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Updated: 02 जनवरी, 2022 04:15 PM
सरिता निर्झरा
सरिता निर्झरा
  @sarita.shukla.37
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स्वागत!

खुशामदीद!!

आ ही गए तुम आखिर !

अले अले 2022 घबराओ मत. तुम 2020 की ही पैदाइश हो और लक्षण बिलकुल अपनी दीदी 2021 पर गये हैं. वही जोश. वही धूम, वही डर और शक ओ शुबा की सुबह शाम.

दीदी क्यों भैया क्यों नहीं? ओह व्हाट इल्लॉजिकल क्वेश्चन! अरे एक तो इक्कीस... इक्कीस समझ रहे हो न. नहीं-नहीं शादी की उम्र नहीं भाई शुभ इक्कीस. जो भी शुभ हो उसे बेटियों से जोड़ देना परंपरा है हमारी. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ- परम्परा निभाओ बाकि हक जर ज़मीन में भाड़ में जाओ.

Happy New Year 2022, New Year, Year 2022, New Year Party 2022, Celebration, India, Indiansजैसे हालात अभी से बन रहे हैं कहा जा रहा है कि 2022 भी साल 2021 जितना ही जटिल है

तुम वो सब छोड़ो. नए-नए हो इन सब पचड़ों में न ही पड़ो तो अच्छा. आये हो 364 दिन बचे हैं रहो और निकलो. बेटियां अपना अपना देख लेंगी, जैसे सदियों से देखती आयी हैं. हां तो कह रही थी लक्षण पूरे दीदी वाले हैं. धूम धाम से शुरू हुए हो. उम्मीदों के दिए जगमगा रहे हैं और तुम उनके लिए Omicron का  फायर एक्सटिंग्यूशर लिए आये हो. नया साल आगे आगे ओमिक्रोन पीछे पीछे टू मच फन हैं न.

रेस लगी हैं भैया रेस.

कितना घूम लें. कितना प्रचार कर लें. कितना आधारशिला रख लें कितना उद्घाटन करा लें. कितना कपड़ा बदल लें और कितना फोटू हिंचा लें. कौन? यार तुमसे बोले की अभी अभी उगे हो सवाल न पूछो. मेहमान हो उसी तरह रहो. जादा टांग न अड़ाओ. क्या लगता है तुमको किरांति करोगे कोई? 1857 को गाड़ कर 1947 को भूल गए. 65 को नकार कर 72 पर होती है चर्चा कभी कभी टीआरपी के लिए बाकि 84, 92 और तुम्हारे खानदान का 2002 हिस्ट्री शीटर है.

बाकि कोविड 19 से पहले फॉरगेट 14 का माइल्ड इंफेक्शन फ़ैल चुका है. तो 2014 के बाद से लोगों को कम दिखना, कम सुनना और कम समझना जैसी शिकायतें हो रही हैं लेकिन किसी की मौत नहीं हुई. अब जब तक मरे नहीं तो इंफेक्शन कैसा? कैसा पैंडेमिक? अरे मरें भी तो ऐसे मरें की श्मशान में लकड़ी कम पड़े तिस पर भी नकार दी जाती है मौतें तो ये जीते जागते भुलनाखर खाए लोगों हैं. इनकी कौन सुधि ले.

तो तुम रहो आराम से. बिंदास! डरने की कउनो ज़रूरत नहीं. बहुत बहुत काण्ड कर के सब छूट गए तो तुम तो आज के पैदा हुए मासूम से वक़्त हो. फिर थोड़ा बहुत रिक्स तो चलता है. आखिर सदी का हिस्सा हो. वैसे भी 'इस्क है तो रिक्स है'. देश का युवा भी ये रिक्स समझता है. रिक्स ले कर आवाज़ भी उठाता है. कोशिश भरपूर करता है लेकिन क्या है की भूखे पेट न होये भजन गोपाला तो नून तेल लकड़ी में बदलाव की आग मध्दम पद जाती है.

विदेश वाला युवा? यार तुम गजब हो. आलतू फ़ालतू खबर पैदा होते ही सुन लिए. उनके ननिआउर होए और युवा नहीं रहे वो. उनकी उम्र के युवा दो किशोर के पिता बन गए. युबा! देश का युवा. जो सचमुच बदलाव चाहता है लेकिन... छोड़ो तुम क्या ही कर पाओगे.

परोपकार में न ही पड़ना और 2022 में भी जो जैसा है चलने देना क्योंकि कर तो वैसे भी कोई कुछ नहीं सकता तो बेवजह का 'व्हाई टू टेक स्ट्रेस'? कभी कुछ हो ही जाये - कोई कांड जैसे स्कैम मर्डर रेप तो डरने की बिलकुल जरूरत नहीं है. स्कैम के लिए फट दिए पार्टी का मुआयना करो और चट दिए तय करो की रफा दफा करोगे की लाल टोपी सफेद टोपी करोगे.

नो क्वेशचन! ये सिर्फ गाइड के पॉइंट है. समय आने पर विस्तार से व्याख्या दी जाएगी. बाकि के लिए बदलते समय, परिवेश,बिगड़ते संस्कार गुस्से पर काबू न कर पाने की इक्कीसवीं सदी की नई बीमारी का उपयोग करो. रेप के लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं हैं. पीड़िता जब तक ज़िंदा है तब तक तो रफा दफा आराम से हो जायेगा, सो रिलैक्स! अगर मृत्यु न्याय के प्रपंच से पहले आ गई तो देखते हैं.

ये भी 'डिफर्स ऐज़ पर सिचुएशन',सत्ता ,केस के बढ़ने से होने वाले नफा- नुकसान,ऐसा बहुत कुछ देखने के बाद फैसला होता है. तुम एक ही दिन में सब सीख नहीं जाओगे. माना की तुम 2020 के वंशज हो लेकिन वो भी कोविद 19 में ही उलझे रहे बाकि का श्रेय कहां ही ले पाए. उनकी वजह से लाखों लोग हज़ारों मींल चल कर अपनी गांव पहुंचे और कुछ रस्ते में ही दम तोड़ बैठे. घरों में अत्याचार बढ़े लेकिन एक चुप सौ चुप.

मजाल है की कोई चूं भी हुई हो. बच्चो की पढ़ाई छूटी. लोगो की नौकरियां गई. गोया हिटलर के गैस चैंबर से ज़्यादा मौतें दी उन्होंने. लेकिन मजाल है की कोई उनको क्रेडिट दे दे. उनके इस किये धरे को सबने दबा दिया. बस अपना राग की हम है, तो सब ठीक है. इन कैमरे वालों को शिलान्यास और महोत्स्वों से ही फ़ुरसत नहीं.

किसका शिलान्यास? नो ! बोला न सवाल न पूछो. इग्नोर. बिलकुल वैसे इग्नोर जैसे ज़मीन से जुड़े मुद्दों को हमारे नेता इग्नोर करते हैं. यू नीड टू लर्न ए लॉट!

रेस्ट यू एन्जॉय द डेज़!

संडे मंडे वाले डेज़ नहीं भाई. वो तो है ही. मॉर्निंग ब्लूज़ से ले कर सन्डे सनशाइन सोशल मिडिया पर ऐसे मनाते हैं मानो हमको खबर नहीं. पड़ोस के मिश्रा जी का बेटा दूध वाले के खेत के पास खींची फोटो पर कैप्शन डालता है,'The scenic route is always better"! कुल लाइक आते हैं चउतीस और प्रोफ़ाइल पर लिखा है इन्फ्लुएंसर.

तो ये सब उठा पटक चलेगा और चलने दो. इतने खाली लोग अगर अपने प्रति जाग्रत हो गए तो बदलाव मांगेंगे. बदलाव कोई ला नहीं पायेगा तो फिर स्तिथि... समझ रहें हो न. तो इस पर नो एक्शन! तुम वो मातृ पितृ दिवस वैलेंटाइन डे, मदर्स डे फादर्स दे गर्ल चाइल्ड डे वीमेन डे चिल्ड्रन डे इन पर खास तव्वज्जो देना. बदले हुए शहर मेरा मतलब हैं शहर के बदले नामो को याद करना.

आज पहले दिन के लिए काफी है क्रैश कोर्स. तुम अपने साथ लोकतंत्र के तमाशे की टिकट भी लाये हो तो कहीं फंस ही जाओ तो बताना ,करेंगे कुछ. तुम्हारी मदद को है बहुत से पत्रकार, एप्प यूनिवर्सिटी और खलिहर जनता. 'या या दैट वन!', फॉरगेट 14 से संक्रमित. सो फ़िक्र नॉट. बॉल देख कर शॉट खेलते जाना. तुम अपना खेलो, हम अपना खेलेंगे. ऐसे ही खेल खेल में देश 75 वर्ष का हो गया. आगे भी तुम जैसे आएंगे जायेंगे. देश रहेगा देश रहना चाहिए!

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लेखक

सरिता निर्झरा सरिता निर्झरा @sarita.shukla.37

लेखिका महिला / सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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