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Updated: 29 सितम्बर, 2022 08:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के कांग्रेस अध्यक्ष न बनने की तस्वीर जितनी साफ हो चुकी है, उनके मुख्यमंत्री बने रहने का मामला उतना ही ज्यादा उलझा हुआ लगता है - और सचिन पायलट केस तो लटक गया ही लगता है.

ये तो शुरू से भी सबको मालूम था कि अशोक गहलोत की कांग्रेस अध्यक्ष बनने में जरा भी दिलचस्पी नहीं है. ये स्थिति तब तक के लिए तो लागू होती ही है जब तक कि राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके कब्जे में है.

अगर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव अगले साल होता तो भी अशोक गहलोत थोड़े गंभीर देखे जा सकते थे. अगर 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होता तो भी वो पहली प्राथमिकता राजस्थान को ही देते, बशर्ते कांग्रेस फिर से सरकार बना रही होती - और सत्ता से बाहर होने की सूरत में तो पक्के तौर पर वो चाहते कि कांग्रेस अध्यक्ष बन ही जायें. 2017 के गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस में संगठन महासचिव बनाये जाने पर उनको कोई दिक्कत नहीं हुई थी. बड़े आराम से वो काम करते रहे, तब तक जब तक कि राजस्थान में कांग्रेस चुनाव जीत नहीं गयी. चुनावों में टिकटों के बंटवारे में भी अशोक गहलोत ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, तब भी जबकि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे.

मौजूदा हालात में अशोक गहलोत जितना भी उत्पात कर सकते थे, कर चुके हैं. सचिन पायलट के खिलाफ विधायकों को जितना भी भड़का सकते हैं, भड़का चुके हैं. सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर जितना भी दबाव बना सकते थे, बना चुके हैं.

ये तो साफ है कि अब आगे का मामला कांग्रेस आलाकमान के हाथ में है. फिलहाल तो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के हाथ में ही है, कांग्रेस का नया अध्यक्ष जब बनेगा तब बनेगा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सलाह पर काफी कुछ निर्भर करता है. राहुल गांधी तो पहले ही सख्ती दिखा चुके हैं. राहुल गांधी के 'एक व्यक्ति, एक पद' वाले कमिटमेंट की याद दिलाने से पहले ही दिग्विजय सिंह ने पूरी भूमिका बना दी थी.

सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ क्या होने वाला है, ये अभी साफ नहीं हो सका है - जैसे सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना संदेह के घेरे में नजर आने लगा है, ठीक वैसे ही अशोक गहलोत के भी मुख्यमंत्री बनने रहना पक्का नहीं रह गया है.

रही बात कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तो अब मैदान में मुख्यतौर पर दो उम्मीदवार ही रह गये लगते हैं. दिग्विजय सिंह की एंट्री से पहले भी दो ही कांग्रेस नेताओं के नाम ऊपर चल रहे थे. अब अशोक गहलोत के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद दिग्विजय सिंह की राह आसान समझी जा रही है.

चुनाव मैदान में शशि थरूर भी हैं लेकिन जो उनका मिजाज है और कांग्रेस पार्टी का कल्चर और सेटअप है, शशि थरूर हमेशा ही उसमें मिसफिट रहे हैं - दिग्विजय सिंह से तुलना की जाये तो वो हर हिसाब से भारी पड़ते हैं. दिग्विजय सिंह की सबसे बड़ी खासियत है उनका गांधी परिवार का करीबी होना. और शशि थरूर हमेशा ही टारगेट पर रहे हैं, कभी अपने ट्वीट को लेकर तो कभी बयानों को लेकर.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से 2014 के आम चुनाव में 'पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड' वाली बात सुनने के बावजूद शशि थरूर को ब्रिटेन से हर्जाना मांगने के लिए उनकी तारीफ भी सुनने को मिल चुकी है, लेकिन सोनिया गांधी या राहुल गांधी में से किसी को भी उनसे सीधे मुंह बात करना भी मुनासिब नहीं लगता.

और वैसे भी, जब अमेरिका जैला मुल्क शशि थरूर में कोफी अन्नान का अक्स देख चुका हो और उनके अक्खड़ स्वभाव के चलते आगे बर्दाश्त करने को राजी नहीं हुआ - तो भला राहुल गांधी या सोनिया गांधी को शशि थरूर का मिजाज कहां से पसंद आ सकेगा? और ऐसी सूरत में शशि थरूर चुनाव तो तभी जीत सकते हैं जब कोई चमत्कार हो जाये.

अशोक गहलोत जीते या हारे?

राजस्थान में पूरा बंदोबस्त कर लेने के बाद ही अशोक गहलोत ने जयपुर छोड़ा. शाम से ही बार बार उनका कार्यक्रम बदलता रहा. आखिरकार देर शाम ही फ्लाइट पकड़ सके और आधी रात के करीब दिल्ली पहुंचे.

भूमिका तो पूरी पहले ही बना चुके थे. राजस्थान के घटनाक्रम और तमाम उठापटक पर एक तरीके से अफसोस भी जाहिर कर चुके थे. तय रणनीति के मुताबिक ही सोनिया गांधी के सामने पेश हुए - और पहले से लिखी स्क्रिप्ट के अनुसार ही सब कुछ किया.

ashok gehlot, sonia gandhi, sachin pilotसवाल सचिन पायलट का ही नहीं है, सवाल ये भी है कि अशोक गहलोत के साथ आगे क्या होने वाला है?

सोनिया से मिलने जाते वक्त अशोक गहलोत के हाथ में एक कागज भी था, जिस पर हाथ से कुछ लिखा हुआ था. वो कागज भी मीडिया के कैमरे से छुप न सका, लेकिन तस्वीर भी इतनी साफ नहीं मिली जिससे पूरी बात पढ़ी जा सके. हो सकता है, अशोक गहलोत यही चाहते भी हों. लोक जान भी जायें, और जान भी न पायें.

10, जनपथ जाते वक्त अशोक गहलोत के हाथ मे जो पेपर था, उसकी शुरुआती लाइन थी - "जो हुआ बहुत दुखद है... मैं भी बहुत आहत हूं..."

करीब डेढ़ घंटे बाद अशोक गहलोत बाहर आये तो भी राजस्थान में हुई घटना से खुद को दुखी बता रहे थे. बोले उनको काफी तकलीफ हुई है - और जो कुछ हुआ उसके लिए वो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी भी मांग चुके हैं.

मीडिया से बातचीत में अशोक गहलोत ने कहा, 'जो दो दिन पहले घटना हुई... उस घटना ने हम सबको हिला कर रख दिया... मुझे दुख है और वो मैं ही जान सकता हूं... क्योंकि पूरे देश में मैसेज चला गया कि मैं मुख्यमंत्री बने रहना चाहता हूं, इसीलिए सब कुछ हो रहा है. मैंने सोनिया जी से भी माफी मांगी है - क्योंकि एक लाइन का प्रस्ताव पास नहीं करवा पाया.'

लगे हाथ, अशोक गहलोत ने कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी की भी दुहाई दी, 'जिस प्रकार से पचास साल में मुझे कांग्रेस पार्टी ने... इंदिरा गांधी के समय से ही... चाहे कोई भी अध्यक्ष रहा... मुझे हमेशा विश्वास करके जिम्मेदारी दी गई... राहुल गांधी ने जब फैसला किया... उसके बाद भी घटना हुई...मैं कांग्रेस का वफादार हूं.'

और फिर ऐलान कर दिया कि वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर तो वो शुरू से ही अनमनेपन का इजहार कर रहे थे, लेकिन राहुल गांधी का सख्त लहजा देख कर कहने लगे थे कि वो कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में नामांकन दाखिल करेंगे. हालांकि, फॉर्म तक नहीं लिया था.

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को लेकर अशोक गहलोत ने कहा, 'मैंने तय किया है... अब मैं इस माहौल में चुनाव नहीं लडूंगा.... ये मेरा फैसला है.'

अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की चर्चा तब शुरू हुई जब अपने विदेश दौरे से पहले सोनिया गांधी से उनसे मुलाकात हुई थी. उसके ठीक बाद आयी एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को एक तरीके से कामकाज संभालने के लिए बोल दिया था. फिर भी अशोक गहलोत यही कहते रहे कि वो राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे.

तौर तरीके की बात अलग है, लेकिन इसमें तो कोई शक नहीं कि अशोक गहलोत ने पूरी मनमानी की. भले ही सार्वजनिक रूप से अब अफसोस जाहिर कर रहे हों, लेकिन अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना चाहते हों.

मुख्यमंत्री पद छोड़ने को लेकर जो माहौल बनाया वो भी अब संदेह के घेरे में लगता है. खबर आयी थी कि वो राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी को मुख्यमंत्री बनाये जाने का प्रस्ताव सोनिया गांधी के सामने रखे थे. साथ ही, उनके कुछ भरोसेमंद मंत्रियों और विधायकों के नाम भी मुख्यमंत्री पद के लिए उछले थे - ये बात अलग है कि उनमें से कई को अब कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से कारण बताओ नोटिस भी थमाया जा चुका है.

भले ही अशोक गहलोत को क्लीन चिट देकर कांग्रेस के तीन विधायकों को नोटिस दिया गया हो, लेकिन वो चाह कर भी पूरे मामले से खुद को अलग नहीं कर सकते. अपने हिसाब से तो अशोक गहलोत राजस्थान की हालिया लड़ाई जीत चुके हैं, लेकिन क्या वाकई ऐसा ही है?

सचिन पायलट का क्या होगा?

अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद भी उनके मुख्यमंत्री बने रहने का सवाल बचा हुआ था. वो भी पूछा गया और अशोक गहलोत के पास रेडीमेड जवाब तैयार था - फटाफट बता दिया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री को लेकर फैसला अब सोनिया गांधी के हाथ में ही है. कोच्चि में भी अशोक गहलोत ने ऐसा ही बयान दिया था, लेकिन तब सोनिया गांधी के साथ साथ राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन का भी नाम लिया था. ये बात अलग है अजय माकन को जयपुर से बैरंग लौटना पड़ा था. मुश्किल ये है कि अशोक गहलोत के सोनिया गांधी से माफी मांग लेने और राजस्थान के घटनाक्रम पर अफसोस जताने के बावजूद उनके समर्थक विधायक हथियार डालने को तैयार नजर नहीं आ रहे हैं. बल्कि, वे तो खुल कर धमकी भी देने लगे हैं.

धर्मेंद्र राठौड़ का तो यहां तक कहना है, अगर किसी और खेमे का मुख्यमंत्री बनाया गया तो सारे विधायक इस्तीफा दे देंगे. और साथ में ये भी जोड़ दिया है, 'हम मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार हैं.'

यही वो मसला है जो सचिन पायलट की राह में कांटे बिछा रहा है. ऐसे में जबकि राहुल गांधी खुद चाह रहे हों कि अशोक गहलोत की जगह चुनाव से पहले सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री बनें, अशोक गहलोत सामने दीवार बन कर खड़ा हो जा रहे हैं.

सचिन पायलट की कमजोर ये है कि अशोक गहलोत के मुकाबले उनके सपोर्ट में कम ही विधायक खड़े नजर आ रहे हैं. सपोर्ट करने वाले हैं तो और भी, लेकिन वो हवा का रुख देखने के बाद ही फैसला करेंगे. सचिन पायलट की यही कमजोरी उनके सिंधिया बनने में भी बाधक रही है.

अब अगर सचिन पायलट किसी भी स्थिति में मुख्यमंत्री नहीं बन पाते तो राजस्थान की राजनीति में भी उनके लिए बने रहना मुश्किल होगा - कम से कम कांग्रेस में अशोक गहलोत ने ये हालत तो बना ही दी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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