New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 07 अक्टूबर, 2022 08:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को लेकर कांग्रेस सूत्रों के हवाले से आ रही कई खबरें गलत पायी गई हैं, लेकिन 14 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के सोलन में होने जा रही रैली की खबर पक्की बतायी जा रही है. पहले ये रैली 10 अक्टूबर को ही होने वाली थी, लेकिन मौसम के पूर्वानुमानों को देखते हुए टाल दिया गया है. रैली में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कांग्रेस के हिमाचल प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला सहित सूबे में पार्टी के सारे नेता मौजूद रहेंगे.

करीब एक पखवाड़े पहले ऐसी भी चर्चा रही कि प्रियंका गांधी का गुजरात दौरा अक्टूबर के पहले हफ्ते में हो सकता है. दौरे की शुरुआत वडोदरा से बतायी गयी थी. तब प्रदेश कांग्रेस की तरफ से ऐसी भी तैयारी की बात सुनी गयी कि प्रियंका गांधी नवरात्र के दौरान गुजरात के गरबा में भी शामिल हो सकती हैं. गरबा और एक शक्तिपीठ पर दर्शन के बाद आणंद में एक रोड शो की भी काफी चर्चा रही - लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

और तो और भारत जोड़ो यात्रा में भी जिस दिन प्रियंका गांधी को शामिल होना था, वो कार्यक्रम भी टल गया. सोनिया गांधी के कर्नाटक के मान्ड्या में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के अगले दिन प्रियंका गांधी वाड्रा को मैसूर में शामिल होने की बात बतायी गयी थी, लेकिन फिर वो टल गया.

गुजरात न सही, हिमाचल प्रदेश से ही सही. ये तो करीब करीब साफ हो ही रहा है कि प्रियंका गांधी विधानसभा चुनावों में कैंपेन की कमान संभालने जा रही हैं. वैसे भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं, चूंकि भारत जोड़ो यात्रा के रूट में गुजरात या हिमाचल प्रदेश शामिल नहीं किये गये हैं, इसलिए उनके चुनाव प्रचार की संभावना कम ही नजर आ रही है.

पहले ये जरूर बताया गया था कि भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेकर वो गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए जा सकते हैं. लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा में मजा आने लगा है - और इस बार वो उन सारे लोगों को गलत भी साबित कर सकते हैं, जिनको राहुल गांधी के पूरे यात्रा में बने रहने पर शक हो रहा था. ये सब सोचना अभी जल्दबाजी भी हो सकती है क्योंकि अभी तो एक ही महीना हुआ है, चार महीने बाकी ही हैं.

प्रियंका गांधी के संभावित कार्यक्रम को लेकर गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने भी उम्मीद जतायी थी. गुजरात कांग्रेस के सीनियर नेता अर्जुन मोढवाडिया का कहना रहा कि प्रियंका गांधी राज्य में चुनाव प्रचार करेंगी और जल्दी ही उनके गुजरात पहुंचने की अपेक्षा भी जतायी थी. कांग्रेस नेता भरत सिंह सोलंकी ने भी बताया है कि प्रियंका गांधी को गुजरात आने का न्योता दिया गया है - और उनके हिसाब से कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है. सोलंकी ने ये भी बताया था कि प्रियंका गांधी की गुजरात यात्रा का पूरा कार्यक्रम जल्द ही बता दिया जाएगा.

हिमाचल प्रदेश में प्रियंका गांधी का कार्यक्रम फाइनल होने के बाद माना जा सकता है कि गुजरात दौरा शायद अब न टले. हिमाचल प्रदेश तो वैसे भी प्रियंका गांधी वाड्रा का जाना होता रहता है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां घर जो बनवाया है.

कुछ दिनों से ऐसा लग रहा था जैसे गुजरात को लेकर कांग्रेस ने सारी उम्मीदें ही छोड़ दी है. खासकर जबसे अरविंद केजरीवाल की सक्रियता बढ़ी है. मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई के छापे के बाद आम आदमी पार्टी के दफ्तर पर विरोध प्रदर्शन करके कांग्रेस ने अपना इरादा साफ करने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन फिर जैसे खामोशी छा गयी. गुजरात में जिस तरह अरविंद केजरीवाल ऐक्टिव हैं, नुकसान तो कांग्रेस का ही करेंगे. अगर उस नुकसान से कांग्रेस को बचना है तो गुजरात के मोर्चे पर ही मुकाबला करना होगा - दिल्ली से ट्वीट करने से तो कुछ भी होने से रहा.

यूपी चुनाव की बात और थी, लेकिन गुजरात और हिमाचल (Gujarat & Himachal Pradesh Election) के मोर्चे पर प्रियंका गांधी वाड्रा को भेजा जाना आखिर क्या संकेत देता है? क्या कांग्रेस के रणनीतिकार अब प्रियंका गांधी वाड्रा को पूरी तरह फेल साबित करने में जुट गये हैं?

एक दो रैलियां करने की बात और है. राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी चुनाव कैंपेन में हिस्सा लेती हैं तो भी अलग बात है, लेकिन राहुल गांधी की जगह अगर प्रियंका गांधी वाड्रा को किसी चुनावी मोर्चे पर भेजा जाता है तो जिम्मेदारी भी उन पर ही आएगी.

जैसे 2019 के बाद से कांग्रेस की हर चुनावी हार का ठीकरा राहुल गांधी के सिर पर मढ़ा जा रहा है, गुजरात और हिमाचल प्रदेश का ठीकरा भी तो प्रियंका गांधी के माथे ही मढ़ा जाएगा - क्योंकि अभी तक ऐसे किसी चमत्कार के संकेत तो हैं नहीं कि कांग्रेस दोनों में से किसी भी राज्य में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर खुद सरकार बनाने जा रही हो.

यूपी के दाग धुले भी नहीं और...

प्रियंका गांधी वाड्रा 2019 में पहली बार कांग्रेस में औपचारिक तौर पर शामिल की गयीं. प्रियंका गांधी तब विदेश दौरे पर थीं, और कांग्रेस की तरफ से उनको महासचिव बनाये जाने की जानकारी दी गयी. राहुल गांधी ने भी चुनावी रैलियों के इर्द गिर्द मीडिया से बातचीत में प्रियंका गांधी के देर से राजनीति में शामिल होने पर अपनी तरफ से जानकारी दी थी.

priyanka gandhi vadra, rahul gandhiजैसे राहुल गांधी के लिए सुरक्षित वायनाड खोजा गया, प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए कोई सुरक्षित राज्य नहीं खोजा जा सकता क्या?

प्रियंका गांधी के लिए औपचारिक राजनीति की शुरुआत ही बहुत खराब रही. प्रियंका गांधी को यूपी में लॉन्च करने राहुल गांधी खुद गये थे. तब वो कांग्रेस के अध्यक्ष भी हुआ करते थे. लखनऊ में एयरपोर्ट से लेकर कांग्रेस दफ्तर तक खूब बढ़िया नजारा दिखा. प्रियंका गांधी का कई दिनों का कार्यक्रम बनाया गया था - लेकिन मोर्चे पर राहुल गांधी ही नजर आ रहे थे.

चाहे कार्यकर्ताओं से बात करनी हो, या फिर मीडिया से राहुल गांधी ही आगे रहे. तभी पुलवामा में सीआरपीएफ के कैंप पर आतंकवादी हमला हो गया - और प्रियंका गांधी को बगैर कोई भाषण दिये बीच में ही अपना कार्यक्रम रद्द कर लौट जाना पड़ा. और बतौर कांग्रेस महासचिव बोलने का मौका मिला भी तो यूपी से बाहर ही.

आम चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी कांग्रेस महासचिव बनाया गया था. चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने तो इस्तीफा दे दिया था, लेकिन प्रियंका गांधी के पास अपना प्रभार बना रहा. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गये तो प्रियंका गांधी पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी बन गयीं.

ये वही प्रियंका गांधी हैं जो बचपन से चुनावों के दौरान अमेठी और रायबरेली जाया करती थीं. अनौपचारिक तौर पर ही सही, 2014 के आम चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली के साथ साथ सुल्तानपुर चुनाव क्षेत्र की भी अघोषित प्रभारी रहीं. आलम ये रहा कि यूपी का चुनाव कैंपेन देख रहे प्रशांत किशोर को बोल दिया गया था कि प्रियंका गांधी के कार्यक्षेत्र में झांकने की भी जरूरत नहीं है.

और वही अमेठी प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनने पर नाकामी का पहला धब्बा लेकर आया जब राहुल गांधी चुनाव हार गये. वो तो वायनाड ने लाज रख ली, वरना मालूम नहीं क्या हाल होता.

यूपी चुनावों में कैंपेन की शुरुआत तो प्रियंका गांधी ने धमाकेदार तरीके से की. लखीमपुर खीरी के लिए निकलीं तो गेस्टहाउस में झाड़ू लगाते उनका वीडियो वायरल हो गया. बाद में भी खेतों में काम करती महिलाओं के बीच प्रियंका गांधी की दस्तक भी वैसी ही रही, जैसी 2021 के असम विधानसभा चुनाव में चाय बागानों से तस्वीरें आती रहीं.

अब अगर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हार की आशंका से तोहमत से बचाने का फैसला किया है तो प्रियंका गांधी ही क्यों ठीकरा फोड़ने के लिए किसी और का सिर भी तो आगे किया जा सकता है - प्रियंका गांधी को भी तो कभी कोई सुरक्षित मौका मिलना चाहिये.

ये साजिश नहीं तो और क्या है?

उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग हो रही थी. ये मांग प्रियंका गांधी के सपोर्टर समझे जाने वाला आचार्य प्रमोद कृष्णम की तरफ से की गयी थी. बहरहाल, अब तो तय हो चुका है कि 24 साल बाद एक बार फिर कांग्रेस के गांधी परिवार से बाहर का कोई कांग्रेस अध्यक्ष मिलने जा रहा है. मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अघोषित आधिकारिक उम्मीदवार नजर आ रहे हैं, जबकि शशि थरूर भी अकेले दम पर मुकाबले में बने हुए हैं.

कोई शक शुबहे वाली बात नहीं है कि राहुल गांधी की नाकामियों में अब प्रियंका गांधी को भी हिस्सेदार माना जाने लगा है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ का मामला अभी लटका ही हुआ है. जब मुख्यमंत्री का फैसला हुआ था तो प्रियंका गांधी को संकट मोचक की भूमिका में बताया गया था.

लेकिन अब तक यही देखने को मिला है कि प्रियंका गांधी की संकटमोचक वाली भूमिका समस्या को कुछ देर के लिए टाल देने वाली ही होती है. समस्या कभी खत्म नहीं हो पाती. राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ ही 2017 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का फैसला भी प्रियंका गांधी ने ही फाइनल कराया था - और 2019 के आम चुनाव में उनके साथ आधा यूपी संभालने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को वो नहीं रोक सकीं. सिंधिया जाते भी नहीं तो क्या करते. न तो उनको मुख्यमंत्री बनाया गया, न ही कमलनाथ उनको मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमान ही सौंपने को तैयार थे. और यूपी में ऐसे फंसा दिया गया था कि अपनी सीट से ही वो चुनाव हार गये. कमलनाथ तो उस दिन खुश हुए ही होंगे.

कांग्रेस के पंजाब गवांने में तो प्रियंका गांधी बराबर की जिम्मेदार रही ही हैं. तब जो भी फैसले लिये गये राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के संयुक्त फैसले के तौर पर लिये जा रहे थे - फिर तो आधी जिम्मेदार तो वो हुईं ही.

यूपी चुनाव 2022 को लेकर कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस नेतृत्व ने प्रियंका गांधी को पूरा मैंडेट दे रखा था - लेकिन लड़ाई आसान थी क्या? 2017 में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन और प्रशांत किशोर के कैंपेन संभालने के बाद भी अगर कांग्रेस सात ही सीट जीत पायी, तो 2022 में दो सीटें कम क्यों समझी जानी चाहिये?

2017 में तो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोर्चे पर थे, 2022 में तो योगी आदित्यनाथ भी आत्मविश्वास से भरे हुए थे कि सबकी गर्मी शांत करने निकल पड़े थे - और जब लखीमपुर खीरी जैसी घटना के बाद भी बीजेपी की चुनावी सेहत पर कोई असर नहीं हुआ तो भला प्रियंका गांधी क्या कर सकती थीं?

आम चुनाव में अमेठी की हार से लेकर यूपी चुनाव में हाल की हार तक प्रियंका गांधी के माथे पर कई राजनीतिक कलंक जड़े जा चुके हैं. अब कम से कम कांग्रेस को ऐसा नहीं करना चाहिये. कांग्रेस को चाहिये कि प्रियंका गांधी को स्वतंत्र रूप से एक सही मौका दिया जाये. अगर ऐसा नहीं संभव हो तो जहां पहले से तय हो कि हार निश्चित है, खाते में एक और नाकामी दर्ज कराने की क्या जरूरत है? अगर ये सब अनायास नहीं हो रहा है तो क्या प्रियंका गांधी को अपने खिलाश कोई साजिश नहीं समझनी चाहिये?

इन्हें भी पढ़ें :

प्रियंका ने कांग्रेस को फलक पर भले न बिठाया हो, खाक से उठा तो दिया ही है

प्रियंका गांधी असफल होकर भी कांग्रेस में राहुल गांधी पर भारी पड़ रही हैं!

सोनिया गांधी को निराश कर सकती हैं कांग्रेस के कायाकल्प की राह की अड़चनें

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय