• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

पद्मावत का विरोध तो मुस्लिमों और ब्राह्मणों को करना चाहिए

    • विकास मिश्र
    • Updated: 25 जनवरी, 2018 07:50 PM
  • 25 जनवरी, 2018 07:50 PM
offline
लेखक ने यह विचार इस शर्त के साथ पेश किए हैं कि इसे फिल्‍म समीक्षा न समझा जाए. क्‍योंकि फिल्‍म के बवाल और फिल्‍म की कहानी में कोई सरोकार उन्‍हें नजर नहीं आया है.

'पद्मावत' देखकर लौटा हूं वो भी 3डी में. तीन घंटे लंबी इस फिल्म का नाम तो असल में 'खिलजावत' होना चाहिए था, क्योंकि पूरी फिल्म खिलजी के इर्दगिर्द घूमती है. खिलजी के कैरेक्टर को ही सबसे ज्यादा फुटेज मिली है. पद्मावती और राजा रतन सिंह की कहानी तो इस फिल्म का महज एक हिस्सा है. अपनी बात कुछ प्वाइंट में रख रहा हूं.

1- 'पद्मावत' का अगर इतना विरोध नहीं होता तो ये फिल्म कभी भी हिट नहीं हो सकती थी, क्योंकि बेहद ढीली-ढाली फिल्म है. रफ्तार बहुत सुस्त है. क्लाइमेक्स सीन जरूरत से ज्यादा लंबा खींच गया है. भव्यता रचने के चक्कर में संजय लीला भंसाली ड्रामा रचने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

2- हमेशा की तरह पूरी फिल्म संजय लीला भंसाली ने अंधेरे में शूट की है. यहां तक कि धूप में गरमी के सीन में भी वो खिलजी को पसीना-पसीना दिखाते हैं, लेकिन सूरज यहां भी नहीं दिखता. यही नहीं पद्मावत के इंतजार में पूरा दिन एक जगह खड़े दिखाते हैं, लेकिन उस दिन भी सूरज नहीं निकलता. राजा रतन सिंह और खिलजी का युद्ध भी दिन में होता है, फिर भी कहीं धूप नहीं दिखाई पड़ती. ये अंधेरा अब संजय लीला भंसाली की फिल्मों में टाइप्ड हो गया है और बहुत खटकता है.

3- फिल्म में राजपूती आन-बान और शान को खूब बढ़ा चढ़ाकर दिखाने की कोशिश की गई है. राजपूत कटी गर्दन के बावजूद...

'पद्मावत' देखकर लौटा हूं वो भी 3डी में. तीन घंटे लंबी इस फिल्म का नाम तो असल में 'खिलजावत' होना चाहिए था, क्योंकि पूरी फिल्म खिलजी के इर्दगिर्द घूमती है. खिलजी के कैरेक्टर को ही सबसे ज्यादा फुटेज मिली है. पद्मावती और राजा रतन सिंह की कहानी तो इस फिल्म का महज एक हिस्सा है. अपनी बात कुछ प्वाइंट में रख रहा हूं.

1- 'पद्मावत' का अगर इतना विरोध नहीं होता तो ये फिल्म कभी भी हिट नहीं हो सकती थी, क्योंकि बेहद ढीली-ढाली फिल्म है. रफ्तार बहुत सुस्त है. क्लाइमेक्स सीन जरूरत से ज्यादा लंबा खींच गया है. भव्यता रचने के चक्कर में संजय लीला भंसाली ड्रामा रचने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

2- हमेशा की तरह पूरी फिल्म संजय लीला भंसाली ने अंधेरे में शूट की है. यहां तक कि धूप में गरमी के सीन में भी वो खिलजी को पसीना-पसीना दिखाते हैं, लेकिन सूरज यहां भी नहीं दिखता. यही नहीं पद्मावत के इंतजार में पूरा दिन एक जगह खड़े दिखाते हैं, लेकिन उस दिन भी सूरज नहीं निकलता. राजा रतन सिंह और खिलजी का युद्ध भी दिन में होता है, फिर भी कहीं धूप नहीं दिखाई पड़ती. ये अंधेरा अब संजय लीला भंसाली की फिल्मों में टाइप्ड हो गया है और बहुत खटकता है.

3- फिल्म में राजपूती आन-बान और शान को खूब बढ़ा चढ़ाकर दिखाने की कोशिश की गई है. राजपूत कटी गर्दन के बावजूद लड़ते दिखाए गए हैं. गोरा सिंह और बादल के किरदार राजपूती शान की कहानी कहते हैं. राजा रतन सिंह की पीठ में कई तीर घुस जाते हैं, लेकिन वो मुंह के बल नहीं गिरते. उनकी मौत जब होती है तो वो घुटने के बल बैठकर, सीना ताने आकाश की तरफ देख रहे होते हैं. महारानी पद्मावती की शान में खूब कसीदे काढ़े गए हैं. करणी सेना वाले अगर फिल्म देखकर विरोध की सोचते तो चार लोग भी सड़क पर नहीं आते.

4- फिल्म में रानी पद्मावती को विदुषी नारी, युद्धनीति की माहिर दिखाया गया है. फिल्म में पद्मावती और खिलजी का कहीं आमना-सामना नहीं है. आईने के जरिए धुएं के बीच सिर्फ 1 सेकेंड की झलकी ही खिलजी को दिखाई गई है. ना कहीं ड्रीम सिक्वेंस है और ना ही कहीं खिलजी के ख्यालों में पद्मावती आती है. खिलजी पूरी फिल्म में पद्मावती की छाया भी नहीं देख पाया है.

दीपिका ने अपने रोल के साथ न्याय किया है

5- इस फिल्म के विरोध में तो मुसलमानों और ब्राह्मणों को आवाज उठानी चाहिए थी, राजपूतों को नहीं. क्योंकि इसमें ब्राह्मण कुलगुरु को लंपट, कामी, विश्वासघाती और दुश्मनों के साथ मिलकर चित्तौड़ को बर्बाद करने का कारक दिखाया गया है. बाद में उसका सिर कटवाकर खिलजी पद्मावती के पास भेज देता है. फिल्म में खिलजी को क्रूर, अय्याश और लौंडेबाज (गे) दिखाया गया है. उसका सबसे करीबी गुलाम मलिक गफूर है, जिसे राजपूत कहते हैं कि उसे खिलजी की बेगम ही समझो.

प्रतीकात्मक दृश्य में खिलजी और मलिक गफूर के शारीरिक रिश्ते भी दिखाए गए हैं. खिलजी को इतना बड़ा लंपट दिखाया गया है कि सुल्तान की बेटी निकाह के लिए उसकी राह देख रही है, वो किसी और के साथ अय्याशी कर रहा है.

6- संजय लीला भंसाली फिल्म बनाते-बनाते पहले भी भटक जाते रहे हैं, इस बार कुछ ज्यादा ही भटक गए. घायल अवस्था में तलवार लिए अकेला खिलजी राजमहल में पद्मावती की तलाश में घूम रहा है. पद्मावती सैकड़ों रानियों और दासियों के साथ जौहर करने जा रही हैं. जो हालात थे, उसमें अगर पद्मावती और बाकी राजपूत रानियों ने तलवार उठा ली होती तो खिलजी की गरदन उनके कदमों में होती. राजपूतों को युद्ध करने, जीत हासिल करने की योजनाएं बनाने की जगह लफ्फाजी करते हुए ज्यादा दिखाया गया है. ऐसी तमाम चूकों की दास्तान है पद्मावत.

रणवीर सिंह ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो लाजवाब एक्टर हैं

7- सिनेमाघर से बाहर निकलते वक्त सिर्फ दो किरदार याद रह जाते हैं और एक भाव. किरदार जो याद रह जाते हैं वो हैं अलाउद्दीन खिलजी और मलिक गफूर. भाव जो रह जाता है वो ये है कि इस फिल्म के लिए संजय लीला भंसाली को जितना कोसा जाए उतना कम है. फिल्म का विरोध तो लचर फिल्म बनाने के लिए होना चाहिए था.

8- अभिनय की बात करें तो अलाउद्दीन खिलजी की क्रूर, वहशी, हवसी, मक्कार और राक्षस टाइप की भूमिका में रणबीर सिंह छाए हुए हैं. हालांकि कई जगह वो ओवरएक्टिंग के शिकार हुए हैं. ऊपर से भंसाली ने ऐसे कैरेक्टर को फिल्म में डांस भी करवा दिया है, गाना भी गवा दिया है, पूरी फिल्म पर खिलजी का ही कब्जा है.

शाहिद कपूर ने मेहनत तो की है, फिर भी राजा रतन सिंह रावल के किरदार को वो जीवंत नहीं कर पाए हैं. भूमिका के लिए शाहिद बिल्कुल मिस फिट थे. दीपिका पादुकोण के किरदार पद्मावती पर ही फिल्म का नाम है, लेकिन संजय लीला भंसाली ने उन्हें भी ठग लिया. फिर भी जितनी भूमिका उन्हें मिली, दीपिका ने उसके साथ न्याय किया है.

मलिक गाफूर के किरदार को जिम सरभ ने जीवंत बना दिया

खिलजी की बीवी के किरदार में अदिति राव हैदरी ने दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है. लेकिन मलिक गफूर के किरदार में नीरजा फेम जिम सरभ ने कमाल का अभिनय किया है, यादगार अभिनय किया है. गे गुलाम के किरदार को निभाते-निभाते जैसे पूरे किरदार में ही समा गए हैं.

9- भव्यता के चक्कर में पद्मावत में ना तो प्रेम कहानी परवान चढ़ पाई और ना ही दुश्मनी. संजय लीला भंसाली ने इसे चूं-चूं का मुरब्बा बना दिया है. फिल्म बनाने पर डर हावी है. लिहाजा क्लाइमेक्स पूरा नहीं हुआ, बस आखिर में संदेश ही आता है. संजय लीला भंसाली ने पद्मावत बनाकर अपने तमाम दर्शकों को निराश किया है. लेकिन करणी सेना को उन्होंने वही फायदा दिया है, जो फायदा मंदिर आंदोलन ने बीजेपी को दिया था.

10- फिल्म पद्मावत पर मेरी राय से आप इत्तेफाक रख सकते हैं, नहीं भी रख सकते हैं. लेकिन मेरी नजरों का सच यही है कि पद्मावती जैसी किरदार पर बनी फिल्म और संजय लीला भंसाली जैसे फिल्मकार का इससे नाम जुड़ने पर सहज ही कुछ अपेक्षाएं हो जाती हैं. उन अपेक्षाओं पर ये फिल्म खरी नहीं उतरती. जिन्हें भव्यता से प्रेम है, जो रणबीर सिंह के दीवाने हैं, उन्हें ये फिल्म बहुत रास भी आएगी.

(यह लेख सबसे पहले विकास मिश्र की फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है.)

ये भी पढ़ें-

...और इस तरह करणी सेना के गुंडों से मैंने पत्नी की रक्षा की

पद्मावत: अगर करणी सेना की जगह कोई आतंकी संगठन होता, क्या तब भी पीएम मोदी चुप रहते?

जब करणी सेना वालों ने देखी पद्मावत...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲