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Updated: 09 नवम्बर, 2019 04:39 PM
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Ayodhya Ram Mandir verdict: अयोध्या विवाद (Ayodhya Dispute) अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका है. कोर्ट की तारीखों से गुजरता हुआ बरसों बरस चला 'एक रुका हुआ फैसला' सारी कानूनी परिक्रमाएं और प्रक्रियाएं पूरी करते हुए आखिरकार अपनी मंजिल पर पहुंच ही गया. Supreme Court ने हर पक्षकार की बातों को न सिर्फ ध्यान ने सुना है बल्कि छोटी से छोटी बारीकियों पर भी पूरी तरह गौर फरमाया है - और फिर कुछ चीजों को निर्विवाद माना है, लेकिन कुछ ऐसी भी रहीं जिन्हें पूरी तरह नजरअंदाज भी किया है.

नैसर्गिक और एक ऐतिहासिक फैसला

जब कुछ अच्छा होना होता है तो आरंभ भी अच्छा ही होता है. 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में जब पांच जजों की संविधान पीठ फैसला सुनाने बैठी तो शुरू में ही इस बात का इशारा हो गया था.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) ने सबसे पहले यही बताया कि 'ये फैसला सर्व सम्मत है'. मतलब, फैसला जजों के बहुमत की राय का मोहताज नहीं बना. न तीन-दो की नौबत आयी, न चार-एक की - बल्कि पूरे के पूरे पांच-शून्य से फैसला हुआ.

अब भला और क्या चाहिये - देश की सर्वोच्च अदालत का सर्व सम्मति से एक सर्वमान्य फैसला! देखा जाये तो अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के सामाजिक ढांचे की मजबूती के साथ साथ राजनीतिक परिवेश के लिए भी बड़ा संदेश है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों के आधार पर होते हैं और अयोध्या मामले में भी देश की सबसे बड़ी अदालत ने वैसा ही किया है. जैसा कि पहले से ही माना जा रहा था और आगे भी माना जाएगा कि ये ऐतिहासिक फैसलों में भी ऐतिहासिक निर्णय है. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस में जो फैसला सुनाया है उसे बड़े लंबे अरसे तक 'न भूतो न भविष्यति' कैटेगरी में रखा जाएगा.

ayodhya dispute over nwअयोध्या में बनेगा राम मंदिर, विवाद हमेशा के लिए खत्म

अयोध्या केस में फैसला सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने वे सारे तौर तरीके अख्तियार किये जो संभव रहे. मध्यस्थता की आखिरी कोशिश में भी कभी दखल नहीं दिया, बल्कि सुनवाई के साथ साथ जारी रखने की पूरी छूट दी.

अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए कानूनी प्रक्रिया के समानांतर राजनीतिक और गैर राजनीतिक प्रयास भी कम नहीं हुए, लेकिन कभी बात नहीं बन पायी. जब हर उपाय नाकाम नजर आया तो सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही फैसला सुनाने का फैसला किया - बहरहाल, अंत भला तो सब भला.

कानून की नजर में सबूत ही सब कुछ होता है

अदालत की नजर में सबूत ही सब कुछ होता है. सबूत भी जरूरी नहीं कि हर बार कागज या जमीन का कोई टुकड़ा या परिस्थितिजन्य आकलन हो, सबूत वो भी है जिसे तर्कों के आधार पर परखते हुए उसके अस्तित्व को बखूबी महसूस किया जा सके. वो खुद खड़े होकर बोले कि हां, सच यही है, यही है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मुख्य तौर पर चार बिंदु उभर कर सामने आये हैं -

1. राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार एक ट्रस्ट बनाये और इसके लिए 3 महीने का वक्त निर्धारित किया जाता है.

2. अयोध्या के किसी प्रमुख इलाके में मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए वैकल्पिक जमीन दी जाये.

3. रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड ही सुप्रीम कोर्ट की नजर में पक्षकार - और निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज हो गया.

4. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को अतार्किक करार दिया जिसमें विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने की बात थी.

अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही सारे सबूतों को देखते और परखते हुए, गवाहों के बयानात के मद्देनजर फैसला सुनाया है - राम मंदिर वहीं बनेगा. बिलकुल, राम मंदिर वहीं बनेगा जहां राम लला का जन्म हुआ.

अब ये जानना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के इस नतीजे पर पहुंचने में वे कौन सी चीजें और कौन सी बातें रहीं जिनकी इसमें बड़ी भूमिका रही.

ASI का अध्ययन

अयोध्या के फैसले में ASI यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बड़ा रोल सामने आया है. एएसआई ने अपने अध्ययन के आधार पर पाया था कि मंदिर 12वीं सदी में बनाया गया था. ASI के सबूतों के आधार पर कोर्ट ने माना कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वो इस्लामिक नहीं थीं और विवादित ढांचे में पुरानी चीजें इस्तेमाल की गई थीं.

दरअसल, मुस्लिम पक्षकार लगातार कह रहे थे कि ASI की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिये, हालांकि, कोर्ट ने फैसले में ये भी कहा कि नीचे जो संरचना मिली सिर्फ उसी की बदौलत हिंदुओं के दावे को नहीं माना माना जा सकता.

1. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ASI संदेह से परे है और उसके अध्ययन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

2. ASI के अध्ययन से साबित हुआ कि नष्ट किए गये ढांचे के नीचे मंदिर था, लेकिन ASI ये स्थापित नहीं कर पाया कि मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण किया गया था.

3. रिकॉर्ड के सबूतों से मालूम होता है कि विवादित जमीन के बाहरी हिस्से में हिंदुओं का कब्जा था. सबूत इस चीज के भी मिले कि अंग्रेजों के भारत आने के पहले से राम चबूतरा और सीता रसोई की पूजा हिंदू करते थे.

राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ :

हिंदू हमेशा से मानते रहे हैं कि मस्जिद का भीतरी हिस्सा ही भगवान राम की जन्मभूमि है।

1. हिंदुओं की यह आस्था और उनका यह विश्वास की भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, यह निर्विवाद है.

2. हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं।

3. कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा किया करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे।

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष की आस्था और विश्वास को तो विवादों से परे माना ही, उसकी निरंतरता ने पक्ष और दावेदारी सबसे ज्यादा मजबूत की. एक तरफ हिंदू पक्ष की पूजा में निरंतरता बनी रही, तो दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष इबादत के मामले में एक प्वाइंट पर फोकस नहीं दिखा और इसी ने दावेदारी मजबूत नहीं रहने दी.

कभी बाहर, कभी भीतर :

1. मुस्लिम पक्ष का दावा रहा कि विवादित स्थल पर नमाज लगातार पढ़ी जाती रही, लेकिन कोर्ट ने पाया कि 1856-57 तक वहां पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है.

2. कोर्ट ने पाया कि 1949 तक मुस्लिम समुदाय ने नमाज पढ़ी लेकिन वे इस बात के सबूत पेश नहीं कर पाये कि 1857 से पहले विवादित स्थल पर सिर्फ उनका ही कब्जा था.

3. अदालत ने पाया कि मुस्लिमों ने मस्जिद का त्याग कर दिया हो, ऐसा तो कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन ये जरूर साबित हुआ कि मुस्लिम ढांचे के भीतर भी इबादत करते थे और उसके बाहर भी. एक ही जगह या किसी भी एक जगह लगातार इबादत की बात साबित नहीं हो सकी और यही वो प्वाइंट रहा जहां दावेदारी कमजोर पड़ गयी.

सुप्रीम कोर्ट ने तो अब साफ साफ कह दिया है कि 'मंदिर वहीं बनेगा' लेकिन ये काम सरकार की ओर से बनाया जाने वाला ट्रस्ट कराएगा. अब ये राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है कि वो अपने लोगों को कैसे ये सब समझाते हैं.

बाकी चीजें अपनी जगह हैं, एक बात तो पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि आजादी के बाद के भारतीय इतिहास में दो तारीखें खास तौर पर दर्ज की जाएंगी- एक, 5 अगस्त, 2019 और दूसरी, 9 नवंबर, 2019 - और इसके साथ ही ये मानना पड़ेगा कि देश के दो बड़े विवाद पूरी तरह खत्म हो चुके हैं.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला आप यहां पढ़ सकते हैं - LINK

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