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Updated: 17 जून, 2022 07:27 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पंजाब में बड़ी जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगा रही है. हाल ही में आम आदमी पार्टी ने अपने एक आंतरिक सर्वे में दावा किया है कि 'गुजरात विधानसभा चुनाव उसे 58 सीटों पर जीत मिल सकती है. और, ग्रामीण गुजरात के मतदाता कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी को वोट कर रहे हैं.' ऐसे ही एक आंतरिक सर्वे की चर्चा अरविंद केजरीवाल ने पंजाब चुनाव के दौरान भी की थी. और, पंजाब में जो बदलाव हुआ, वो ऐतिहासिक बन गया. कांग्रेस की गुटबाजी और टुकड़ों में बंटे विपक्ष ने आम आदमी पार्टी की संभवानाओं को एक नया आयाम दे दिया. लेकिन, गुजरात विधानसभा चुनाव इस मामले में थोड़ा अलग है. यहां भाजपा और कांग्रेस दो ही मुख्य सियासी दल है. और, भाजपा का 27 सालों से चला आ रहा 'विजय रथ' कोई रोक नहीं सका है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि अरविंद केजरीवाल के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव में कितनी संभावनाएं हैं?

Arvind Kejriwal Congress BJP Gujarat Elections अरविंद केजरीवाल गुजरात चुनाव में पूरा जोर लगा रहे हैं. लेकिन, जीतना आसान नहीं.

एंटी इंकंबेंसी और अंदरूनी कलह से कितना फायदा ले पाएगी AAP?

27 सालों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी पिछले विधानसभा चुनाव में भी नजर आई थी. लेकिन, कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकी थी. इस बार भी कांग्रेस की गुटबाजी और अंदरूनी कलह से उसे नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है. गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल का भाजपा में शामिल हो जाना पार्टी के लिए झटका साबित हो चुका है. तो, आम आदमी पार्टी के प्रसार की संभावनाएं खोज रहे अरविंद केजरीवाल के लिए गुजरात एक अच्छा विकल्प कहा जा सकता है. लेकिन, गुजरात के मतदाता सियासी मैदान में अचानक से उभरे नई सियासी दल पर क्या दांव खेलेंगे? दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए इतना आसान नहीं होने वाला है.

भले ही भाजपा के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी और कांग्रेस में अंदरूनी कलह हो. लेकिन, गुजरात के सूरत जैसे कुछ ही हिस्सों में आम आदमी पार्टी को फायदा मिलता नजर आ रहा है. क्योंकि, इन्हीं जगहों पर गुजरात स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. सूरत में 27 पार्षदों की जीत के बाद ही अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में धड़ाधड़ चुनावी यात्राएं शुरू की थीं. लेकिन, आम आदमी पार्टी अभी गुजरात में इतना बड़ा सियासी दल नहीं हुई है कि भाजपा को सीधी चुनौती दे सके. क्योंकि, भाजपा ने अपने संगठन के दम पर ही नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों के बाद गुजरात की सत्ता में कब्जा बनाए रखा. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि AAP गुजरात में 'वोटकटवा' बने. जो ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचाएगी. और, यह स्थिति कांग्रेस के लिए खतरे वाली है.

सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी कर रहे केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी डॉ. संदीप पाठक ने जब आंतरिक सर्वे में 58 सीटें जीतने का दावा किया था. तो, उन्होंने ये भी कहा था कि 'चुनाव नजदीक आने तक यह संख्या और बढ़ सकती है. क्योंकि, ग्रामीण गुजरात के लोगों की राय है कि कांग्रेस यहां भाजपा को नहीं हरा सकती. ग्रामीण गुजरात के कांग्रेसी मतदाता हमें वोट दे रहे हैं.' आम आदमी पार्टी का इशारा साफ है कि गुजरात में इस बार सिर्फ कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी में लगी हुई है. पंजाब में भी सत्ताधारी दल बनने से पहले आम आदमी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी थी. जिसने इस साल हुए चुनाव में पार्टी को सत्ता हासिल करने में मदद की. तो, गुजरात विधानसभा चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल की नजर खुद को कांग्रेस का विकल्प बनाने की ओर ही है.

हाल ही में आम आदमी पार्टी ने गुजरात संगठन में बदलाव किया है. और, इसमें संगठन के 107 पदों में से 33 सूरत के नेताओं को दिये गए हैं. वजह साफ है कि गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सूरत में अच्छा प्रदर्शन किया था. ये फैसला दिखाता है कि पंजाब की तरह गुजरात के अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टी खुद को धीरे-धीरे मजबूत करने की कोशिश कर रही है. और, इसके लिए ही आम आदमी पार्टी ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ गठबंधन किया है. क्योंकि, गुजरात में पाटीदार मतदाताओं के साथ ही आदिवासी मतदाताओं की भी अच्छी-खासी संख्या है. गुजरात में आदिवासी समुदाय के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं. और, बीटीपी के साथ गठबंधन के चलते ही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के आंतरिक सर्वे में 58 सीटों का दावा किया जा रहा है.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो आम आदमी पार्टी की तमाम जद्दोजहद सत्ता में आने की नहीं, बल्कि कांग्रेस का विकल्प बनने की ही है. ताकि, अरविंद केजरीवाल के लिए 2024 की राह थोड़ी आसान हो जाए. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने पाटीदार समाज के नेता नरेश पटेल को भी अपने खेमे में लाने की कोशिशें कर रही हैं. खैर, पाटीदार समाज, आदिवासी समुदाय, भाजपा और कांग्रेस से नाराज मतदाताओं के बल पर जो विकल्प बनने का सपना अरविंद केजरीवाल देख रहे हैं. वह इतना आसान नहीं है. क्योंकि, भाजपा के बागी शंकर सिंह वाघेला से लेकर केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी के विकल्प बनने की कोशिश पहले भी फेल हो चुकी है. गुजरात चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी. और, भाजपा को फायदा संभव है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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