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Updated: 15 जुलाई, 2022 09:55 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पंजाब के संगरूर से लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल करने वाले सांसद सिमरनजीत सिंह मान अपनी तासीर के हिसाब से खालिस्तान की मांग करने लगे हैं. सिमरनजीत सिंह मान खुलेआम अब लोगों को खालिस्तान बनने के फायदे गिना रहे हैं. बीते महीने ही पंजाब के कई हिस्सों में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टरों के साथ रैलियां निकाली गईं. इतना ही नहीं, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी कुछ दिनों पहले ही दरबार साहिब में पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह के हत्यारे की तस्वीर लगाने को लेकर अड़ गई थी. जिसे मान लिया गया.

पंजाब में लगातार फैलती जा रही खालिस्तानी विचारधारा के ये कुछ उदाहरण भर हैं. जबकि, पंजाब की भगवंत मान सरकार के फैसलों को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी खालिस्तानी विचारधारा को खाद-पानी देने का काम कर रही है. लिखी सी बात है कि पंजाब में कानून व्यवस्था से लेकर खालिस्तान के विचार जैसे खतरों तक से निपटने की जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी की ही है. लेकिन, पंजाब सरकार चला रहे सीएम भगवंत मान ने राघव चड्ढा को सरकार की एडवाइजरी कमेटी का चेयरमैन बनाकर अरविंद केजरीवाल के दिखाए नक्शेकदम पर ही चलने का इंतजाम कर लिया है.

ऐसा लग रहा है कि खालिस्तानी विचारधारा के आगे पूरी पंजाब सरकार और आम आदमी पार्टी नतमस्तक हो गई है. और, सीएम भगवंत मान के हालिया दो फैसले आम आदमी पार्टी को खालिस्तान के पक्ष में खड़ा करने के लिए काफी कहे जा सकते हैं.

Bhagwant Mann Government denied to remove Bhindranwale posters from bus and Terrorist in PU syllabus are enough to make AAP stand with Khalistanपंजाब में खालिस्तानी प्रदर्शनों पर सख्त फैसले लेने की जगह भगवंत मान सरकार यू-टर्न का सहारा ले रही है.

देशविरोधी विचारों को धार्मिक भावनाओं का कवर-फायर

पंजाब की सरकारी बसों में आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों की तस्वीरें के साथ खालिस्तानी नारे लिखे होने की शिकायत कुछ समय पहले सामने आई थी. जिसके बाद पंजाब के डीजीपी कार्यालय की ओर से पेप्सू रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन को आदेश जारी कर इन्हें हटाने को कहा गया था. लेकिन, इस आदेश का शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने विरोध कर दिया. विरोध को देखते हुए भगवंत मान की आम आदमी पार्टी सरकार ने तुरंत मामले में यू-टर्न ले लिया. दोबारा से जारी आदेशों में कहा गया कि 'धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे, इसलिए आदेश वापस लिए जा रहे हैं. क्योंकि, कई धार्मिक संस्थाओं ने इसका विरोध किया है.'

आसान शब्दों में कहा जाए, तो आम आदमी पार्टी ने मना कर दिया कि आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तानी नारे सरकारी बसों से नही हटाए जाएंगे. कहना गलत नहीं होगा कि आम आदमी पार्टी का देशविरोधी विचारों के प्रति इस तरह का रवैया एक तरह से खालिस्तानी विचारधारा को परोक्ष रूप से मान्यता देने का ही कहा जा सकता है. जबकि, पंजाब में देशविरोधी गतिविधियों को रोकने का जिम्मा भगवंत मान सरकार पर ही है. लेकिन, इसे रोकने की जगह आम आदमी पार्टी अपने ही फैसले पर यू-टर्न लेकर देशविरोधी विचारों को धार्मिक भावनाओं के नाम पर कवर-फायर दे रही है.

भिंडरावाले को आतंकी मानने से इनकार

पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के मास्टर्स कोर्स के पाठ्यक्रम में कथित सिख नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को आतंकी लिखा गया है. वैसे, पंजाब में भिंडरावाले के फैलाए गए आतंक को देखकर उसके बारे में लोगों की आम राय आतंकी वाली ही है. लेकिन, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने इस मामले का भी विरोध किया. और, आतंकी शब्द को हटाने की मांग की. जिसके तुरंत बाद पंजाब यूनिवर्सिटी ने इसे पाठ्यक्रम से हटाने का फैसला कर लिया है. सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पंजाब यूनिवर्सिटी इस मामले में विरोध को दरकिनार नहीं कर सकती थी?

अगर पाठ्यक्रम का यही भाग किसी अन्य प्रदेश में पढ़ाया जाएगा, तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी क्या उसका विरोध कर पाएगी? क्योंकि, एसजीपीसी भले ही जरनैल सिंह भिंडरावाले को कौमी शहीद मानते हुए संत का उपाधि दे. लेकिन, भिंडरावाले के द्वारा की गई आतंकी घटनाएं उसे आतंकी की श्रेणी में ही रखेंगी. भले ही श्री अकाल तख्त साहिब ने भिंडरावाले को शहीद घोषित कर दिया हो. लेकिन, एसजीपीसी की ये सोच पूरे भारत में लागू नहीं हो सकती है.

क्या केजरीवाल खालिस्तानी विचारों के पोषक बनेंगे?

अरविंद केजरीवाल को हमेशा से ही अपनी यू-टर्न वाली राजनीति के लिए जाना जाता है. और, फिलहाल ऐसा ही कुछ पंजाब की भगवंत मान सरकार में भी चल रहा है. देशविरोधी खालिस्तानी विचारधारा को आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार ने यू-टर्न के जरिये और हवा ही दी है. जबकि, ऐसे मौके पर चाहिए था कि राज्य सरकार सख्ती के साथ ऐसी विभाजनकारी ताकतों से लड़ती. नाकि, उनके आगे आत्मसमर्पण कर अपने ही फैसलों पर यू-टर्न लेती. क्या इन फैसलों से खालिस्तानी विचारधारा के मानने वालों को बल नहीं मिलेगा? आज केवल भिंडरावाले की तस्वीरों के साथ खालिस्तानी नारे लगाने वाले लोग क्या भविष्य में उसकी दिखाई राह पर नहीं चलेंगे?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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