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Updated: 19 नवम्बर, 2021 06:27 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियां जोरों से चल रही हैं. सूबे की सत्ता के सर्वोच्च पद पर काबिज होने के लिए भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा के बीच जो खैंचमखैंच मची है, वो आमतौर पर चुनाव के समय ही दिखाई पड़ती है. कोई अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए सत्ताधारी पक्ष का एक विधायक तोड़े ले रहा है. तो, कोई इसका सियासी बदला लेने के लिए एकसाथ चार एमएलसी लिये जा रहा है. इन सबसे इतर यूपी चुनाव में एक बात बहुत ही अटपटी लगती है. वो ये है कि आमतौर पर चुनावों में हिंदू-मुस्लिम की बात कर ध्रुवीकरण का आरोप भाजपा पर लगाए जाने की परंपरा रही है. लेकिन, इस चुनाव में ऐसा लग रहा है कि हिंदू-मुस्लिम की बात करने का ठेका यानी जिम्मेदारी कांग्रेस और सपा को दे दी गई है.

अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि यूपी चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम करने का ठेका कांग्रेस और सपा को कैसे मिला? वैसे, थोड़ा सा भी ध्यान दिया जाए, तो स्थिति काफी हद तक साफ हो जाती है. 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ बदला हो या ना बदला हो. लेकिन, चुनाव लड़ने का तरीका जरूर बदल दिया है. क्योंकि, अब भारत में होने वाले सभी चुनावों में इन समीकरणों को साधने का काम आजकल ठेके यानी जिम्मेदारी पर देने का चलन बन गया है. समझने वाली भाषा में बोलें, तो चुनावों का 'पीकेकरण' कर दिया गया है. तो, इस बात की पूरी संभावना नजर आती है कि हो सकता है भाजपा ने इस बार नौकरियों से लेकर तमाम चीजों को आउटसोर्स करने की तर्ज पर हिंदू-मुस्लिम करने का ठेका भी आउटसोर्स कर दिया हो.

Akhilesh Yadav Rahul Gandhiइस चुनाव में ऐसा लग रहा है कि हिंदू-मुस्लिम की बात करने का ठेका यानी जिम्मेदारी कांग्रेस और सपा को दे दी गई है.

'पीके' बन रहे हैं अखिलेश-खुर्शीद-राहुल

सभी को पता है कि चुनावों को मैनेज करने के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके को ठेका देने का चलन इन दिनों राजनीति में बढ़ गया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिस तरह से सरकारी नौकरियों पर लोगों की भर्ती न होकर उन पदों को आउटसोर्सिंग के जरिये भरा जा रहा है, ठीक उसी तरह से चुनावों को मैनेज करने के लिए भी सीधी भर्तियां नहीं होती हैं. बल्कि, परोक्ष रूप से किसी न किसी को इसे संभालने का ठेका दे दिया जाता है. हो सकता है कि भाजपा ने इसके लिए अलग से निविदाएं मंगाई होंगी. और, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के साथ राहुल गांधी ने कुछ एक्सट्रा अर्निंग (राजनीतिक ही समझिए) के चक्कर में टेंडर डाल दिया हो. अब ठेका मिल गया है, तो जिम्मेदारी से उसे पूरा भी करना पड़ेगा. वरना अगली बार के लिए टेंडर मिलने में समस्या हो सकती है. हो सकता है कि पीके की तरह अखिलेश यादव, सलमान खुर्शीद और राहुल गांधी ने भी चुनाव मैनेज करने का ठेका उठा लिया हो.

क्योंकि, अखिलेश यादव के 'देशभक्त जिन्ना', सलमान खुर्शीद के आईएसआईएस और बोको हरम जैसा हिंदुत्व और राहुल गांधी का लिंचिंग करने वाला हिंदुत्व इसी ठेके के नतीजे कहे जा सकते हैं. वैसे चुनाव के समय जनता-जनार्दन को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया जाता है. मतलब, ये लो...वो लो...कुछ बच गया है, तो और लो के टाइप से मतदाताओं पर विकास योजनाओं की जो बरसात होती है, वो किसी भी सरकार के अपने पांच सालों के शासनकाल से कहीं ज्यादा होती है. लेकिन, अब चुनाव के समय विकास के साथ ही हिंदू-मुस्लिम को भी बराबर तवज्जो दी जाने लगी है. मतदाताओं के तौर पर हिंदू-मुस्लिम पर सभी राजनीतिक दलों का एकाधिकार है. क्योंकि, इनके वोटों के सहारे ही सत्ता की राह तय की जाती है. लेकिन, यूपी चुनाव से पहले अचानक से उमड़ने वाला जिन्ना प्रेम और हिंदुत्व पर की जाने वाली चोट आसानी से गले नहीं उतरती है.

क्योंकि, देश में मूर्खता की पराकाष्ठा को लेकर जब भी बात की जाती है, तो एक कहानी अचानक ही हमारी दिमाग में कौंध जाती है, जिसमें पेड़ की डाल पर बैठकर उसी डाल को काटने का संदर्भ आता है. इस कहानी में ये बताया गया है कि एक शख्स जिस डाल पर बैठा था, उसे ही काट रहा था. और, किसी निरे मूर्ख की तरह बिना ये सोचे कि डाल कटने पर उसी के साथ वो भी जमीन पर गिर पड़ेगा. वैसे, भारत में इस मिथक कथा को अभिज्ञान शाकुंतलम, मेघदूतम जैसा महान साहित्य रचने वाले महाकवि कालिदास के साथ जोड़ा जाता है. कालिदास जैसे साहित्यकार से ऐसी कहानी की जुड़ना भी ठेका दिए जाने वाली जैसी साजिश की ओर इशारा हो सकता है.

मोदी का गुप्त चुनावी हथियार

खैर, बात चुनाव से शुरू हुई थी, तो उसी पर लौटते हैं. 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ बदला हो या ना बदला हो. लेकिन, चुनाव लड़ने का तरीका जरूर बदल दिया है. क्योंकि, अब भारत में होने वाले सभी चुनावों में इन समीकरणों को साधने का काम आजकल ठेके यानी जिम्मेदारी पर देने का चलन बन गया है. समझने वाली भाषा में बोलें, तो चुनावों का 'पीकेकरण' कर दिया गया है. चुनावों को मैनेज करने के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को ठेका देने का चलन इन दिनों राजनीति में बढ़ गया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिस तरह से सरकारी नौकरियों पर लोगों की भर्ती न होकर उन पदों को आउटसोर्सिंग के जरिये भरा जा रहा है, ठीक उसी तरह से चुनावों को मैनेज करने के लिए भी सीधी भर्तियां नहीं होती हैं. बल्कि, परोक्ष रूप से किसी न किसी को इसे संभालने का ठेका दे दिया जाता है.

वैसे भी चुनाव की बात हो और उसमें भी केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की मामला हो, तो चीजों को हल्के-फुल्के तौर पर मैनेज नहीं किया जा सकता है. आसान तरीके से समझा जाए, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लोकार्पण कार्यक्रम को ही देख लीजिए. पीएम नरेंद्र मोदी बाकायदा भारतीय वायुसेना के ग्लोबमास्टर विमान से सुल्तानपुर उतरे. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे को जनता को समर्पित करते हुए इसके फायदे गिनाए. और, जनता-जनार्दन को घर जाने से पहले एयर शो भी दिखवाया. देश के बेहतरीन लड़ाकू विमानों की कलाबाजियों पर आखिर कौन ताली नहीं बजाएगा? चुनाव को मैनेज करने का ये तरीका शानदार ही कहा जाएगा. तो, इसे देखते हुए पूरी संभावना है कि भाजपा की ओर से चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम करने का ठेका विपक्षी दलों को दे दिया गया हो.

वैसे भी चुनाव के समय जनता-जनार्दन को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया जाता है. मतलब, ये लो...वो लो...कुछ बच गया है, तो और लो के टाइप से मतदाताओं पर विकास योजनाओं की बरसात होती है. तो, आने वाले समय में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल एक्सप्रेस वे की तरह और भी कई सौगातें मिलेंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पिछले दो दौरों में कुशीनगर एयरपोर्ट और मेडिकल कॉलेजों की एक लंबी फेहरिस्त दे ही गए हैं. और, यूपी चुनाव में हिंदू-मुस्लिम करने के लिए मुद्दे को आउटसोर्स कर ही दिया गया है. तो, भाजपा की ओर से दिए जा चुके टेंडर के हिसाब से अखिलेश यादव, सलमान खुर्शीद, राहुल गांधी सरीखे नेता अपने बयानों से लोगों का मनोरंजन करते ही रहेंगे. जिससे भाजपा को यूपी चुनाव मैनेज करने में कोई समस्या ना हो. इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये नरेंद्र मोदी की ओर से चुनावों को मैनेज करने का कोई गुप्त चुनावी हथियार हो.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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