
- दिल्ली में सिख टैम्पो ड्राइवर से जुड़ी घटना पर इन 10 सवालों का जवाब कौन देगा? Read More
- सरफराज अहमद के खिलाफ बगावत पाकिस्तान का इतिहास दोहरा रही है! Read More
- दिल्ली में एक सिख की कटार चली, फिर पुलिस की लाठी और हुआ सियासी बवाल Read More
- RV 400 भारत की पहली इलेक्ट्रिक बाइक Micromax फोन वाली सफलता दोहरा सकती है! Read More
- इंग्लैंड का अफगानिस्तान पर हमला और बम बरसे राशिद खान पर Read More
- बिहार में बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार को योगी आदित्यनाथ से सीखने की जरूरत है Read More
- सिलेक्टर मौलाना, कप्तान हाफिज-ए-कुरान, पाकिस्तान टीम का तो अल्लाह ही मालिक Read More
- उबासी लेता कप्तान और हुक्का पीते खिलाड़ी, पाकिस्तान को मैच तो हारना ही था ! Read More
- ये बातें इशारा कर रही हैं कि अफगानिस्तान की टीम में सब ठीक नहीं है ! Read More
- वर्ल्डकप को लेकर केविन पीटरसन ने कई लोगों की नाराजगी को आवाज दे दी है Read More
- 'एक देश-एक चुनाव' में नफा कम नुकसान ज्यादा है Read More
- चेन्नई में बस की छत से गिरे छात्रों को प्रभु देवा का नमस्कार! Read More
- संजीव भट्ट की उम्र कैद में भी देखने वालों को मोदी ही दिख रहे हैं Read More
- पाकिस्तान क्या किसी भी टीम के लिए भारत को हरा पाना मुश्किल है Read More
- मोदी को शपथ लेते राहुल गांधी ने देखा, लेकिन बहुत-कुछ मिस भी किया Read More
- Salman Khan की फिटनेस उनके लिए जरूरी भी, मजबूरी भी Read More
- BJP की तरह कांग्रेस की भी नजर केरल के बाद बंगाल पर ही है Read More
- राहुल गांधी की लगातार फोन देखने की 'बीमारी' लाइलाज नहीं है Read More
- India vs Pakistan: इमरान खान ने टीम को 3 टिप्स दिए, खिलाड़ियों ने एक भी नहीं माने ! Read More
- KIA Seltos ह्युंडई क्रेटा की कमी को पूरा करती है Read More
औरंगजेब के इतिहास की 'ईमानदारी' को उसकी बेटी जेबुन्निसा की गुमशुदा कहानी से समझिए!
औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसा की कहानी मुग़ल सल्तनत के आलमगीर के समूचे व्यक्तित्व को तार तार कर देती है.
-
Total Shares
पिछले दिनों ज्ञानवापी मामले में औरंगजेब की 'संतई' से शुरू हुई बहस एक अंतहीन और निरर्थक धार्मिक विवाद का रूप ले चुकी है. हालांकि सिलसिलेवार चर्चाओं की वजह से पहली मर्तबा ऐसा हुआ जब भारतीय इतिहास को लेकर तमाम नई जानकारियां भी सामने आ रही हैं. यह बहस का ही असर है कि कुछ विदेशी वेबसाइट्स पर अब इतिहास की विवेचना में मुसलमान शासकों और महाराणा प्रताप-शिवाजी महाराज से अलग हेमू विक्रमादित्य और बंदा बहादुर जैसे भारतीय राजाओं पर भी बात करने की जरूरत महसूस होने लगी है. जबकि पहले हाजी मस्तान और करीम लाला जैसों का इतिहास तो दिख जाता था, मगर कभी हेमू बंदा बहादुर नहीं दिखते थे और महाराजा रणजीत सिंह के पराक्रम की बजाए प्रेम कहानी का ज्यादा जिक्र होता था.
हाल फिलहाल की बहसों में कुछ जानकारियां तो ऐसी भी थीं कि इतिहास में तमाम पीएचडी करने वाले भी हैरान रह गए. उन्हें लगा कि ये भी वाट्सऐप यूनिवर्सिटी से निकला ज्ञान होगा शायद. वैसे वाट्सऐप यूनिवर्सिटी पर भी कई बातें कोरी बकवास या झूठ भर नहीं होतीं. हां- ये दूसरी बात है कि उन्हें बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है. और यह चीज इस वजह से भी है कि इतिहास में जान बूझकर कई तथ्यों को नजरअंदाज किया गया. अब जब वे महिमामंडन के रूप में सामने आते हैं- उन्हें वाट्सऐप यूनिवर्सिटी का ज्ञान बताते हुए खारिज करने की जल्दबाजी दिखती है. मैं अपना खुद का एक उदाहरण देना चाहूंगा. आज से कुछ महीना पहले तक क़ुतुब मीनार को हिंदू मंदिरों ढहाकर बनाए जाने का तर्क देने वाले ना जाने कितनों को डांटकर चुप कराया है.
साइंस के एक सामान्य विद्यार्थी को पाठ्यक्रम से जितना इतिहास पढ़ने को मिलता है- मैंने भी उतना भर पढ़ा. इतिहास कभी विषय रहा नहीं कि उसे और ज्यादा पढ़ लेता. लेकिन सम्मानित इतिहासकारों को समय समय पर सुनता रहा. और उन्हें भी सुनता रहा जिन्हें अपने हिस्से का इतिहास पढ़ने के लोए छोड़ा हुआ था. जब प्रतिष्ठित वाम इतिहासकारों से ही पता चला कि नहीं क़ुतुब भी मंदिरों को ढहाकर ही बनाया गया है- आज लोगों को डांटकर चुप कराने के लिए गिल्ट महसूस कर रहा हूं. अगर मुझे पहले से पता रहता तो शायद गंगा जमुनी तहजीब को बचाने के लिए कोई बौद्धिक मगर मानवीय पक्ष जरूर खोज लेता. अब लगता है कि मानवीय आधार पर तर्क स्थापित करने की जरूरत ही क्या है. उसके किसी की सोच पर क्या फर्क पड़ जाएगा?
औरंगजेब की बेटी के बरे में बहुत से लोगों को नहीं पता.
भारत के इतिहास में विदेशी आक्रांताओं का होना दुर्भाग्य
यह भारत का दुर्भाग्य है कि सामान्य भारतीयों को बहुत संक्षिप्त इतिहास पढ़ाया गया है. और उसमें भी मुग़ल ही मुग़ल थे. मध्यकाल में दक्षिण भारत में क्या हो रहा था- टीपू सुल्तान और निजाम के अलावा हमें कुछ भी नहीं मालूम. जबकि वहां भी कई महत्वपूर्ण गैरमुस्लिम राजा थे. मध्यकाल के इतिहास में भी औरंगजेब सबसे तुर्रम खान नजर आता है. औरंगजेब मुगलिया शासकों में सबसे क्रूर नजर आता है. उसकी बेइंतहा क्रूरता के अनगिनत किस्से किताबों में दर्ज हैं. हालांकि औरंगजेब को संत बताने वालों की कोई कमी नहीं है. सवाल है कि क्या औरंगजेब संत था?
औरंगजेब एक पिछड़ी सोच का बहुत मामूली टुच्चा कट्टरपंथी रूढ़िवादी और जातिवादी इंसान था. हालांकि पाठ्यक्रमों के मान्य तथ्यात्मक इतिहास में उसे संत की तरह ही पेश किए जाने वाले उदाहरण दिखते हैं. जब औरंगजेब के जीवन के दूसरे पहलुओं को देखते हैं तो टोपी सिलकर गुजारा करने, कच्ची कब्र वाली वसीयत- असल में इतिहास बदलने की उसकी व्यापक योजनाओं का हिस्सा नजर आता है. पिता पर औरंगजेब के जुल्म, दाराशिकोह समेत भाइयों रिश्तेदारों के कत्लेआम के साथ गैरमुस्लिमों के धर्मांतरण और कत्लेआम को बहुत चालाकी से उसकी धार्मिक मान्यताओं की चादर से छिपाने की कोशिश दिखती है. इतिहास का यह गोलमाल अब छिपी चीज नहीं है.
जेबुन्निसा को पढ़ लीजिए औरंगजेब समझ में आ जाएगा
एक जमाने में औरंगजेब की सबसे दुलारी संतानों में शुमार रही उसकी बेटी जेबुन्निसा तो औरंगजेब के रूप में एक नर पिशाच को जानने की बढ़िया केस स्टडी है. कमाल की बात यह भी है कि तीसमारखां औरंगजेब की बेटी जो लगभग दाराशिकोह की तरह दिखती- सिर्फ कुछ महीने पहले तक उसे मैं भी नहीं जानता था. इतिहास को लेकर मैंने अपनी सीमा ऊपर ही बता दी है. मुझ जैसे असंख्य लोग हैं देश में. अब जबकि उसकी कहानी भी जान गया हूं तो औरंगजेब को लेकर मेरे मन में अब किसी इफ बट नो की गुंजाइश नहीं है. जेबुन्निसा बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी थी. बुद्धिमान तो थी ही वह आधुनिक खयालात की भी थी और इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों की भी इज्जत करती थी. जेबुन्निसा- औरंगजेब और दिलरस बानो बेगम की सबसे बड़ी संतान थी. उसका जन्म 1638 में और मृत्यु 1702 में हुई थी.
जेबुन्निसा ने मात्र सात साल की उम्र में कुरान को याद कर लिया था और हाफिज बन गई थी. बेटी की उपलब्धि पर औरंगजेब ने जश्न मनाया था. उसने जेबुन्निसा की बेहतर से बेहतर शिक्षा का ख्याल रखा और खूब जेब खर्च दिए. जेबुन्निसा को दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य, इतिहास और अनुवाद में खूब दिलचस्पी थी. बताया जाता है कि उस जमाने में उसके पास एक बढ़िया लाइब्रेरी थी. पढ़े लिखे लोगों के साथ उसके संबंध थे. इसमें कई कवि और साहित्यकार शामिल थे. जेबुन्निसा ने 14 साल की उम्र से कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था. दूसरे शायरों के साथ उसके गुप्त मुशायरों में भी शामिल होने की बात सामने आती है. जेबुन्निसा की प्रतिभा और व्यक्तित्व ही बाद में उसकी परेशानी का सबब बनने लगे. हालांकि वह छिपकर कविताएं लिखती रही.
औरंगजेब लगातार सुर्ख़ियों में है.
बेटी के आजाद ख्याल से परेशान रहता था औरंगजेब, प्रेमी को कुचलवा कर मरवा दिया
जेबुन्निसा की शादी उसके चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से बचपन में ही तय हो गई थी. सुलेमान उन्हीं दारा शिकोह का बेटा है जो मुग़ल सल्तनत के वैध उत्तराधिकारी थे जिनकी बर्बर हत्या कर औरंगजेब ने मुगलिया तख़्त पर कब्जा जमाया था. बाद में औरंगजेब ने ही ग्वालियर किले में सुलेमान की भी क्रूर तरीके से हत्या करवा दी थी. सुलेमान की मौत के बाद जेबुन्निसा की शादी नहीं हो पाई. जेबुन्निसा पर दाराशिकोह की परंपरा का गहरा असर था. पिता के डर वह मखफी नाम से कविताएँ लिखती थी. साहित्यिक गलियारे में उसकी कविताओं की चर्चा थी. वक्त के साथ जेबुन्निसा की बगावत औरंगजेब को चुभने लगी. जेबुन्निसा का लिखना पढ़ना, कविताओं को लिखने और तरन्नुम में गाने का शौक, अन्य धर्मों में बेटी की दिलचस्पी को भला कट्टरपंथी औरंगजेब कैसे बर्दाश्त कर पाता. कोढ़ में खाज साबित हुई जवान और ख़ूबसूरत जेबुन्निसा की अकील खां नाम के शख्स से मोहब्बत.
अकील खां खुद एक शायर था. एक जैसे साहित्यिक खयालात की वजह से दोनों एक दूसरे को प्यार कर बैठे. जब यह बात आलमगीर तक पहुंची वह आगबबूला हो गया. उसने दोनों को ना मिलने की समझाइश दी. पर प्यार करने वाले कहां मानते हैं. कहते हैं कि जब सिलसिला थमता नहीं दिखा तो औरंगजेब ने अकील खां को दिल्ली के सलीमगढ़ किले में हाथी से कुचलवाकर मार डाला. सुलेमान शिकोह के बाद इस घटना ने भी जेबुन्निसा को बुरी तरह तोड़ कर रखा दिया, लेकिन पिता के प्रति उसकी बगावत और बढ़ती नजर आई. धार्मिक कट्टरता में अंधा हो चुके औरंगजेब ने अपनी सबसे प्यारी बेटी को ही सलीमगढ़ किले में कैद करने की सजा दी.
जेबुन्निसा का दर्द उसकी कविताओं में दिखता है
जेबुन्निसा ने 20 साल तक किले में शाही कैदी का जीवन बिताया. हालांकि इस दौरान उसपर भारतीय धर्म साहित्य और दर्शन का गहरा असर हुआ. उसने सैकड़ों शायरी और रुबाइयां लिखीं. फारसी अनुवाद कराए. 'दीवान-ए-मख्फी' में सलीमगढ़ के उसके एकांत जीवन की पूरी झलक मिलती है. उसकी शायरी में एक अंतहीन प्रतीक्षा नजर आती है. उसके दीवान की मूल पांडुलिपियों के तमाम हिस्से आज भी लंदन की नेशनल लाइब्रेरी में सुरक्षित हैं. ध्रुव गुप्त ने जेबुन्निसा की एक कविता के फारसी से अंग्रेजी के अनुवाद से हिंदी अनुवाद किया था. उसमें जेल के दौरान के उसके जीवन और दर्द को समझा जा सकता है.
अरे ओ मख्फी
बहुत लंबे हैं अभी
तेरे निर्वासन के दिन
और शायद उतनी ही लंबी है
तेरी अधूरी ख़्वाहिशों की फेहरिस्त
अभी कुछ और लंबा होगा
तुम्हारा इंतज़ार
शायद तुम रास्ता देख रही हो
कि उम्र के किसी मोड़ पर
किसी दिनलौट सकोगी अपने घर
लेकिन, बदनसीब
घर कहां बच रहा है तुम्हारे पास
गुज़रे हुए इतने सालों में
ढह चुकी होंगी उसकी दीवारें
धूल उड़ रही होगी अभी
उसके दरवाजों और खिड़कियों पर
अगर इंसाफ़ के दिन ख़ुदा कहे
कि मैं तुम्हें हर्ज़ाना दूंगा
उन तमाम दुखों का
जो जीवन भर तुमने सहे
तो क्या हर्ज़ाना दे सकेगा वह मुझे
जन्नत के तमाम सुखों के बाद भी
वह एक शख्स तो उधार ही रह जाएगा
ख़ुदा पर तुम्हारा
सलीमगढ़ में निर्वासित जीवन जीने के दौरान जेबुन्निसा कृष्ण भक्ति की तरफ भी आकर्षित हुईं. उन्होंने कृष्णा भक्ति में भी कई कविताएँ लिखी हैं. कहते हैं कि कैद में रहने के दौरान उन्होंने करीब 5 हजार शेर और रुबाइयाँ लिखीं. जेबुन्निसा के उस्ताद हम्मद सईद अशरफ मज़ंधारानी थे. हम्मद सईद फारसी कवि थे. उन्हीं की वजह से जेबुन्निसा में पढ़ने-लिखने की ललक पैदा हुई थी. जेबुन्निसा को बहुत ख़ूबसूरत लेकिन साधारण तरीके से रहने वाली महिला बताया जाता है. उन्हें सफ़ेद कपड़े पहनना बहुत पसंद था. उन्हें शाही राजकुमारियों की तरह सजने संवरने का शौक नहीं था. हां मोतियों को पहनने से बहुत लगाव था.
हिंदू राजाओं से भी हैं जेबुन्निसा की मोहब्बत के किस्से
जेबुन्निसा रुढ़िवादी महिला नहीं थीं. कुछ लोग तो कहते हैं कि उसे बुंदेला महाराज छत्रसाल से मोहब्बत हो गई थी. एक महफ़िल में जेबुन्निसा ने छत्रसाल को देखा था. हालांकि औरंगजेब छत्रसाल को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था. एक हिंदू राजा से बेटी की मोहब्बत को औरंगजेब बर्दाश्त नहीं कर पाया. इसी वजह से सलीमगढ़ किले में निर्वासित कर दिया था. कहीं कहीं यह भी कहा जाता है कि जेबुन्निसा छत्रपति शिवाजी महाराज के किस्सों को सुनकर उनकी तरफ आकर्षित हो गई थी. दावा यह भी किया जाता है कि उसने शिवाजी महाराज को प्रेम प्रस्ताव भी दिया जो खारिज कर दिया गया था. छत्रसाल या शिवाजी से प्रेम की कहानी कितनी सच्ची है यह जानकारी नहीं. मगर औरंगजेब के खिलाफ जेबुन्निसा के बगावती तेवरों का अंदाजा इससे लग जाता है.
20 साल की कैद के बाद जेबुन्निसा की मौत सलीमगढ़ किले में हो गई थी. उसे काबुली गेट के पास तीस हजार बाग़ में दफनाया गया था. जेबुन्निसा स्वाभाविक रूप से मुग़ल दौर की सबसे प्रभावशाली महिला दिखती है बावजूद उसे इतिहास में जगह नहीं दी गई. इसमें कोई शक नहीं है कि जेबुन्निसा, औरंगजेब को लेकर मान्य इतिहास की तमाम धारणाओं को खारिज कर देती है. तो क्या यही वजह है कि जेबुन्निसा को इतिहास में इसीलिए जगह नहीं दी गई ताकि औरंगजेब को महान बनाया जा सके?
आपकी राय