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Updated: 17 जुलाई, 2022 03:50 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राष्ट्रपति चुनाव में आखिरकार अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का रुख भी सामने आ ही गया. अगर पहले किसी को ऐसा लगा हो कि आम आदमी पार्टी भी आदिवासी होने के नाते द्रौपदी मुर्मू का सपोर्ट करेंगी, तो अरविंद केजरीवाल ने ऐसे लोगों को गलत साबित कर दिया है.

अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का सपोर्ट करने का फैसला किया है. 2017 में भी अरविंद केजरीवाल ने ऐसा ही फैसला लिया था. तब आम आदमी पार्टी ने विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को वोट दिया था. 2017 में चुनाव दलित वोटों के मुद्दे पर हुआ था, इस बार लक्ष्य आदिवासी वोटों को साधने का है.

ऐसे में जबकि ममता बनर्जी खुद द्रौपदी मुर्मू की वजह से यशवंत सिन्हा को लेकर कन्फ्यूज नजर आ रही हैं, अरविंद केजरीवाल ने ये फैसला क्यों लिया होगा - विपक्ष की राजनीति के हिसाब से देखें तो ये बड़ा ही महत्वपूर्ण सवाल बनता है.

लेकिन यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को सपोर्ट करने की वजह समझनी हो तो अरविंद केजरीवाल के उस रिएक्शन पर गौर करना होगा जो आप नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के बयान पर दिया है. बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को रेवड़ी बांटने वाली राजनीति से बच कर रहने की सलाह दी थी.

प्रधानमंत्री मोदी ने किसी का नाम तो नहीं लिया था लेकिन निशाने पर कौन रहा सबको आसानी से समझ में आ गया. प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर ट्विटर पर प्रतिक्रिया तो अखिलेश यादव की भी आयी थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने तो लाइव प्रेस कांफ्रेंस कर सीधे धावा ही बोल दिया - और प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री तक पर सवाल उठा डाले.

अरविंद केजरीवाल के प्रधानमंत्री मोदी पर ताजा हमले से एक बात तो साफ है, आम आदमी पार्टी के नेता ने आने वाले विधानसभा चुनावों का रिहर्सल तेज कर दिया है. अगले साल भर के भीतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. पंजाब में भगवंत मान की सरकार बनने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल चुनाव वाले तीनों ही राज्यों का ताबड़तोड़ दौरा कर रहे हैं.

राजनीति विरोध के लिए आक्रामक रुख तो ठीक है, लेकिन सवाल ये भी है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले बोल कर अरविंद केजरीवाल गुजरात के लोगों का वोट हासिल कर पाएंगे?

यशवंत सिन्हा को AAP का समर्थन कैसे मिला?

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हो सकता है अरविंद केजरीवाल ने पहले से फैसला ले रखा हो. ये भी हो सकता है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के फोन के बाद अरविंद केजरीवाल ने फैसला बदल भी लिया हो?

narendra modi, arvind kejriwal, yashwant sinhaअरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो-दो हाथ करने का नया संकेद दे दिया है

असल में अरविंद केजरीवाल और केसीआर के राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बुलायी गयी विपक्षी दलों की मीटिंग में न जाने को लेकर काफी चर्चा हुई थी. चर्चा इसलिए भी क्योंकि वो मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बुलाने पर हो रही थी, न कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी के निमंत्रण पर. केजरीवाल और केसीआर दोनों ही नेताओं को कांग्रेस नेतृत्व से परहेज करते देखा गया है. ऐसा करने की एक वजह सोनिया गांधी और राहुल गांधी का दोनों ही नेताओं को लेकर परहेज रहा है.

केसीआर ने तो पहले ही यशवंत सिन्हा के समर्थन का ऐलान कर दिया था, अरविंद केजरीवाल के फैसला का इंतजार था. ममता बनर्जी के द्रौपदी मुर्मू को लेकर आदिवासी वोटों की चिंता से भी लगा था कि अरविंद केजरीवाल का भी वैसा ही स्टैंड हो सकता है. आखिर अरविंद केजरीवाल भी तो ममता बनर्जी की ही तरह अखिल भारतीय राजनीति की ही तैयारी कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी का फैसला आने से पहले केसीआर ने विपक्ष के कई नेताओं के साथ साथ अरविंद केजरीवाल को भी फोन किया था. विपक्षी नेताओं से बातचीत में केसीआर ने मॉनसून सेशन में मोदी सरकार को घेरने के लिए एक मंच पर आने के लिए नये सिरे से अपील की थी. केसीआर भी 2024 के आम चुनाव को लेकर ममता बनर्जी की ही तरह विपक्षी खेमे को एकजुट करने में एक्टिव हैं. राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो केसीआर, ममता और केजरीवाल की भी एक जैसी ही है, लेकिन अरविंद केजरीवाल विपक्षी खेमे की बैठकों से दूरी बना कर चलते हैं.

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी के फैसले की जानकारी सबसे पहले विधायक दुर्गेश पाठक ने ट्विटर पर दी. दुर्गेश पाठक ने बताया कि आप की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में यशवंत सिन्हा को समर्थन देने का फैसला लिया गया है.

बाद में आप के राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने बाकायदा घोषणा की और अपनी तरफ से स्थिति और स्पष्ट करने की कोशिश भी की. बोले, 'हम द्रौपदी मुर्मू का सम्मान करते हैं, लेकिन वोट यशवंत सिन्हा को करेंगे.'

रेवड़ी कल्चर पर मोदी बनाम केजरीवाल

बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को रेवड़ी कल्चर और राजनीति से सावधान रहने के लिए आगाह किया था. हमेशा की तरह बीजेपी की डबल इंजिन की सरकार की खासियत बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज कल हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है - ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है.

मोदी ने समझाया कि डबल इंजिन की सरकार मुफ्त की रेवड़ी बांटने का शॉर्टकट नहीं अपना रही, बल्कि मेहनत करके राज्य के भविष्य को बेहतर बनाने में जुटी है. मोदी ने ये भी समझाया कि रेवड़ी कल्चर वाले कभी आपके लिए नये एक्सप्रेसवे नहीं बनाएंगे, नये एयरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बनाएंगे. रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर उन्हें खरीद लेंगे.

मोदी ने किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन सबको साफ साफ समझ में आ रहा था कि निशाने पर कौन है - और थोड़ी ही देर बाद प्रेस कांफ्रेंस करके अरविंद केजरीवाल ने ऐसी आशंकाओं को भी खत्म कर दिया. मतलब, साफ है देश में राजनीतिक लड़ाई मोदी बनाम केजरीवाल की तरफ बढ़ रही है.

ये भी हो सकता है कि जैसे यूपी की राजनीति में बीजेपी पहले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव की जगह कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की गतिविधियों या बयान पर तेजी से रिएक्ट करती थी. ऐसा करने का साफ मकसद रहा कि बीजेपी कांग्रेस को तवज्जो देकर सपा को महत्व न देने की कोशिश कर रही थी.

बुंदेलखंड के लोगों से मुखातिब मोदी के लिए अरविंद केजरीवाल को टारगेट करने का तुक तो नहीं बनता था. न तो वहां कोई चुनाव है, न वहां की राजनीति में फिलहाल केजरीवाल की कोई दिलचस्पी ही लगती है. ऐसा लगता है मोदी ने जानबूझ कर केजरीवाल को उकसाने की कोशिश की है - और वो अपने मकसद में कामयाब हैं. ये ममता बनर्जी या कांग्रेस को विपक्षी खेमे में कम अहमियत देने की मोदी की कोशिश भी हो सकती है.

रेवड़ी कल्चर का नाम आते ही अरविंद केजरीवाल आपे से बाहर हो गये और ये स्वाभाविक भी था. वैसे भी अरविंद केजरीवाल का अगला टारगेट गुजरात ही है. पंजाब और दिल्ली में सरकार बना लेने के बाद अगर केजरीवाल गुजरात में जैसे तैसे थोड़ी बहुत जगह भी बना लेते हैं तो देश भर में घूम घूम कर भाषण देने के काम तो आ ही सकता है.

लेकिन मोदी के उकसाने पर केजरीवाल ने बहुत बड़ी गलती भी कर डाली. जिन चीजों से लंबे समय से बचते आ रहे थे, वही गलती कर डाली. मोदी और उनकी टीम ने ऐसे ही केजरीवाल को दिल्ली चुनावों में भी कई बार उकसाया था, लेकिन प्रशांत किशोर की सलाह मान कर वो चुप रह जाते रहे - सब्र को वो बांध रोकने वाला आस पास कोई नहीं था.

ये बताते हुए कि मैं पढ़ा लिखा हूं, इंजीनियरिंग की है, एकाउंट्स की पढ़ाई की है, कानूनी की पढ़ायी की है, केजरीवाल काफी आगे तक बोल गये, '...और असली डिग्री है, मेरी डिग्री फर्जी नहीं है.'

ये भी साफ है कि केजरीवाल ने भी प्रधानमंत्री मोदी को उनके ही लहजे में जवाब दिया है. जैसे मोदी ने रेवड़ी कल्चर का जिक्र बगैर नाम लिये दिया है, केजरीवाल ने भी डिग्री का खासतौर पर जिक्र बगैर कोई नाम लिये दिया है. असल में प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री पर भी विपक्ष की तरफ से सवाल उठाये जा चुके हैं - और आपको याद होगा 2016 में भी अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री की डिग्री को फर्जी बताया था. फिर अमित शाह और अरुण जेटली ने प्रेस कांफ्रेंस कर प्रधानमंत्री मोदी की डिग्रियां सार्वजनिक तौर पर दिखायी थीं. बीजेपी नेताओं ने तब अरविंद केजरीवाल से माफी मांगने को भी कहा था.

प्रधानमंत्री मोदी की ही तरह अरविंद केजरीवाल ने भी समझाने की कोशिश की कि कैसे देश में आज दो किस्म की राजनीति चल रही है - एक ईमानदारी और दूसरी भ्रष्टाचार की. एक में अपने लोगों, दोस्तों को हजारों करोड़ों के ठेके दिये जाते हैं... मंत्रियों को सुविधाएं देते हैं. दोस्तों को ठेके देते हैं.

और फिर केजरीवाल बोले, 'अपने देश के बच्चों को मुफ्त और अच्छी शिक्षा देना और लोगों का अच्छा और मुफ्त इलाज करवाना - इसे फ्री की रेवड़ी बांटना नहीं कहते.'

मोदी के साथ साथ केजरीवाल ने कांग्रेस को भी बीजेपी के साथ ही कठघरे में खड़ा कर दिया, 'ये काम 75 साल पहले हो जाना चाहिये था.' अपनी दिल्ली सरका के मुफ्त बिजली-पानी, शिक्षा और इलाज का जिक्र करते हुए अरविंद केजरीवाल ने एक मजदूर के बेटे को IIT धनबाद में मिले दाखिले का उदाहरण दिया और पूछा - 'मैं फ्री की रेवड़ियां बांट रहा हूं या देश का भविष्य संवार रहा हूं?'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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