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Updated: 17 जुलाई, 2020 11:55 AM
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आज से कांग्रेस (Congress) में सचिन पायलट (Sachin Pilot) और अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के रास्ते अलग हो गए. अशोक गहलोत के दूसरे कार्यकाल में जब कांग्रेस बुरी तरह से हार गई थी तब केंद्रीय मंत्री के रूप में केंद्र सरकार में शामिल सचिन पायलट को राजस्थान (Rajasthan) की कमान दी गई थी. उसके बाद लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट को करारी शिकस्त मिली और वो 25 की 25 सीटें हार गए. खुद सचिन पायलट भी चुनाव हार गए. मगर कांग्रेस आलाकमान ने उन पर भरोसा जताते हुए 5 साल तक उनको कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा इस बीच कांग्रेस महासचिव के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी में काम करते रहे. उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव प्रभारी रहे जहां पर उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी जगह पार्टी ने ठीकठाक प्रदर्शन किया. इस सफलता के बाद अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर से स्थापित हो गए और सचिन पायलट और अशोक गहलोत में अदावत शुरू हो गई. कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) दोनों को एक साथ गाड़ी में लेकर घूमते थे. हर रैली में दोनों का एक साथ हाथ उठाया जाता था और यहां तक की हालत यह हो गई थी कि रैली के लिए जयपुर के खासा कोठी होटल में बस लगती थी और बस में अशोक गहलोत सचिन पायलट को एक सीट पर बैठा कर कांग्रेस की रैली में ले जाया जाता था.

Sachin Pilot, Ashok Gehlot, Congress, Rajasthan, Rahul Gandhiराजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव कोई एक दिन का नहीं है इसके पीछे तमाम कारण थे

उसके बाद टिकट बंटवारे को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत में ठन गई. राहुल गांधी ने सचिन पायलट को फ्री हैंड दिया. तब राजनीत में चतुर अशोक गहलोत ने अपने लोगों को निर्दलीय खड़ा कर दिया और 11 निर्दलीय के अलावा अपने एक करीबी स्वास्थ्य राज्य मंत्री सुभाष गर्ग को राष्ट्रीय लोक दल से समझौते के नाम पर टिकट देकर जिता कर लाए.

कांग्रेस जब बहुमत से 1 सीट कम रह गई तो अशोक गहलोत ने 13 निर्दलीय और राष्ट्रीय लोक दल के विधायक के साथ कांग्रेस आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई. जबकि सचिन पायलट के कई करीबी चुनाव हार गए. बस यहीं से कहानी पलट गई. कहते हैं राहुल गांधी आखरी दम तक कोशिश करते रहे कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाएं. इसके लिए उन्होंने कई कई बार विधायकों से रायशुमारी कराई मगर 35 साल से राजस्थान की राजनीति में सक्रिय अशोक गहलोत विधायकों के समर्थन के मामले में सचिन पायलट पर भारी पड़ गए और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के पद पर रहकर संतोष करना पड़ा. मगर उसके बाद की कहानी आज हम आपको बता रहे हैं.

1- इन दोनों के बीच खाई की बुनियाद तो उसी दिन पड़ गई थी जब शपथ ग्रहण समारोह में सचिन पायलट ने कहा कि मैं उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लूंगा और अशोक गहलोत के साथ लूंगा.

2- फिर जब मंत्रियों को शपथ दिलाई जाने लगी तो राजभवन में सचिन पायलट ने कहा कि मेरी भी कुर्सी राज्यपाल के बगल में लगेगी जहां पर मंत्री शपथ ले रहे हैं. उस समय कहा गया कि अशोक गहलोत ने विरोध किया कि उपमुख्यमंत्री का पद कोई संवैधानिक पद नहीं होता. वह एक कैबिनेट मंत्री की हैसियत का होता है इसलिए राज्यपाल और मुख्यमंत्री के कुर्सी के बगल में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं लग सकती मगर पायलट ने अपनी कुर्सी लगवाई.

3- राहुल गांधी की सबसे बड़ी योजना किसानों की ऋण माफी का सरकार बनते ही एलान हुुुुआ, लेेेेकिन सचिन पायलट को यह टी.वी. से पता चला. सरकार बनने के दूसरे दिन ही सचिन पायलट को समझ आ गया था कि उनकी हैसियत सरकार मेें केवल कैबिनेट मंत्री तक ही सीमित कर दी गई है.

4- राजस्थान विधानसभा में मुख्य द्वार से केवल राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री आते हैं. उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट उसी रास्ते से पहली बार जब विधानसभा शुरू हुई तो आए. एक दिन तो वह आ गए मगर दूसरे दिन जैसे ही आए विधानसभा के सुरक्षाकर्मी ने उन्हें रोक लिया और कहा कि आप विधायकों और मंत्रियों के रास्ते से आइए. सचिन पायलट जिद पर अड़ गए तो अशोक गहलोत ने उन्हें आगंतुकों के रास्ते से आने का प्रावधान कर दिया यानी बीच का रास्ता निकाला गया कि ना तो मुख्यमंत्री के रास्ते से आएंगे और ना हम मंत्रियों के रास्ते से आएंगे वह दूसरे रास्ते से ही आएंगे.

5- इसके बाद धीरे-धीरे सरकार के फैसलों में सचिन पायलट की हिस्सेदारी कम होती चली गई. धीरे-धीरे पायलट के जो मंत्री थे वह अशोक गहलोत के करीबी होते चले गए और पायलट हाशिए पर आ गए.

6- प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के साथ ही पायलट के लिए दुश्वारियां बढ़ गई और अशोक गहलोत 10 जनपथ में मजबूत होते चले गए.

7- इस बीच सचिन पायलट व्यक्तिगत बातचीत में अक्सर बताया करते थे 1 साल से ज्यादा हो गए राहुल गांधी उनसे बातचीत नहीं करते हैं. यानी कांग्रेस में अब उनके पास दिल्ली में जगह बची थी और ना ही राजस्थान में.

8- राजस्थान में फिलहाल स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं जिसमें पंचायत से लेकर शहरी चुनाव में टिकट बांटा जाना है. अशोक गहलोत जानते थे कि सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए बिना यह संभव नहींं होगा. इस बीच इस साल जनवरी मेंं कथित रूप से सरकार गिराने की साजिश शुरू हो गई थी. और सचिन पायलट को       बीजेपी के साथ मिलकर इस तख्ता पलट करने का दोषी माना गया.

मगर ऐसा नहीं है कि इसके दोषी केवल अशोक गहलोत ही हैं. पायलट ने पूरे मन से कभी भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपना नेता नहीं माना और उनको नीचा दिखाने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा.

1- सरकार बनते ही पहला मौका आया जब अलवर में गैंगरेप हुआ, तो सचिन पायलट ना केवल उप मुख्यमंत्री थे बल्कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी थे. इसके बावजूद सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाया और गृह मंत्री होने के नाते अशोक गहलोत पर जवाबदेही तय करने की कोशिश की.

2- इसके बाद जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव लड़ रहे थे तो रामेश्वर डूडी की तरफ से साथ देते हुए सचिन पायलट ने अशोक गहलोत की मंशा पर और सरकार की पुलिस पर सवाल उठाया था.

3- कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत हुई तो अशोक गहलोत ने कह दिया कि बीजेपी सरकार के दौरान भी इससे ज्यादा बच्चे मरे थे. इस बात को पकड़कर पायलट ने कहा कि हम सरकार में आ चुके हैं और पिछली सरकार की गलतियों को गिना कर बच नहीं सकते हैं. पायलट यहीं नहीं रुके पायलट सीधे कोटा अस्पताल पहुंच गए और वहां पर जाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार की ऐसी तैसी की.

4- अलवर में एक हिंदू युवक की मॉब लिंचिंग के आरोप कुछ मुस्लिम लड़कों पर लगा था. उस वक्त बीजेपी के नेताओं के अलावा सचिन पायलट भी वहां पहुंचे थे और सरकार पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था.

5- इसके बाद नागौर में दलितों की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ. तो पायलट ने प्रदेश कांग्रेस की कमेटी जांच के लिए भेज दी और कहा दलित अत्याचार की घटनाएं सरकार में नहीं होनी चाहिए और कानून व्यवस्था के जिम्मेदार लोग इस पर ध्यान दें यह जानते हुए कि गृह मंत्री खुद अशोक गहलोत हैं.

6- पायलट गुट के मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा लगातार सरकार विरोधी रवैया अख्तियार किए हुए थे मगर अशोक गहलोत हर वक्त इनकी अनदेखी करते रहते थे. हालांकि इन तमाम मौकों पर अशोक गहलोत चुप्पी साधे रहे और कुछ भी जवाब नहीं दिया. बस यही कहते रहे कि अभी उनमें परिपक्वता की कमी है धीरे-धीरे सब कुछ समझने लगेंगे. कभी-कभी तो यह कह देते थे कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और उनका हक बनता है कि कहीं कोई कमी हो रही है तो उस पर सवाल उठाएं.

7- राज्यसभा चुनाव के दौरान भी अशोक गहलोत को बगावत की बू आई थी. मगर खुद को यह सोचकर जप्त कर लिया कि इससे पार्टी को नुकसान हो जाएगा. 

8- विदेश दौरे पर जाने के दौरान भी सचिन पायलट नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सूचना नहीं देते थे. 

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