• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
ह्यूमर

जब करणी सेना वालों ने देखी पद्मावत...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 जनवरी, 2018 03:38 PM
  • 24 जनवरी, 2018 03:33 PM
offline
फिल्म पद्मावती को लेकर विरोध किसी भी सूरत में थमने का नाम नहीं ले रहा. ऐसे में भंसाली लगातार करणी सेना से मांग कर रहे हैं कि वो आएं और फिल्म देखें. यदि करणी सेना के लोग फिल्म देखने आते हैं तो जरा सोचिये कि सिनेमा हॉल का नजारा कैसा होगा?

निर्देशक संजय लीला भंसाली करणी सेना और फिल्म का विरोध कर रहे तमाम लोगों से मांग कर रहे हैं कि वो आएं और फिल्म देखें. संजय का कहना है कि ये लोग पहले फिल्म देख लें फिर उसे हरी या लाल जो भी झंडी देना चाहें दे दें. यदि ऐसा हो जाता है और करणी सेना के प्रमुख तथा उनके समर्थक फिल्म देखने को तैयार हो जाते हैं तो कल्पना करके देखिये उस माहौल की जब हॉल में फिल्म चल रही होगी. मैं बीते कई दिनों से करणी सेना से जुड़ी बातें सुन रहा हूं. ये बातें मेरे मन में पूरी तरह बैठ चुकी हैं. ये शायद इन बातों का ही असर है कि बीती रात मैंने एक बड़ा ही अजीब सपना देखा. सपने में फिल्म पद्मावत का शो चल रहा था. सपने में भंसाली थे, पद्मावत थी, करणी सेना के सुप्रीमो और उनके समर्थक थे और साथ ही था पूरा माहौल.

फिल्म पद्मावत को लेकर भंसाली का तर्क है कि पहले करणी सेना समेत फिल्म के तमाम विरोधी फिल्म देखें तब विरोध करें

मेरे सपने में एक शहर और भंसाली थे. एक ऐसा शहर जिसमें एसी और नॉन एसी सिनमाघरों की भरमार थी. किसी अनहोनी से भयभीत वहां मौजूद भंसाली इस बात को जानते थे कि अगर बवाल हो गया, तो करणी सेना के रंगरूटों को रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां संगठन है वहीं शक्ति है. अब इतने बड़े संगठन में इतनी शक्ति तो होगी कि वो किसी सिनेमाघर की ईंट से ईंट बजा सकता है. संजय ने एक स्थानीय सिंगल स्क्रीन मालिक से बात की, पिक्चर हॉल का मालिक संजय का पुराना दोस्त था. न नहीं कह सका और थोड़ा समझाने-बुझाने के बाद, अपनी स्क्रीन में करणी सेना को फिल्म दिखाने के लिए राजी हो गया.

चूंकि ये फिल्म की खास स्क्रीनिंग थी, अतः भंसाली के लिए ये जरूरी था कि वो वहां माहौल खुशनुमा रखें. फिल्म शुरू होने से पहले ही भंसाली ने पूरे सिनेमाघर में सफाई करवाई,चंदन वाली फिनायल से पोंछा...

निर्देशक संजय लीला भंसाली करणी सेना और फिल्म का विरोध कर रहे तमाम लोगों से मांग कर रहे हैं कि वो आएं और फिल्म देखें. संजय का कहना है कि ये लोग पहले फिल्म देख लें फिर उसे हरी या लाल जो भी झंडी देना चाहें दे दें. यदि ऐसा हो जाता है और करणी सेना के प्रमुख तथा उनके समर्थक फिल्म देखने को तैयार हो जाते हैं तो कल्पना करके देखिये उस माहौल की जब हॉल में फिल्म चल रही होगी. मैं बीते कई दिनों से करणी सेना से जुड़ी बातें सुन रहा हूं. ये बातें मेरे मन में पूरी तरह बैठ चुकी हैं. ये शायद इन बातों का ही असर है कि बीती रात मैंने एक बड़ा ही अजीब सपना देखा. सपने में फिल्म पद्मावत का शो चल रहा था. सपने में भंसाली थे, पद्मावत थी, करणी सेना के सुप्रीमो और उनके समर्थक थे और साथ ही था पूरा माहौल.

फिल्म पद्मावत को लेकर भंसाली का तर्क है कि पहले करणी सेना समेत फिल्म के तमाम विरोधी फिल्म देखें तब विरोध करें

मेरे सपने में एक शहर और भंसाली थे. एक ऐसा शहर जिसमें एसी और नॉन एसी सिनमाघरों की भरमार थी. किसी अनहोनी से भयभीत वहां मौजूद भंसाली इस बात को जानते थे कि अगर बवाल हो गया, तो करणी सेना के रंगरूटों को रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां संगठन है वहीं शक्ति है. अब इतने बड़े संगठन में इतनी शक्ति तो होगी कि वो किसी सिनेमाघर की ईंट से ईंट बजा सकता है. संजय ने एक स्थानीय सिंगल स्क्रीन मालिक से बात की, पिक्चर हॉल का मालिक संजय का पुराना दोस्त था. न नहीं कह सका और थोड़ा समझाने-बुझाने के बाद, अपनी स्क्रीन में करणी सेना को फिल्म दिखाने के लिए राजी हो गया.

चूंकि ये फिल्म की खास स्क्रीनिंग थी, अतः भंसाली के लिए ये जरूरी था कि वो वहां माहौल खुशनुमा रखें. फिल्म शुरू होने से पहले ही भंसाली ने पूरे सिनेमाघर में सफाई करवाई,चंदन वाली फिनायल से पोंछा लगवाया, सीट पर साफ तौलिया रखवाईं और उस पर पीले गुलाब का फूल और 5 रुपए वाली फाइव स्टार चॉकलेट और 1 रुपए वाली मैलोडी की 5 टॉफी भी रखवा दीं. गेट पर खड़े बाउंसर्स को भंसाली ने साफ कह दिया कि वो सेना के जवानों का स्वागत पान पराग से करें. जो पान पराग न खाते हों उनके लिए मीठी वाली सौंफ और मिश्री के अलावा टूथपिक भी रखी जाए. इन बातों के अलावा, उन्होंने बाउंसर्स को ये भी समझा दिया कि, किसी की भावना आहत न हो. इसलिए वो सेना के किसी भी जवान की "चेकिंग" न करें.

फिल्म पद्मावत में भंसाली द्वारा इतिहास के साथ की गयी छेड़छाड़ देखकर राजपूत समुदाय अपनी नाराजगी बनाए हुए है

अभी भंसाली सिनेमाहॉल में लोगों को इंस्ट्रक्शंस दे ही रहे थे कि उनके आई फोन में पदमावत के घूमर वाले गाने की रिंगटोन बजी. फोन पिक करते ही मालूम हुआ कि करणी सेना के "सुप्रीमो" अपने दल बल के साथ सिनेमा हॉल में पधार चुके हैं. भावना आहत होने के चलते गुस्से में आए मेहमानों को शांत करने के लिए पहले तो भंसाली की तरफ से उन्हें आधा लीटर की पानी की बोतलें दीं गयी. पानी पीकर शांत हुए मेहमानों को उसके बाद, पूरे सम्मान के साथ उनकी सीटों पर बैठाया गया. अभी लोग सीट पर ढ़ंग से बैठ भी नहीं पाए थे कि हर लाइन में एक के हिसाब से, हाथ में कलम और पैड पकड़े एग्जीक्यूटिव उनके सामने खड़े हो गए. जिसे सूप पीना था उसने सूप लिया जिसने कॉफी पीनी थी कॉफी ली.

लोग बहुत गुस्सा थे और भंसाली भी ये चाहते थे कि, जल्दी फिल्म खत्म हो, उसे करणी की तरफ से ओके का सर्टिफिकेट मिले और बवाल टले. अभी जिस हॉल में चूं-चां, चिल्ल-पों मची थी वहां फिल्म शुरू होने के बाद सन्नाटा था. लोग मूछों को ताव देते, दाढ़ी को खुजलाते स्क्रीन को घूरे जा रहे थे. गुस्से में स्क्रीन घूरते लोगों को देखकर एक बार तो ये भी लगा कि कहीं आज इनकी गुस्से वाली नजरों के चलते स्क्रीन का पर्दा जल के स्वाहा न हो जाए फिर याद आया कि ये कलयुग है. कलयुग में ऐसा थोड़े ही न होता है.

जिस वक़्त फिल्म की रानी पद्मावती, अरे वही दीपिका जब शाहिद कपूर के साथ पर्दे पर आईं तो सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों से गूंज उठा. लोगों ने सीना चौड़ा कर, कॉलर उठाकर  रानी पद्मावती के सम्मान में नारे लगाए. उनकी जय-जयकार की और फिल्म देखने लग गए. लोगों ने दीपिका और शाहिद वाले सींस खूब एन्जॉय किये. सेना की तरफ से आए एक आत बुजुर्ग तो उन सींस से इतना खुश हो गए कि वो भंसाली की शान में कसीदे पढ़ने से भी नहीं चूके. कहने लगे कि, हम तो बेमतलब में हाय तौबा मचा रहे थे. लड़के(भंसाली) ने काम अच्छा किया है और फिल्म में पैसा भी खूब खर्च किया.

कहा जा सकता है कि फिल्म का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है

वैसे तो फिल्म में सब ठीक था मगर जैसे ही फिल्म में बर्बर बादशाह खिलजी के गुंडे आए लोगों कीभावना उन्हें देखकर एक बार फिर आहत हो गयी. जिसे सूप की प्यालियां दिखीं उन्होंने,सूप की प्यालियों से और जिनको कोल्ड ड्रिंक के खाली केन दिखे उन्होंने कोल्ड ड्रिंक के खाली केनों को स्क्रीन पर फेंक कर अपना विरोध दर्ज किया और बताने का प्रयास किया कि इतिहास भले ही कुछ भी कहे मगर हम अपनी रानी के साथ और उसके आस-पास किसी भी विदेशी आक्रांता को नहीं देख सकते और इसे कत्तई बर्दाश्त नहीं कर सकते. भले ही फिल्म ही क्यों न हो कोई हमारी रानी की तरफ आंख भरकर देखेगा तो हम उसकी आंखें नोच लेंगे.

स्थिति गंभीर हो गयी थी. सिनेमाघर में खिलजी और भंसाली हाय-हाय के नारे लग रहे थे. इसे देखकर डायरेक्टर संजय लीला भंसाली पसीने से थर-थर कांप रहे थे. उन्होंने लोगों का गुस्सा ठंडा करने के लिए, इंटरवल करवा दिया और स्क्रीन पर चलवा दिया कि जिसे जो करना है, वो जल्दी-जल्दी कर ले. फिल्म दो मिनट में दोबारा शुरू होने वाली है.

इंटरवल के बाद

ये फिल्म और भंसाली दोनों के लिए सबसे निर्णायक समय था. करणी सेना द्वारा मिलने वाले सर्टिफिकेट में फिल्म पास होगी या फेल. इसी समय पता चलने वाला था. इंटरवल के बाद फिल्म शुरू हुई भंसाली ने भी मौके पर चौका मारने का प्रयास किया और आए हुए दर्शकों को फ्री के नचोज और पॉपकॉर्न के अलावा कोल्ड ड्रिंक दी. फ्री में मिला ये आइटम लोग खाना तो चाहते थे. जिसे जो मिला उसने "चेहरे पर गुस्से के भाव लिए" वो जल्दी-जल्दी लिया और वापस फिल्म देखने में लग गया.

विरोध कर रही महिलाओं का पक्ष है कि भंसाली ने रानी की गलत छवि दिखाई है

स्क्रीन पर खिलजी के गुंडों को देख वैसे ही सेना के शूरवीर आहत थे उसके बाद जब उन्होंने स्क्रीन पर साक्षात रणवीर का रूप धरे खिलजी को देखा तो उनसे रहा नहीं गया. देखकर लग रहा था कि सारी क्रांति आज यहीं थियेटर में हो जाएगी. लोगों की आहत भावना ऊफान पर थी लोग स्क्रीन की तरफ कोल्ड ड्रिंक, उसके खाली गिलास और केन, पॉपकॉर्न और नचोज फेंक खिलजी तुम वापस जाओ, संजय लीला भंसाली मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. पूरी सिचुएशन आउट ऑफ कंट्रोल थी.

कहा जा सकता है कि उस वक़्त हॉल में इतना तनाव था, इतनी गर्मी थी कि अगर वहां मक्का रखा जाए तो वो पॉप कॉर्न बन जाए, अंडा रख दें तो बिल्कुल ठोस होकर उबल जाए. लोग खफा थे उन्होंने समझाने के लिए भंसाली ने माइक का सहारा लिया और कहा कि, "अरे भइया! ये सिर्फ फिक्शन है" भंसाली अभी अपनी बात खत्म भी नहीं कर पाए थे कि पीछे से करणी सेना के किसी शूरवीर की आवाज आई कि "तुम्हारे फिक्शन की ऐसी तैसी" मां पद्मावती का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान"

हॉल का माहौल खराब था. कोई किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था. हर तरफ शोर था, उग्र चेहरे थे, गुस्से में धधकती लाल आंखें थीं, दांत भींचे लोग थे, गालियां थीं, रोष था, आक्रोश था...इतने में मेरा अलार्म बजा और मालूम चला कि अगर मैं जल्दी नहीं उठा, तो आज समय पर दफ्तर नहीं पहुंच पाऊंगा जिससे एलओपी लग जाएगी और एक दिन की सैलरी कट जाएगी.

ये भी पढ़ें - 

हां तो भइया, सुन लो! पद्मावत देखना अब ब्लू व्हेल गेम का आखिरी चैलेंज है

करणी सेना के ये दस बातें उनके इतिहास, भूगोल पर से पर्दा उठा देगी

भंसाली जी.. अब खुद ही बता दीजिए पद्मावत देखें या नहीं.    

       


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    टमाटर को गायब कर छुट्टी पर भेज देना बर्गर किंग का ग्राहकों को धोखा है!
  • offline
    फेसबुक और PubG से न घर बसा और न ज़िंदगी गुलज़ार हुई, दोष हमारा है
  • offline
    टमाटर को हमेशा हल्के में लिया, अब जो है सामने वो बेवफाओं से उसका इंतकाम है!
  • offline
    अंबानी ने दोस्त को 1500 करोड़ का घर दे दिया, अपने साथी पहनने को शर्ट तक नहीं देते
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲