीर साफ करने का प्रयास भी किया है. राहुल गांधी का कहना है कि वो भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा भर ले रहे हैं, नेतृत्व नहीं कर रहे हैं.

राहुल गांधी के साथ सोनिया गांधी ने भी कुछ दूर तक पदयात्रा की. सोनिया गांधी की सेहत को देखते हुए करीब 15 मिनट बाद राहुल गांधी ने उनको वापस भेज दिया, ताकि गाड़ी बैठ कर आराम कर सकें. थोड़ी देर आराम करने के बाद सोनिया फिर से पदयात्रा में शामिल हो गईं - और दोनों साथ साथ चलने लगे.

कर्नाटक के लिए भारत जोड़ो यात्रा के तहत तीन हफ्ते का प्लान किया गया है - और इस दौरान करीब पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय की जानी है. कर्नाटक में एंट्री से लेकर एग्जिट तक भारत जोड़ो यात्रा से इतनी चीजें जुड़ रही हैं कि लगता है जैसे ये यात्रा सिर्फ कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए गढ़ी गयी हो.

क्या कांग्रेस को कर्नाटक से ज्यादा उम्मीदें हैं?

भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने जितना वक्त केरल में गंवाया उसे भी कर्नाटक को दे दिया होता तो ज्यादा फायदेमंद हो सकता था. बहरहाल, देर आये दुरूस्त आये. कम से कम आये तो. सोनिया गांधी के बाद प्रियंका गांधी भी यात्रा में शामिल हो जाती हैं तो कर्नाटक के लोगों को ये संदेश तो जा ही सकता है कि पूरा गांधी परिवार उनसे जुड़ने की कोशिश कर रहा है - और अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में लोगों से काफी उम्मीदें भी हैं.

देखा जाये तो कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के कई महत्वपूर्ण पड़ाव भी पहले से तय किये गये हैं. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का शामिल होना तो प्लान का हिस्सा हो सकता है, लेकिन राहुल गांधी का बारिश में भीगते भाषण देना तो ऐड-ऑन फीचर के तौर पर जुड़ गया है.

rahul gandhi, sonia gandhiसोनिया गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर हौसलाअफजाई की है, तो राहुल गांधी ने भरोसा दिलाने की कोशिश की है.

आपने ध्यान दिया होगा, जिस दिन राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के साथ कर्नाटक में प्रवेश किये थे, कांग्रेस अध्यक्ष के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम भी पक्का होकर उसी दिन सामने आया था. 17 अक्टूबर को जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे होंगे, तब यात्रा बेल्लारी में होगी. बेल्लारी से 1999 में सोनिया गांधी लोक सभा का चुनाव लड़ चुकी हैं. वो सोनिया गांधी का पहला चुनाव था जब अमेठी के साथ साथ वो बेल्लारी से भी चुनाव मैदान में उतरी थीं. ताकि किसी भी एक सीट पर जीत को सुनिश्चित किया जा सके.

और हां, 19 अक्टूबर को जब कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के नतीजे आएंगे, तब भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में आखिरी चरण में होगी - और ये तो सबको मालूम है ही कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक से ही आते हैं. और ये भी मालूम है ही कि अगले साल कर्नाटक में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.

देखा जाये तो 2017 में कांग्रेस ने गुजरात में तो अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन हिमाचल प्रदेश को बीजेपी के हाथों गवां दिया था. हो सकता है कांग्रेस को गुजरात में पिछले चुनाव जैसी सफलता का भरोसा न हो. वैसे भी जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल गुजरात में ज्यादा वक्त गुजारने लगे हैं, कांग्रेस के लिए खतरा तो पैदा हो ही गया है.

हिमाचल प्रदेश को लेकर तो पहले से ही कोई उम्मीद नहीं बची है - आखिर वहां भी तो आम आदमी पार्टी की घुसपैठ होने ही लगी है. ऐसे में कर्नाटक में थोड़ी बहुत संभावना दिखी होगी, ऐसा मान कर चलना चाहिये.

कुछ तो मल्लिकार्जुन खड़गे को गैर गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने की संभावनाओं की वजह से और कुछ बीजेपी की हालत देख कर. पिछले साल के आखिर में कर्नाटक में हुए उपचुनावों में बीजेपी की हार ने कांग्रेस का हौसला जरूर बढ़ाया होगा - क्योंकि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के गढ़ में शिकस्त दे डाली थी.

बेशक, कांग्रेस के भीतर भी भारी झगड़ा है. पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार आपस में लगातार लड़ ही रहे हैं. काफी दिनों तक जेल में रहे डीके को अभी अभी ईडी ने फिर से नोटिस भेज कर तलब किया है. ऐसा लगता है कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव की अभी से तैयारी शुरू कर दी है - और यात्रा में सोनिया गांधी का शामिल होना ये कयास पक्का भी कर रहा है.

कर्नाटक वैसे भी कांग्रेस के लिए करीब करीब द्रोणागिरि पर्वत की भूमिका निभाता आ रहा है. वही द्रोणागिरि जहां से लक्ष्मण को शक्ति लगने पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाया था. सोनिया गांधी के बेल्लारी में चुनाव लड़ने से पहले इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी के लिए भी कर्नाटक ही मददगार बना था. 1980 में जब इंदिरा गांधी को एक सुरक्षित संसदीय सीट की जरूरत थी, तो चिकमंगलूर को फाइनल किया गया खा.

सोनिया का भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना

जब भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई तो सोनिया गांधी मेडिकल चेक अप के लिए विदेश दौरे पर थीं - और वहीं से पत्र लिख कर शुभकामनाएं दी थी. सोनिया गांधी को इस यात्रा से काफी उम्मीदें रही हैं. 2019 के आम चुनाव के बाद से सोनिया गांधी को सार्वजनिक मंचों पर कम ही देखा गया है. संसद वो जरूर जाती रही हैं. ब्लैक फ्राइडे प्रोटेस्ट में भी नजर आयी थीं. जयपुर में हुई महंगाई रैली में भी शामिल रहीं लेकिन भाषण नहीं दिया था.

चुनावी सभाओं और रैलियों से सोनिया गांधी दूर ही नजर आयी हैं. 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने आखिरी वक्त में अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया था - और फिर उस रैली को राहुल गांधी को संबोधित करना पड़ा था. 4 सितंबर को कर्नाटक पहुंची सोनिया गांधी ने यात्रा में शामिल होने से पहले दशहरा पर वहीं के भीमनाकोली मंदिर में पूजा अर्चना की.

भारत जोड़ो यात्रा में सोनिया गांधी के शामिल होते ही राहुल गांधी के जूते के फीते बांधते तस्वीरें वायरल हो रही हैं. लोग सोशल मीडिया पर तस्वीर देख कर अलग अलग भाव प्रकट कर रहे हैं. एक बात तो साफ है, ये तस्वीर बेटे के बड़े होने के संकेत दे रही है. जैसे कहा जाता है बेटे का पांव जब पिता के जूते के बराबर हो जाये तो बेटे को बड़ा हुआ मान लिया जाता है - और जिस बेटे के जूते की फीते बांध कर मां स्कूल भेजती रही हो - वही बेटा एक दिन मां के जूतों के लैस बांध रहा हो तो समझ लेना चाहिये बेटा बड़ा हो चुका है.

दरअसल, ये तस्वीर भी ऐसा ही मैसेज देने की कोशिश लगती है. सोनिया गांधी को अब तो भरोसा हो जाना चाहिये कि दो दशक के अनुभव के बाद राहुल गांधी अब मैच्योर पॉलिटिशियन बनने जा रहे हैं - तस्वीर का राजनीतिक मैसेज तो यही है.

ये ऐसा तीसरा मौका है जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी की मार्मिक और भावपूर्ण तस्वीरें वायरल हो रही हैं. ऐसा ही नजारा तब भी देखा गया जब कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर अपनी ताजपोशी के वक्त राहुल गांधी ने सोनिया गांधी का माथा चूमते तस्वीर सामने आयी थी - और सीएए विरोध प्रदर्शन के तहत राजघाट पर धरने के दौरान सोनिया गांधी को राहुल गांधी के शाल ओढ़ाते हुए.

राहुल गांधी का भीगते हुए भाषण देना

बारिश में भीगते हुए राहुल गांधी के भाषण के जिस वीडियो को कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है, उसने सतारा की चुनावी रैली में एनसीपी नेता शरद पवार के भाषण की याद दिला दी है. सतारा के राजनीतिक हालात और नतीजे तो आपको याद होंगे ही - और वो शरद पवार का वायरल भाषण ही था जिसने एनसीपी उम्मीदवार की जीत पक्की कर दी थी.

राहुल गांधी ने बारिश वाले भाषण में ही कुछ नया नहीं बोला है, लेकिन उसकी कमी भी नहीं खल रही है. वैसे भी जब विजुअल इतने समृद्ध हों तो नेपथ्य से क्या बताया जा रहा है या फिर सामने से क्या कहा जा रहा है, बहुत मायने नहीं रखता.

राहुल की बातों से भी महत्वपूर्ण है भीड़ का शिद्दत से जमे रह कर भाषण सुनना. बारिश में सुनने के लिए जहां के तहां जमे रहना - और ये सुनने वाले आम लोग न भी हों तो भी कोई गिला नहीं होना चाहिये. अगर मौके पर डटे हुए लोग कांग्रेस कार्यकर्ता ही थे तो भी उनका ऐक्ट बढ़े हुए जोश से जोड़ कर देखा जाना चाहिये.

अब तक तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बेवक्त की शहनाई ही लग रही थी. कहीं कोई अच्छा आउटपुट नजर नहीं आ रहा था - लेकिन अब ऐसा जरूर लगता है कि कम से कम कर्नाटक में थोड़ा बहुत असर हो सकता है.

और अगर कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा से थोड़ी भी मदद मिलती है, तो सलाहकारों को इतनी राहत तो होगी ही कि आखिर में बैठ कर अफसोस करने की जरूरत नहीं होगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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