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Rekha: काफी अकेली नहीं है वो, वो अकेली ही काफी हैं!

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 10 अक्टूबर, 2020 10:11 PM
  • 10 अक्टूबर, 2020 10:11 PM
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रेखा का शुमार बॉलीवुड के उन चुनिंदा कलाकारों में है जो न केवल सुंदर हैं बल्कि जिन्होंने अपनी एक्टिंग स्किल्स से खुद को इंडस्ट्री में साबित किया और उस मुकाम पर पहुंचाया जहां आज भी किसी एक्टर के लिए पहुंचना अपने में एक बड़ी बात है.

यकीं आए न आए तुमको लेकिन ये हकीक़त है,

मिले हो जबसे तुम हमको ये दुनिया ख़ूबसूरत है.

(Rekha Birthday) यात्रा फिल्म से रेखा का ये डायलॉग पूरे बॉलीवुड की तरफ से उन्हें डेडीकेट होता है. एक्टर फैमिली में जन्मीं भानुरेखा गणेशन उर्फ़ रेखा (Rekha) ने इन्ति गुट्टू से मात्र चार साल की उम्र में ही अपने कैरियर की शुरुआत कर दी थी. ज़रा बड़ी हुईं तो दो और तेलगु और कन्नड़ फिल्में करने के बाद मात्र 16 साल की बाली उम्र में उन्होंने हिन्दी फिल्मों से अपनी पारी का आगाज़ किया. सावन भादो, सन 70 की ये फिल्म नवीन निश्चल के लिए भी उतनी की ज़रूरी थी जितनी रेखा के लिए, लेकिन रेखा के फिगर की जहां जमकर तारीफ हुई वहीँ उनकी कमज़ोर हिन्दी और हल्की एक्टिंग स्किल्स के लिए आलोचना की गयी. इसके बाद रेखा ने अपनी हिन्दी और एक्टिंग, दोनों पर जम कर मेहनत की, इस दौरान साल चार-चार पांच-पांच फिल्में रेखा को मिलने लगीं, जिसमें एलान, गोरा काला, धर्मा, या नमक हराम जैसी बड़ी-बड़ी कास्ट के साथ की गयी फिल्में भी शामिल थीं. सन 78 में मानिक मुखर्जी की ‘घर’ एक ऐसी फिल्म थी जिसने रेखा को बेहतरीन एक्ट्रेस के रूप में सारी दुनिया के सामने पेश किया. इस फिल्म के गाने, विनोद मेहरा (Vinod Mehra ) और रेखा की केमेस्ट्री सब बहुत पसंद की गयी.

रेखा सिर्फ सुंदर नहीं बल्कि अपने आप में एक्टिंग का स्कूल हैं

यही वो साल था जब बॉलीवुड जगत की मील का पत्थर फिल्म, मुक़द्दर का सिकंदर रिलीज़ हुई. उफ़, ‘सलाम-ए-इश्क़ ए मेरी जां, ज़रा कबूल कर लो’ ये गाना आज भी सुने कोई तो सामने सात श्रृंगार से सजी रेखा और बेपनाह मुहब्बत समेटे उनकी दो बड़ी-बड़ी आंखें सामने तैर जाती हैं. इस फिल्म में रेखा अमिताभ की केमेस्ट्री ऐसी फिट बैठी कि इतिहास बन...

यकीं आए न आए तुमको लेकिन ये हकीक़त है,

मिले हो जबसे तुम हमको ये दुनिया ख़ूबसूरत है.

(Rekha Birthday) यात्रा फिल्म से रेखा का ये डायलॉग पूरे बॉलीवुड की तरफ से उन्हें डेडीकेट होता है. एक्टर फैमिली में जन्मीं भानुरेखा गणेशन उर्फ़ रेखा (Rekha) ने इन्ति गुट्टू से मात्र चार साल की उम्र में ही अपने कैरियर की शुरुआत कर दी थी. ज़रा बड़ी हुईं तो दो और तेलगु और कन्नड़ फिल्में करने के बाद मात्र 16 साल की बाली उम्र में उन्होंने हिन्दी फिल्मों से अपनी पारी का आगाज़ किया. सावन भादो, सन 70 की ये फिल्म नवीन निश्चल के लिए भी उतनी की ज़रूरी थी जितनी रेखा के लिए, लेकिन रेखा के फिगर की जहां जमकर तारीफ हुई वहीँ उनकी कमज़ोर हिन्दी और हल्की एक्टिंग स्किल्स के लिए आलोचना की गयी. इसके बाद रेखा ने अपनी हिन्दी और एक्टिंग, दोनों पर जम कर मेहनत की, इस दौरान साल चार-चार पांच-पांच फिल्में रेखा को मिलने लगीं, जिसमें एलान, गोरा काला, धर्मा, या नमक हराम जैसी बड़ी-बड़ी कास्ट के साथ की गयी फिल्में भी शामिल थीं. सन 78 में मानिक मुखर्जी की ‘घर’ एक ऐसी फिल्म थी जिसने रेखा को बेहतरीन एक्ट्रेस के रूप में सारी दुनिया के सामने पेश किया. इस फिल्म के गाने, विनोद मेहरा (Vinod Mehra ) और रेखा की केमेस्ट्री सब बहुत पसंद की गयी.

रेखा सिर्फ सुंदर नहीं बल्कि अपने आप में एक्टिंग का स्कूल हैं

यही वो साल था जब बॉलीवुड जगत की मील का पत्थर फिल्म, मुक़द्दर का सिकंदर रिलीज़ हुई. उफ़, ‘सलाम-ए-इश्क़ ए मेरी जां, ज़रा कबूल कर लो’ ये गाना आज भी सुने कोई तो सामने सात श्रृंगार से सजी रेखा और बेपनाह मुहब्बत समेटे उनकी दो बड़ी-बड़ी आंखें सामने तैर जाती हैं. इस फिल्म में रेखा अमिताभ की केमेस्ट्री ऐसी फिट बैठी कि इतिहास बन गयी.

'तकदीर की ही बात है, कुछ लोगों को उम्मीद नहीं होती और उन्हें खोया हुआ प्यार मिल जाता है, कुछ उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं और उन्हें प्यार मिलने से पहले ही खो जाता है' मुक़द्दर का सिकंदर से इस डायलॉग को मैं कुछ नहीं तो पचास बार सुन चुका हूं, रेखा के बोलने का अंदाज़ और उनकी आंखों की मायूसी, कादर खान के इन लफ्ज़ों को जीवंत कर देती है.

फिर नटवरलाल हो या सुहाग, राम-बलराम हो या सिलसिला, अमिताभ रेखा अगर स्क्रीन पर हैं तो फिल्म महीनों थिएटर से उतरनी नहीं है ये तय था. फिल्म घर और मुक़द्दर का सिकंदर दोनों के लिए रेखा फिल्मफेयर अवार्ड्स के लिए नोमिनेट हुई थीं पर जीती नहीं थीं. फिर सन अस्सी में मेरे जीवन में अबतक देखी सबसे ख़ूबसूरत फिल्म रिलीज़ हुई, ख़ूबसूरत. ऋषि दा (ऋषिकेश मुख़र्जी) की इस फिल्म को गुलज़ार ने डायलॉग से संवारा था. 'जब प्यार मिलता है न, तो कोई भी बंधन बुरा नहीं लगता.'

सन 81 में सिलसिला एक ऐसी फिल्म थी जिसने बहुत बवाल काटा था. इसी फिल्म के बाद से रेखा अमिताभ ने साथ फिल्में करनी छोड़ दी थीं. पर जाने क्यों मुझे ये फिल्म आज भी अच्छी लगती है. 'बलम तरसे रंग बरसे' गाने के बिना तो आज भी होली का त्योहार अधूरा लगता है. इसी साल रेखा और फारूख शेख़ की फिल्म उमराव जान ने रेखा को एक नई पहचान दिलाने का काम किया था. इसी फिल्म के लिए उन्हें जीवन का पहला नेशनल अवार्ड भी मिला था.

मुकद्दर का सिकंदर और फिर उमराव जान, रेखा की इमेज तवायफ वाले करैक्टर में कैद होती जा रही थी इसलिए रेखा साथ ही साथ हर तरह के रोल पकड़ रही थीं. 80 का दशक बॉलीवुड में रेखा का दशक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. रेखा ने साल में चार-चार फिल्में कीं और तकरीबन सबमें उनकी तारीफ हुई. मगर मेरी पसंद कोई पूछे तो सन 87 में आई इजाज़त एक ऐसी फिल्म थी जो सीधे दिल पर वार करती थी.

एक ऐसी बीवी का किरदार रेखा ने निभाया था जो जानती है कि उसके पति का शादी से पहले किसी से अफेयर था और वो लड़की आज भी उससे बहुत प्यार करती है. अपना कुछ सामान मांगती है, इजाज़त! इजाज़त फिल्म का नाम इजाज़त क्यों है ये उसके आख़िरी सीन में रेखा जस्टिफाई करती है और देखने वाले आप अपना दिल हार बैठते हो.

ये तो मेरी पसंद थी, मगर अपनी मम्मी की पसंद की बात करूं तो सन 88 में आई ‘खून भरी मांग’ वो कम से कम डेढ़ सौ बार देख चुकी हैं. ये वो दौर था जब फीमेल करैक्टर मात्र गाना गाने और पेड़ के पीछे रोमांस करने के लिए फिल्मों में होती थीं, बड़ी हद मेलोड्रामा में उनकी भागीदारी होती थी लेकिन रेखा ने फीमेल लीड के लिए ‘खून भरी मांग’ में एक्शन/रेवेंज का नया मार्ग खोला. आज भी ये फिल्म उतनी प्रासंगिक है. इस फिल्म के लिए फिर उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड मिला था.

90 का दशक आते-आते रेखा ने फिल्में कम कर दीं, करैक्टर लीड से हटकर सपोर्ट में आना शुरु कर दिया लेकिन उनका टैलेंट हमेशा लीड में ही रहा. फिल्म खिलाड़ियों का खिलाड़ी की मैडम माया आज भी फिल्मीं दीवानों के बीच चर्चित है. ‘मुझे मेरी बीवी से बचाओ’ टाइप कॉमेडी सटायर को आज भी लोग टीवी पर उतने ही चाव से देखते हैं जितना सन 2001 में देखते थे. फिल्ममेकर्स के लिए एक नया रास्ता खुल गया था फिल्म मेकिंग का कि अगर नेगेटिव किरदार से किसी महिला करैक्टर की मुठभेड़ दिखानी है, बराबर की टक्कर वाली कोई एक्ट्रेस चाहिए तो वो रेखा ही है और कोई नहीं.

कामसूत्र जैसी बोल्ड फिल्म को करने की हिम्मत भी रेखा के सिवा किसी ने न दिखाई. वो भले ही कोई मिल गया से दादी के रोल में आने लगी हों पर फैन्स के लिए, मेरे ख़ुद के लिए वो आज भी वही आंखों में बेपनाह दर्द लिए मुक़द्दर का सिकंदर की ज़ोहराबाई हैं या शालीन भारतीय सुन्दरता की मिसाल ‘घर’ की आरती चंद्रा हैं या ख़ूबसूरत की भोली सी प्यारी सी मंजू दयाल हैं.

सबने रेखा को उम्र भर जज किया, वो सिंदूर क्यों लगाती हैं या उनके प्रेम प्रसंग किस-किस से रहे, पर किसी ने कभी ये न सोचा कि कोई सबकुछ पाकर भी अकेला रह गया तो वो रेखा हैं. लेकिन रेखा ने ज़िन्दगी का एक अहमतरीन फ़लसफ़ा समझा कि

काफ़ी अकेली नहीं हूं मैं

मैं अकेली ही काफी हूं.

हैप्पी जन्मदिन मुबारक मेरे पूरे परिवार की पसंदीदा अभिनेत्री भानुरेखा गणेशन, आप चिरयुवा हैं और सदा रहेंगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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